Thecsrjournal App Store
Thecsrjournal Google Play Store
April 14, 2025

Jallianwala Bagh Massacre: 105 साल बाद भी हरे हैं जख्म

Jallianwala Bagh Massacre: हर साल जब भी 13 अप्रैल की तारीख आती है, अंग्रेजों की निर्दयता की कहानी फिर से ताजा हो उठती है। उस घटना को आज 105 साल बीत चुके हैं, लेकिन जख्म आज भी हरे हैं। ये कहानी है Jallianwala Bagh की! भारत की आजादी की लड़ाई की सबसे दुखद और क्रूर घटनाओं में से एक- जलियांवाला बाग हत्याकांड का दिन। उस नरसंहार का दृश्य कैसा रहा होगा, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। उस घटना को कुछ शब्दों में समेटा नहीं जा सकता। Jallianwala Bagh Massacre, 13 अप्रैल 1919 को घटी घटना, जिसमें ब्रिटिश सैनिकों ने जलियांवाला बाग नामक एक बगीचे में निहत्थे भारतीयों की एक बड़ी भीड़ पर गोलियां बरसाईं। उपनिवेशित भारत के पंजाब क्षेत्र अब पंजाब राज्य के अमृतसर में हुए बम विस्फोट में सैकड़ों लोग मारे गए और सैकड़ों अन्य घायल हो गए। यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, क्योंकि इसने भारत-ब्रिटिश संबंधों पर एक स्थायी निशान छोड़ा और यह ब्रिटिश साम्राज्यवाद की शुरुआत भी थी। इस भीषण नरसंहार का कारण Rowlatt Act क़ानून को बताया जाता है। भारतीयों के खिलाफ ये अंग्रेजों का ‘काला कानून’ था। ‎Rowlatt Act 1919 लागू होने के बाद की सिलसिलेवार घटना कुछ इस प्रकार रही-

Jallianwala Bagh Massacre-Rowlatt Act ने भड़काई चिंगारी

महात्मा गांधी ने 6 अप्रैल, 1919 से एक अहिंसक ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ शुरू किया। 9 अप्रैल, 1919 को पंजाब में दो प्रमुख नेताओं, सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू को गिरफ्तार कर लिया गया, जिससे अशांति फैल गई। पूरे देश में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। कानून के खिलाफ इस प्रकार के किसी भी विरोध को रोकने के लिए अंग्रेजों ने मार्शल लॉ लागू किया। Brigadier General Reginald Dyer को पंजाब में कानून व्यवस्था संभालने का आदेश दिया गया। उसे जालंधर से अमृतसर बुलाया गया। पहले वर्ल्ड वॉर (1914-18) के दौरान Sir Sydney Rowlatt की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिशों पर Rowlatt Act पारित किया गया था। इस अधिनियम के अनुसार भारत में ब्रिटिश सरकार को राजनीतिक गतिविधियों को दबाने के लिये विशेष अधिकार दिए गए, जिसके अंतर्गत किसी भी व्यक्ति को बिना किसी मुकदमे के दो साल तक हिरासत में रखा जा सकता था।
Jallianwala Bagh Massacre: नरसंहार की ओर अग्रसर World War I (1914-18) के दौरान भारत की ब्रिटिश सरकार ने Emergency Management की एक श्रृंखला लागू की, जिसका उद्देश्य विध्वंसकारी गतिविधियों से निपटना था। युद्ध के अंत तक भारतीयों के बीच यह उम्मीदें बहुत बढ़ गई थीं कि उन कड़ाइयों में ढील दी जाएगी और भारत को अधिक राजनीतिक Independence मिल जाएगी ।1918 में ब्रिटिश संसद में प्रस्तुत Montagu–Chelmsford Reforms वास्तव में सीमित स्थानीय स्वशासन की सिफारिश की थी। हालांकि, इसके बजाय, 1919 की शुरुआत में भारत सरकार ने एक विधेयक पारित किया जिसे बाद में ‘अधिनियम 1919’ के रूप में जाना गया। Rowlett Act ने अनिवार्यतः दमनकारी युद्धकालीन उपायों को बढ़ा दिया। इन कृत्यों के कारण भारतीयों में व्यापक गुस्सा और असंतोष फैल गया, खास तौर पर पंजाब क्षेत्र में! अप्रैल की शुरुआत में महात्मा गांधी ने पूरे देश में एक दिन की आम हड़ताल का आह्वान किया। अमृतसर में यह खबर फैली कि प्रमुख भारतीय नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया है और शहर से निर्वासित कर दिया गया है, जिसके कारण 10 अप्रैल को हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए, जिसमें सैनिकों ने नागरिकों पर गोलियां चलाईं, इमारतों को लूटा और जला दिया गया और गुस्साई भीड़ ने कई विदेशी नागरिकों को मार डाला और एक ईसाई मिशनरी को बुरी तरह पीटा। ब्रिगेडियर जनरल की कमान में कई दर्जन सैनिकों की एक टुकड़ी ने एक ईसाई मिशनरी को बुरी तरह पीटा। Reginald Edward Harry Dyer को व्यवस्था बहाल करने का काम सौंपा गया। उसके द्वारा उठाए गए कदमों में सार्वजनिक समारोहों पर प्रतिबंध लगाना भी शामिल था।

13 अप्रैल का मनहूस दिन

13 अप्रैल को बैसाखी के दिन पंजाब में नए साल की शुरुआत और गुरु गोबिंद सिंह द्वारा ख़ालसा पंथ की स्थापना के अवसर को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। 1919 में भी 13 अप्रैल को अमृतसर के जलियांवाला बाग़ में उत्सव मनाने के लिए दोपहर को कम से कम 10,000 पुरुष, महिलाएं और बच्चों की भीड़ इकट्ठा हुई। साथ ही वहीं पर एक शांति पूर्ण धरना चल रहा था, जो अंग्रेज़ों द्वारा सार्वजनिक बैठकों पर प्रतिबंध के ख़िलाफ़ Protest का था। Jalianwala Bagh, जो लगभग पूरी तरह से दीवारों से घिरा हुआ था और उसमें से निकलने का सिर्फ़ एक ही रास्ता था। General Dyre और उसके सैनिक वहां पहुंचे और निकलने का रास्ता बंद कर दिया। बिना किसी चेतावनी के, सैनिकों ने भीड़ पर गोलियां चलानी शुरू कर दीं। कथित तौर पर सैकड़ों राउंड गोलियां (लगभग 1,650) तब तक चलाईं, जब तक कि उनके पास गोला-बारूद खत्म नहीं हो गया। जलियांवाला बाग उस समय मकानों के पीछे पड़ा एक खाली मैदान था। वहां तक जाने या बाहर निकलने के लिए केवल एक संकरा रास्ता था और चारों ओर मकान थे। भागने का कोई रास्ता नहीं था। कुछ लोग जान बचाने के लिए मैदान में ही मौजूद एकमात्र कुएं में कूद गए, पर देखते ही देखते वह कुआं भी लाशों से पट गया।
बाग में लगी पट्टिका पर लिखा है कि १२० शव तो सिर्फ कुए से ही मिले। शहर में क‌र्फ्यू लगा था जिससे घायलों को इलाज के लिए भी कहीं ले जाया नहीं जा सका। लोगों ने तड़प-तड़प कर वहीं दम तोड़ दिया। अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, जबकि जलियांवाला बाग में कुल 388 शहीदों की सूची है। ब्रिटिश राज के अभिलेख इस घटना में 200 लोगों के घायल होने और 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार करते हैं, जिनमें से 337 पुरुष, 41 नाबालिग लड़के और एक 6-सप्ताह का बच्चा था। अनाधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 1000 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक घायल हुए। आधिकारिक रूप से मरने वालों की संख्या ३७९ बताई गई जबकि पंडित मदन मोहन मालवीय के अनुसार कम से कम 1300 लोग मारे गए। स्वामी श्रद्धानंद अनुसार मरने वालों की संख्या 1500 से अधिक थी, जबकि अमृतसर के तत्कालीन सिविल सर्जन डॉक्टर स्मिथ के अनुसार मरने वालों की संख्या 1800 से अधिक थी। सैनिकों द्वारा गोलीबारी बंद करने के तुरंत बाद, वे मृतकों और घायलों को पीछे छोड़कर उस स्थान से चले गए। आज भी जलियांवाला बाग की दीवारों पर उन गोलियों के निशान मौजूद हैं।
गोलीबारी के बाद पंजाब में Marshal Law की घोषणा की गई, जिसे सार्वजनिक रूप से कोड़े मारने और अन्य अपमानजनक तरीकों से लागू किया गया। गोलीबारी और उसके बाद की ब्रिटिश कार्रवाई की खबर पूरे उपमहाद्वीप में फैलने के साथ ही भारतीयों में आक्रोश बढ़ गया। बंगाली कवि और Noble पुरस्कार विजेता Ravindranath Tagore ने 1915 में मिली Knighthood की उपाधि को त्याग दिया। गांधी जी शुरू में कार्रवाई करने में हिचकिचा रहे थे, लेकिन उन्होंने जल्द ही अपना पहला बड़े पैमाने पर और निरंतर अहिंसक विरोध सत्याग्रह अभियान आयोजित करना शुरू कर दिया, असहयोग आंदोलन (1920-22) में भाग लिया, जिसने उन्हें भारतीय राष्ट्रवादी संघर्ष में प्रमुखता दिलाई। भारत सरकार ने घटना की जांच (हंटर आयोग) का आदेश दिया, जिसने 1920 में डायर की हरकतों की निंदा की और उसे सेना से इस्तीफा देने का आदेश दिया। हालांकि, नरसंहार पर ब्रिटेन में प्रतिक्रिया मिली-जुली थी। कई लोगों ने डायर की हरकतों की निंदा की-जिनमें से एक थे Sir Winston Churchill ! तत्कालीन युद्ध सचिव, ने 1920 में House Of Commons में दिए गए अपने भाषण में Dyre की आलोचना की, लेकिन House Of Lords ने डायर की प्रशंसा की और उसे एक तलवार भेंट की, जिस पर आदर्श वाक्य लिखा था “पंजाब का रक्षक।” इसके अलावा, डायर के समर्थकों ने एक बड़ी धनराशि जुटाई और उसे भेंट की।

जलियांवाला बाग़ स्मारक

Jallianwala Bagh Massacre: नरसंहार स्थल को एक स्मारक में बदल दिया गया है जिसे राष्ट्रीय स्मारक National Monument माना जाता है । स्मारक में संग्रहालय दीर्घाएं हैं और नरसंहार की घटनाओं को बयान करने के लिए दैनिक Light And Sound Show प्रस्तुत किया जाता है। गोलियों के निशान वाली एक दीवार को संरक्षित किया गया है, साथ ही शहीदी कुआं भी है, जिसमें माना जाता है कि सैनिकों द्वारा गोलीबारी के दौरान कई लोग कूद गए थे।
Jallianwala Bagh Massacre: जलियांवाला बाग का नाम सुनते ही भारत के स्वतंत्रता संग्राम का वह खौफनाक और दुखद पल आंखों के सामने आ जाता है, जब सैकड़ों निर्दोष भारतीयों को बिना किसी चेतावनी के मौत के घाट उतार दिया गया था। यह घटना भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का एक अहम मोड़ बन गई थी। 13 अप्रैल को जलियांवाला बाघ हत्याकांड की बरसी होती है। ये दिन गुलाम भारत के इतिहास का वह काला अध्याय है, जिसके किस्से आज भी लोगों के रोंगटे खड़े कर देते हैं। Jallianwala Bagh Massacre: जलियांवाला बाग का नाम सुनते ही भारत के स्वतंत्रता संग्राम का वह खौफनाक और दुखद पल आंखों के सामने आ जाता है, जब सैकड़ों निर्दोष भारतीयों को बिना किसी चेतावनी के मौत के घाट उतार दिया गया था। यह घटना भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का एक अहम मोड़ बन गई थी। 13 अप्रैल को जलियांवाला बाघ हत्याकांड की बरसी होती है। ये दिन गुलाम भारत के इतिहास का वह काला अध्याय है, जिसके किस्से आज भी लोगों के रोंगते खड़े कर देते हैं।
जलियांवाला बाग पंजाब के अमृतसर शहर में स्थित है, जो स्वर्ण मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित है। जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद से अब तक ये स्थान काफी बदल गया है। लेकिन उस काले दिन के निशान आज भी वहां की दीवारों पर दर्ज हैं।

Bollywood दिखने जा रहा असलियत

सच्ची घटनाओं पर आधारित फिल्में लंबे वक्त से हिंदी सिनेमा में बनती आ रही हैं। इस कड़ी में अब नया नाम अक्षय कुमार (Akshay Kumar) और आर माधवन (R Madhavan) स्टारर फिल्म केसरी चैप्टर 2 (Kesari Chapter 2) का शामिल हो रहा है। 1919 में हुए Jalianwala Bagh हत्याकांड के पर्दे की पीछे की कहानी को इस मूवी में दिखाया जाएगा। फ़िल्म का Trailer Launch किया जा चुका है। 3 मिनट 2 सेकेंड के इस ट्रेलर में दिखाया गया है कि किस तरह से साजिश के तहत ब्रिटिश शासन के जनरल डायर ने जलियांवाला बाग हत्याकांड करवाया था। इस घटना के सच को सामने लाने के लिए वकील की भूमिका में नजर आने वाले अक्षय कुमार अपने दमदार अभिनय से फैंस का ध्यान खींच रहे हैं। ये पूरी मूवी 13 अप्रैल 1919 में हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड की पीछे की सच्चाई पर आधारित है। इस हत्याकांड में मासूम बच्चों, महिलाओं, पुरुष और बुजुर्ग सहित सैंकडों लोगों को मौत के घाट उतारा गया था। फ़िल्म अभिनेता राणा दग्गुबाती ने इंस्टाग्राम अकाउंट पर केसरी चैप्टर 2 का पोस्टर शेयर किया है। इसके साथ अभिनेता ने कैप्शन में लिखा, “अभी-अभी मैंने ऐतिहासिक कोर्ट रूम ड्रामा ‘केसरी चैप्टर 2: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ जलियांवाला बाग’ देखी। एक पावरफुल और अहम फिल्म, जो आपके अंदर के भारतीय के साथ गहराई से जुड़ी हुई है। यह ऐसी कहानी है जिसे हर भाषाओं में देखा जाना चाहिए। राणा दग्गुबाती केसरी चैप्टर 2 देखकर इस कदर इंप्रेस हुए हैं कि उन्होंने इस फिल्म को तेलुगु भाषा में भी रिलीज करने का एलान किया है। उन्होंने लिखा, “हम सुरेश प्रोडक्शंस इस सिनेमाई रत्न को सिनेमाघरों में बेस्ट तरीके से तेलुगु दर्शकों तक पहुंचाने के लिए हर मुमकिन कोशिश करेंगे। यह एक Must Watch मूवी है।” अक्षय कुमार हाल ही में केसरी-2 के प्रमोशनल इवेंट में गए, जहां उन्होंने कहा कि वह चाहते हैं कि King Charles और ब्रिटिश सरकार उनकी यह फिल्म देखें। हालांकि, इसका कारण माफी की चाहत रखना नहीं बल्कि कोई और वजह है।
अक्षय कुमार चाहते हैं कि वे इस फिल्म को देखें और सालों पुरानी हुई गलती का एहसास करें। केसरी अभिनेता ने कहा, “मैं भीख का कटोरा लेकर नहीं कह रहा- उन्हें माफी मांगनी चाहिए। मैं बस इतना चाहता हूं कि वे इस फिल्म को देखें और कम से कम अपनी गलती का एहसास करें। बाकी बातें उनके मुंह से अपने आप निकल जाएंगी। माफी तो मांगनी ही पड़ेगी, यह अपने आप निकल जाएगी लेकिन मैं चाहता हूं कि वे यह फिल्म देखें। मैं चाहता हूं कि ब्रिटिश सरकार और किंग चार्ल्स यह फिल्म देखें। उन्हें देखना चाहिए कि क्या हुआ। बाकी सब अपने आप हो जाएगा।” 1919 में अमृतसर का जलियांवाला बाग हत्याकांड का दर्द आज भी कोई नहीं भूल पाया है। अक्षय कुमार ने बताया कि उनके दादा इस नरसंहार के गवाह थे। अभिनेता ने कहा, “मेरे दादा जलियांवाला बाग हत्याकांड के गवाह थे। वह मेरे पिता को इस बारे में बताते थे और मेरे पिता मुझे। मैं बचपन से ही इस नरसंहार के बारे में बहुत कुछ जानता हूं, इसलिए यह फिल्म मेरे लिए बहुत खास है। यह घटना हमेशा मेरे दिमाग में बसी रही है। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि इतिहास हमें वह नहीं बताता है जो हमें जाननी चाहिए।”

Latest News

Popular Videos