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सीएसआर से सैनिटेशन पर करोड़ो खर्च, फिर भी खुले में शौच

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मुंबई में खुले में शौच से मुक्ति के दावे झूठे है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान को खूब प्रमोट किया। जनता ने इस अभियान को हाथोहाथ लेते हुए खुद मुंबई को स्वच्छ बनाने की मुहिम में शामिल हो गयी लेकिन जिस तरह से सफलता मिलनी चाहिए थी वो मिली ही नहीं। मुंबई को 2017 में ही खुले में शौच से मुक्ति का प्रमाण पत्र मिल गया था। लेकिन पांच साल बीत जाने के बाद भी मुंबई स्वच्छ नहीं हुई। आज भी लोग मुंबई के कई इलाकों में लोग खुले में शौच जाने को मजबूर हैं। मुंबई में कुर्ला, मानखुर्द, देवनार, शिवाजी नगर, गोवंडी और चेंबूर, वडाला, एंटॉप हिल, मलाड हिल, माहिम जैसे इलाकों में आज भी लोग सुबह-शाम खुले में शौच में जाते हैं।

मुंबई में 1769 महिलाओं पर सिर्फ एक टॉयलेट

मुंबई की समस्याओं पर रिसर्च करनेवाली प्रजा फाउंडेशन के आकड़ों की मानें तो मुंबई में 1769 महिलाओं पर सिर्फ एक टॉयलेट है। वहीं 696 पुरुषों पर एक टॉयलेट है। प्रजा का कहना है कि 2018 में यह देखा गया कि 4 सार्वजनिक शौचालयों में से केवल 1 महिलाओं के लिए था, जो केंद्र सरकार द्वारा शुरू किए गए स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत तय किए गए मानक 100-400 पुरुषों तथा 100-200 महिलाओं के लिए 1 शौचालय से काफी कम है। 2011 की जनगणना के अनुसार मुंबई में करीब 52 लाख लोग झुग्गी-झोपड़ियों में रहते हैं, जो मुंबई की कुल आबादी का 42 प्रतिशत था।

वहीं 696 पुरुषों पर एक टॉयलेट है

जबकि 10 साल बाद मुंबई में स्लम की आबादी बढ़ कर करीब 60 लाख हो गई है। इस आंकड़े के हिसाब से मुंबई में कुल 2.50 लाख सार्वजनिक शौचालय (Public Toilets in Mumbai) होने चाहिए। लेकिन अभी मुंबई में इसके आधे यानी केवल एक लाख बीस हजार के आसपास शौचालय हैं। जिनका निर्माण बीएमसी और म्हाडा ने किया है। इनमें से करीब 25 प्रतिशत शौचालय बेहद बुरी हालत में हैं और उन्हें साफ और सुरक्षित नहीं माना जा सकता है। इन टॉयलेट्स में काफी लंबी लाइन भी होती है इसलिए थोड़ा दूर ही सही लेकिन लोग खुले में चले आते हैं। स्लम में बने शौचालय का दरवाजा टूटा है, पानी की व्यवस्था नहीं रहती। साफ-सफाई पर भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता।

मुंबई में सीएसआर के तहत सैनिटेशन पर होता है इतना खर्च

सिर्फ बीएमसी (BMC) और म्हाडा ही नहीं बल्कि कॉरपोरेट्स भी हेल्थ एंड सैनिटेशन (Sanitation in Mumbai) के तहत सीएसआर फंड्स की मदद से लोगों की सुविधाओं के लिए सार्वजनिक शौचालय का निर्माण करवाती है। इन शौचालयों के लिए कॉरपोरेट्स करोड़ों रुपये का CSR Funds इस्तेमाल करती है लेकिन स्तिथी में कोई ख़ास बदलाव नहीं आ रहा है। आकड़ों की मानें तो अकेले मुंबई शहर में Sanitation पर साल 2020-2021 में 8.33 करोड़ रुपये Corporate Social Responsibility – CSR के तहत खर्च किये गए। वही ये आकड़ा 2019-2020 में 3.24 करोड़ रुपये रहा जिसे Corporate ने कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी फंड्स के तहत ख़र्च किया।

सीएसआर की मदद से सैनिटेशन पर मुंबई की रैंकिंग में सुधार संभव

मुंबई को पांच साल पहले खुले में शौच से मुक्त (Mumbai Open Defecation Free) घोषित किया गया था। इसके बावजूद मुंबई अभी भी सार्वजनिक शौचालयों की मांग और उनकी उपलब्धता के बीच बहुत गैप है। इसको पूरा करने के लिए मुंबई में अभी भी सवा लाख सार्वजनिक शौचालय की जरूरत है। स्वच्छ भारत अभियान के मापदंडों के मुताबिक हर 25 लोगों पर एक सार्वजनिक शौचालय होना चाहिए, लेकिन मुंबई इसमें बहुत पीछे है। स्वच्छ भारत अभियान के तहत वर्ष 2022 की रैंकिंग में मुंबई की स्थिति में सुधार हुआ है। लेकिन मुंबई अभी भी देश में टॉप 30 से बाहर है। ऐसे में सरकार और कॉरपोरेट को गंभीरता से सोचने की जरूरत है।