Home हिन्दी फ़ोरम नमामि गंगे – मां गंगा ने बुलाया है, फिर भी साफ़ नहीं...

नमामि गंगे – मां गंगा ने बुलाया है, फिर भी साफ़ नहीं कर पाया!

304
0
SHARE
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वो तस्वीर आज भी जहन से जाती नहीं जब वो वाराणसी पहुंचकर मां गंगा को नतमस्तक किया था और कहा था कि मैं आया नहीं बल्कि मां गंगा ने बुलाया है, उसी वक्त, उसी क्षण हर भारतीय पीएम मोदी से ये आस लगा बैठा कि चलो अब गंगा नदी का उद्धार हो जायेगा, वैसे पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मां गंगे ही मानव जाति का उद्धार कर सकती है लेकिन आज के गंगा की क्या स्तिथि है इससे सब दो चार है। 12 मार्च यानि नदियों के लिए अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई दिवस (International Day of Action for Rivers) है और इस ख़ास दिन पर नदियों की रक्षा के लिए आवाज उठाने और नदियों के लिए नीतियों में सुधार की मांग के लिए हर साल ये अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है। यह नदियों के खतरों के बारे में एक दूसरे को शिक्षित करने और समाधान खोजने का भी दिन है। ऐसे से देश की सबसे बड़ी नदी, और सबसे प्रवित्र नदी गंगा और नमामि गंगे परियोजना की परिस्तिथि पर देखिये The CSR Journal की ये ख़ास रिपोर्ट।
उत्तर प्रदेश में गंगा के तट पर स्थित वाराणसी से संसद के लिए मई 2014 में निर्वाचित होने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था, ‘मां गंगा की सेवा करना मेरे भाग्य में है।’ जनता ने साल 2014 के चुनाव में नरेंद्र मोदी को अभूतपूर्ण तरीके से ना सिर्फ जीत दिलाई बल्कि गंगा को साफ़ करने की एक बड़ी जिम्मेदारी भी दी। उसी दौरान न्यूयॉर्क में मैडिसन स्क्वायर गार्डन में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था, “अगर हम गंगा को साफ करने में सक्षम हो गए तो यह देश की 40 फीसदी आबादी के लिए एक बड़ी मदद साबित होगी। इसलिए गंगा की सफाई एक आर्थिक एजेंडा भी है”। और तभी से शुरू हुआ मिशन “नमामि गंगे“।

भारत की 47 फीसदी भूमि को सींचती और पचास करोड़ लोगों को भोजन प्रदान करती है गंगा 

गंगा नदी भारत की सबसे पवित्र नदी है, भारत के लोग गंगा को देवी के रूप में पूजा करते हैं। यह भारत की 47 फीसदी भूमि को सिंचाई और पचास करोड़ लोगों को भोजन प्रदान करती है। इन महत्ताओं के बावजूद यह दुनिया की सबसे प्रदूषित नदियों में से एक है। वाराणसी की एक एनजीओ एसएमएफ गंगा के पानी की गुणवत्ता पर नजर रखती है। यहां संगठन नियमित आधार पर गंगा जल के सैंपल का परीक्षण करता है। एसएमएफ ने तुलसी घाट से जो सैंपल जुटाया है, उसमें गंगा की सेहत काफी बिगड़ी दिखती है। यहां जल प्रदूषण काफी ज्यादा है। एसएमएफ के रिपोर्ट्स की माने तो “जनवरी 2016-फरवरी 2019 के बीच बीओडी लेवल 46.8-54mg/l से बढ़कर 66-78mg/l हो गया है। डिजॉल्व्‍ड ऑक्सीजन (DO) 6mg/l या इससे ज्यादा होना चाहिए, इस अवधि में इसका स्तर 2.4mg/l से घटकर 1.4mg/l रह गया है। कॉलीफॉर्म बैक्टीरिया की आबादी भी पानी में बढ़ गई है।

नमामि गंगे परियोजना पर 20 हज़ार करोड़ किया जा रहा है खर्च

तेजी से बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण, औद्योगिक विकास ने घरेलू और औद्योगिक प्रदूषकों के स्तर को बढ़ा दिया है। आलम ये है कि गंगा इतनी प्रदूषित हो गयी है कि पहले कहा जाता था कि गंगा स्नान करने से ना सिर्फ मानव शरीर शुद्ध हो जाता बल्कि आत्मा का भी शुद्दिकरण हो जाता लेकिन गंगा के प्रदुषण को देखते हुए इसे पिने तो दूर इसमें स्नान करने से भी कई बीमारियां होना संभव है। यही कारण है कि केंद्र सरकार ने गंगा नदी के प्रदूषण को खत्म करने और नदी को पुनर्जीवित करने के लिए ‘नमामि गंगे’ नामक एक एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन का शुभारंभ किया। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नदी की सफाई के लिए बजट को चार गुना करते हुए पर 2019-2020 तक नदी की सफाई पर 20,000 करोड़ रुपए खर्च करने की केंद्र की प्रस्तावित कार्य योजना को मंजूरी दे दी और इसे 100% केंद्रीय हिस्सेदारी के साथ एक केंद्रीय योजना का रूप दिया।
केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने मिलकर गंगा को साफ़ करने का बीड़ा उठाया है, कई योजनाओं को लागू किया गया, यह समझते हुए कि गंगा संरक्षण की चुनौती बहु-क्षेत्रीय और बहु-आयामी है, विभिन्न मंत्रालयों के बीच और केंद्र-राज्य के बीच समन्वय को बेहतर करने और कार्य योजना की तैयारी में सभी की भागीदारी बढ़ाने के साथ केंद्र एवं राज्य स्तर पर निगरानी तंत्र को बेहतर करने के प्रयास किये गए।

सरकारों ने गंगा को साफ़ करने के लिए क्या कदम उठाये

गंगा नदी की उपरी सतह की सफ़ाई से लेकर बहते हुए ठोस कचरे की समस्या को हल करने; ग्रामीण क्षेत्रों की सफ़ाई से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों की नालियों से आते मैले और शौचालयों के निर्माण; नदी से लगे शमशान भूमि का आधुनिकीकरण और निर्माण का भी काम शुरू है ताकि अधजले या आंशिक रूप से जले हुए शव को नदी में बहाने से रोका जा सके, लोगों और नदियों के बीच संबंध को बेहतर करने के लिए घाटों के निर्माण, मरम्मत और आधुनिकीकरण का लक्ष्य निर्धारित किया।
नदी में नगर निगम और उद्योगों से आने वाले कचरे की समस्या को हल करने के लिए अगले 5 सालों में 2500 एमएलडी अतिरिक्त ट्रीटमेंट कैपेसिटी का निर्माण किया जाएगा। गंगा के किनारे स्थित ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को गंदे पानी की मात्रा कम करने या इसे खत्म करने के निर्देश दिए गए हैं। सभी उद्योगों को गंदे पानी के बहाव के लिए रियल टाइम ऑनलाइन निगरानी केंद्र स्थापित करने के लिए भी कहा गया है। इन सब के अलावा जैव विविधता संरक्षण, वन लगाना, और पानी की गुणवत्ता की निगरानी के लिए भी कदम उठाए जा रहे हैं।

नमामि गंगे से कितनी साफ़ हुई गंगा?

साल 2014 में प्रधानमंत्री मोदी ने अपने चुनावी वादों में गंगा की सफाई को मुख्य मुद्दा बनाया था। प्रधानमंत्री के पद पर बैठते ही उन्होंने नमामि गंगे कार्यक्रम की शुरुआत की, यह गंगा के प्रदूषण को रोकने, संरक्षण और कायाकल्प के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए 20,000 करोड़ के बजट वाला एक एकीकृत संरक्षण मिशन बनाया। इसमें आठ राज्य शामिल हैं, और 2022 तक गंगा से सटे सभी 1,632 ग्राम पंचायतों को स्वच्छता प्रणाली से जोड़ने का लक्ष्य रखा है। नमामि गंगे परियोजना में पिछले साढे़ चार साल में मात्र 7000 करोड़ रुपये ही खर्च हुए जबकि साल 2015 में योजना शुरू होने के बाद पहले दो वर्ष में कोई धन राशि खर्च नहीं हुई। जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण विभाग के सचिव ने संसद की स्थायी समिति को यह जानकारी दी। अक्तूबर 2019 तक योजना को मंत्रिमंडल से मंजूरी मिलने के बाद साढ़े चार साल में इस पर खर्च की गई राशि कुल राशि का 35 फीसदी है।
गंगा की सफाई के लिए निर्धारित समय सीमा के बारे में पूछे जाने पर विभाग ने अपने लिखित उत्तर में समिति को बताया की नदी की सफाई एवं संरक्षण एक सतत प्रक्रिया है। जलमल आधारभूत संरचनाओं के लिये परियोजनाएं व्यापक तौर पर और तीव्र गति से शुरू की गई हैं और इनके दिसंबर 2022 तक पूरी होने की उम्मीद है। रिपोर्ट के अनुसार, नमामि गंगे के प्रमुख कार्यक्रम के तहत कुल 299 परियोजनाएं कार्यान्वित की जा रही हैं जिनमें जल मल आधारभूत संरचना, घाट एवं शवदाहगृह, नदी तट विकास, नदी सतह सफाई, घाट की सफाई और जैव उपचार आदि शामिल हैं। इसमें बताया गया है कि इनमें से केवल 42 परियोजनाएं ही पूरी हुई है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा आरटीआई के तहत मुहैया कराई गई सूचना के मुताबिक साल 2017 में गंगा नदी में बीओडी यानि बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड की मात्रा बहुत ज़्यादा थी, इतना ही नहीं, नदी के पानी में डीओ यानि डिज़ॉल्व्ड ऑक्सीजन की मात्रा ज़्यादातर जगहों पर लगातार घट रही है। वैज्ञानिक मापदंडों के मुताबिक स्वच्छ नदी में बीओडी का स्तर 3 मिलीग्राम/लीटर से कम होनी चाहिए। वहीं डीओ लेवल 4 मिलीग्राम/लीटर से ज़्यादा होनी चाहिए। अगर बीओडी लेवल 3 से ज्यादा है तो इसका मतलब ये है कि वो पानी नहाने, धोने के लिए भी सही नहीं है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड गंगोत्री, जो कि गंगा नदी का उद्गम स्थल है, से लेकर पश्चिम बंगाल तक गंगा के पानी की गुणवत्ता की जांच करता है, गंगोत्री, रुद्रप्रयाग, देवप्रयाग और ऋषिकेश में गंगा का पानी शुद्ध है। यहां पर बीओडी लेवल 1 मिलीग्राम/लीटर है और डीओ लेवल 9 से 10 मिलीग्राम/लीटर के बीच में है। हालांकि जैसे-जैसे गंगा आगे का रास्ता तय करती हैं, वैसे-वैसे पानी में प्रदूषण की मात्रा बढ़ती जाती है। उत्तराखंड के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल हरिद्वार में गंगा की हालत बहुत ज़्यादा ख़राब है, यहां के पानी का अधिकतम बीओडी लेवल 6.6 मिलीग्राम/लीटर है, जो कि नहाने के लिए भी सही नहीं है। इसी तरह के हालात बनारस, इलाहाबाद, कन्नौज, कानपुर, पटना, राजमहल, दक्षिणेश्वर, हावड़ा, पटना के दरभंगा घाटों का है।

मैली रही गंगा, लेकिन विज्ञापनों पर करोड़ों खर्च

गंगा कितनी साफ हुई, कितनी मैली है इसका लेखा जोखा तो एनजीटी से ले कर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तक लगाते है, लेकिन इस बीच एक चीज जरूर चमकदार होती चली गई, वो है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा। मां गंगा अपने बेटे के प्रचार-प्रसार का जरिया बन कर अपने मातृत्व का धर्म निभाती चली गईं, इसका प्रमाण मिलता है, 6 दिसंबर 2018 को जल संसाधन मंत्रालय के नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा की तरफ से उपलब्ध कराए गए आरटीआई दस्तावेजों में। सूचना का अधिकार में साल 2014-15 से लेकर 2018-19 के बीच प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा की तरफ से जारी विज्ञापनों पर हुए खर्च के बारे में पूछा गया था, जवाब चौकाने वाला रहा।  जवाब में बताया गया है कि 2014-15 से ले कर 2018-19 (30 नवंबर 2018) के बीच ऐसे विज्ञापनों पर कुल 36.47 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। इस जानकारी के बाद बात साफ़ है, कि भले गंगा साफ़ हुई नहीं लेकिन पीएम मोदी का चेहरा लगातार साफ़ हुआ।

सरकार के साथ सीएसआर से सहयोग करता कॉर्पोरेट

विशाल जनसंख्या और इतनी बड़ी और लंबी नदी गंगा की गुणवत्ता को बहाल करने के लिए भारी निवेश की जरूरत है। सरकार ने पहले ही बजट को चार गुना कर दिया है लेकिन अभी भी आवश्यकताओं के हिसाब से यह पर्याप्त नहीं है। स्वच्छ गंगा निधि बनाई गई है जिसमें सभी गंगा नदी को साफ़ करने के लिए योगदान कर सकते हैं। गंगा नदी को निर्मल और अविरल बनाने की महत्वाकांक्षी योजना ‘‘नमामि गंगे’’ को सफल बनाने के लिए कार्पोरेट जगत भी कार्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी यानि सीएसआर के तहत इसमें सहयोग कर रहा है। कोल इंडिया लिमिटेड कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी यानि CSR के अंतर्गत पूजा में इस्तेमाल किए जाने वाले फूलों से खाद बनाने की दिशा में एक प्रणाली विकसित की है। गेल और भेल ने भी Corporate Social Responsibility के तहत काम कर रही है।
ओएनजीसी, कोल इंडिया लिमिटेड, बीएचईएल, गेल इंडिया लिमिटेड, सेल, एनटीपीसी लिमिटेड, ऑयल इंडिया लिमिटेड, पेट्रोनेट एलएनजी लिमिटेड सहित कई अन्य सीएसआर कंपनियों ने भी नमामि गंगे कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन द्वारा आयोजित एक कार्याशाला में भागीदारी भी की थी। ये सभी कंपनियां सैलानियों और तीर्थयात्रियों के लिए प्रमुख घाटों पर सुविधाओं के विस्तार की दृष्टि से रेलिंग और पत्थर की कुर्सियां भी लगाई है। सूखा और गीला कूड़ा फेंकने के लिए डस्टबिन लगाए गए है, गंगा को स्वच्छ रखने के लिए रिलायंस जियो भी नमामि गंगे कार्यक्रम से जुड़ा है। इस मिशन के तहत जियो अपने यूजर्स को गंगा को स्वच्छ रखने के लिए मैसेज और नोटिफिकेशन भेजता है। इसके लिए कंपनी ने नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के साथ एक समझौता किया है।

गंगा के प्रदूषण को रोकने के लिए साथ आये आम जनमानस

भारत के चुनावी लोकतंत्र में पर्यावरण को लेकर नीतियों को कोई जगह नहीं है। प्रदूषण शायद ही कभी चुनावी मुद्दा बना हो। रोजगार, आर्थिक विकास और गरीबी उन्मूलन ज्यादा जरूरी हैं। लेकिन ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते खतरे को देखते हुए अब इसपर विचार होने लगा है। गंगा की सफाई कोई पहली बार नहीं हो रही है, राजीव गांधी के ज़माने से साफ़ होती गंगा मोदी के ज़माने में भी साफ़ नहीं हो पायी। जब उमा भारती को गंगा जीर्णोद्धार का कार्य सौंपा गया था, तो गंगा मंथन उनके शुरुआती कुछ कदमों में से एक था, जिसमें समाज के हर स्तर के लोगों से सुझाव मांगे गए थे। लेकिन बाद के वर्षों में उन सुझावों पर कोई भी काम नहीं किया गया। फिर गंगा जीर्णोद्धार की जिम्मेदारी केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के पास सौंपा गया लेकिन कुछ ख़ास हाथ नहीं लगा।
जनता द्वारा चुने गए नेताओं में बड़े प्रदूषकों या छोटी-छोटी कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करने का उत्साह बहुत कम है, क्योंकि वे वोट बैंक का काम करते हैं। यथास्थिति को चुनौती देने के बजाय आम राजनेता दिखावे के लिए आम तौर पर किसी संगठन के सहयोग से सफेद हाथी जैसी पर्यावरणीय परियोजना चलाने का प्रयास करता है, जिसका चुनाव से ठीक पहले उद्घाटन किया जा सके। चुनाव जितने के बाद कुछ नहीं किया जाता।
बहरहाल भारत सरकार गंगा को अविरल और स्वच्छ बनाने के लिए लगातार प्रयास तो कर रही है लेकिन अगर सरकार के सहयोग में आम जनमानस का हाथ जुड़ जाय तो वो दिन दूर नहीं जब हमारी गंगा एक बार फिर से जीवनदायनी मां कहलाएगी। वक़्त यही है कि हम खुद ये बीड़ा उठा लें कि मां गंगा को स्वच्छ रखें और अन्य किसी को गंदा नहीं करने दें। इस पर गंभीरतापूर्वक विचार करने का यही वक्त है। तो आईये, हम सभी हमारी सभ्यता, हमारी संस्कृति और विरासत के प्रतीक हमारी राष्ट्रीय नदी गंगा को सुरक्षित करने के लिए एक साथ आगे आएं।