National Energy Conservation Day इसलिए मनाया जाता है ताकि देश के हर नागरिक को यह समझाया जा सके कि ऊर्जा (बिजली, ईंधन आदि) एक सीमित संसाधन है और इसकी बचत करना आज की सबसे बड़ी ज़रूरत बन चुका है। यह दिन बताता है कि ऊर्जा संरक्षण केवल सरकार की नहीं, बल्कि हर नागरिक की जिम्मेदारी है।
एक स्विच, एक संकल्प: बिजली बचाने से ही सुरक्षित भविष्य
आज जब हम एक बटन दबाते हैं और कमरा रोशनी से भर जाता है, पंखा चलने लगता है या मोबाइल चार्ज होने लगता है, तब शायद ही हम यह सोचते हैं कि इसके पीछे कितनी ऊर्जा खर्च हो रही है। बिजली हमारे जीवन का ऐसा हिस्सा बन चुकी है, जिसके बिना एक पल की भी कल्पना मुश्किल लगती है। लेकिन यही बिजली, अगर बिना सोचे-समझे खर्च की जाए, तो भविष्य के लिए सबसे बड़ा संकट बन सकती है। इसी सच्चाई को समझाने और लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए हर साल 14 दिसंबर को National Energy Conservation Day मनाया जाता है। यह दिन केवल एक तारीख नहीं है, बल्कि हमें आईना दिखाने का अवसर है कि हमने ऊर्जा के साथ कैसा व्यवहार किया और आगे क्या करने की ज़रूरत है।
ऊर्जा बचत क्यों ज़रूरी है?
भारत जैसे विकासशील देश में बिजली की मांग हर साल तेज़ी से बढ़ रही है। घरों की संख्या बढ़ रही है, उपकरण बढ़ रहे हैं, एसी, हीटर, गीजर जैसी सुविधाएं आम होती जा रही हैं। यह विकास की निशानी है, लेकिन इसके साथ एक सच्चाई भी जुड़ी है! हम जितनी बिजली इस्तेमाल कर रहे हैं, उतनी ही तेज़ी से प्राकृतिक संसाधन खत्म हो रहे हैं। बिजली का बड़ा हिस्सा अभी भी कोयला, गैस और पानी जैसे सीमित संसाधनों से बनता है। जब हम बेवजह लाइट जलाकर रखते हैं, टीवी ऑन छोड़ देते हैं या चार्जर सॉकेट में लगा छोड़ देते हैं, तो हम सिर्फ़ बिजली नहीं, बल्कि भविष्य की ऊर्जा भी खर्च कर रहे होते हैं।
छोटी लापरवाही, बड़ा नुकसान
अक्सर लोग सोचते हैं कि एक बल्ब या एक पंखा बंद न करने से क्या फर्क पड़ेगा। लेकिन अगर यही सोच करोड़ों लोग अपनाएं, तो नुकसान का अंदाज़ा लगाया जा सकता है- दिन में जलती हुई स्ट्रीट लाइट, खाली कमरे में चलता एसी, पूरी रात चार्ज पर लगा मोबाइल, ज़रूरत से ज़्यादा रोशनी! ये सब छोटी-छोटी बातें लगती हैं, लेकिन मिलकर हज़ारों मेगावाट बिजली की बर्बादी करती हैं।
National Energy Conservation Day का उद्देश्य
इस दिन का मकसद केवल भाषण या पोस्टर तक सीमित नहीं है। इसका असली उद्देश्य है-आम नागरिक को ऊर्जा की कीमत समझाना, बच्चों और युवाओं में जिम्मेदारी की भावना पैदा करना, बिजली बचत को आदत बनाना और यह बताना कि बचत का मतलब त्याग नहीं, समझदारी है! ऊर्जा संरक्षण कोई कठिन काम नहीं है। इसके लिए न तो बड़े निवेश की ज़रूरत है और न ही तकनीकी ज्ञान की। बस थोड़ी सी जागरूकता और इच्छा शक्ति चाहिए।
आज का सवाल – क्या हम सच में गंभीर हैं?
हर साल इस दिन बड़ी-बड़ी बातें होती हैं। सेमिनार होते हैं, पुरस्कार दिए जाते हैं, विज्ञापन छपते हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या अगले दिन से हमारी आदतें बदलती हैं? अगर जवाब “नहीं” है, तो National Energy Conservation Day केवल औपचारिकता बनकर रह जाएगा। अगर जवाब “हां” है, तो यही दिन एक ऊर्जा-क्रांति की शुरुआत बन सकता है। ऊर्जा बचत यानि देश सेवा! जब हम बिजली बचाते हैं, तो हम देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करते हैं, बिजली उत्पादन का दबाव कम करते हैं, प्रदूषण घटाने में योगदान देते हैं, आने वाली पीढ़ियों के लिए संसाधन बचाते हैं! यह किसी एक व्यक्ति की लड़ाई नहीं है। यह हर घर, हर गली और हर शहर की जिम्मेदारी है।
घर में बिजली बचाने की 25 आसान आदतें- बिना सुविधा छोड़े, बिना खर्च बढ़ाए
अक्सर लोग सोचते हैं कि बिजली बचाने के लिए या तो सुविधाएं छोड़नी पड़ेंगी या महंगे उपकरण खरीदने होंगे। लेकिन सच्चाई इसके ठीक उलट है। बिजली की सबसे बड़ी बचत घर से ही शुरू होती है, और इसके लिए न कोई बड़ा निवेश चाहिए, न तकनीकी ज्ञान। अगर हर परिवार रोज़ थोड़ी-थोड़ी सावधानी बरते, तो पूरे देश की बिजली खपत में बड़ा फर्क आ सकता है।
1. कमरे से निकलते ही स्विच बंद करें– यह सबसे आसान नियम है, लेकिन सबसे ज़्यादा अनदेखा भी! अक्सर लोग सोचते हैं, “अभी तो वापस आना है।” और यही “अभी” कई घंटों में बदल जाता है। आदत डालिए- कमरा खाली, सब स्विच बंद!
2. दिन में प्राकृतिक रोशनी का उपयोग करें– खिड़कियां और दरवाज़े सिर्फ हवा के लिए नहीं होते। दिन के समय पर्दे हटा दें, ताकि धूप कमरे में आए इससे बल्ब की ज़रूरत कम होगी, आंखों को भी आराम मिलेगा!
3. LED बल्ब अपनाएं- पुराने बल्ब और ट्यूब बहुत ज़्यादा बिजली खाते हैं। LED बल्ब कम बिजली खर्च करते हैं, ज़्यादा रोशनी देते हैं। ज़्यादा समय तक चलते हैं! एक छोटा बदलाव, बड़ी बचत।
4. पंखे और AC का संतुलित उपयोग– हर मौसम में AC ज़रूरी नहीं होता। कई बार पंखा ही पर्याप्त होता है। अगर AC चलाना हो तो दरवाज़े–खिड़कियां बंद रखें। बहुत कम तापमान न रखें। खाली कमरे में एसी न चलाएं !
5. मोबाइल चार्जर सॉकेट में न छोड़ें– चार्ज पूरा होने के बाद भी चार्जर अगर प्लग में लगा रहता है, तो बिजली खपत होती रहती है। नियम बनाइए- चार्ज पूरा, चार्जर बाहर !
6. टीवी देखते समय ध्यान रखें– अक्सर टीवी बंद तो होता है, लेकिन स्टैंडबाय मोड में रहता है। यह भी बिजली खर्च करता है। टीवी पूरी तरह बंद करें, मेन स्विच से।
7. फ्रिज का सही इस्तेमाल करें- फ्रिज का दरवाज़ा बार-बार न खोलें। गर्म खाना सीधे फ्रिज में न रखें। फ्रिज को ज़्यादा न भरें ! थोड़ी सी समझदारी से अच्छी खासी बचत होती है।
8. गीजर का सीमित उपयोग– गीजर ज़रूरत से ज़्यादा देर तक चालू न रखें। नहाने से पहले ही ऑन करें और काम खत्म होते ही बंद कर दें। याद रखें- गरम पानी सुविधा है, ज़रूरत नहीं।
9. वॉशिंग मशीन समझदारी से चलाएं- मशीन को पूरी तरह भरने के बाद चलाएं। रोज़ाना छोटे-छोटे कपड़ों के लिए मशीन न चलाएं!
10. इन्वर्टर और बैटरी का सही रखरखाव– बैटरी खराब होगी तो बिजली ज़्यादा खपत होगी। समय-समय पर सर्विस ज़रूरी है!
11. अनावश्यक रोशनी से बचें– पूरे घर में एक साथ सभी लाइट जलाना ज़रूरी नहीं। जहां ज़रूरत हो, वहीं रोशनी रखें।
12. बच्चों को शुरू से आदत सिखाएं– बच्चे जल्दी सीखते हैं। अगर उन्हें शुरू से बिजली की कीमत समझाई जाए, तो वे बड़े होकर जिम्मेदार नागरिक बनते हैं। उन्हें यह बताइए- स्विच बंद करना भी देश सेवा है!
13. किचन में समझदारी– मिक्सर, माइक्रोवेव तभी चलाएं जब ज़रूरत हो। गैस और बिजली दोनों का संतुलित उपयोग करें।
14. रात में कम रोशनी की आदत– टीवी देखते या मोबाइल चलाते समय पूरी लाइट जलाना ज़रूरी नहीं। कम रोशनी = कम बिजली खपत!
15. स्टेबलाइज़र और स्मार्ट प्लग– जहां ज़रूरी हो, वहां स्टेबलाइज़र लगाएं, इससे उपकरण सुरक्षित रहते हैं और बिजली की बर्बादी कम होती है।
16. समय पर सर्विस– पुराने और खराब उपकरण ज़्यादा बिजली खाते हैं। समय पर मरम्मत कराना भी ऊर्जा बचत है।
17. एक साथ कई काम– इस्त्री, मिक्सर जैसे उपकरणों को बार-बार ऑन–ऑफ न करें। एक साथ काम निपटाने से बिजली की खपत घटती है।
18. छत के रंग और वेंटिलेशन– हल्के रंग की छत और सही वेंटिलेशन से- घर ठंडा रहता है, पंखा और एसी कम चलाना पड़ता है!
19. बिजली बिल पढ़ने की आदत– बिल केवल भरने की चीज़ नहीं है। उससे आप जान सकते हैं कि आपकी खपत बढ़ रही है या घट रही है।
20. पड़ोसियों को भी प्रेरित करें– अगर आप अकेले बचत करें और बाकी सब न करें, तो असर सीमित रहेगा। बातचीत और उदाहरण से दूसरों को भी जोड़िए।
21. त्योहारों में सजावट सीमित रखें– त्योहार खुशियों के लिए हैं, बिजली की बर्बादी के लिए नहीं। कम रोशनी में भी उत्सव मनाया जा सकता है।
22. रात में बाहर की लाइट बंद रखें– ज़रूरत न हो तो बाहर की लाइट पूरी रात जलाना सही नहीं।
23. टाइमर और सेंसर का उपयोग– आजकल ऐसे उपकरण मिलते हैं जो खुद बंद हो जाते हैं। इनका इस्तेमाल समझदारी है।
24. आदतों की सूची बनाएं – घर के किसी कोने में एक छोटी सूची चिपकाएं- निकलते समय स्विच बंद, चार्जर हटाएं, एसी सीमित रखें!
25. हर दिन खुद से सवाल पूछें– “क्या आज मैंने बेवजह बिजली खर्च की?” अगर जवाब “नहीं” है, तो आप सही रास्ते पर हैं।
स्कूल, दफ़्तर, बाज़ार और उद्योगों में ऊर्जा बचत-जब जिम्मेदारी अकेले की नहीं, सामूहिक हो!
अब तक हमने घर की बात की। लेकिन सच्चाई यह है कि देश की सबसे बड़ी बिजली खपत घरों से बाहर होती है- स्कूलों में, दफ़्तरों में, बाज़ारों में और उद्योगों में। अगर इन जगहों पर थोड़ी सी भी समझदारी आ जाए, तो लाखों घरों जितनी बिजली रोज़ बचाई जा सकती है। ऊर्जा संरक्षण अब व्यक्तिगत आदत नहीं, सामाजिक जिम्मेदारी बन चुका है।
स्कूल और कॉलेज: बचत की पहली पाठशाला
स्कूल केवल पढ़ाई की जगह नहीं होते, बल्कि संस्कार गढ़ने की फैक्ट्री होते हैं। अगर बच्चों को शुरू से बिजली की कीमत समझा दी जाए, तो आने वाली पीढ़ी खुद-ब-खुद जागरूक बन जाएगी। स्कूलों में आम लापरवाहियां- खाली कक्षा में जलती लाइट और पंखे, प्रोजेक्टर और कंप्यूटर बिना ज़रूरत चालू, खेल के समय पूरी बिल्डिंग में रोशनी! ये आदतें अनजाने में बच्चों में भी बैठ जाती हैं। स्कूलों को करना यह चाहिए-
1. ऊर्जा मॉनिटर- हर कक्षा में एक छात्र को जिम्मेदारी दी जाए- “स्विच मॉनिटर”
2. ऊर्जा शपथ- सप्ताह में एक दिन सभी छात्र बिजली बचाने की शपथ लें।
3. पोस्टर और नारे- “कमरा खाली- स्विच बंद” जैसे संदेश दीवारों पर हों।
4. प्रैक्टिकल शिक्षा- बच्चों को दिखाएं कि बिजली बिल कैसे पढ़ा जाता है।
दफ़्तर: जहां नियम से ही बचत संभव है
दफ़्तरों में बिजली का बड़ा हिस्सा बिना ज़रूरत खर्च होता है क्योंकि यहां सोच होती है- “बिल तो ऑफिस का है।” यही सोच बदलनी होगी। दफ़्तरों की आम समस्याएं-AC पूरे दिन चलना, लंच टाइम में भी सिस्टम ऑन, मीटिंग खत्म, लेकिन लाइट चालू, कंप्यूटर स्टैंडबाय मोड में, ये सब बेवजह ऊर्जा खपत को बढ़ावा देते हैं। दफ़्तरों में समाधान-
1. वर्किंग ऑवर्स का पालन- ऑफिस टाइम के बाहर सभी सिस्टम बंद।
2. सेंट्रल एसी का सही उपयोग- बहुत कम तापमान रखने की होड़ न हो।
3. डिजिटल डिसिप्लिन- ईमेल, प्रिंटर, सर्वर का सीमित और सही इस्तेमाल।
4. जिम्मेदारी तय हो- हर फ्लोर के लिए एक ऊर्जा प्रभारी।
सरकारी दफ़्तर: उदाहरण बनें, बोझ नहीं। सरकारी कार्यालय अगर खुद अनुशासन दिखाएं तो जनता भी सीखेगी। अक्सर देखा गया है कि सरकारी दफ़्तरों में दिन भर जलती लाइट, बंद कमरों में पंखे, बिना उपयोग के AC, यह न केवल बिजली की बर्बादी है, बल्कि जनता के पैसे की भी!
बाज़ार और दुकानें: चमक कम, समझ ज़्यादा
बाज़ारों में रोशनी को प्रतिष्ठा से जोड़ दिया गया है। जितनी ज़्यादा लाइट, उतनी बड़ी दुकान- यह सोच बदलनी होगी। बाज़ारों में क्या किया जा सकता है- दिन में अनावश्यक सजावटी लाइट बंद रखना, रात में समय सीमा तय करना, LED और सेंसर का उपयोग करना, शटर बंद होते ही मुख्य स्विच ऑफ करने जैसे सख्त कदम उठाए जाने जरूरी हैं। मॉल आधुनिक हैं, लेकिन खपत भी ज़्यादा करते हैं। अगर यहां एस्केलेटर सीमित समय पर चलें, खाली हिस्सों में लाइट बंद हो और प्राकृतिक रोशनी का उपयोग हो, तो बड़ी बचत संभव है।
उद्योग और फैक्ट्रियां- जिम्मेदारी सबसे ज़्यादा
उद्योग देश की रीढ़ हैं, लेकिन ऊर्जा खपत में भी सबसे आगे हैं। यहां एक छोटा सुधार, हज़ारों यूनिट बचा सकता है। उद्योगों में ऊर्जा बचत कैसे संभव है, यह जानना जरूरी है। ऊर्जा ऑडिट- कहां कितना और क्यों खर्च हो रहा है, यह जानना ज़रूरी, पुरानी मशीनों का सुधार क्यूंकी पुरानी तकनीक ज़्यादा बिजली खाती है। शिफ्ट प्लानिंग- अनावश्यक मशीन स्टार्ट-स्टॉप से बचाव करना। कर्मचारियों को प्रशिक्षण देना कि बचत मशीन से नहीं, आदमी से होती है। होटल और अस्पताल- 24×7 चुनौती हैं। होटल और अस्पताल चौबीसों घंटे चलते हैं। लेकिन यहां भी अनुशासन से बचत संभव है। खाली कमरों की लाइट बंद रखना, सेंसर्स और टाइमर इस्तेमाल करना, सही तापमान प्रबंधन की नीति अपनाना
सार्वजनिक स्थान: सबकी जिम्मेदार
रेलवे स्टेशन, बस अड्डे, पार्क- सब जगह बिजली खर्च होती है। अगर यहां-
• सेंसर लाइट,
• समयबद्ध रोशनी,
• नियमित निरीक्षण हो, तो बर्बादी रुकेगी।
सरकार की पहल, कानून और नागरिक की ज़िम्मेदारी
ऊर्जा संरक्षण केवल व्यक्तिगत आदतों या सामाजिक प्रयासों तक सीमित नहीं है। जब तक सरकार, संस्थाएं और आम नागरिक एक साथ नहीं चलते, तब तक बिजली बचत केवल नारे बनकर रह जाती है।भारत में ऊर्जा संरक्षण को लेकर नीतियां बनी हैं, नियम बने हैं, योजनाएं शुरू हुई हैं, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या आम आदमी खुद को इनका हिस्सा मानता है? ऊर्जा संरक्षण में सरकार की अहम भूमिका है। सरकार की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है सही नीति बनाना, संसाधनों का संतुलित उपयोग करना और जनता को जागरूक करना! इसी सोच के साथ देश में ऊर्जा संरक्षण को राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाया गया।
National Energy Conservation Day क्यों शुरू हुआ?
हर साल 14 दिसंबर को यह दिन मनाने का उद्देश्य है-
• ऊर्जा की सीमितता को याद दिलाना,
• बचत को जन-आंदोलन बनाना,
• उद्योग, संस्थान और आम नागरिक को एक मंच पर लाना!
यह दिन संदेश देता है कि ऊर्जा बचत केवल तकनीकी विषय नहीं, राष्ट्रीय कर्तव्य है।
ऊर्जा से जुड़े कानून और नियम
ऊर्जा संरक्षण को मजबूती देने के लिए देश में नियम बनाए गए हैं। इनका उद्देश्य दंड देना नहीं, बल्कि दिशा देना है। बड़े उद्योगों में ऊर्जा दक्षता अनिवार्यता, सरकारी इमारतों में बिजली बचत के नियम, उपकरणों के लिए ऊर्जा मानक तय करना, इन नियमों का लक्ष्य है कि बिजली की खपत घटे और उत्पादन पर दबाव कम हो। सरकारी योजनाएं- सोच अच्छी, असर तभी जब अपनाई जाएं। सरकार ने कई ऐसी योजनाएं शुरू कीं, जिनसे कम बिजली खर्च करने वाले उपकरण बढ़ें, एलईडी और ऊर्जा कुशल तकनीक आम हो, आम आदमी का बिजली बिल घटे! लेकिन योजना तभी सफल होती है, जब जनता उसे अपनाती है।
सार्वजनिक भवनों की जिम्मेदारी
सरकारी दफ्तर, स्कूल, अस्पताल- ये केवल सेवा केंद्र नहीं, उदाहरण केंद्र भी होने चाहिए। अगर यहां दिन में अनावश्यक लाइट जले, छुट्टी के दिन एसी चलता रहे तो जनता को क्या संदेश जाएगा? सरकारी तंत्र में सुधार की ज़रूरत भी अपेक्षित है। नियमित निरीक्षण, जवाबदेही तय करना और बिजली खपत की सार्वजनिक जानकारी देना, जब सरकार खुद अनुशासन दिखाएगी, तभी समाज सीखेगा।
स्थानीय प्रशासन की अहम भूमिका
नगर पालिका, पंचायत और जिला प्रशासन-
• स्ट्रीट लाइट का सही उपयोग,
• समय पर बंद-चालू व्यवस्था,
• ऊर्जा बचत पर जन-संवाद, इन छोटे कदमों से बड़े बदलाव आते हैं।
नागरिक की जिम्मेदारी: असली ताकत
सरकार नियम बना सकती है, लेकिन बचत का असली हथियार नागरिक के हाथ में है। नागरिक को समझना होगा कि बिजली मुफ्त नहीं है। समझना होगा कि हर यूनिट के पीछे मेहनत और संसाधन लगे हैं और बचत का लाभ उसी को मिलेगा! लेकिन इसके लिए नागरिको को नियमों का पालन करना, बेवजह बर्बादी पर सवाल उठाना, दूसरों को प्रेरित करना, बच्चों को सही आदत सिखाना जरूरी है।
मीडिया और समाज की भूमिका
अख़बार, टीवी और सोशल मीडिया का काम सिर्फ खबर देना नहीं, बल्कि दिशा दिखाना भी है।
• ऊर्जा बचत को नियमित मुद्दा बनाना,
• अच्छे उदाहरण सामने लाना,
• लापरवाही पर सवाल उठाना भी ज़रूरी है।
ऊर्जा संरक्षण को दंड नहीं, समझ का विषय बनाना जरूरी है। अगर बिजली बचत को डर से जोड़ा जाएगा, तो लोग छुपकर बर्बादी करेंगे। लेकिन अगर इसे समझ और जिम्मेदारी से जोड़ा जाए, तो बदलाव स्थायी होगा।
बच्चों के हाथ में भविष्य की रोशनी
ऊर्जा संरक्षण की बात जब भविष्य तक पहुंचती है, तो सबसे पहले बच्चों का चेहरा सामने आता है, क्योंकि आज जो बिजली हम बिना सोचे खर्च कर रहे हैं, उसका असर सीधे आने वाली पीढ़ी पर पड़ेगा। अगर आज हमने सावधानी नहीं बरती, तो कल बच्चों के पास विकल्प कम होंगे और संकट ज़्यादा। बच्चे ऊर्जा बचत के सबसे बड़े दूत बन सकते हैं। बच्चों में दो खास बातें होती हैं- वे जल्दी सीखते हैं, वे सवाल पूछते हैं। अगर बच्चे पूछने लगें- “यह लाइट क्यों जल रही है? खाली कमरे में पंखा क्यों चल रहा है?” तो बड़े भी सोचने पर मजबूर होंगे। घर में बच्चों की भूमिका अहम हो सकती है जैसे- स्विच बंद करने की याद दिलाना, टीवी और मोबाइल सीमित इस्तेमाल, खेल-खेल में ऊर्जा बचत सीखना! बच्चों को डांटने की नहीं, समझाने की ज़रूरत है। स्कूलों में भविष्य की तैयारी की जा सकती है। अगर स्कूलों में ऊर्जा बचत को पाठ्यक्रम से जोड़ा जाए, प्रतियोगिताएं हों, बच्चों को घर में बदलाव लाने के लिए प्रेरित किया जाए, तो यह आंदोलन घर-घर पहुंचेगा!
भविष्य की चुनौती: बढ़ती मांग, घटते संसाधन
देश की आबादी बढ़ रही है, शहर फैल रहे हैं, तकनीक हर घर में पहुंच रही है। इसका मतलब साफ़ है-बिजली की मांग आने वाले वर्षों में कई गुना बढ़ेगी। लेकिन संसाधन सीमित हैं। अगर खपत की रफ्तार नहीं बदली, तो बिजली महंगी होगी, कटौती बढ़ेगी, प्रदूषण गहराएगा! यही वजह है कि ऊर्जा बचत अब विकल्प नहीं, मजबूरी बन चुकी है। नई तकनीक उम्मीद लेकर आती है- सौर ऊर्जा, ऊर्जा कुशल उपकरण, स्मार्ट सिस्टम। लेकिन याद रखें- तकनीक तभी मदद करेगी, जब उपयोग समझदारी से होगा। अगर आदतें नहीं बदलीं, तो सबसे आधुनिक सिस्टम भी बेकार साबित होंगे।
ग्रामीण और शहरी भारत: एक जैसी जिम्मेदारी
शहरों में खपत ज़्यादा है, गावों में संसाधन सीमित! लेकिन जिम्मेदारी दोनों की बराबर है। शहरों को संयम सीखना होगा, गावों को जागरूकता बढ़ानी होगी। ऊर्जा संरक्षण किसी एक वर्ग का विषय नहीं है। बिजली बचाने का मतलब सिर्फ़ बिल कम करना नहीं है। इसका सीधा रिश्ता पर्यावरण से है। कम बिजली , कम कोयला, कम धुआं, साफ़ हवा, सुरक्षित भविष्य! यानी ऊर्जा संरक्षण = पर्यावरण संरक्षण।
आज का छोटा कदम, कल की बड़ी राहत
अगर आज एक बल्ब कम जले, एक एसी कम चले, एक चार्जर समय पर निकले, तो कल एक संकट कम होगा। छोटे कदम ही बड़े बदलाव की नींव रखते हैं। आज National Energy Conservation Day पर यह लेख केवल पढ़ने के लिए नहीं है। यह एक नागरिक अपील है। अपने आप से तीन सवाल पूछिए-
1. क्या मैं रोज़ बेवजह बिजली खर्च करता हूं?
2. क्या मैं दूसरों को टोकता या समझाता हूं?
3. क्या मैं बच्चों को सही आदत सिखा रहा हूं? अगर जवाब हां से नहीं की ओर जा रहा है, तो बदलाव शुरू हो चुका है। ऊर्जा किसी एक की नहीं, सबकी है। इसकी बचत सरकार की जिम्मेदारी नहीं, हम सबका कर्तव्य है। आज अगर हम जागे, तो कल अंधेरा नहीं होगा। बिजली बचाइए, भविष्य बचाइए। छोटी सावधानी- बड़ा बदलाव!
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