इटली के बुडेले (Budelli) द्वीप पर तीन दशक से अधिक समय तक अकेले रहने वाले 85 वर्षीय मौरो मोरांदी, जिन्हें दुनिया “आधुनिक रोबिन्सन क्रूसो” (Modern Robinson Crusoe) के नाम से जानती थी, ने प्रकृति के बीच एकांत में 32 साल बिताने के बाद 2021 में मुख्यभूमि पर वापसी की थी। उनकी जीवनगाथा एक ऐसी कहानी कहती है जो मनुष्य और प्रकृति के बीच गहरे संबंध की प्रतीक है।
इटली के रॉबिन्सन क्रूसो मौरो मोरांदी
इटली के मौरो मोरांदी, जिन्हें उनके एकांत जीवन के कारण “रॉबिन्सन क्रूसो” के नाम से जाना जाता था, ने भूमध्य सागर के एक एकांत द्वीप पर 30 से अधिक वर्षों तक समाज से कटकर जीवन व्यतीत किया और आत्मनिर्भरता की कला में निपुणता हासिल की थी। स्थानीय मीडिया ने उन्हें “रॉबिन्सन क्रूसो” का उपनाम तब दिया जब वे इटली के सार्डिनिया द्वीप के पास स्थित बुडेले (Budelli) द्वीप के एकमात्र निवासी के रूप में जाने गए। यह द्वीप कभी द्वितीय विश्व युद्ध के समय का आश्रय स्थल रहा था।
कौन था रॉबिन्सन क्रूसो
रॉबिन्सन क्रूसो एक काल्पनिक व्यक्ति है, जो डैनियल डेफ़ो के 1719 के उपन्यास ‘रॉबिन्सन क्रूसो’ का नायक है, जो समुद्री जहाज के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद एक निर्जन द्वीप पर फंस जाता है और अपनी चतुराई और सूझबूझ से जीवित रहता है। यह पात्र अलेक्जेंडर सेल्किर्क नाम के एक वास्तविक व्यक्ति से प्रेरित है, जो वास्तव में एक निर्जन द्वीप पर 4 साल तक फंसा रहा था।
बुडेले की अछूती सुंदरता ने मौरो मोरांदी को जकड़ा
मोरांदी अपने एकांत जीवन पर गर्व करते थे। 1989 में, जब वे भौतिकवादी दुनिया और समाज से दूर भागने के उद्देश्य से पोलिनेशिया (Polynesia) की ओर नौकायन कर रहे थे, तो उनकी नाव (कैटामरान) रास्ते में बुडेले द्वीप के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गई। वे नौकायन करते हुए इस द्वीप पर पहुंचे थे, और वहां की प्राकृतिक सुंदरता, गुलाबी रेत, नीला समुद्र और शांत वातावरण ने उन्हें इतना मोहित किया कि उन्होंने यहीं बस जाने का निर्णय लिया। धीरे-धीरे उन्होंने द्वीप पर खुद को स्थापित कर लिया और वहीं के “अनौपचारिक रक्षक” (Caretaker) बन गए। उन्होंने पर्यटन को सीमित रखने और पर्यावरण की रक्षा के लिए काम किया। इसके बाद उन्होंने वहीं रुककर द्वीप के प्रमुख रक्षक के रूप में जीवन बिताने का निर्णय लिया।
बिना किसी सुविधा के जीवन
मोरांदी ने किसी आधुनिक सुविधा पर निर्भर हुए बिना जीवन जिया। न बिजली, न इंटरनेट, न नियमित पानी की आपूर्ति! उन्होंने अपने हाथों से बनी झोपड़ी में जीवन बिताया। उनकी दिनचर्या सूर्योदय से शुरू होती थी। समुद्र किनारे सफाई, पेड़ों और चट्टानों की देखभाल, और आने-जाने वाले पर्यटकों को पर्यावरण संरक्षण का संदेश देना। उन्होंने जीवन को सरल बनाया, जैसे वर्षा जल जमा करना, सौर ऊर्जा पैनल लगाना, स्वयं खाना तैयार करना। शीतकाल में, जब पर्यटक कम होते थे, वे किताब पढ़ते, आग लगाते, द्वीप की घास-फुसफुसाहटों और वातावरण के परिवर्तनों को महसूस करते थे।
C’è chi lo ha definito un “Robinson Crusoe” contemporaneo. Per 32 anni Mauro Morandi è stato il custode della splendida isola di Budelli in Sardegna. È morto a 85 anni. Scrivono gli amici sui social: “La tua anima resta là” pic.twitter.com/GWpkvOzU6J
— Tg3 (@Tg3web) January 4, 2025
द्वीप से बेदखली रास नहीं आई
2021 में इटली सरकार ने बुडेले द्वीप को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया और पर्यावरणीय नियमों के तहत मोरांदी से द्वीप खाली करने को कहा। बुडेले द्वीप को 2016 में सरकारी स्वामित्व में लाया गया। पहले इसे निजी स्वामित्व में रखा गया था। मोरांदी पर आरोप लगाए गए कि उन्होंने अपने रहते समय “बंकर” (जो उनका निवास था) में बिना परमिट कई परिवर्तन किए। पर्यावरणीय और प्रशासनिक तर्क यह दिया गया कि द्वीप को अधिक संरक्षित क्षेत्र और शिक्षा/शोध केंद्र में परिवर्तित किया जाना है। वर्ष 2021 में मोरांदी को द्वीप छोड़ना पड़ा। उन्होंने कहा कि उन्हें अब और लड़ाई नहीं करनी है। स्थानीय लोगों और पर्यावरण प्रेमियों के विरोध के बावजूद उन्हें वहां से जाना पड़ा। मोरांदी पहले ला मैडलेना (La Maddalena) द्वीप पर छोटे से फर्निश्ड अपार्टमेंट में रहने लगे। बाद में स्वास्थ्य कारणों से उत्तर इटली के सार्डिनिया (Sardinia) में जाकर रहने लगे। उन्होंने कहा था, “मैंने अपने जीवन के सबसे सुंदर साल प्रकृति के बीच बिताए हैं। शहर में लौटना मेरे लिए मानो किसी और ग्रह पर आना है।”
85 की उम्र में ली दुनिया से विदा
बुड़ेले से निष्कासन के 3 साल बाद मोरांदी के साथ एक हादसा हुआ जिसमें उनकी रीढ़ (Vertebra) प्रभावित हुई। उनकी सेहत धीरे-धीरे बिगड़ी। उन्होंने मोडेना (Modena) लौटने के बाद अपनी आखिरी समय वहीं बिताया। मोरांदी का निधन 3 जनवरी 2025 को हुआ, 85 वर्ष की आयु में। कहा जाता है कि मोरांदी की इच्छा थी कि उनकी अंत्येष्टि बुड़ेले में हो।
मोरांदी की मौत पर लोगों की प्रतिक्रिया
मोरांदी की मौत की खबर सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर दुनिया भर से श्रद्धांजलि संदेश आने लगे। कई लोगों ने लिखा कि उन्होंने “आधुनिक दुनिया की भागदौड़ से दूर रहने की आज़ादी” का प्रतीक बनकर दिखाया। पर्यावरणविदों ने उन्हें “प्रकृति का सच्चा प्रेमी” बताया, जिसने अपने जीवन को सरलता और शांति के उदाहरण में बदल दिया। मौरो मोरांदी की कहानी इस बात की याद दिलाती है कि कभी-कभी सच्ची खुशी भीड़ में नहीं, बल्कि एकांत में प्रकृति के करीब रहकर मिलती है। उन्होंने अपनी पूरी उम्र इस बात को साबित करने में लगा दी कि इंसान और प्रकृति साथ रह सकते हैं, बिना किसी संघर्ष, बिना किसी स्वार्थ के।
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