Emergency, भारत के लोकतंत्र में लगा एक बदनुमा दाग! तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 26 जून 1975 को इसका ऐलान किया। इसके बाद अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों से हिसाब चुकता करने लगीं। एक-एक कर तमाम शख्सियतों को जेल में भरा जाने लगा। इनमें जयपुर की महारानी भी शामिल थीं जो इंदिरा की धुर विरोधी थीं।
जयपुर की महारानी स्टाइल आइकन गायत्री देवी
जयपुर की राजमाता एक स्टाइलिश रानी से कहीं बढ़कर थीं। उन्होंने महिलाओं के उत्थान के लिए काम किया और राजनीति में प्रवेश किया। उन्होंने 1962 के चुनावों में स्वतंत्र पार्टी के टिकट पर भारी जीत हासिल की। 1975 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा घोषित आपातकाल के दौरान उन्हें जेल में डाल दिया गया था। उन्होंने लगभग छह महीने तिहाड़ जेल में बिताए।
जयपुर की तीसरी महारानी गायत्री देवी (1919-2009) एक आकर्षक चेहरे और फैशन आइकन से कहीं अधिक थीं। जयपुर की राजमाता, जो सवाई मान सिंह द्वितीय की तीसरी पत्नी थीं, उन्होंने जो कुछ भी किया उससे हलचल मचा दी। वह अपने परिवार के खिलाफ गई और जयपुर के महाराजा की तीसरी पत्नी बनीं। एक रूढ़िवादी समाज में जहां पर्दा प्रथा का सख्ती से पालन किया जाता था, वह सार्वजनिक रूप से बिना पर्दा किए रहती थीं। और, जब उन्होंने 1962 में स्वतंत्र पार्टी के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा, तो उन्होंने जयपुर सीट से दुनिया में अब तक के सबसे बड़े बहुमत से जीत हासिल की- 192,909 वोट। इस शानदार जीत ने Guiness Book Of World Records में जगह बनाई, जो उनकी दूसरी उपस्थिति थी। पहली उनकी भव्य शादी के लिए थी, जिसे इतिहास में सबसे महंगी शादी के रूप में जाना जाता है।
लंदन में जन्मी, भारत की मिट्टी में घूमीं
एक महारानी, जो आराम भरी ज़िंदगी की आदी थीं, चुनाव लड़ने की तैयारी करते ही स्टार प्रचारक बन गईं। हालांकि उन्हें हिंदी में बात करना भी मुश्किल से आता था। गायत्री देवी का जन्म लंदन में हुआ था और उन्होंने काफ़ी समय विदेश में बिताया। “वह अपनी 1948 की ब्यूक कार में गांव-गांव घूमती रहीं, और जहां सड़कें ठीक नहीं थीं, वहां खुली जीप में सवार हो गईं।” एक संवाददाता ने उत्साह से कहा, ‘भारत की आज़ादी के चौदह सालों में उनके जैसा कोई उम्मीदवार नहीं आया, जैसा उनका आभामंडल और आकर्षण है। वह अमीर, सुंदर, बुद्धिमान और एक उच्च कोटि की राजनीतिज्ञ हैं। महारानी भारत के शासक वर्ग की राष्ट्रीय राजनीति में वापसी का अब तक का सबसे ज़बरदस्त उदाहरण हैं।”
दुनिया की सबसे खूबसूरत महिलाओं में शुमार
गायत्री देवी का जन्म 23 मई 1919 को कूच बिहार राजघराने में हुआ था, लेकिन वे बिहार में नहीं, लंदन में पैदा हुई थीं। उनकी मां का नाम इंदिरा राजे था, जो बड़ौदा की राजकुमारी थीं। गायत्री देवी के जन्म के वक्त राइडर हैगर्ड की लिखी किताब ‘She: A History Of Adventure’ काफी प्रसिद्ध थी। इसकी कहानी में आयशा नाम की एक जादुई रानी है। इसी रानी के नाम पर महारानी इंदिरा राजे ने गायत्री देवी का नाम आयशा रखा था। गायत्री देवी को एक मशहूर अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका ने ‘दुनिया की 10 सबसे खूबसूरत महिलाओं’ में शुमार किया था।
स्कूल के ज़माने से शुरू हुई थी ईर्ष्या
गायत्री देवी और इंदिरा गांधी दोनों ही रबींद्रनाथ टैगोर द्वरारा स्थापित शांतिनिकेतन के स्कूल पाठ भवन में साथ पढ़ चुकी थीं और तबसे एक दूसरे से परिचय था। तो क्या दोनों के बीच कहा-सुनी या मनमुटाव इसी दौर से शुरू हुआ था? इसका जवाब हां में देना मुश्किल है क्योंकि इससे जुड़ा कोई दस्तावेज़ नहीं मिलता। लेकिन, खुशवंत सिंह ने जो कुछ दोनों को लेकर लिखा या साक्षात्कारों में कहा, उसके अनुसार इंदिरा गांधी आत्ममुग्ध थीं और अपने से ज़्यादा सुंदर या दर्शनीय महिला को अपने आसपास बर्दाश्त नहीं कर सकती थीं।
खुशवंत सिंह ने एक जगह ये ज़िक्र भी किया है कि संसद में जब गायत्री देवी पहुंची थीं, तब उन्हें देखकर इंदिरा गांधी बेहद असहज ही नहीं, बल्कि चिढ़ महसूस कर रही थीं। इसी का नतीजा था कि संसद में इंदिरा ने उन्हें इशारों में ‘शीशे की गुड़िया’ तक कह दिया था। इस पर गायत्री देवी ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि यह इंदिरा के भीतर बदले की भावना का नतीजा है। एक ही स्कूल में पढ़ने वालीं देश की सबसे ताकतवर महिला इंदिरा गांधी और दुनिया की सबसे खूबसूरत महिला का खिताब पाने वाली पूर्व महारानी गायत्री देवी के बीच अदावत का ही नतीजा था महारानी गायत्री देवी के महल पर आयकर विभाग का छापा और जयपुर के किले पर फौज की चढ़ाई!
जयप्रकाश नारायण ने खोला इंदिरा के ख़िलाफ़ मोर्चा
गायत्री देवी 1962 से संसद में जयपुर का प्रतिनिधित्व कर रही थीं और जयप्रकाश नारायण के नक्शेकदम पर चल रही थीं। तब जेपी यानी जयप्रकाश नारायण इंदिरा गांधी के सामने सबसे बड़े राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी बनकर उभरे थे। उन्होंने इंदिरा सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए मोर्चा खोल रखा था। गायत्री देवी तब मुखरता से इंदिरा गांधी का विरोध कर रही थीं। इसकी सजा उनके खिलाफ सरकारी एजेंसी को खुला छोड़कर दी गई थी। इंदिरा सरकार तक अपने सभी राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को एक-एक कर जेल पहुंचा रही थी। ऐसे में पहले से आशंका थी कि गायत्री देवी को भी गिरफ्तार किया जाएगा। वह इंदिरा के खिलाफ बहुत मुखर थीं। करप्शन की आड़ में गायत्री देवी को गिरफ्तार किया गया था। उन पर टैक्स चोरी का आरोप लगाया गया था। तब कहा गया था कि उन्होंने जयपुर के राजमहल में सोने और जेवरातों का बेशकीमती खजाना गाड़ दिया था। उसी साल फरवरी में टैक्स अधिकारियों ने इसे खोज लेने का दावा किया था।
जब्त करवाया महारानी का करोड़ों का खजाना
इस छापे में टैक्स अधिकारियों ने 1.70 करोड़ डॉलर का खजाना मिलने की बात कही थी। इनमें सोने के सिक्के, हीरे, कीमती जेवरात मिलने की बात सामने आई थी। यह बेशकीमती खजाना महारानी का था। उनका कहना था कि महारानी ने अपने राजमहलों में से एक में चैंबर बनाकर इस खजाने को छुपा रखा था। इसके बारे में उन्होंने सूचना नहीं दी थी।
गायत्री देवी अपनी दौलत और ग्लैमर के लिए मशहूर थीं। हालांकि, राजस्थान में किसानों के मुद्दे उठाने के कारण वह उनके बीच बहुत ज्यादा लोकप्रिय थीं। 1940 से 1948 तक वह जयपुर की महारानी रहीं। जयपुर स्टेट का बाद में भारत में विलय हो गया था। प्रिंसली स्टेट्स खत्म होने के बाद वह सफल राजनेता बन गई थीं। वह स्वतंत्र पार्टी की मेंबर थीं। 1990 में 90 साल की उम्र में जब उन्होंने अंतिम सांस ली, अपने पीछे 25,00,00,000 पाउंड की दौलत छोड़कर गई थीं।
जब बंबई से दिल्ली पहुंचीं गायत्री देवी
1975 में जब गायत्री देवी बंबई में इलाज करवाने गई थीं, तब उन्हें बताया गया कि इलाज होते ही उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता था। इमरजेंसी का समय था और इंदिरा गांधी ने गायत्री देवी के खिलाफ इरादा कर लिया था। इमरजेंसी, 25 जून, 1975 से 21 मार्च, 1977 तक की अवधि को संदर्भित करता है। इस अवधि के दौरान, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार ने संविधान के विशेष प्रावधानों का उपयोग करके देश पर व्यापक कार्यकारी और विधायी परिणाम थोपे। पत्रकारों, राजनेताओं, ट्रेड यूनियनवादियों को जेल में डाल दिया गया। गायत्री देवी ने घबराए बगैर दिल्ली का रुख किया और लोकसभा पहुंचीं। लेकिन, वहां उन्होंने जो नज़ारा देखा, उसे देखकर वह अवाक रह गईं। विपक्ष की बेंचें खाली पड़ी हुई थीं। लोकसभा विपक्ष शून्य थी। गायत्री देवी औरंगज़ेब रोड स्थित अपने घर पहुंचीं और कुछ ही देर में आयकर विभाग के अफसर वहां पहुंचे। अफसरों ने उनसे कहा कि उन पर आरोप है कि उन्होंने अघोषित सोना और संपत्ति छुपा रखी है और इसी सिलसिले में विदेशी एक्सचेंज व तस्करी से जुड़े एक एक्ट (COFEPOSA) के तहत उन्हें गिरफ्तार किया जा रहा है। महारानी गायत्री देवी और उनके सौतेले बेटे भवानी सिंह, जो सवाई मान सिंह द्वितीय की मृत्यु के बाद जयपुर के महाराजा बने थे, दोनों को तिहाड़ जेल भेज दिया गया।
तिहाड़ जेल में पशुओं से भी बदतर हाल में कैदी
सिमी ग्रेवाल के साथ ‘Rendezvous’ कार्यक्रम में महारानी गायत्री देवी से जेल में बिताए समय के बारे में पूछा गया। उन्होंने कहा, “भयानक”। उन्होंने यह भी कहा, “तिहाड़ महिलाओं की जेल नहीं थी। महिलाएं वहां केवल विचाराधीन कैदियों के लिए ही जाती थीं। बबल [भवानी सिंह] के पास अपना अलग कमरा था जिसमें उनका अपना स्नानघर था। पुरुषों के लिए तो ठीक था।” गायत्री देवी को एक बदबूदार कमरे में रखा गया था जिसमें एक ही नल था, लेकिन पानी नहीं था, जिसका इस्तेमाल आमतौर पर डॉक्टर करते हैं। उन्होंने उम्मीद की थी कि जेल ‘सेना की बैरक जैसी’ साफ़ होगी। लेकिन हालात बेहद खराब थे। उसकी कोठरी के बाहर एक सड़ा हुआ खुला नाला था जिसमें कैदी शौच करते थे।
जब उनकी सेहत बिगड़ने लगी, तभी उन्हें रिहा किया गया। उन्होंने जल्द ही राजनीति छोड़ दी। हालांकि वह लोगों के लिए काम करना चाहती थीं। “देश के लिए कुछ करने के लिए आपको राजनीति में होना ज़रूरी नहीं है। मैंने यह सोचकर गलती की कि राजनीति में आकर मैं भारत के लिए कुछ कर सकती हूं।” गायत्री देवी ने कहा था।
साल 1980 में इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी की एक प्लेन दुर्घटना में मौत हो गई थी। बताया जाता है कि महारानी गायत्री देवी ने शोक जताने के लिए इंदिरा गांधी को फोन किया था। हालांकि इंदिरा गांधी ने उनसे बात करने से इनकार कर दिया था।
गायत्री देवी के निधन से खत्म हुआ एक अध्याय
मर्दों की दुनिया में औरतों के लिए राह बनाने वाली महारानी गायत्री देवी का 90 साल की उम्र में 29 जुलाई 2009 को निधन हो गया।
गायत्री देवी को राजस्थान में पहला पब्लिक स्कूल शुरु करने का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने औरत को परदे से बाहर निकलने का रास्ता दिखाया और खुद मर्दों के बीच टेनिस खेलने भी निकली। ये वो दौर था जब औरत या तो किसी तस्वीर की लकीरों में कैद थी या परदे में बंद थी। मगर गायत्री देवी ने औरत के खुलेपन की राह हमवार की। वो अपने पति की तरह पोलो खेल को बहुत पसंद करती थी और जयपुर को पोलो के ज़रिये दुनिया भर में एक पहचान दी। उन्हें घुड़सवारी करते भी देखा जा सकता था।
उनके निधन पर लोगो का यही कहना था कि शाही युग और आधुनिक भारत को जोड़ने वाला एक अध्याय पूरा हो गया है। उनके निवास लीलिपूल महल ने कूच बिहार की राजकुमारी से महारानी और फिर राजमाता तक का सफ़र अपनी यादों में सहेज रखा है। लेकिन लीलिपूल ने उनके जाने के बाद जैसे गम की चादर ओढ़ ली हो क्योंकि वो शख्सियत जो इस महल को अपनी मौज़ूदगी से रोशन करती थी,वो एक ऐसे सफ़र पर चली गई जहां से कोई भी वापस लौट कर नहीं आता!
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