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June 20, 2025

चाची की कचौड़ी’ और ‘पहलवान की लस्सी’- काशी की पहचान पर चला बुलडोज़र 

Kashi: वाराणसी की मशहूर ‘पहलवान लस्सी’ और ‘चाची की कचौड़ी’ की दुकान का अस्तित्व भले ही खत्म हो गया हो, लेकिन काशी का स्वाद नहीं बदलेगा। सड़क को फोरलेन बनाने के लिए लंका रविदास गेट के सामने से ढहाई गई चाची की दुकान गुरुवार को ठीक सामने कटरे में खुल गई और उसका बोर्ड भी टंग गया। पहलवान लस्सी की दुकान भी वहां से थोड़ी ही दूरी पर ओबार्बा के बगल में अंदर खुल गई है। हालांकि काशी के स्वाद की पहचानों में शामिल हो चुकी इन दुकानों के ढहाए जाने के दूसरे दिन से ही राजनीति भी शुरू हो गई। प्रशासन ने बुलडोजर से दोनों दुकानों समेत करीब दो दर्जन दुकानों को जमींदोज कर दिया। BHU-रवीन्द्रपुरी मार्ग को सिक्सलेन करने के लिए PWD ने लंका स्थित रविदास गेट के आसपास और रामलीला मैदान स्थित अधिग्रहीत दुकानें तोड़ दीं। इससे पहले देर शाम से ही दुकानदारों ने दुकानें खाली करनी शुरू कर दी थीं। दुकानदारों को इसकी पूर्व सूचना दे दी गई थी

काशी आओ तो चाची और पहलवान की दुकान पर जरूर जाना

Chachi ki Kachori: वाराणसी, जो कभी काशी, बनारस के नाम से भी प्रसिद्ध रहा है भारत के प्राचीनतम शहरों में से एक है। इस शहर का इतिहास, धार्मिक-सास्कृतिक महत्व और  सामाजिक दृष्टिकोण तो जानने योग्य है ही, इस शहर के व्यंजन यानी खानपान भी बहुत प्रसिद्ध हैं। वाराणसी का बाटी चोखा, पान, बनारसी कलाकंद, टमाटर चाट, ठंडाई, कचौरी और लस्सी देश में ही नहीं पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं। अगर आप वाराणसी में हैं और लजीज खाने के शौकीन हैं, तो आपको चाची की कचौड़ी और पहलवान लस्सी का लुत्फ जरूर उठाना चाहिए।वाराणसी के पवित्र शहर की यात्रा पर हर आगंतुक की पसंद में तले हुए नमकीन का एक निवाला और उसके बगल में लस्सी शामिल होती है। स्थानीय लोगों के लिए भी ये नाश्ते के लिए उतनी ही पसंदीदा जगह थी। लेकिन ये दोनों मशहूर दुकानें अब वाराणसी के पाककला के नक्शे से गायब हो चुकी हैं, क्योंकि फोर लेन परियोजना के लिए कई दुकानों के साथ इन्हें भी ध्वस्त कर दिया गया है।मंगलवार की देर रात शहर के अधिकारियों ने पहलवान लस्सी और BHU रोड पर लंका चौराहे के पास मौजूद 100 साल पुरानी चाची की कचौड़ी समेत 30 से ज्यादा दुकानों को ध्वस्त कर दिया। दरअसल, लगभग 350 करोड़ से 9.512 किमी लम्बी लहरतारा से मंडुवाडीह, भिखारीपुर तिराहा, सुंदरपुर से बीएचयू तक फोरलेन और इससे आगे रवीन्द्रपुरी तक सिक्सलेन सड़क का निर्माण चल रहा है। लहरतारा से भिखारीपुर तक यह परियोजना 80 फीसदी से ज्यादा पूरी हो चुकी है। कुछ ही कार्य शेष है।

चाची की गालियां और कचौड़ियां, दोनों मशहूर

राजनेता, बॉलीवुड के कुछ सितारों समेत मशहूर हस्तियां और आम लोग 1915 में स्थापित चाची की कचौड़ी दुकान पर आना पसंद करते थे। जब ‘चाची’ जिंदा थीं, तो कचौड़ी में मसाला डाला जाता था। ग्राहकों को कुछ खास गालियां दी जाती थीं, जो परंपरा का हिस्सा थीं। चाची के बेटे कैलाश यादव ने 2012 में उनकी मौत के बाद दुकान संभाली है। उन्होंने कहा, “दुकान को ‘चाची की कचौड़ी’ के नाम से जाना जाता था, जिसका नाम मेरी मां के नाम पर रखा गया था। उनकी गालियां और हमारी कचौड़ियां, दोनों ही मशहूर थीं।”

योगी, अमित शाह भी लस्सी का स्वाद ले चुके

पहलवान लस्सी की दुकान पर कई हस्तियां आ चुकी हैं। यहां की लस्सी का स्वाद सीएम योगी, गृहमंत्री अमित शाह, स्मृति ईरानी और अखिलेश यादव भी ले चुके हैं। कुल्हड़ में दही, मलाई-रबड़ी के कॉम्बिनेशन से लस्सी तैयार होती थी। इस स्वाद को चखने के लिए सिर्फ काशी के लोग ही नहीं, देशभर के लोग आते थे। बीएचयू से अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान तक पहुंच गए लोग बनारस आने पर यहां जरूर आते थे। इस बुलडोज़र कार्यवाही को काशी की पहचान मिटाए जाने की कार्रवाई बताते हुए प्रधानमंत्री के काशी से जुड़ाव पर सवाल खड़े किए गए। हालांकि दोनों दुकानदारों ने इस संबंध में कोई बयान नहीं दिया और अपनी दुकानों को अन्यत्र शिफ्ट करने की तैयारी में जुटे रहे।

काशी में बुलडोज़र पर बवाल

एसपी प्रमुख अखिलेश यादव ने काशी की पहचान इन दुकानों पर तोड़क कार्यवाही को अनैतिक करार देते हुए कहा कि बुलडोजर दुकानों पर नहीं, काशी की आत्मा पर चलाया गया है। शिव की अविनाशी काशी में बीजेपी सरकार विनाश का बुलडोजर चला रही है।

चंदौली सांसद वीरेंद्र सिंह ने पहलवान लस्सी की दुकान के मलबे पर खड़े होकर कहा कि “काशी की आत्मा गलियों में बसती है, और प्रशासन विकास के नाम पर उस आत्मा को कुचल रहा है। बनारस कभी क्योटो नहीं हो सकता।” उन्होंने बताया कि वे स्वयं काशी हिंदू विश्वविद्यालय के छात्र रहे हैं और चाची की कचौड़ी तथा पहलवान लस्सी उनके छात्र जीवन की यादें हैं। बनारस की आत्मा उसके घाटों, गलियों, पान की दुकानों और छोटे दुकानदारों में बसती है। जब कभी मेस बंद हो जाता था, वे यहीं बैठकर कचौड़ी खाते थे, लस्सी पीते थे और बातें करते थे। ऐसे स्थान केवल दुकान नहीं, बल्कि सांस्कृतिक केंद्र है।

दुकान नहीं रही, पर स्वाद का ठेला फिर सज गया

बुलडोजर की कार्रवाई के बाद ‘चाची कचौड़ी’ के स्वाद के दीवाने काफी मायूस और निराश हो गए थे, लेकिन ये मायूसी इसलिए ज्यादा दिनों तक नहीं टिक सकी क्योंकि ‘चाची कचौड़ी’ की जमींदोज दुकान के मलबे के सामने फिर से दुकान खुल गई है। यहां पहले ‘चाची कचौड़ी’ की दुकान का गोदाम हुआ करता था, जिसमें खाने का सामान तैयार होता था। अब इसका इस्तेमाल दुकान के तौर पर भी होना शुरू हो गया है।
फिलहाल, दुकान का स्थान बदल जाने से स्वाद के दीवानों के उत्साह में कोई कमी नहीं आई है। आज भी काफी संख्या में लोग ‘चाची की कचौड़ी’ का लुत्फ लेने दुकान पर पहुंचे और प्रशासन को जमकर कोसा। साथ ही उचित मुआवजे और दुकानदारों को पुनर्स्थापित करने की मांग की।
‘चाची की कचौड़ी’ के उत्तराधिकारी कैलाश यादव, जो इस विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं, ने बताया कि अभी कुछ दिन नए स्थान पर एडजस्टमेंट करने में लगेगा, लेकिन कोशिश इस बात की है कि शुरुआत चाहे नई हो, स्वाद वही पुराना हो। यादव को अभी तक ना तो मुआवजे की राशि और ना ही पुनर्वास के बारे में किसी ने आश्वासन दिया है। दुखी मन से उन्होंने यह भी बताया कि तमाम हस्तियां, बड़े-बड़े नेता उनके यहां कचौड़ी तो खाने आते थे, लेकिन किसी ने एक फोन करके हाल-चाल तक नहीं लिया।

100 साल पुराना रहा है इन दुकानों का इतिहास

स्थानीय लोगों की मानें तो इन पुरानी दुकानों का 100 साल पुराना इतिहास रहा है, जहां देश के राजनेता, फिल्म जगत, कला, साहित्य, से जुड़े हुए लोग पहुंचकर लस्सी-कचौड़ी का स्वाद चखते-चखते ज्ञान, ध्यान, और राजनीतिक चर्चाओं में गुम रहे हैं। इसी वजह से बुलडोजर कार्रवाई के बाद इन दुकानों के टूटने पर चर्चाओं का दौर सुर्खियों में रहा। अब देखना यह होगा कि दूसरी जगह पर खोली गई इन दुकानों का जादू कितना बरकरार रहेगा!

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