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June 29, 2025

हिंदी अनिवार्यता पर फिलहाल ब्रेक, क्या महाराष्ट्र में अब फिर बदलेगी त्रिभाषा नीति की दिशा?

शिवसेना मंत्रियों की आपत्ति के बाद सीएम देवेंद्र फडणवीस ने त्रिभाषा नीति पर लगाई रोक

महाराष्ट्र सरकार की ओर से स्कूली शिक्षा में हिंदी भाषा को अनिवार्य करने की योजना पर अब फिलहाल ब्रेक लग गया है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कैबिनेट बैठक के बाद घोषणा की कि राज्य में लागू की जा रही त्रिभाषा नीति पर फिलहाल रोक लगाई जा रही है। साथ ही सरकार ने इस नीति को लेकर पहले जारी दोनों सरकारी आदेश (GR) को भी रद्द कर दिया है। अब इस पूरे मामले पर एक नई समिति का गठन किया जाएगा, जिसकी अध्यक्षता डॉ. नरेंद्र जाधव करेंगे।

क्या थी त्रिभाषा नीति और क्यों हुआ विवाद?

त्रिभाषा नीति के तहत महाराष्ट्र सरकार ने स्कूली पाठ्यक्रम में मराठी, अंग्रेजी के साथ हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा के तौर पर शामिल करने का निर्णय लिया था। इसके विरोध में शिवसेना (शिंदे गुट) के मंत्री गुलाबराव पाटील, शंभुराजे देसाई और दादा भुसे ने आपत्ति जताई। इन नेताओं का तर्क था कि हिंदी को अनिवार्य बनाने से मराठी विद्यार्थियों पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा और क्षेत्रीय भाषाओं की उपेक्षा होगी।

मुख्यमंत्री ने क्या कहा?

प्रेस कॉन्फ्रेंस में सीएम फडणवीस ने कहा, “सरकार ने त्रिभाषा नीति को लेकर दोनों GR रद्द कर दिए हैं। अब हम एक नई समिति बना रहे हैं जो इस नीति को लेकर सभी पक्षों से राय लेगी और उसके आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी।” उन्होंने स्पष्ट किया कि नई समिति सभी संबंधित विशेषज्ञों और संगठनों से बातचीत करेगी और रिपोर्ट के आधार पर ही त्रिभाषा नीति लागू की जाएगी।

क्या है माशेलकर समिति और उसका क्या रोल रहा?

मुख्यमंत्री ने बताया कि यह नीति उद्धव ठाकरे सरकार की पहल पर बनी माशेलकर समिति की रिपोर्ट के आधार पर ही बनाई गई थी। यह समिति 2020 में बनी थी और इसमें कई शिक्षाविद और मराठी भाषा के विशेषज्ञ शामिल थे। फडणवीस ने आरोप लगाया कि हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाने की सिफारिश उद्धव ठाकरे कैबिनेट द्वारा ही की गई थी और अब जब उसी नीति को लागू किया जा रहा है, तो विपक्ष दिखावा कर रहा है।

“लोग दिखावा कर रहे हैं” – फडणवीस का तंज

सीएम फडणवीस ने कहा, “जो मराठी के लिए सो गए हैं, उन्हें उठाया जा सकता है, लेकिन जो दिखावा कर रहे हैं, उन्हें नहीं। 2020 में बनी रिपोर्ट में साफ कहा गया था कि हिंदी और अंग्रेज़ी को भी पढ़ाया जाना चाहिए। उस वक्त तो किसी ने सवाल नहीं उठाया।” उन्होंने यह भी कहा कि कर्नाटक और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों ने पहले ही अपनी नई शिक्षा नीतियों को लागू कर दिया है।

नई समिति का क्या काम होगा?

सरकार ने त्रिभाषा नीति पर विचार के लिए डॉ. नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में एक समिति गठित की है। यह समिति निर्णय लेगी कि कौन सी भाषा किस कक्षा से पढ़ाई जाए, तीसरी भाषा का विकल्प क्या हो,
किस कक्षा से किस भाषा को पढ़ाना शुरू किया जाए, और क्या यह नीति छात्रों पर बोझ डालेगी या नहीं, मुख्यमंत्री ने कहा कि समिति अध्ययन करेगी, संवाद करेगी और सुझाव देगी, तभी जाकर कोई नया GR लाया जाएगा।

क्या छात्रों के हित में था यह फैसला?

फडणवीस ने कहा कि उनकी सरकार की नीति छात्र-केंद्रित है और वह चाहती है कि मराठी भाषी विद्यार्थियों को किसी भी प्रकार की भाषाई असमानता का सामना न करना पड़े। “अगर अन्य राज्यों के बच्चे तीसरी भाषा में अंक पाते हैं और हमारे मराठी बच्चे नहीं, तो यह अन्याय है। इसीलिए हमें बहुत सतर्कता से नीति बनानी होगी,” – फडणवीस

हिंदी पर रोक या संतुलन की कोशिश?

राजनीतिक तौर पर यह फैसला हिंदी बनाम मराठी जैसा दिख रहा है, लेकिन सरकार का दावा है कि यह केवल संवेदनशील संतुलन बनाने की कोशिश है ताकि किसी की भी भाषाई पहचान या अवसर प्रभावित न हों। अब राज्य सरकार माशेलकर समिति की रिपोर्ट का अध्ययन करेगी और नवगठित समिति की सिफारिशों के आधार पर ही नया फैसला लिया जाएगा। तब तक के लिए हिंदी को अनिवार्य बनाने का निर्णय स्थगित कर दिया गया है। महाराष्ट्र में त्रिभाषा नीति को लेकर राजनीति गर्म है। शिवसेना, भाजपा और कांग्रेस सहित सभी पक्ष इस विषय पर अपनी-अपनी भूमिका निभा रहे हैं। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या यह सब छात्रों और शिक्षा की गुणवत्ता के हित में हो रहा है, या फिर यह भी भाषाई राजनीति का हिस्सा बन गया है?

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