भारत में मिट्टी की कला, जिसे आज हम टेराकोटा (Terracotta) कहते हैं, के निशान सिंधु घाटी सभ्यता तक मिलते हैं। सरल, प्राकृतिक और पूर्ण रूप से हस्तनिर्मित यह कला आज भी अपनी सांस्कृतिक जड़ों को संभाले हुए है। देश के कई हिस्सों में यह कला जीवित है, लेकिन उत्तर प्रदेश, विशेषतः लखनऊ और गोरखपुर, टेराकोटा कला की विशिष्ट और प्रभावशाली पहचान रखते हैं। लखनऊ की टेराकोटा कला नवाबी सौंदर्य, सजावट, सूक्ष्म नक्काशी और आधुनिक शहरी डिज़ाइन के लिए पहचानी जाती है, जबकि गोरखपुर की टेराकोटा कला अपनी लाल मिट्टी, अनूठी नुकीली नक्काशी, GI टैग और सदियों पुरानी विरासत के लिए प्रसिद्ध है। इन दोनों केंद्रों की कला, उनकी तुलना, टेराकोटा के बाजार, उपयोग, आधुनिकता, रखरखाव और भविष्य की संभावनाओं को विस्तृत रूप से रेखांकित करने की कोशिश!
टेराकोटा- मिट्टी से बनी सभ्यता और संस्कृति की जड़ें
टेराकोटा मिट्टी से तैयार की जाने वाली एक बेहद प्राचीन और महत्वपूर्ण कला है, जिसकी जड़ें भारत की सभ्यता और सांस्कृतिक विरासत में गहराई से जुड़ी हुई हैं। “टेराकोटा” शब्द का अर्थ है पकी हुई मिट्टी। इस कला में विशेष प्रकार की चिकनी मिट्टी को आकार देकर धूप में सुखाया जाता है और फिर भट्टी में पकाया जाता है, जिससे वस्तु में मजबूती और सुंदर लाल-भूरा रंग आ जाता है। भारतीय समाज में टेराकोटा का उपयोग हजारों वर्षों से होता आ रहा है, मकानों की मूर्तियों से लेकर घरेलू बर्तनों, खिलौनों, सजावटी वस्तुओं, पौधों के गमलों और धार्मिक प्रतिमाओं तक। सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर आधुनिक शहरी जीवन तक, टेराकोटा ने अपनी उपयोगिता और सुंदरता को कायम रखा है। आज गोरखपुर और लखनऊ जैसे शहर अपनी अनोखी टेराकोटा धरोहर के लिए प्रसिद्ध हैं, जिनमें गोरखपुर की टेराकोटा शिल्पकला को GI टैग भी मिला है। यह कला सिर्फ सजावट का साधन नहीं, बल्कि भारतीय हस्तशिल्प की विशिष्ट पहचान है, जो टिकाऊ, पर्यावरण–अनुकूल और सौंदर्य से परिपूर्ण है।
लखनऊ की टेराकोटा कला- लखनऊ की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि
अवध की राजधानी लखनऊ परंपरा और तहज़ीब का शहर माना जाता है। चिकनकारी, ज़री वर्क, लखनवी वास्तुकला, और शास्त्रीय कलाओं के साथ यहां टेराकोटा कला ने भी अपनी जगह बनाई है। यद्यपि लखनऊ टेराकोटा का पारंपरिक केंद्र नहीं, लेकिन आधुनिक शहरी डेकोर की मांग ने इस कला को नया जीवन दिया है।लखनऊ के कलाकार मुख्य रूप से सजावटी और डिजाइनर टेराकोटा पॉट्स बनाने में माहिर हैं जिसकी मुख्यविशेषताएं- बारीक नक्काशी और चिकनी पॉलिश्ड सतह, मॉडर्न–ट्रेडिशनल फ्यूजन डिज़ाइन, हाथ से पेंटेड पॉट्स और पैनल, कोंटेम्पररी इनडोर प्लांटर्स, हल्के, स्टाइलिश और शहरी सजावट के अनुरूप पॉट्स हैं।
लखनऊ में बनने वाले टेराकोटा उत्पाद
लखनऊ में टेराकोटा के इनडोर-आउटडोर प्लांट पॉट्स, रंगीन सजावटी गमले, मुगल-स्टाइल दिये, दीवार सजावट की प्लेटें, टेराकोटा शोपीस, हैंड-पेंटेड घर–दफ़्तर डेकोर जैसी चीज़ें उपलब्ध हैं जिन्हें आप लखनऊ के बाजार और बिक्री केंद्र जैसे हजरतगंज, चौक, अमीनाबाद, क्राफ्ट मेलों और होम डेकोर एक्सपो, ऑनलाइन हैंडमेड प्लेटफॉर्म से ख़रीद सकते हैं।
गोरखपुर की GI टैग टेराकोटा कला- 350 वर्षों से जीवित परंपरा
गोरखपुर की टेराकोटा कला सदियों पुरानी है। यहां की लाल मिट्टी और विशेष चाक–भट्ठी परंपरा ने इसे देश में अनोखा स्थान दिलाया है। यह कला पीढ़ी-दर-पीढ़ी कलाकार परिवारों में हस्तांतरित होती आई है। गोरखपुर टेराकोटा को GI (Geographical Indication) टैग मिला है, जिसका अर्थ है कि यह कला केवल इसी क्षेत्र की विशिष्ट पहचान है।
यह पूरे एशिया में सबसे विशिष्ट पैटर्न वाली टेराकोटा कला मानी जाती है।
गोरखपुर टेराकोटा की विशेषताएं
गोरखपुर में बनाने वाले टेराकोटा की लाल चमकदार सतह (Natural Red Lustre) होती है। यह चमक मिट्टी की प्राकृतिक संरचना के कारण आती है, इस पर कोई कृत्रिम पॉलिश नहीं होती।गोरखपुर टेराकोटा की सबसे बड़ी पहचान है त्रिकोणीय उभार, नुकीले पैटर्न, क्लस्टर डिजाइन और उभरी हुई ज्यामितीय आकृतियां ! गोरखपुर में बनने वाले टेराकोटा बर्तन पूरी तरह हस्तनिर्मित हैं। यहां टेराकोटा में मशीनों का उपयोग लगभग शून्य है।
यहां बनाए गए टेराकोटा धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के साथ होते हैं जिनमे देवी-देवताओं की मूर्तियां, हाथी, घोड़ा, ऊंट, ग्रामीण जीवन के दृश्य, और त्योहारों के लिए विशेष शिल्प शामिल हैं। गोरखपुर के पॉट्स और शोपीस यूरोप, अमेरिका, जापान और कई देशों में निर्यात होते हैं।
लखनऊ और गोरखपुर टेराकोटा—तुलना
यहां दोनों शहरों की टेराकोटा कला की सीधी और विस्तृत तुलना प्रस्तुत है:
पहलू |
लखनऊ टेराकोटा |
गोरखपुर टेराकोटा |
इतिहास |
अपेक्षाकृत आधुनिक |
350+ वर्ष पुरानी विरासत |
मिट्टी |
सामान्य मिट्टी, पॉलिश/पेंट के
|
लाल प्राकृतिक मिट्टी, बिना पें
|
कला शैली |
नाजुक नक्काशी, आधुनिक डिज़ाइन |
नुकीले त्रिकोणीय पैटर्न, पारं
|
उत्पाद |
सजावटी पॉट्स, इनडोर प्लांटर्स |
मूर्तियाँ, पैनल, बड़े पॉट्स |
फिनिश |
पेंटेड और वार्निश्ड |
प्राकृतिक लाल चमक |
बाजार |
शहर आधारित, होम डेकोर |
अंतरराष्ट्रीय निर्यात, सांस्कृ
|
पहचान |
फैशन और डेकोर |
GI टैग, अंतरराष्ट्रीय पहचान |
टेराकोटा पॉट्स- पौधों के लिए सबसे बेहतर क्यों?
टेराकोटा पॉट्स पौधों के लिए वैज्ञानिक रूप से लाभकारी माने जाते हैं क्यूंकि इस विधि से बनाई गई मिट्टी सांस लेती है (Porous nature), अतिरिक्त पानी स्वतः बाहर निकलता है, जड़ों को सड़ने से बचाता है, पौधों की वृद्धि बेहतर होती है और यह तापमान को नियंत्रित करता है। घर की सजावट में टेराकोटा बहुउपयोगी है, जैसे बालकनी गार्डन, टेबलटॉप मिनी प्लान्टर्स, दीवार पर लटकने वाले पॉट्स, पारंपरिक और मॉडर्न डेकोर में! इसके अलावा धार्मिक और सांस्कृतिक उपयोग, जैसे त्योहारों में दीये, पूजा स्थल की सजावट और हस्तनिर्मित मूर्तियां आदि का भी महत्व है।
पर्यावरण के लिए टेराकोटा सर्वोत्तम– देखभाल भी आसान
टेराकोटा पूरी तरह प्राकृतिक और 100 प्रतिशत बायोडिग्रेडेबल होने के कारण प्लास्टिक का बेहतरीन विकल्प है जिसका कम ऊर्जा में निर्माण होता है। टेराकोटा पॉट्स की देखभाल भी आसान होती है।
1. पौधों के लिए पॉट चुनना– इनडोर पौधों के लिए छोटे पॉट, आउटडोर पौधों के लिए मोटी दीवार वाले पॉट, पानी देने की आदत के अनुसार ड्रेनेज वाले पॉट!
2. सफाई- महीने में एक बार गर्म पानी से धोएं, फफूंद दिखे तो सिरके से साफ करें।
3. सर्दियों–गर्मियों में देखभाल– सर्दियों में पॉट फट न जाए, इसके लिए कम पानी दें। गर्मियों में पॉट जल्दी सूखता है, इसलिए हल्की सिंचाई बनाए रखें।
4. पॉट को टूटने से बचाने के उपाय– जमीन पर सीधा न रखें, लकड़ी के स्टैंड पर रखें, अत्यधिक धूप में खाली पॉट न छोड़ें।
टेराकोटा आज किन चुनौतियों का सामना कर रही है?
1. मशीन-निर्मित और प्लास्टिक उत्पादों से प्रतिस्पर्धा
टेराकोटा पूरी तरह हस्तनिर्मित होती है, जबकि प्लास्टिक, फाइबर और मेटल पॉट्स मशीनों से बड़े पैमाने पर और कम कीमत में तैयार किए जाते हैं। ग्राहक अक्सर सस्ते और हल्के विकल्प खरीद लेते हैं। मार्केट में तेजी से बदलाव के कारण कलाकारों को प्रतिस्पर्धा मुश्किल लगती है।
2. मिट्टी की कमी और कच्चे माल का बढ़ता खर्च
कई राज्यों में नदी किनारे से मिट्टी निकालने पर प्रतिबंध या नियंत्रित नियम हैं। अच्छी क्वालिटी की मिट्टी मिलना कठिन, मिट्टी और ईंधन (लकड़ी/कोयला/चुनई) की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। इससे उत्पादन लागत बढ़ जाती है।
3. आधुनिक तकनीक और प्रशिक्षण की कमी
भारत में अधिकांश टेराकोटा कलाकार परंपरागत तरीके से काम कर रहे हैं। लेकिन आधुनिक समय की नई डिजाइन तकनीक, आधुनिक भट्ठियां, बाजार की मांग, इन सबकी कमी उद्योग की गति को धीमा कर देती है।
4. टूट–फूट और ट्रांसपोर्ट में नुकसान
टेराकोटा नाजुक होती है। ट्रांसपोर्टेशन के दौरान कहीं भेजते समय टूटने का जोखिम बना रहता है। पैकिंग की उच्च लागत, विदेशी शिपमेंट में 10–20 फीसदी सामान अक्सर क्षतिग्रस्त हो जाता है। यह व्यापारियों के लिए बड़ा घाटा है।
5. स्थायी आय का अभाव
टेराकोटा हस्तशिल्प कलाकारों की आमदनी अनियमित रहती है। त्योहारों पर मांग बढ़ती है। बाकी महीनों में बिक्री कम हो जाती है। इस कारण कलाकारों की नई पीढ़ी इस पेशे में नहीं आना चाहती।
6. मार्केटिंग और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म की कमी
कई कलाकारों के पास सोशल मीडिया का ज्ञान, ऑनलाइन सेलिंग प्लेटफॉर्म (जैसे Etsy, Amazon Handmade) की जानकारी, आकर्षक उत्पाद फोटोग्राफी नहीं होती। इससे वे बड़े बाजार तक नहीं पहुंच पाते।
7. विदेशी बाजार में कड़ी शर्तें
निर्यात के लिए लागत बढ़ जाती है- पैकिंग, अंतरराष्ट्रीय माल भाड़ा, कस्टम ड्यूटी, डेमेज लोस के कारण कई छोटे कलाकार निर्यात करना चाहते हैं, लेकिन प्रक्रियाएं जटिल और महंगी होने के कारण पीछे रह जाते हैं।
8. सरकारी सहायता का सीमित लाभ
हालांकि कुछ योजनाएं हैं, लेकिन अधिकांश कलाकारों को जानकारी नहीं होती। आवेदन करना कठिन होता है। बाजार जोड़ने वाली योजनाएं अभी भी सीमित हैं
9. नकली/मशीन-मेड वस्तुओं का बढ़ना
बाजार में कई उत्पाद टेराकोटा जैसे दिखते हैं, पर असल में प्लास्टर ऑफ पेरिस या मोल्ड से बनाए होते हैं। इससे असली टेराकोटा की पहचान और मूल्य दोनों प्रभावित होते हैं।
10. मौसम और पर्यावरण का प्रभाव
सर्दियों में पॉट फटने का खतरा रहता है, और गर्मी में जल्दी सूखने के कारण उत्पादन प्रभावित होता है। बारिश में मिट्टी सुखाना मुश्किल होता है। टेराकोटा उद्योग आज आर्थिक, तकनीकी, बाजार और पर्यावरण- चारों स्तरों पर चुनौतियों से जूझ रहा है। फिर भी इसकी सांस्कृतिक विरासत, पर्यावरणीय महत्व, और अंतरराष्ट्रीय आकर्षण इसे जीवित रखे हुए हैं। यदि कलाकारों को तकनीकी प्रशिक्षण, ऑनलाइन बाजार, आधुनिक भट्ठियां और सरकारी सहायता आसानी से मिले, तो यह उद्योग आने वाले वर्षों में और मजबूत होकर उभर सकता है।
टेराकोटा और हस्तशिल्प कलाकारों के लिए सरकारी योजनाएं (भारत सरकार + उत्तर प्रदेश सरकार)
1. PM Vishwakarma Yojana (प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना)
यह योजना विशेष रूप से हस्तशिल्प और पारंपरिक कारीगरों के लिए शुरू की गई है। टेराकोटा/कुंभकार इसके लाभार्थी के तौर पर सीधे पात्र हैं। इस योजना के मुख्य लाभ-
₹15,000 का टूलकिट सहायता,
₹500 प्रति दिन का स्किल ट्रेनिंग भत्ता,
डिज़ाइन और मार्केटिंग का प्रशिक्षण,
5 प्रतिशत ब्याज पर बिना गारंटी ₹1 लाख तक लोन (पहला चरण),
₹2 लाख तक का दूसरा लोन (रीपेमेंट के बाद),
डिजिटल लेनदेन पर प्रोत्साहन राशि,
टेराकोटा कलाकार, चाक पर काम करने वाले, मिट्टी के पॉट्स/दिये/मूर्तियाँ बनाने वालों के लिए उपयोगी।
2. ODOP योजना – One District One Product (यूपी)
गोरखपुर टेराकोटा को ODOP में शामिल किया गया है और बड़े पैमाने पर समर्थन दिया जा रहा है। इस योजना के लाभ-
GI टैग प्रचार,
मार्केट लिंक,
एक्सपो/मेले में मुफ्त स्टॉल,
ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर लिस्टिंग सहायता,
पैकिंग, ब्रांडिंग व डिजाइन सुधार के लिए अनुदान,
प्रशिक्षण शिविर
लखनऊ में ODOP: चिकनकारी, लेकिन टेराकोटा शिल्पकारों को अप्रत्यक्ष लाभ (मेले, कारीगर शिविर, ट्रेनिंग) मिलता है।
3. PMEGP योजना (Prime Minister’s Employment Generation Programme)
यह योजना उन लोगों के लिए है जो टेराकोटा यूनिट, भट्ठी, वर्कशॉप, या डेकोर स्टूडियो खोलना चाहते हैं। इसके तहत मिलने वाले लाभ-
10–25 लाख तक परियोजना लागत,
15–35 प्रतिशत सरकारी सब्सिडी, महिलाओं और SC/ST के लिए अधिक सब्सिडी, आसान बैंक लोन।
4. MSME पंजीकरण (Udyam Registration)
टेराकोटा यूनिट को MSME के रूप में पंजीकृत होने पर अनेक लाभ मिलते हैं। मुख्य लाभ-
सस्ते ब्याज पर लोन,
बिजली बिल में छूट,
मार्केट सहायता,
निर्यात सहायता,
ई-मार्केटप्लेस (GeM) पर बिक्री का मौका।
5. हस्तशिल्प मार्केटिंग सहायता योजना (HMAS) – भारत सरकार
टेराकोटा और हस्तशिल्प कलाकारों के लिए मेले, प्रदर्शनी, क्राफ्ट एक्सपो आयोजित किए जाते हैं। इसके लाभ- दिल्ली हाट, सरस आजीविका मेले में स्टॉल,
मुफ्त आवास, यात्रा भत्ता,
क्रेता–विक्रेता बैठक,
विदेशी खरीददारों से जुड़ने का अवसर।
6. Guru Shishya Parampara Program (Handicrafts Ministry)
टेराकोटा/मिट्टी कलाकारों को मास्टर क्राफ्ट्समैन के साथ प्रशिक्षण दिया जाता है। इस योजना से कलाकारों को लाभ-
मासिक स्टाइपेंड,
सामग्री सहायता,
प्रमाणपत्र,
कौशल उन्नयन
7. GI Promotion Scheme (Geographical Indication Support)
यह योजना सीधे गोरखपुर टेराकोटा पर लागू होती है। इससे मिलने वाले लाभ-
उत्पाद पर GI लोगो,
टैग वाले उत्पादों की बढ़ी कीमत,
अंतरराष्ट्रीय बाजार में पहचान,
GI उत्पादों की ऑनलाइन बिक्री में सहायता।
8. Export Promotion Schemes (Niryat Mitra / EPC)
निर्यात करने वाले शिल्पकारों के लिए: इस योजना के कई फायदे हैं-
निर्यात दस्तावेज़ में सहायता,
विदेश मेले में भाग लेने के लिए अनुदान,
अंतरराष्ट्रीय खरीदारों से संपर्क।
9. मुख्यमंत्री हस्तशिल्प प्रोत्साहन योजना (उत्तर प्रदेश)
यूपी के सभी हस्तशिल्प कलाकारों को सीधी सहायता प्रदान करती है यह योजना-
मासिक प्रोत्साहन राशि,
उपकरण और सामग्री अनुदान,
कारीगर कार्ड,
हेल्थ इंश्योरेंस।
10. कौशल विकास योजनाएं
जैसे- यूपी कौशल विकास मिशन, हैंडीक्राफ्ट ट्रेनिंग प्रोग्राम, जिनसे मिलने वाले लाभ-
आधुनिक डिजाइन, 3D मॉडलिंग,
पॉटरी के नए तरीके,
मार्केटिंग ट्रेनिंग,
प्रमाणपत्र।
11. Mudra Loan Scheme
टेराकोटा कलाकार छोटे लोन लेकर काम बढ़ा सकते हैं और इस योजना का लाभ ले सकते हैं-
₹10,000 से ₹10 लाख तक लोन,
कोई गारंटी नहीं,
कम ब्याज,
महिलाओं को विशेष लाभ।
12. GeM (Government e-Marketplace) Seller Registration
सरकारी विभाग टेराकोटा उत्पाद खरीदते हैं जिससे स्थानीय कारीगरों को लाभ मिलता है-
सरकारी ऑर्डर,
बड़े पैमाने की स्थिर कमाई,
ऑनलाइन भुगतान सुनिश्चित।
टेराकोटा- परंपरा, आधुनिकता और वैश्विक पहचान
नवाबी शहर की सजावटी टेराकोटा और गोरखपुर की GI टैग प्राप्त लाल मिट्टी की कला, दोनों मिलकर भारत की प्राचीन शिल्प विरासत का भविष्य गढ़ रहे हैं। लखनऊ और गोरखपुर की टेराकोटा कला भारतीय हस्तशिल्प की उन परंपराओं में शामिल है, जो न सिर्फ समय के साथ विकसित हुई हैं बल्कि आज वैश्विक पहचान भी हासिल कर रही हैं। लखनऊ की टेराकोटा कला नवाबी संस्कृति, आधुनिक डिजाइन और बारीक नक्काशी का सुंदर मिश्रण है। यहाँ के कलाकार सजावटी पॉट्स, पेंटेड प्लांटर्स, मिनी शोपीस और मुगल-स्टाइल दीये बनाते हैं, जिनकी मांग शहरी होम डेकोर में लगातार बढ़ रही है। यह कला आधुनिक ग्राहकों की पसंद के अनुसार रूप बदलकर जिंदा है।
इसके विपरीत, गोरखपुर की टेराकोटा कला सदियों पुरानी परंपरा है, जिसे GI टैग प्राप्त है। यहाँ की लाल मिट्टी से बने पॉट्स और मूर्तियों में प्राकृतिक चमक होती है, जिस पर किसी प्रकार की पॉलिश की आवश्यकता नहीं होती। नुकीले त्रिकोणीय पैटर्न और ‘नाखून शैली’ की नक्काशी इसकी खास पहचान है। हाथी, घोड़ा, ऊँट, देवी-देवताओं की मूर्तियाँ और बड़े सजावटी पॉट्स अंतरराष्ट्रीय बाजार में खूब पसंद किए जाते हैं।
सजावट के साथ पर्यावरण संरक्षण
टेराकोटा पॉट्स आज न सिर्फ सजावट का हिस्सा हैं, बल्कि पौधों के लिए भी वैज्ञानिक रूप से बेहतरीन माने जाते हैं। यह मिट्टी से हवा का आदान–प्रदान संभव करते हैं, पानी की निकासी अच्छी होती है और पौधों की जड़ों को स्वस्थ रखते हैं। साथ ही यह पर्यावरण के अनुकूल और 100 प्रतिशत प्राकृतिक विकल्प हैं। दोनों शहरों की कला, एक शहरी डिजाइन और दूसरी पारंपरिक विरासत मिलकर भारतीय टेराकोटा परंपरा को मजबूत बना रही हैं। चुनौतियों के बावजूद, ऑनलाइन बाजार और सरकारी समर्थन के साथ इन कलाओं का भविष्य और उज्ज्वल हो रहा है।
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