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August 1, 2025

Malegaon Blast Case Verdict: मालेगांव ब्लास्ट केस मामले में 17 साल बाद साध्वी प्रज्ञा समेत सभी आरोपी बरी, कोर्ट ने कहा- “सबूत नाकाफी”

The CSR Journal Magazine

2008 के धमाके में 6 की मौत और 101 घायल हुए थे

Malegaon Blast Case Verdict: महाराष्ट्र के मालेगांव में 29 सितंबर 2008 को हुए बम धमाके के लगभग 17 साल बाद एनआईए की विशेष अदालत ने इस बहुचर्चित और राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामले में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित समेत सातों आरोपियों को बरी कर दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में सबूतों की कमी, जांच में खामियां और प्रक्रियात्मक त्रुटियों को आधार बनाते हुए यह निर्णय सुनाया। Pragya Singh Thakur acquitted

अदालत ने कहा “धारणा नहीं, ठोस सबूत चाहिए”

विशेष एनआईए न्यायाधीश ए. के. लाहोटी ने फैसले में कहा, “अदालत केवल नैतिक या सामाजिक धारणा के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहरा सकती। आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता। कोई भी धर्म हिंसा का समर्थन नहीं करता।” अदालत ने आगे स्पष्ट किया कि अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर पाया कि विस्फोटक उस बाइक में रखा गया था जो कथित रूप से प्रज्ञा ठाकुर की थी।

Malegaon Blast Case Verdict: विस्फोट और उसका पृष्ठभूमि

29 सितंबर 2008 की शाम को मालेगांव की एक मस्जिद के पास खड़ी एक मोटरसाइकिल में विस्फोट हुआ था। इसमें 6 लोगों की मौत और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे। यह धमाका धार्मिक दृष्टिकोण से संवेदनशील इलाके में हुआ था, जिससे देशभर में हड़कंप मच गया था। Pragya Singh Thakur News

अभियोजन पक्ष की दलीलें हुईं खारिज

अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया था कि धमाका दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा मुस्लिम समुदाय को आतंकित करने की साजिश के तहत किया गया था। लेकिन कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष इस बात को सिद्ध नहीं कर सका कि आरोपियों ने ही बम विस्फोट की साजिश रची थी। कोर्ट ने कहा कि न तो प्रज्ञा ठाकुर की बाइक से बम मिलने की पुष्टि हुई और न ही कर्नल पुरोहित के घर से कोई विस्फोटक बरामद हुआ। कोर्ट ने जांच की प्रक्रिया पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि घटनास्थल का कोई स्केच नहीं बनाया गया, फिंगरप्रिंट नहीं लिए गए, और साक्ष्य संग्रह में लापरवाही बरती गई।

पीड़ित पक्ष की प्रतिक्रिया: “यह अन्याय है”

पीड़ित परिवारों के वकील शाहिद नदीम ने कहा: “कोर्ट ने माना कि धमाका हुआ था, लेकिन दोषियों को बरी कर देना अन्याय है। हम इस फैसले को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती देंगे। हम स्वतंत्र अपील दायर करेंगे।” उन्होंने यह भी कहा कि विस्फोट में मारे गए 6 लोगों के परिजनों को दो-दो लाख रुपये और घायलों को 50,000 रुपये मुआवजा दिया जाएगा, लेकिन यह न्याय नहीं है।

कोर्ट के फैसले की अहम बातें

UAPA लागू नहीं होगा: दोनों मंजूरी आदेशों को दोषपूर्ण माना गया। अभिनव भारत पर आरोप नहीं सिद्ध: कोर्ट ने कहा कि संगठन का नाम तो लिया गया, पर कोई ठोस लिंक नहीं मिला। बाइक की पहचान साफ नहीं: चेसिस नंबर अस्पष्ट था, यह भी साबित नहीं हो सका कि यह बाइक प्रज्ञा ठाकुर की थी। फॉरेंसिक रिपोर्ट विश्वसनीय नहीं: साक्ष्यों में गड़बड़ियां और मेडिकल प्रमाणपत्रों में हेराफेरी सामने आई।101 नहीं, 95 घायल: मेडिकल रिपोर्ट की गिनती में भी गलती पाई गई।

आरोपी कौन थे?

इस मामले में सात आरोपी थे, जो सभी जमानत पर बाहर थे। प्रज्ञा सिंह ठाकुर – भोपाल से भाजपा सांसद रह चुकी है, ले. कर्नल (से.नि.) श्रीकांत प्रसाद पुरोहित, मेजर रमेश उपाध्याय (सेवानिवृत्त), अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी, समीर कुलकर्णी। इन सभी पर UAPA, भारतीय दंड संहिता (IPC) और शस्त्र अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था।

राजनीति में हलचल तेज

इस फैसले के बाद राजनीतिक प्रतिक्रिया भी सामने आने लगी है। कई विपक्षी दलों ने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया पर भरोसा है, लेकिन जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठते हैं। वहीं भाजपा समर्थकों ने फैसले को “सच की जीत” बताया। मालेगांव विस्फोट मामला, जिसमें “भगवा आतंकवाद” (Hindu Terrorism) शब्द पहली बार राजनीतिक विमर्श का हिस्सा बना, अब एक लंबी कानूनी लड़ाई की ओर बढ़ता दिख रहा है। एनआईए कोर्ट का फैसला एक तरफ जहां न्याय प्रक्रिया की पारदर्शिता को दर्शाता है, वहीं यह भी दिखाता है कि जांच एजेंसियों की लापरवाही से न्याय कैसे प्रभावित हो सकता है। अब सवाल यह है: क्या हाईकोर्ट में यह मामला नया मोड़ लेगा या यह अध्याय यहीं समाप्त हो जाएगा?
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