हर वर्ष 25 नवंबर को International Day For Elimination Of Violence Against Women मनाया जाता है। इसका उद्देश्य विश्व-भर में महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ होने वाली हिंसा के प्रति जागरूकता बढ़ाना, उसे रोकने के प्रभावी उपाय अपनाना और लैंगिक समानता की दिशा में ठोस कदम उठाना है। यह दिन याद दिलाता है कि आधुनिक समय में भी महिला सुरक्षा एक गंभीर चुनौती है, जिसे केवल कानून नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना और सामूहिक प्रयासों से ही हल किया जा सकता है।
मौन से संघर्ष तक: महिलाओं के लिए कब, कहां, कितना बदला समाज?
दुनिया के लगभग हर समाज और हर संस्कृति में महिलाओं ने सम्मान, अधिकार और सुरक्षा के लिए लम्बा संघर्ष किया है। तकनीक जितनी तेज़ी से आगे बढ़ी है, मानव समाज उतनी ही तेजी से आधुनिक हुआ है, परंतु महिलाओं के खिलाफ हिंसा आज भी उसी गंभीरता के साथ मौजूद है जैसे सदियों पहले थी। यही कारण है कि हर वर्ष 25 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन् मूलन दिवस मनाया जाता है। एक ऐसा दिन जो पूरी दुनिया को याद दिलाता है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा न सिर्फ एक सामाजिक समस्या है, बल्कि मानवाधिकारों के उल्लंघन का सबसे बड़ा उदाहरण है।
महिलाओं के खिलाफ हिंसा: समस्या कितनी व्यापक?
महिलाओं पर होने वाली हिंसा केवल शारीरिक नहीं होती। यह कई रूपों में दिखाई देती है-
1. घरेलू हिंसा (Physical, Emotional, Economic)
2. यौन हिंसा- बलात्कार, शोषण, उत्पीड़न
3. साइबर अपराध- ट्रोलिंग, मॉर्फिंग, स्टॉकिंग
4. मानव तस्करी
5. दहेज हिंसा
6. ऑनर किलिंग
7. बाल विवाह और जबरन विवाह
8. कार्यस्थल पर उत्पीड़न
9. राजनीतिक हिंसा- महिला नेताओं के खिलाफ धमकियां
10. सामाजिक बहिष्कार और मानसिक हिंसा,
इन सभी रूपों में एक समानता है। पितृसत्तात्मक सोच, जो महिलाओं को पुरुषों से “कमतर” मानने की गहरी प्रवृत्ति से पैदा होती है।
भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के आंकड़े (राष्ट्रीय स्तर)
1. NFHS-5 डेटा (2019-21)– लगभग 26.21 प्रतिशत विवाहित महिलाओं ने अपने जीवन में किसी समय पर Intimate Partner Violence (IPV) का सामना किया है। इनमें 60 फीसदी ने शारीरिक हिंसा, 2.15 फीसदी ने यौन हिंसा, और 9.54 फीसदी ने भावनात्मक हिंसा झेली है।
2. NCW (National Commission for Women) शिकायतें- 2024 में एनसीडब्ल्यू (NCW) को 25,743 शिकायतें मिलीं। इनमें से 6,237 शिकायतें (लगभग 24 प्रतिशत) घरेलू हिंसा से जुड़ी थीं। दहेज उत्पीड़न (Dowry Harassment) की शिकायतें भी थीं- 4,383 मामले।
3. NCRB (National Crime Records Bureau)- NCRB डेटा बताता है कि भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराध बहुत अधिक हैं। उदाहरण के लिए, सजा (conviction) दर कम है। 2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में दोष सिद्धि दर लगभग 23.3 प्रतिशत थी।
अंतरराष्ट्रीय स्तर (विश्व स्तर) पर महिलाओं के खिलाफ हिंसा के आंकड़े
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विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)- WHO के आंकड़ों के अनुसार, लगभग 1 में से 3 महिलाएं (लगभग 30 प्रतिशत) संसार में किसी न किसी समय शारीरिक या यौन हिंसा का सामना करती हैं (चाहे वह साथी से हो या गैर-साथी से)।हाल ही की रिपोर्ट (2023) में कहा गया है कि भारत में 15-49 साल की लगभग 20 प्रतिशत महिलाओं को किसी न किसी समय उनका अंतरंग साथी (Partner) हिंसा करता रहा है।
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ग्लोबल Femicide (लिंग-आधारित हत्याएं)– दुनियाभर में लिंग-आधारित हत्याओं (Femicide) की संख्या बहुत बड़ी है। अनुमान है कि लगभग 66,000 महिलाएं प्रतिवर्ष इस तरह की हिंसा में मरती हैं। ये हत्याएं अक्सर “नज़दीकी लोगों या परिवार वालों” द्वारा की जाती हैं। यूएन की रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में प्रतिदिन करीब 140 महिलाएं अपने साथी या किसी रिश्तेदारी (परिचित) व्यक्ति द्वारा मारी जाती थीं।
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दुनिया में यौन उत्पीड़न / यौन हिंसा– EFICOR की रिपोर्ट बताती है कि “विश्व स्तर पर 35% महिलाओं” ने अपने जीवन में किसी न किसी प्रकार की इंटिमेट पार्टनर हिंसा (शारीरिक/यौन) या गैर-साथी की यौन हिंसा का अनुभव किया है। इसके अलावा, दुनिया के कुछ हिस्सों में ऐसे देश हैं जहां यह प्रतिशत बहुत ज्यादा हो सकता है (खास कर जहां रिपोर्टिंग और सांस्कृतिक दबाव अधिक हो)।
विश्लेषण और निष्कर्ष
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ये आंकड़े दिखाते हैं कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा सिर्फ भारत की समस्या नहीं है, बल्कि यह एक वैश्विक न्याय-और-मानवाधिकार समस्या है।
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भारत में भी हिंसा की दर कम नहीं है: NCW शिकायतों, NFHS-5 सर्वे और NCRB की रिपोर्ट से साफ है कि घरेलू हिंसा, IPV और दहेज उत्पीड़न बड़े पैमाने पर जारी हैं।
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अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, Femicide की संख्या बहुत बड़ी है, और घरेलू (घर के अंदर) हिंसा सबसे खतरनाक रूपों में से एक है क्योंकि “घर” ही बहुत बार खूनखराबे का स्थान बन जाता है।
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आंकड़े यह भी बताते हैं कि रिपोर्टिंग और न्याय तक पहुंच एक बड़ी चुनौती है। बहुत सी महिलाएं हिंसा के बाद भी कानूनी मदद नहीं ले पातीं।
हिंसा के पीछे छिपी सामाजिक मानसिकता
1. पितृसत्ता की गहरी जड़ें– सदियों तक समाज ने महिलाओं को “परिवार की इज्जत”, “मर्यादा”, “शालीनता” जैसे शब्दों तक सीमित रखा। पुरुष कमाता है, महिला घर संभालती है, इस सोच ने महिलाओं को निर्णय-क्षमता, आर्थिक स्वतंत्रता और सामाजिक समानता से वंचित रखा।
2. सम्मान के नाम पर हिंसा– कई संस्कृतियों में महिलाओं से उम्मीद की जाती है कि वे परिवार की बातों को सहें और सहनशील रहें। यही सोच घरेलू हिंसा को छिपाने, समाज से डरने और कानून तक न पहुंच पाने का कारण बनती है।
3. आर्थिक स्वतंत्रता की कमी– आर्थिक रूप से निर्भर महिला अक्सर हिंसा के खिलाफ आवाज़ नहीं उठा पाती।
4. शिक्षा और स्वतंत्र विचारों की कमी– अशिक्षा और सीमित अवसर महिलाओं को मौन रहने को मजबूर करते हैं।
विश्व स्तर पर महिलाओं के लिए ऐतिहासिक कदम
1. संयुक्त राष्ट्र की पहलें– 1981 में 25 नवंबर को UN ने आधिकारिक तौर पर महिला हिंसा उन्मूलन दिवस घोषित किया।
CEDAW (1979)– महिला भेदभाव खत्म करने का सबसे महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय दस्तावेज।
UN Women की स्थापना- महिलाओं के अधिकारों के लिए वैश्विक अभियान
2. “Orange The World” अभियान- दुनिया भर की इमारतों, स्मारकों और सड़कों को नारंगी रंग से रोशन कर हिंसा मुक्त समाज का संदेश दिया जाता है।
3. वैश्विक कानून और सुधार- कई देशों ने बलात्कार, घरेलू हिंसा, कार्यस्थल उत्पीड़न आदि के लिए कठोर कानून बनाए।
भारत में महिलाओं की सुरक्षा के लिए हुए प्रमुख कदम
भारत में महिला सुरक्षा एक संवेदनशील और महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है। पिछले वर्षों में कई बड़े सुधार किए गए हैं, जिनमें कुछ प्रमुख कानून-
1. घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005– महिलाओं को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और यौन उत्पीड़न से सुरक्षा, निवास का अधिकार, प्रोटेक्शन आदेश
2. निर्भया कानून (2013)– कठोर दंड, फास्ट ट्रैक कोर्ट, स्टॉकिंग, मॉर्फिंग, एसिड अटैक पर कठोर सज़ा।
3. POSH Act (2013)– कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न रोकने के लिए आंतरिक शिकायत समितियां अनिवार्य।
4. बाल विवाह निषेध कानून– बालिकाओं को प्रारंभिक उम्र में विवाह के दुष्परिणामों से बचाना।
5. 181 महिला हेल्पलाइन- तत्काल सहायता के लिए।
महिलाओं की मदद के लिए विभिन्न सरकारी योजनाएं
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ
वन स्टॉप सेंटर (OSC)
महिला पुलिस स्टेशन
नारी शक्ति अभियान
उज्जवला योजना- मानव तस्करी रोकने के लिए
सुरक्षित शहर परियोजना
तकनीक और महिला सुरक्षा
1. डिजिटल हेल्पलाइन और ऐप्स– कई राज्यों में SOS अलर्ट, GPS- आधारित सुरक्षा ऐप्स और ऑनलाइन शिकायत प्रणाली शुरू की गई है।
2. साइबर अपराध सेल– महिलाओं की ऑनलाइन सुरक्षा सबसे बड़ा नया मुद्दा बनकर उभरा है।
साइबर स्टॉकिंग, फर्जी प्रोफाइल, छेड़छाड़, निजी फोटो लीक जैसे अपराध बढ़े हैं, जिनसे निपटने के लिए नए कानून और तकनीकी तंत्र विकसित किए गए हैं।
वर्तमान समाज में महिला की स्थिति- क्या बदला और क्या अभी बाकी है?बदलाव जो आशा जगाते हैं
1. शिक्षा में प्रगति- लड़कियों की शिक्षा दर तेज़ी से बढ़ी है। उच्च शिक्षा में महिलाओं की भागीदारी पहले से कहीं अधिक है।
2. कार्यस्थल पर बढ़ती उपस्थिति– महिलाएं कॉर्पोरेट, स्टार्टअप, सेना, पुलिस, राजनीति, विज्ञान, खेल, मीडिया हर क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य कर रही हैं।
3. आवाज़ उठाने का साहस बढ़ा है– सोशल मीडिया ने महिलाओं को मंच दिया है। #MeToo जैसे आंदोलनों ने अपराधियों की पहचान उजागर की।
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परंपरागत भूमिकाओं में बदलाव– अब महिला केवल गृहिणी नहीं, वह उद्यमी, नेता, वैज्ञानिक, पत्रकार, सैनिक, सब कुछ है।
लेकिन चुनौतियां अभी भी गहरी हैं
1. घरेलू हिंसा अब भी सबसे बड़ा अपराध– COVID-19 लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा के मामलों में तेज़ वृद्धि ने दिखाया कि समस्या कितनी गंभीर है।
2. सामाजिक दबाव और शर्मिंदगी– अधिकतर महिलाएं समाज के डर से शिकायत नहीं करतीं।
3. साइबर अपराध तेजी से बढ़ रहे हैं- टेक्नॉलॉजी जितनी आगे बढ़ी है, अपराध भी उतने ही उन्नत हुए हैं।
4. न्याय की प्रक्रिया में देरी– मुकदमों के वर्षों तक चलने से महिलाएं थक जाती हैं और कई केस वापस भी हो जाते हैं।
5. ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति चिंताजनक– शिक्षा और जागरूकता की कमी के कारण महिलाएं हिंसा को “नॉर्मल” मान लेती हैं।
हिंसा रोकने के लिए समाज को क्या करना चाहिए?
1. परिवार में जेंडर समानता की शुरुआत– बच्चों को शुरुआत से सिखाना होगा कि “लड़के और लड़की बराबर हैं।”
2. स्कूलों में जेंडर शिक्षा अनिवार्य– किशोरों में संवेदनशीलता बढ़ाना ही दीर्घकालिक समाधान है।
3. महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण– आर्थिक रूप से सक्षम महिला ज्यादा सुरक्षित और आत्मनिर्भर होती है।
4. तेज़ और पारदर्शी न्याय प्रणाली– फास्ट ट्रैक कोर्ट की संख्या बढ़ाए जाने की आवश्यकता है।
5. पुरुषों की भागीदारी– महिला सुरक्षा केवल महिलाओं का मुद्दा नहीं, यह समाज का मुद्दा है, और पुरुषों को सक्रिय रूप से इसमें शामिल होना होगा।
6. मीडिया और सिनेमा की जिम्मेदारी– स्त्री-चरित्र को वस्तु की तरह दिखाने की प्रवृत्ति हिंसा को सामाजिक स्वीकृति देती है।
भविष्य की दिशा- एक सुरक्षित समाज कैसा हो सकता है?
भविष्य का समाज ऐसा होना चाहिए जहां-
महिला बिना डर के रात में बाहर जा सके,
कार्यस्थल पर समान वेतन और सम्मान मिले,
निर्णय लेने में महिलाओं की बड़ी भूमिका हो,
घर, सड़क, इंटरनेट, हर जगह सुरक्षा सुनिश्चित हो,
हिंसा को “व्यक्तिगत मामला” नहीं “अपराध” माना जाए,
बेटियों को जन्म से लेकर बड़े होने तक हर अवसर मिले! समाज तभी प्रगतिशील होगा जब उसकी आधी आबादी सुरक्षित, सक्षम और स्वतंत्र होगी।
महिलाओं को खुद ही अपने लिए खड़ा होना होगा
समाज में महिलाओं की प्रगति तभी संभव होती है जब वे स्वयं अपने अधिकारों, सपनों और सम्मान के लिए खड़ी हों। इतिहास और वर्तमान में ऐसे असंख्य उदाहरण हैं जहां महिलाओं ने कठिन परिस्थितियों, सामाजिक बाधाओं, आलोचना, भेदभाव और हिंसा के खिलाफ खुद लड़कर अपनी राह बनाई। यह उदाहरण साबित करते हैं कि बदलाव तब जन्म लेता है जब महिला पहली बार “ना” कहने का साहस करती है और आगे “मैं कर सकती हूं” कहकर खड़ी होती है।
1. मैरी कॉम- गरीबी, ताने और संघर्ष के बीच खुद आगे बढ़ने वाली योद्धा
भारतीय मुक्केबाज़ एम.सी. मैरी कॉम का जीवन इस बात का प्रतीक है कि साहस और मेहनत के आगे परिस्थितियां कभी बड़ी नहीं होतीं। गरीब परिवार से थीं, खेल के लिए सुविधाएं नहीं थीं, शादी और बच्चों के बाद भी उन्हें कहा गया कि “अब बॉक्सिंग छोड़ दो” लेकिन उन्होंने खुद के लिए खड़े होकर दुनिया को दिखाया कि महिला मां भी हो सकती है और विश्व विजेता भी। आज वे 6 बार की विश्व चैंपियन और ओलंपिक पदक विजेता हैं, यह उनकी आत्म-विश्वास की कहानी है।
2. मलाला यूसुफ़ज़ई-“अगर मैं नहीं उठूँगी, तो कौन उठेगा?”
पाकिस्तान की शिक्षा कार्यकर्ता मलाला यूसुफज़ई ने तालिबान की धमकियों और जानलेवा हमले का सामना किया। केवल इसलिए कि वह लड़कियों की शिक्षा की आवाज़ उठा रही थीं। हमले के बाद भी उन्होंने कहा, “मैं डर कर चुप नहीं बैठूंगी।” उनकी यह हिम्मत उन्हें सबसे कम उम्र की नोबेल शांति पु रस्कार विजेता बनाती है।
3. किरण बेदी- पुलिस सिस्टम में खुद रास्ता बनाने वाली पहली महिला
भारत की पहली महिला IPS अधिकारी किरण बेदी ने एक ऐसे क्षेत्र में प्रवेश किया जहां महिलाओं की उपस्थिति लगभग शून्य थी। उन्हें “महिला होकर पुलिस मत बनो” कहा गया। फील्ड पोस्टिंग रोकने की कोशिश की गई। कई बार पुरुष साथियों की चुनौतियों का सामना करना पड़ा। लेकिन उन्होंने पीछे नहीं हटकर दिखाया कि कानून और न्याय के क्षेत्र में महिलाओं की उपस्थिति समान रूप से आवश्यक है।उनके सुधारों ने पुलिसिंग की दिशा ही बदल दी।
4. चंदा कोचर- पुरुष–प्रधान बैंकिंग सेक्टर में अपनी पहचान बनाना
ICICI बैंक की पूर्व CEO चंदा कोचर ने भारतीय बैंकिंग जगत में नेतृत्व का चेहरा बदल दिया। पुरुषों के वर्चस्व वाले क्षेत्र में उन्होंने चुनौतियों को अवसर बनाया। कठोर प्रतिस्पर्धा में खुद को साबित किया। उनकी कहानी यह बताती है कि कॉर्पोरेट नेतृत्व में महिलाएं किसी से कम नहीं।
5. मैरी क्यूरी- विज्ञान में दो अलग-अलग विषयों में नोबेल जीतने वाली पहली महिला
जब विज्ञान को पुरुषों का क्षेत्र माना जाता था, उस समय मैरी क्यूरी ने रेडियम और पोलोनियम की खोज करते हुए दुनिया का नजरिया बदल दिया। लैंगिक भेदभाव, शोध के लिए संसाधनों की कमी, स्वास्थ्य पर जोखिम, इन सबके बावजूद उन्होंने अपने लिए खड़े होकर दो नोबेल पुरस्कार जीते।
6. इंदिरा गांधी- दुनिया की सबसे प्रभावशाली महिला नेताओं में एक
भारत की पहली और अब तक की एकमात्र महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पुरुष-प्रधान राजनीति में अपनी मज़बूत पहचान बनाई। कठिन राजनीतिक दौर और विरोधियों के बीच उन्होंने यह साबित किया कि महिला नेतृत्व कमजोर नहीं, बल्कि निर्णायक और दूरदर्शी हो सकता है।
7. लता मंगेशकर- संगीत की दुनिया में आत्मविश्वास से खड़ी होने वाली आवाज़
संगीत साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने अपने शुरुआती करियर में आर्थिक संघर्ष, पारिवारिक जिम्मेदारी और कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना किया। परंतु उन्होंने अपनी आवाज़ और मेहनत पर भरोसा किया। आज उनका नाम दुनिया के महानतम गायकों में है। यह साबित करता है कि स्वयं पर विश्वास ही सच्ची सफलता लाता है।
8. सायना नेहवाल और पी.वी. सिंधु- भारतीय बेटियों की खेल क्रांति
इन दोनों बैडमिंटन खिलाड़ियों ने सीमित साधन, परंपरागत सोच, कड़ी ट्रेनिंग, इस सबके बावजूद खुद के लिए खड़े होकर विश्वस्तरीय पहचान बनाई। आज वे भारत की नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा हैं कि “लड़कियां खेलों में नहीं टिक पातीं” जैसे मिथक टूट चुके हैं।
9. फाल्गुनी नायर- 50 की उम्र में बिजनेस शुरू कर अरबपति बनने वाली महिला
Nykaa की संस्थापक फाल्गुनी नायर ने साबित किया कि करियर बदलने की कोई उम्र नहीं! साहस और रणनीति महिलाओं की सबसे बड़ी पूंजी हैं। उन्होंने स्वयं के लिए खड़े होकर दुनिया को दिखाया कि महिला उद्यमिता देश की अर्थव्यवस्था बदल सकती है।
10. अरुणिमा सिन्हा- कृत्रिम पैर के साथ एवरेस्ट चढ़ने वाली पहली दिव्यांग महिला
भारतीय पर्वतारोही अरुणिमा सिन्हा की कहानी आज की सबसे प्रेरणादायक कहानियों में से एक है।अरूणिमा ने एक ट्रेन दुर्घटना में पैर खो दिया! समाज ने कहा “अब जीवन खत्म”, लेकिन उन्होंने खुद के लिए खड़े होकर कहा, “मेरा जीवन मेरे सपनों से चलेगा, मेरी कमजोरी से नहीं।” और फिर उन्होंने माउंट एवरेस्ट फतह किया।
महिला तभी बदलती है जब वह अनुमति का इंतजार छोड़ स्वयं अपने अधिकारों की सेनानी बने !
समाज की सोच, कानून, सरकार, सबकी भूमिका जरूरी है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है महिला का खुद पर विश्वास, खुद के लिए खड़ा होना और अपने सपनों की लड़ाई लड़ना। जब महिलाएं स्वयं आगे बढ़ती हैं, वे सिर्फ अपना जीवन नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों का भविष्य बदल देती हैं। अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस केवल एक स्मरण दिवस नहीं, बल्कि एक चेतावनी है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा आज भी एक वैश्विक संकट है।
कई सकारात्मक बदलावों के बावजूद हिंसा की घटनाएं बताती हैं कि हमारी सामाजिक सोच अभी भी पूरी तरह बदली नहीं है। महिला सुरक्षा केवल कानूनों से नहीं आएगी। यह तब आएगी जब समाज की मानसिकता बदलेगी, जब परिवार लड़कियों को समानता सिखाएगा, जब पुरुष जिम्मेदारी समझेंगे, और जब हर नागरिक यह महसूस करेगा कि एक महिला की सुरक्षा पूरे समाज की जिम्मेदारी है। हिंसा रहित दुनिया सिर्फ सपना नहीं, ऐसी दुनिया पूरी मानवता के लिए एक अनिवार्यता है और यह तभी संभव होगा जब हम सब मिलकर इसे एक आंदोलन बनाएं!
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