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July 11, 2025

मुंबई लोकल, 11 जुलाई 2006, 7 धमाके और टुकड़ों में बिखरी ज़िंदगियां

 Mumbai Local Terror Attack: 11 जुलाई- पश्चिम रेलवे के कर्मचारियों ने शुक्रवार को 11 जुलाई 2006 के ट्रेन विस्फोटों की 19वीं बरसी पर पीड़ितों को श्रद्धांजलि अर्पित की। ग्यारह जुलाई की उस भयावह शाम की यादें आज भी लोगों के मन में ताजा हैं, जब यहां उपनगरीय ट्रेनों के डिब्बों में सात विस्फोट हुए थे, जिन्होंने मुंबई की रफ़्तार पर रोक लगा दी। उन्नीस साल पहले 11 जुलाई की शाम को व्यस्त समय में शहर की लाइफलाइन मानी जाने वाली लोकल ट्रेनों में विभिन्न स्थानों पर एक साथ हुए विस्फोटों में 180 से अधिक लोगों की जान चली गई तथा 800 से अधिक लोग घायल हो गए। पश्चिम रेलवे के अधिकारियों और कर्मचारियों ने सिलसिलेवार बम धमाकों के पीड़ितों को शुक्रवार को श्रद्धांजलि अर्पित की।

भारत में आतंकवाद नासूर की तरह पीछा नहीं छोड़ रहा

Mumbai Local Terror Attack: भारत बहुत लम्बे समय से आतंकवाद का शिकार शिकार होता रहा है। भारत के कश्मीर, नागालैंड, पंजाब, राजस्थान, असम, बिहार, महाराष्ट्र, दिल्ली आदि विशेषरूप से आतंक से प्रभावित रहे हैं। आतंकवाद भारत की सबसे बड़ी समस्या है, जिसने भारतीय शासन-व्यवस्था को जर्जर किया है । आतंकवाद ने भारत की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक आदि परिस्थितियों को एक लंबे अरसे तक प्रभावित किया है। जो क्षेत्र आज आतंकवादी गतिविधियों से लम्बे समय से प्रभावित हैं, उनमें जम्मू कश्मीर, मुंबई, मध्य भारत(नक्सलवाद) उत्तर-पूर्व के सात राज्य( Seven Sisters) शामिल हैं। अतीत में पंजाब में पनपे उग्रवाद में आंतकवादी गतिविधियां शामिल हो गयीं जो भारत देश के पंजाब प्रांत और देश की राजधानी दिल्ली तक फैली हुई थीं।

11 जुलाई का वो आम दिन इतिहास में दर्ज़ हो गया

Mumbai Local Terror Attack: 11 जुलाई 2006′ पूरे देश के लिए ये दिन रोजमर्रा की तरह ही था, लेकिन मायानगरी मुंबई के लिए ये दिन किसी डरावने सपने से कम नहीं था। इस दिन मुंबई में एक नहीं बल्कि सात बम धमाके हुए थे। लोकल ट्रेनों में एक के बाद एक हुए लगातार 7 बम धमाकों ने मुंबई को दहला कर रख दिया। पहला धमाका दोपहर 4:35 के आसपास हुआ था। थोड़ी ही देर में माटुंगा, बांद्रा, खार, जोगेश्वरी, बोरीवली तथा भायंदर के पास उपनगरीय ट्रेनों में धमाके हुए। इन धमाकों में 189 लोगों की मौत हुई थी और 824 घायल हुए थे।

लश्कर-ए-तैयबा ने ली हमले की जिम्मेदारी

Mumbai Local Terror Attack: देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में हुए बम धमाकों ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। इन बम धमाकों की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा ने ली थी। हालांकि, शुरुआती जांच तो पुलिस ने की, लेकिन बाद में इन बम धमाकों की जिम्मेदारी आतंकवाद विरोधी दस्ते ATS को सौंप दी गई थी। 20 जुलाई से 3 अक्टूबर 2006 के बीच ATS ने 13 लोगों को गिरफ्तार किया था। मामले में आरोप पत्र 30 नवंबर 2006 को दायर किया गया था।
पुलिस के मुताबिक मार्च 2006 में लश्कर-ए-तैयबा के आजम चीमा ने अपने बहावलपुर स्थित घर में सिमी और लश्कर के दो गुटों के मुखियाओं के साथ इन धमाकों की साजिश रची थी। पुलिस का कहना है कि मई 2006 में बहावलपुर के ट्रेनिंग कैंप में 50 युवकों को भेजा गया। उन्हें बम बनाने और बंदूकें चलाने का प्रशिक्षण दिया गया। साथ ही कड़ी पूछताछ के दौरान अपनाए जाने वाले हथकंडो से निपटने का प्रशिक्षण दिया गया। पुलिस ने बताया कि लश्कर-ए-तैयबा ने इन लोगों को अलग-अलग रास्तों से भारत में दाखिल कराया जो मुंबई पहुंचकर चार अलग अलग जगहों पर रहने लगे। इनमें से दो मलाड में, चार बांद्रा, दो बोरीवली और तीन मुम्ब्रा में रहने लगे।

प्रेशर कुकर, RDX और अमोनियम नाइट्रेट ने छीना मुंबई का सुकून

Mumbai Local Terror Attack: पुलिस के मुताबिक, धमाके के लिए 20 किलोग्राम RDX गुजरात में कांडला के रास्ते भारत भेजा गया था और मुंबई से भारी मात्रा में अमोनियम नाइट्रेट खरीदा गया था। आठ प्रेशर कुकर सांताक्रूज में दो अलग-अलग दुकानों से खरीदे गए थे। पुलिस का दावा है कि धमाके से एक-दो दिन पहले ही गोवंडी स्थित एक घर में बम बनाए गए थे। हर एक कुकर में दो-ढाई किलो आरडीक्स और साढ़े तीन से चार किलो तक अमोनियम नाइट्रेट भरा गया। इसके बाद यह सारे कुकर बांद्रा ले जाए गए। पुलिस का ये भी कहना है कि 11 जुलाई 2006 को अभियुक्त सात गुटों में बंटे, हर गुट में दो भारतीय और एक पाकिस्तानी था। हर गुट के पास एक प्रेशर कुकर था जो काली थैली में अखबार में लपेटकर रखा था।

मुंबई पुलिस ने खोज निकाले शहर में छिपे आतंकी

Mumbai Local Terror Attack: पुलिस ने मुंबई के अलग अलग हिस्सों से करीब 400 लोगों को हिरासत में लिया था। धमाकों के बाद मलबे से कुकर के हैंडल मिले थे जिसके बाद तफ्तीश ने रफ़्तार पकड़ी और जल्द ही उन दुकानों का पता लगा लिया गया जहां से यह कुकर खरीदे गए थे। तफ्तीश में पहली सफलता धमाके के एक हफ्ते बाद तब मिली जब पुलिस ने बिहार के रहने वाले कमाल अहमद अंसारी की अपने बहनोई मुमताज चौधरी से टेलीफोन पर हो रही बातचीत सुनी। इस एक तार को पकड़कर मुंबई पुलिस ने एक एक कर सभी आरोपी खोज निकाले।

19 साल बाद भी हादसे का दंश झेलने को मजबूर

Mumbai Local Terror Attack: 19 साल बाद भी, जीवित बचे मोहम्मद साबिर खान को जब भी विस्फोट की याद आती है तो वह सो नहीं पाते। घटना के समय 44 वर्षीय खान मीरा रोड से वसई जा रहे थे। उन्हें याद है कि जैसे ही ट्रेन प्लेटफ़ॉर्म से उतरी, उन्होंने एक ज़ोरदार धमाका सुना। विस्फोट के प्रभाव से खान का हाथ टूट गया और उनके कान के पर्दे क्षतिग्रस्त हो गए। उन्होंने कहा, “आज भी मेरी सुनने की क्षमता 25 प्रतिशत तक कम हो गई है।”

‘मेरा हाथ काटना पड़ा’

Mumbai Local Terror Attack: महेंद्र पितले, जो भयानक विस्फोटों में जीवित बचे भाग्यशाली लोगों में से एक थे, ने याद करते हुए बताया कि उन्हें कुछ काम पूरा करने के लिए उस दिन जल्दी निकलना पड़ा था। जब उनकी ट्रेन जोगेश्वरी स्टेशन पर पहुंची तो ट्रेन में एक धमाका हुआ। अगले कुछ मिनटों में जो कुछ हुआ, वह धुंधला है। उन्होंने याद करते हुए कहा, “शुरू में तो मुझे समझ ही नहीं आया कि क्या हो रहा है, लेकिन मुझे याद है कि मैं ट्रेन से उछलकर बाहर आ गया। तब मुझे एहसास हुआ कि मेरा हाथ पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया है। लोगों ने मुझे अस्पताल में भर्ती होने में मदद की। रात में डॉक्टरों ने बताया कि मेरा हाथ काटना पड़ेगा। अगली सुबह जब मैं उठा तो देखा कि मेरा हाथ काट दिया गया था।” हाथ कटना पिटाले के लिए बहुत बड़ा झटका था, क्योंकि वह एक मूर्तिकार थे। अपने करियर पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर पिटाले को ग्राफ़िक डिज़ाइन की कक्षाएं लेनी पड़ीं। उन्होंने कहा, “कुछ समय बाद, मुझे पता चला कि बाज़ार में ऐसे कृत्रिम अंग उपलब्ध हैं जो सामान्य हाथ की तरह काम करते हैं। इससे मुझे सहारा मिला और मैं आगे बढ़ता रहा।”

‘निरंतर भय में जी रहा हूं’

Mumbai Local Terror Attack: 30 वर्षीय विनीत पाटिल विस्फोट के समय सिर्फ़ 12वीं कक्षा का छात्र था। वह कॉलेज से लौट रहा था और उसकी ट्रेन बोरीवली स्टेशन पहुंची ही थी कि विस्फोट हो गया। वह खुद को बचाने के लिए ट्रेन से कूद गया। ट्रेन से कूदने के बाद, उसने देखा कि वहां लाशें पड़ी थीं, लोग घायल थे, उनके हाथ-पैर कट गए थे। प्लेटफ़ॉर्म पर खड़े लोग एक-दूसरे की मदद कर रहे थे, ताकि वे समय पर अस्पताल पहुंच सकें।
इस भयावह घटना से बचने के बाद, पाटिल ने ख़ुद से मानसिक लड़ाई लड़ी और अगले कुछ वर्षों में अपने जीवन को फिर से बनाया। उन्होंने कहा, “जब भी मैं यात्रा करता था, मैं लगातार डर और सदमे में रहता था। मेरे सामने सबसे बड़ी चुनौती थी, वापस पटरी पर आना और अपनी शिक्षा जारी रखना, जीवन में सफल होना। मुझे अपने डर पर काबू पाना था। इस दौरान मुझे लोगों का सपोर्ट मिला और मैंने अपनी शिक्षा पूरी की। आज, मेरा करियर सफल है।”

पराग सावंत में ज़िंदगी से मान ली हार

Mumbai Local Terror Attack: पराग सावंत, जो उस समय 27 वर्ष के थे और चर्चगेट-विरार ट्रेन से घर लौट रहे थे, भायंदर के पास बम विस्फोट में उनके कोच के परखच्चे उड़ गए और उनके सिर में गंभीर चोटें आईं। पराग ने अगले 9 साल विभिन्न अस्पतालों में कोमा में बिताए, तमाम मुश्किलों के बावजूद जीने की दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाते हुए, लेकिन आखिरकार उनकी मौत हो गई। इन सिलसिलेवार धमाकों में लगभग 200 लोग मारे गए और 800 से ज़्यादा घायल हुए, जिनमें से कुछ की चोटें सावंत जितनी ही गंभीर थीं।

दोषियों को मिली मौत की सज़ा

Mumbai Local Terror Attack: महाराष्ट्र के आतंकवाद निरोधी दस्ते (ATS) ने इस मामले में इंडियन मुजाहिदीन आतंकवादी संगठन के 13 कथित सदस्यों को गिरफ्तार किया था। मुकदमा सितंबर 2015 में शुरू हुआ था। आठ साल से ज़्यादा समय तक चली सुनवाई के बाद, महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के तहत एक विशेष अदालत ने ट्रेनों में बम रखने के जुर्म में पांच लोगों – एहतेशाम सिद्दिकी, आसिफ खान, फैसल शेख, नवीद खान और कमाल अंसारी को मौत की सज़ा सुनाई। अभियुक्तों को रसद सहायता प्रदान करने वाले अन्य सात लोगों को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई।
2015 में, राज्य सरकार ने निचली अदालत द्वारा दी गई मौत की सज़ा की पुष्टि के लिए उच्च न्यायालय में अपील दायर की। दोषियों ने भी अपनी दोषसिद्धि और सज़ा को चुनौती देते हुए अपील दायर की।

अपील के बाद भी कायम रही सज़ा-ए-मौत

Mumbai Local Terror Attack: नौ साल बाद, मौत की सज़ा का सामना कर रहे दोषियों में से एक, एहतेशाम सिद्दीकी द्वारा उच्च न्यायालय में एक आवेदन दायर करने के बाद, अपीलों और मौत की सज़ा की पुष्टि पर सुनवाई के लिए पिछले साल एक विशेष पीठ का गठन किया गया। यह मामला 2015 से लंबित था और भारी मात्रा में दस्तावेज़ों और सबूतों के कारण इसकी सुनवाई 11 अलग-अलग पीठों के बीच स्थानांतरित होती रही। विशेष लोक अभियोजक राजा ठाकरे ने लगभग तीन महीने तक बहस की, तथा अदालत से मृत्युदंड की पुष्टि करने का आग्रह किया, तथा कहा कि यह “दुर्लभतम मामला” है।
अभियुक्तों के वकीलों ने चार महीने से ज़्यादा समय तक बहस की और अभियोजन पक्ष के मामले में खामियां गिनाईं। उन्होंने बाद में मुंबई क्राइम ब्रांच द्वारा की गई एक जांच का भी हवाला दिया, जिसमें इंडियन मुजाहिदीन (IM) की संलिप्तता के बारे में खुलासे हुए थे। उन्होंने दावा किया कि IM के एक सदस्य सादिक ने कबूल किया था कि ट्रेन धमाकों के लिए IM ज़िम्मेदार था। बचाव पक्ष के वकीलों ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि अभियुक्त 18 साल से ज़्यादा समय से जेल में बंद है और कभी बाहर नहीं आया। बहरहाल, इस मामले में लंबी सुनवाई के बाद अदालत ने दोषियों को सज़ा का हक़दार मानते हुए फ़ैसला सुरक्षित रख लिया।
सितंबर 2015 में, इन धमाकों के लिए 12 लोगों को दोषी ठहराया गया था। पांच लोगों को मौत की सज़ा और सात को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई थी। न्याय भले ही हो गया हो, लेकिन हादसे में बचे हुए लोग शायद 7/11 धमाकों की भयावहता को कभी भी पूरी तरह से भुला न पाएं!

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