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April 11, 2025

International Women’s Day: जश्न से पहले जाग तो जाइए

International Women’s Day – सृष्टि की रचना में नारी है, यौद्धाओं की तलवार की धार नारी है, हर सभ्यता के उत्थान में नारी है, प्रकृति, जैविकता, काव्यात्मक, प्रतीकात्मक चाहे जिस नजरिए से देख लो, हर हाल में सृजन, शक्ति और सहनशीलता की प्रतीक नारी है। आज फिर वही दिन है, जिसे सारी दुनिया अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (International Women’s Day) के रूप में मनाती है। हर साल Women’s Day मनाकर, Women Empowerment का नारा देकर क्या हमने समाज बदल डाला है? क्या एक स्त्री के लिए सचमुच ये समाज अब सुरक्षित हो चुका है? क्या हमने Gender Equality का अपना Goal हासिल कर लिया है? भारतीय समाज में महिलाएं किन समस्याओं से जूझती हैं, और वे किस तरह अपने अधिकारों को प्राप्त कर सकती हैं, जानिए महिलाओं के ज़रिए। आइए, समाज के अलग-अलग तबके के लोगों से जानते हैं क्या है आज महिलाओं की परिस्थिति!

समानता का पैमाना क्या हो

आदिवासी समाज की समानता को किस तरह दिखाया जाता है, यह जानना हमारे लिए बहुत जरूरी है। अगर आदिवासी समाज में हम एक साथ नृत्य करते हैं, तो क्या आप इसे समानता का पैमाना मानेंगे? या फिर हम खुलकर बातचीत करते हैं, त्योहार मनाते हैं, इसे समानता मानेंगे? शायद यह चीजों को रोमांटिसाइज करने का तरीका है, जिसके जरिए यह बताया जाता है कि सबकुछ प्रेमपूर्ण है। हालांकि, यह कहना गलत नहीं होगा कि अन्य समाज की तुलना में आदिवासी समाज में ज्यादा समानताएं हैं। परंतु जब बात आती है संपत्ति की, जमीन की, तो क्यों भेदभाव शुरू हो जाता है? जिन परिवारों में बेटे नहीं हैं, वो अपनी संपत्ति अपनी Community को दे देते हैं। पैतृक संपत्ति बेटियों को न देकर Community को दे देना, महज इसलिए कि वो लड़की है, यह बात कुछ अनुचित लगती है।
मुस्लिम समाज की बात करें तो महिलाओं के लिए अभी बहुत कुछ करना बाकी है। उनमें आधुनिक शिक्षा की, अधिकारों के प्रति जागरूकता की काफी कमी है और उन्हें इस दिशा में काफी कुछ करना है। हिजाब की अनिवार्यता भी भेदभाव का ही नतीजा है। लेकिन अपवाद स्वरूप कुछ परिवारों में अपेक्षाकृत खुला माहौल भी है।ऐसे परिवार भी हैं, जहां शिक्षा को काफी महत्व दिया जाता है। घर में मिलने वाली शिक्षा का आपके जीवन पर अमिट प्रभाव होता है, इसलिए उसे बेहतर तरीके से दिया जाना चाहिए और उनमें लैंगिक भेदभाव के लिए जगह नहीं होनी चाहिए। हमारे समाज में बच्चियां कुपोषित हैं और महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं, इसकी वजह लैंगिक असमानता है, जो नहीं होनी चाहिए।

महिलाएं शारीरिक रूप से कमजोर नहीं

अकसर यह कहा जाता है कि महिलाएं शारीरिक रूप से कमजोर होती हैं, जबकि यह सच नहीं है। महिलाएं कतई शारीरिक रूप से कमजोर नहीं होती है। महिला, जो एक जीवन का सृजन करती है और देश का भविष्य गढ़ती है, वो कमजोर कैसे हो सकती है! बात अगर महिलाओं के मुद्दों की हो तो सुरक्षा का मामला बहुत ही गंभीर है। एक महिला के शरीर को बिना उसकी मर्जी के छूना और उसे अपमानित करना घृणित अपराध है, वहीं लैंगिक भेदभाव भी हमारे समाज में व्याप्त है, जिसे खत्म करने की जरूरत है। आज भी लोगों की सोच इस तरह की है कि वे लड़कियों के साथ उनके Gender को लेकर भेदभाव करते हैं और उन्हें कमतर आंकते हैं। महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए सचेत तो होना ही चाहिए, साथ ही अन्य महिलाओं के अधिकारों के प्रति अपने योगदान पर भी विचार करना चाहिए।

Payment Gap आज भी बड़ा मुद्दा

बेशक समाज बहुत बदला है, लेकिन आज भी महिलाओं को काफी संघर्ष करना पड़ता है। कार्यक्षेत्र की अगर बात करें तो Payment Gap एक बड़ी समस्या है। स्त्री और पुरुष को समान वेतन आज भी नहीं मिल पा रहा है। वहीं शिक्षा, स्वास्थ्य और राजनीति के क्षेत्र में भी महिलाएं पिछड़ी हैं और उन्हें अपनी जगह सुनिश्चित करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। महिलाओं का स्वास्थ्य आज भी इग्नोर किया जाता है, जिसकी वजह से हमारे राज्य में लगभग 70 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं।

गृहिणी सामाजिक व्यवस्था को संभालती है

अकसर यह कहा जाता है कि गृहिणी कुछ करती नहीं है, जबकि सच्चाई यह है कि अगर So Called ‘Housewives’  अपना काम ना करें तो पूरा परिवार और सामाजिक व्यवस्था ध्वस्त हो जाए। इसका सबूत विश्व की हर Housewife Covid19 की Emergency के दौर में दे चुकी है। भारत में एक कहावत है,’यदि किसी घर की खुशहाली का पैमाना जांचना हो तो उस घर की गृहिणी के चेहरे की मुस्कान नाप लीजिए।’ ये ताकत है एक ‘Housewife’ की! मैं तो ‘गृहिणी कुछ नहीं करती’ का बयान देने वालों को चुनौती देना चाहती हूं कि आप एक बार हमारी जगह आकर काम करें तो आपको यह पता चल जाएगा कि गृहिणी क्या करती है!

सवाल सिर्फ लड़कियों से पूछा जाता है

Model Angel Laakda ने एक परिचर्चा के दौरान कहा कि, ’जब मैंने ग्लैमर की दुनिया में जाने का निर्णय लिया, तो मेरे घर में विरोध हुआ, क्योंकि उन्हें लगा कि यह निर्णय सही नहीं है, यहां खतरा है। जबकि यही निर्णय किसी लड़के का होता तो उससे सवाल नहीं किया जाता। दरअसल हमारे समाज में परिवार की इज्जत बचाने की जिम्मेदारी सिर्फ लड़कियों की है, लड़कों से कोई उनके इज्जत के बारे में बात नहीं करता है। लड़कियों की इज्जत किसी की नज़रों से भी घायल हो सकती है, लेकिन लड़कों की इज्जत लूटने या घायल होने का कोई पैमाना नहीं है।

महिलाओं के लिए एकजुटता जरूरी

एक महिला Blogger ने बताया कि,’मैं अपने परिवार की बड़ी बेटी और ससुराल में बड़ी बहू हूं। मैंने अपने जीवन में घर में तो लैंगिक भेदभाव नहीं देखा, लेकिन यह कहूंगी कि कई बार सामाजिक जीवन में महिलाओं से ही मुझे वो सपोर्ट नहीं मिला, जो महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए जरूरी है। अक्सर महिलाएं खुद ही महिलाओं को मर्यादा और परंपरा की बेड़ियों में जकड़ने को तैयार रहती हैं। उस पर ‘लोग क्या कहेंगे’ की नंगी तलवार तो समाज ने टांग ही रखी है। अगर महिलाएं बंटकर रहेंगी तो वे अपने अधिकारों की जंग हार सकती हैं। इसलिए जरूरी है एकजुटता की, आपसी सहयोग की।

महिलाओं के मुद्दों को समझने की जरूरत

हमारे देश में महिलाओं को जिस तरह का अवसर और सम्मान देने की बात हम करते रहे हैं, वो अभी तक संभव नहीं हो पाया है। महिलाओं के मुद्दे क्या हैं, यह हमें महिलाओं के नजरिए से जानना बहुत जरूरी है। आधुनिक नारी की ये सोच कि उसे करियर बनाना है, नाम कमाना है, वह स्वतंत्र है आज कुछ भी बनने और कर गुजरने के लिए, मन की यही लगन उसे निडर होकर आगे बढ़ने को प्रेरित करती है। हर क्षेत्र में अपनी काबिलियत साबित करने इसी तरह अपनी मंजिल की ओर बढ़ते हुए वो अपने हर दिन का सफर तय करती है। लेकिन फिर एक दिन –
यात्रियों से खाली एक बस में बैठती है, जिसमें कंडक्टर, ड्राइवर, एक दो उनके पुरुष साथी होते हैं। फिर होता वो है जो उसने या उसके परिवार ने कभी सोचा भी नहीं। घर-परिवार से मिले संस्कार उसे एक सुरक्षित माहौल दिखाते हैं, उसे बिना डरे आगे बढ़ना सिखाते हैं, लेकिन इससे इतर वो पुरुष हैवानियत का शिकार होती है और ‘निर्भया कांड’ की दर्दनाक सिहरा देने वाली घटना बनकर अपराधों के इतिहास में दर्ज हो जाती है। 16 दिसंबर 2012 की रात निर्भया के साथ इतनी बर्बरता आज तक कोई नहीं भूला और न ही उसे भुलाया जा सकता है।
     घर-परिवार से मिली ऐसी ही सीख के बाद दिन भर की थकी हारी एक मेडिकल स्टूडडेंट कितनी बेफिक्र होकर सो जाती है, क्योंकि उसके मन के किसी कोने तक किसी छोटी सी भी अनहोनी का अंदाज़ा ही नहीं था। यह मामला अगस्त 2024 का है, जब पूरे देश ने देखा कि किस तरह की हैवानियत एक डॉक्टर के साथ की गई। किस तरह से उसे मार दिया गया। पूरे देश में इसे लेकर विरोध-प्रदर्शन हुए। नए कानूनों को बनाने की बात की गई, लेकिन आज हाल क्या हुआ? वो भी ‘कोलकाता डॉक्टर रेप केस’ की खौफनाक कहानी बनकर रह गई।
     सितंबर 2024 में उज्जैन में भरी सड़क पर एक महिला का रेप हो रहा था और किसी ने उस घटना को रोकने की कोशिश तक नहीं की, बल्कि उसका वीडियो बनाया और ऑनलाइन वायरल भी कर दिया। सामाजिक संवेदनहीनता की निर्मम कहानी सुनाती ये घटना ‘उज्जैन रेप केस’ के नाम से मध्य प्रदेश के माथे पर कलंक बनकर रह गई। हाल ही में मध्य प्रदेश के Gwalior चंबल संभाग के शिवपुरी जिले से ऐसी ही रौंगटे खड़े कर देने वाली वारदात सामने आई। 5 साल की मासूम बच्ची से एक नाबालिग ने रेप की वारदात को अंजाम दिया, बच्ची के प्राइवेट पार्ट को दांतों से चबा डाला! उसके शरीर पर जगह-जगह दांत गड़े थे। हैवान ने मासूम बच्ची के शरीर को इस कदर विकृत कर दिया कि डॉक्टरों को उसके Private Part का पुनर्निर्माण करना पड़ा। डॉक्टरों ने जैसे-तैसे मासूम की जान बचाई।
      भले ही भारत का नाम अब दुनिया के बड़े देशों के साथ लिया जाता हो, लेकिन महिला सुरक्षा आज भी शार्मिंदा करती है, क्रूरता की सारी हदें पार करने वाला ये मामला तो होश उड़ा देता है कि अपना वहशीपन छिपाने के लिए एक पुरुष ने महिला के शरीर के 50 टुकड़े कर उसकी लाश को फ्रिज में रख दिया। Bengaluru की ये भयावह वारदात हम कैसे भूल सकते हैं!

स्वतंत्रता मिले कैसे, जब नहीं बदल रहे हालात

आज की नारी सुरक्षा की नहीं स्वतंत्रता की बात करती है, लेकिन कितना शर्मनाक है ये कहना कि वो समझती है कि मैं सुरक्षित हूं। कितनी टीस देते हैं ये शब्द कि जमीनी हकीकत आज भी नहीं बदली! ये वक्त का तकाजा है कि उसे आज भी सुरक्षा की सबसे ज्यादा जरूरत है। ये मामले दिखाते हैं कि सबला, स्वतंत्र नारी को पुख्ता सुरक्षा व्यवस्थाओं की जरूरत है, कानूनों को सख्ती से लागू करने की जरूरत है, सामुदायिक भागीदारी और महिलाओं के लिए एकजुट होने की जरूरत है। स्त्री कमजोर कभी रही ही नहीं, समाज उसकी शक्ति को खतरा मान उसे कमजोर बनाता और समझाता आया है। नौकरी जाने के डर से खुद का शोषण होने देने या खुद को हालात में ढालना बंद कर, ये समय है हर उस पल के खिलाफ आवाज उठाने का, जो एक महिला के ज़मीर को नागवार गुजरा हो, जिसने उसकी आत्मा तक को कचोट कर रख दिया हो।

आजादी के सही मायने समझें

यही समय है और सही समय है ये समझने का, कि आजादी सिगरेट फूंकने, देर रात तक बाहर घूमने या फिर शराब पीने का नाम नहीं है, ये तो हम मुकाबला कर बैठे हैं…अपराधों की दुनिया को बढ़ावा देने का दुस्साहस कर बैठे हैं…सेहत के साथ खिलवाड़ का दुशाला ओढ़ बैठे हैं, जो सिर्फ भविष्य में हमारी पीढ़ियों को गर्त में धकेल देगा। बात महिला अधिकारों की है, बात बराबरी की है, तो बराबरी शिक्षा की है, बराबरी रोजगार में समान अवसर, वेतन और पदोन्नति की है, बराबरी निर्णय लेने की है, बराबरी कानूनी सुरक्षा और महिला अधिकारों की है।

आइए इस बार स्त्री-पुरुष का भेद मिटाकर साथ-साथ मनाएं International Women’s Day

तो आइए इस बार अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (International Women Day 2025) पर आगे बढ़ रही, खुद को स्थापित कर रही महिलाओं और बेटियों के सम्मान के साथ समाज को एक नई दिशा और दशा देने की एक छोटी सी शुरुआत करते हैं। इस बार महिला जागरूकता के जश्न के साथ पुरुष मानसिकता बदलने के प्रयास शुरू करते हैं। थोड़ा वक्त लगेगा, लेकि, ये प्रयास बेटियों का भविष्य सुरक्षित कर देंगे। तब वो न अपनी सुरक्षा के लिए लड़ेगी और न ही उसे अपने अधिकारों के लिए लड़ना पड़ेगा। कितना सुनहरा होगा वो समय, और कितनी चमकीली सी होगी बराबरी की वो दुनिया, जब स्त्री, देह से आगे होगी। उसकी भावनाएं समझने वाला अकेला पिता या मां का मन नहीं, बल्कि एक भाई, एक दोस्त, और एक पति भी होगा। ये बदलाव आने तक, औपचारिकता के लिए, Happy International Women’s Day!

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