National Pollution Control Day- मुंबई को हमेशा देश के प्रमुख महानगरों में से एक माना जाता रहा है। बंदरगाह, समुद्र तटों की नज़दीकी और समुद्री हवाएं प्रदूषण से राहत दिलाती थीं। लेकिन तेजी से बढ़ रहा निर्माण, शहरीकरण, ट्रैफिक, औद्योगिक गतिविधियां और अब बदलते मौसम व अन्य कारकों ने शहर की वायु गुणवत्ता पर नरम-ताम्प्रिक असर डाला है। हालांकि मुंबई में समय-समय पर प्रदूषण के मामलों की खबरें आती रही हैं, लेकिन 2025 में हालात इस क़दर बिगड़े हैं कि शहर का कुछ हिस्सा “बेहद खराब / खतरनाक वायु” श्रेणी में आ गया है।
मुंबई- महानगर बना प्रदूषण का नया संकट केंद्र
मुंबई- भारत की आर्थिक राजधानी! समुद्र किनारे बसा यह महानगर दशकों से इस विश्वास के साथ जिया करता था कि “समुद्री हवाएं” इसकी सबसे बड़ी सुरक्षा हैं। लंबे-लंबे पाम-ट्री, अरब सागर की लहरें, मरीन ड्राइव की ताज़गी, और खुले तापमान वाले रास्ते, ये सब मिलकर मुंबई को हमेशा दिल्ली, कोलकाता या पटना जैसे शहरों से अलग खड़ा करते रहे। लेकिन समय बदल चुका है। तेज़ी से बढ़ता शहरीकरण, रियल एस्टेट के अनगिनत प्रोजेक्ट, मेट्रो-निर्माण, रेडी-मिक्स कंक्रीट प्लांट्स का विस्तार, वाहनों की बढ़ती संख्या, और बदलता मौसम, इन सबने मिलकर मुंबई की हवा को धीरे-धीरे जहरीला बनाना शुरू कर दिया है।
मुंबई हुई बेहाल उलझन भरी वायु से
1 दिसंबर 2025 को, मुंबई का औसत Air Quality Index (AQI) 111 दर्ज हुआ जिसे “Moderate / मध्यम” माना गया है। लेकिन यह “पूरा शहर समान” नहीं है। कुछ इलाके जैसे मजगांव, मलाड, पवई ईस्ट आदि, जिनमें हाल ही में AQI 300+ (Poor/Very Poor / Hazardous) तक गया था। इन इलाकों में धूल-धुआं, स्मॉग, घटती दृश्य-दूरदर्शिता, और सांस/नाक/गले की परेशानी जैसी समस्याओं की रिपोर्टें बढ़ी हैं।
प्रशासन ने उठाए तेज़ कदम
बढ़ती प्रदूषण की रिपोर्टों व AQI स्पाइक्स के बाद, Brihanmumbai Municipal Corporation (BMC) ने कई इलाकों में अपने “Graded Response Action Plan (GRAP) स्टेज-4” लागू करने के निर्णय लिए। इस कड़ी कार्रवाई के तहत, शहर के लगभग 26 वार्डों में “फ्लाइंग स्क्वाड” तैनात की गई हैं, जो निर्माण स्थलों, RMC (रेडी-मिक्स कंक्रीट) साइट्स, उद्योगों और अन्य प्रदूषण-कारकों की देख-रेख कर रही हैं। अब तक, लगभग 53 निर्माण/कंक्रीट-साइट्स को “Non-Compliant” पाए जाने पर “Stop-Work Notices” दिए जा चुके हैं। इसके अलावा, धूल नियंत्रण, सड़कों की पानी से सफाई, कचरा/जलाने पर रोक, और उद्योग व निर्माण गतिविधियों पर निगरानी जैसी गतिविधियां बढ़ाई गई हैं।
2025 में सबसे बुरा हाल ‘आमची मुंबई’ का
2025 में स्थिति पहली बार खतरनाक मोड़ पर पहुंची। AQI (Air Quality Index) ने कई इलाकों में 300-400 की श्रेणी को पार किया, और कुछ स्थानों में “खतरनाक” स्तर तक पहुंच गया। यह वही मुंबई थी, जिस पर विश्वास था कि “यहां धुंध टिक ही नहीं सकती”, लेकिन अब स्मॉग वहीं खड़ा है- सड़क, बांद्रा वर्ली सी-लिंक, पनवेल हाइवे, मलाड-गोराई बेल्ट और पवई के आसमान में। यह रिपोर्ट उसी बदलते मुंबई की कहानी है और इस बात का विश्लेषण, कि क्यों अब यह महानगर दिल्ली की राह पर चल पड़ा है, और क्यों बीजिंग मॉडल से सीखना इसकी मजबूरी बन गया है।
कब और कैसे बिगड़ी मुंबई की हवा?
मुंबई में वायु प्रदूषण की समस्या नई नहीं है, लेकिन 2025 के बाद इससे इनकार करना असंभव हो गया।
1. निर्माण-धूल- मुंबई की हवा का सबसे बड़ा दुश्मन
मुंबई में हर तरफ निर्माण कार्य जारी है। पुरानी इमारतों का पुनर्विकास, नई टावरों का निर्माण, मेट्रो के स्टेशन, फ्लाईओवर, समुद्री लिंक, सीवेज प्रोजेक्ट! इस शहर की मिट्टी हमेशा किसी न किसी मशीन से भन्नाती रहती है। निर्माण कार्यों से उठती धूल, खुले में स्टोर की गई रेत, ट्रकों की आवाजाही और बिना ढंके डिब्बों से उछलती मिट्टी, ये सब मिलकर PM 2.5 और PM 10 को बढ़ाते हैं। तकनीकी रूप से देखें तो, मुंबई का 40–50 प्रतिशत प्रदूषण Construction Dust से आता है। यह हिस्सा दिल्ली के मुकाबले ज्यादा है, क्योंकि दिल्ली की हवा पर स्टबल बर्निंग का प्रभाव भी पड़ता है, जबकि मुंबई में प्रदूषण की जड़ें अधिकतर स्थानीय हैं।
2. वाहन प्रदूषण- शहर की नसों में दौड़ता धुआं
मुंबई में वाहन घनत्व (Vehicles Per Kilometer) भारत में सबसे ऊंचा है। नारियल के पेड़ों और समुद्र के किनारे गाड़ियां सांस छोड़ते हुए सरकती जाती हैं, पर अब यह सांस जहरीली हो चुकी है। पुरानी डीज़ल गाड़ियां, धीरे चलने वाला भारी ट्रैफिक, घंटों जाम, Ola/Uber जैसे ऐप-कैब्स की बढ़ी संख्या, डिलीवरी वाहनों की भरमार, इन सबने मुंबई को एक मोबाइल-स्मॉग वाला शहर बना दिया है।
3. उद्योग, RMC प्लांट और छोटी फैक्ट्रियां
मुंबई के उपनगरीय इलाकों, खासकर देवनार, मुलुंड, मानखुर्द, घाटकोपर, बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स के पीछे के हिस्सों और अंधेरी MIDC में फैक्ट्रियां, तैयार-मिक्स कंक्रीट यूनिट्स और ईंट/कंक्रीट मिश्रण केंद्रों का विशाल जाल है। इनसे निकलने वाले कण हवा को बेहद भारी और प्रदूषित बना देते हैं।
4. मौसम- समुद्री हवा भी अब भरोसेमंद नहीं
पहले मुंबई में हवा चलती रहती थी, जिससे प्रदूषण फैलकर कम हो जाता था। लेकिन बदलते तापमान, ग्लोबल वार्मिंग और सर्द महीनों में ठंडी, धीमी हवाओं ने स्थिति को उलट दिया है। अब स्मॉग ठहर जाता है। धूल हवा में तैरती रहती है। समुद्री नमी उसमें मिलकर “स्मॉग फिल्म” बना देती है।
मुंबई की हवा- 2025 का सबसे बुरा दौर
2025 में पहली बार मुंबई ने वह दृश्य देखा, जो अब तक सिर्फ दिल्ली की खबरों में दिखता था।
1. मलाड, बांद्रा, पवई, देवनार- सबसे प्रभावित क्षेत्र
AQI लगातार “बहुत खराब” और “खतरनाक” स्तर पर रहा।
मलाड का AQI: कई दिनों तक 300+,
पवई: 285–350,
देवनार: 290–320, बांद्रा: 250–310, वर्ली, शिवड़ी: 230–260
स्कूलों में बच्चों को मास्क पहनकर आना पड़ा। घरों में एयर-प्यूरिफायर लगे। लोगों ने मॉर्निंग-वॉक बंद कर दिए। भागते-दौड़ते शहर की रफ़्तार पहली बार प्रदूषण के कारण थमी।
2. GRAP-4- मुंबई में पहली बार ‘दिल्ली-स्टाइल’ पाबंदियां लगाने की तैयारी
Meanwhile Delhi on National Pollution Control Day, 2nd December 2025.
#DelhiPollution pic.twitter.com/BTpoaIWsQd— Nitiin Junejaa (@Nitin_Juneja) December 2, 2025
दिल्ली में प्रदूषण रोकने के लिए जिस GRAP (Graded Response Action Plan) मॉडल का इस्तेमाल होता है, उसकी लेवल-4 कभी मुंबई में लागू होने की कल्पना भी नहीं थी। लेकिन 2025 में यह हो गया।
निर्माण स्थलों पर सीमाएं,
डीज़ल जनरेटर बंद,
धूल-नियंत्रण अनिवार्य, प्रदूषण फैलाने वाली फैक्ट्रियां सील,
ट्रकों पर नियंत्रण, ये सब मुंबई में पहली बार इतने बड़े स्तर पर लागू किया गया।
एयर पॉल्यूशन और स्वास्थ्य- मुंबई के फेफड़े खतरे में
मुंबई का स्वास्थ्य ढांचा मजबूत माना जाता है।
पर अब डॉक्टर पहली बार मरीजों में ऐसे लक्षण देखने लगे हैं, जो पहले सिर्फ उत्तर भारत में आम थे:
लगातार खांसी,
आंखों में जलन,
सांस फूलना,
बच्चों में एलर्जी,
अस्थमा के मामले,
फेफड़ों की क्षमता का कम होना,
बच्चे और बुजुर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित हुए। कई परिवारों ने पार्क और समुद्र किनारे घूमना बंद कर दिया। आम मुंबईकर के लिए यह बड़ी सांस्कृतिक चोट है।
अभी किन चुनौतियों और जोखिमों का सामना करना पड़ रहा है
स्थिर मौसम, कम हवा, और ठंडी हवा की वजह से प्रदूषण कण (PM2.5, PM10) जमीन के पास जम जाते हैं जिससे वायु ज़्यादा जहरीली हो जाती है। निर्माण-धूल, RMC प्लांट्स, पुराने डीज़ल वाहन, ट्रैफिक, औद्योगिक उत्सर्जन, ये सब मिलकर अक्सर “स्मॉग-ब्लैंकेट” बना देते हैं, खासकर पूर्व-और मध्य-मुंबई व पूर्वी उपनगरों में। स्वास्थ्य-सम्बंधित खतरे: सांस लेने में दिक्कत, गले व आंखों में जलन, अस्थमा व अन्य श्वसन रोगों की शिकायतें बढ़ रही हैं। अस्पतालों व नर्सिंग होम्स में मरीजों की संख्या में इजाफा देखा गया है। “AQI में सुधार” भले दिख रहा हो, पर यह सुधार अस्थायी हो सकता है। अगर मौसम शांत हो, वायु-प्रवाह धीमा हो, या फिर निर्माण/उद्योगों पर नियंत्रण में ढील दी जाए। विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि वायु-गुणवत्ता की “डिप/स्पाइक” कभी किसी भी समय हो सकती है।
मुंबई बनाम दिल्ली- क्या मुंबई भी ‘स्मॉग सिटी’ बनने जा रही है?
दिल्ली की हवा भारत में सबसे खराब मानी जाती है।
लेकिन दोनों शहरों के कारण अलग हैं:
मुद्दा |
दिल्ली |
मुंबई |
मुख्य प्रदूषण स्रोत |
स्टबल बर्निंग + वाहनों/उद्योग |
निर्माण-धूल + वाहनों + उद्योग |
मौसमी हवा |
बहुत धीमी |
पहले तेज, अब धीमी |
प्रदूषण की आवृत्ति |
पूरे साल, peak सर्दी में |
कुछ महीनों में बढ़ता संकट |
समाधान क्षमता |
GRAP, ऑड-ईवन, पॉल्यूशन कंट्रोल |
सीमित, पहली बार व्यापक कदम |
मुंबई अभी उस राह पर है, जिस पर दिल्ली 15–20 साल पहले चल पड़ी थी। अगर अभी कठोर कदम न उठाए गए, तो मुंबई अगले दशक में दिल्ली जैसी स्थिति में पहुंच सकती है।
बीजिंग मॉडल से सीख भारत में क्यों ज़रूरत है
यह सही है कि पश्चिमी देशों या विकसित शहरों जैसे बीजिंग में “धुंध- और प्रदूषण-नियंत्रण” के लिए कुछ मॉडल सफल रहे हैं जो नियंत्रित उत्सर्जन, ट्रैफिक नियंत्रण, उद्योग व निर्माण-धूल पर सख्ती, वायु-गुणवत्ता निगरानी और पारदर्शिता का संयोजन है। कई विशेषज्ञ और पर्यावरणवादी कह रहे हैं कि भारत के लिए, खासकर मुंबई जैसे महानगरों के लिए ऐसी रणनीतियां अपनाना जल्द जरूरी हो गया है।
Beijing ने पेश की Pollution Control की मिसाल
चीन की राजधानी बीते दशक की शुरुआत में दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में गिनी जाती थी। PM2.5 और PM10 स्तर बेहद उच्च थे, लोगों को मास्क पहनना और घरों में रहना पड़ता था, और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं आम हो गई थीं। लेकिन बीजिंग ने सख़्त और निर्णायक कदम उठाकर हवा को साफ़ किया।
बीजिंग मॉडल के मुख्य घटक
1. उद्योगों का शहर से बाहर शिफ्ट होना
भारी उद्योग, कोयला आधारित पावर प्लांट और स्टील फैक्ट्रियाँ शहर के बाहर ले जाई गईं। इसके कारण वायु में PM2.5 और SO2 का स्तर तुरंत गिरा।
2. कोयले के इस्तेमाल पर नियंत्रण
घरेलू और औद्योगिक कोयला हीटिंग को बंद कर, गैस और नवीकरणीय ऊर्जा अपनाई गई।
3.वाहन उत्सर्जन में कटौती
पुराने पेट्रोल और डीज़ल वाहन सड़क से हटाए गए, और इलेक्ट्रिक बस और टैक्सी नेटवर्क विकसित किया गया।
4. निर्माण स्थलों पर सख्त नियम
धूल कम करने के लिए निर्माण स्थल पूरी तरह से ढंके, पानी छिड़का गया, ट्रकों पर ढक्कन अनिवार्य किया गया। उल्लंघन करने वालों को भारी जुर्माना और प्रोजेक्ट रोकने जैसी कार्रवाई हुई।
5. मॉनिटरिंग और निगरानी
रियल-टाइम सेंसर, AI आधारित डेटा और Environmental Police ने लगातार वायु गुणवत्ता पर निगरानी रखी।
6. ग्रीन बेल्ट और वृक्षारोपण
शहर और उसके आसपास लाखों पेड़ लगाए गए, जिससे हवा में प्रदूषण कण कम हुए और प्राकृतिक वेंटिलेशन बढ़ा।
7. पब्लिक ट्रांसपोर्ट को दुनिया का सबसे आधुनिक बनाना
बीजिंग ने दो मोर्चों पर काम किया। 500+ मेट्रो स्टेशन का निर्माण किया जो विश्व की सबसे बड़ी मेट्रो नेटवर्क में से एक है। हजारों इलेक्ट्रिक बसें उतारीं जिससे निजी वाहनों की जरूरत कम हुई। इसके कारण वाहन उत्सर्जित प्रदूषण में भारी कमी आई।
8. धुंध वाले दिनों में Emergency Steps (Red Alert System)
जब हवा बहुत खराब होती, तब स्कूल बंद, फैक्ट्रियां आंशिक रूप से रोकना, ट्रकों की एंट्री बंद, लोगों को घर में रहने की हिदायत देना! इससे पीक प्रदूषण कम हुआ।
इन उपायों के परिणामस्वरूप बीजिंग का AQI काफी हद तक सुरक्षित स्तर पर आया। स्वास्थ्य संबंधी शिकायतों में भारी कमी आई, और शहर के निवासियों ने सांस लेना आसान महसूस किया।
मुंबई बनाम बीजिंग: प्रदूषण की लड़ाई में दो महानगरों की कहानी
मुंबई आज जिस हवा को सांस में ले रही है, वह बीते कुछ वर्षों में पहले से कहीं अधिक प्रदूषित हो चुकी है। AQI लगातार “खराब” से “बहुत खराब” श्रेणी में पहुंच रहा है। ऐसे में अक्सर यह सवाल उठता है कि क्या मुंबई भी बीजिंग की राह पर चल रही है? और उससे भी बड़ा सवाल- क्या मुंबई बीजिंग की तरह प्रदूषण पर जीत हासिल कर सकती है? बीजिंग कभी दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर था। लेकिन चीन की सरकार ने 2013–2017 के बीच बेहद कड़े और कई स्तरों पर लागू किए गए उपायों से हवा की गुणवत्ता में ऐतिहासिक सुधार किए। नीचे मुंबई और बीजिंग दोनों की तुलना विस्तृत रूप में दी जा रही है।
1. भौगोलिक व मौसमीय अंतर
मुंबई– समुद्र के किनारे होने से नमी अधिक और वायु संचलन तेज रहता है। तापमान स्थिर, लेकिन हाल के वर्षों में धूल और औद्योगिक उत्सर्जन बढ़ने से हवा में PM2.5 जमा रहने लगा है। बैकविंड और समुद्री हवा कई बार प्रदूषण को शहर पर वापस धकेल देती है।
बीजिंग– उत्तर में पहाड़ों से घिरा और हवा का स्तर नीचे रहने से प्रदूषण शहर में फंस जाता था। सर्दियों में कोयले से चलने वाले हीटिंग सिस्टम प्रदूषण को घातक स्तर तक पहुंचा देते थे।
मुंबई में प्राकृतिक वेंटिलेशन है, लेकिन मानव-निर्मित प्रदूषण बढ़ने पर यह भी बेअसर होने लगा है। बीजिंग का मौसम साफ़ तौर पर प्रदूषण रोकने में सबसे बड़ी बाधा था
2. प्रदूषण के मुख्य स्रोत
मुंबई के स्रोत– निर्माण और रियल एस्टेट गतिविधियां औद्योगिक प्रदूषण (मुंबई–ठाणे–नवी मुंबई बेल्ट),
डीज़ल जनरेटर और जहाज़ों के उत्सर्जन,
बढ़ते वाहन,
कचरा जलाना,
ग्रीन कवर में गिरावट!
बीजिंग के स्रोत– कोयले से चलने वाले बिजलीघर,
कोयला आधारित घरेलू हीटिंग सिस्टम,
भारी उद्योग और स्टील प्लांट,
वाहनों का तेजी से बढ़ता दबाव,
निर्माण उद्योग और धूल!
बीजिंग का सबसे बड़ा प्रदूषण स्रोत “कोयला” था, जबकि मुंबई का सबसे बड़ा स्रोत “धूल + वाहन + निर्माण गतिविधियां” हैं।
3. सरकार की प्रतिक्रिया और नीतियां
शहर की हवा खराब होते ही चीन सरकार ने बेहद सख्त कदम उठाए:
1. कोयला आधारित प्लांट्स एक झटके में बंद,
2. 10 लाख से अधिक घरों में कोयला हीटिंग सिस्टम की जगह पाइप्ड गैस,
3. भारी उद्योग को शहर से बाहर शिफ्ट,
4. दसियों हज़ार कारें सड़क से हटाई गईं,
5. इलेक्ट्रिक कारों के लिए सरकारी अनुदान,
6. निर्माण कार्य पर मौसमी प्रतिबंध,
7. “Airpocalypse” के बाद टास्क फोर्स जिसे हवा साफ करने की समयसीमा दी गई,
8. रोज़ाना सड़कों की मशीनों से पानी से धुलाई!
परिणाम: PM2.5 स्तर 30 प्रतिशत से अधिक गिरा,
AQI “Hazardous” से “Moderate” पर लौट आया,
WHO ने सुधार को “अद्वितीय” कहा!
मुंबई की प्रतिक्रिया
मुंबई ने हाल के वर्षों में कुछ कदम उठाए:
निर्माण स्थलों पर कवर अनिवार्य,
सड़क धुलाई शुरू,
AQI आधारित अलर्ट सिस्टम,
इलेक्ट्रिक बसों का बढ़ा बेड़ा,
समुद्री हवा के साथ “विंड पैटर्न मॉनिटरिंग”,
परेल–वडाला–ठाणे बेल्ट में औद्योगिक नियंत्रण!
लेकिन नीतियां अभी सख्त नहीं हैं, और न ही उन्हें लागू करने की ताक़त बीजिंग जितनी है।
क्या बीजिंग मॉडल को अपनाकर मुंबई की हवा भी साफ़ हो पाएगी?
मुंबई को ऐसे कदम उठाने होंगे:
1. निर्माण धूल नियंत्रण पर 100 प्रतिशत पालन,
2. तटीय इलाकों में जहाज़ों से होने वाले उत्सर्जन पर नियंत्रण,
3. कचरा जलाने पर पूर्ण प्रतिबंध,
4. वाहनों के लिए कठोर उत्सर्जन-मानक + अधिक सार्वजनिक परिवहन,
5. ग्रीन बेल्ट पुनर्जीवन—विशेषतः अरेबियन कोस्ट लाइन पर,
6. मॉनसून के अलावा 8 महीने एंटी-डस्ट स्क्वाड एक्टिव,
7. मुंबई–मेट्रो रूट्स को तीव्र गति से पूरा करना!
भारत के शहरों के लिए सबक
बीजिंग मॉडल केवल चीन का नहीं, बल्कि पूरे विश्व का उदाहरण है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति + तकनीकी निगरानी + नागरिक सहभागिता मिलकर वायु गुणवत्ता सुधार सकती है। मुंबई, पुणे और अन्य महानगरों को अब यह सोचने की जरूरत है कि क्या उन्हें भी ठोस कदम उठाने होंगे:
निर्माण धूल और औद्योगिक उत्सर्जन पर कड़ी निगरानी।
सार्वजनिक परिवहन में इलेक्ट्रिक वाहनों का विस्तार।
शहर के भीतर हरित क्षेत्र और तटीय बेल्ट का संरक्षण।
नागरिकों की भागीदारी और जागरूकता।
बीजिंग ने दिखाया कि अगर सही समय पर और निर्णायक कदम उठाए जाएं तो हवा को साफ़ करना असंभव नहीं है। भारत के महानगरों के लिए यह सिर्फ विकल्प नहीं, बल्कि जरूरत बन गया है।समय है कि हम बीजिंग मॉडल से सीखें, और अपनी शहरों की हवा को सुरक्षित बनाएं।
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