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December 9, 2025

अंतर्राष्ट्रीय भ्रष्टाचार उन्मूलन दिवस: भारत की जड़ों में लगी भ्रष्टाचार की दीमक को हटा पाना कितना मुमकिन !

The CSR Journal Magazine
International Anti- Corruption Day: भारत बीमारी, इतिहास, मानसिकता और सुधार का संघर्षरत देश है जहां आदर्शों, नैतिकताओं और मूल्यों की लंबी परंपरा है। यहां धर्मग्रंथों से लेकर लोककथाओं तक हर जगह ईमानदारी, न्याय और सत्य को सर्वोच्च गुण माना गया है। रामायण में राम सत्य के प्रतीक माने गए और महाभारत में कृष्ण ने धर्म और अधर्म के संघर्ष का संदेश दिया। फिर भी यह विडंबना है कि आज वही भारत भ्रष्टाचार की सबसे अधिक जकड़न में फंसे हुआ देशों में से एक माना जाता है। यह विरोधाभास सिर्फ बाहरी समस्या नहीं, बल्कि मानसिक, सामाजिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक जड़ों की एक लंबी जटिल प्रक्रिया का परिणाम है।

भारत में भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी गहरी हैं?

आज भारत में भ्रष्टाचार सिर्फ नोटों, रिश्वत या घोटालों तक सीमित नहीं। यह जीवन शैली, आदत, तंत्र, व्यवहार और कई मामलों में एक अनिवार्य सामाजिक नियम बन चुका है। कई लोग इसे गलत भी नहीं मानते, बल्कि कहते हैं- “ऐसा ही चलता है।” भ्रष्टाचार हमारे प्रशासनिक ढांचे में ही नहीं, बल्कि राजनीति, व्यापार, कॉरपोरेट, चिकित्सा, खेल, मीडिया, शिक्षा, धर्म, न्यायपालिका, ग्रामीण व्यवस्था, परिवार और यहां तक कि बच्चों की मानसिकता तक में जड़ें जमा चुका है। यह कोई एक दिन, एक दशक या एक सरकार की देन नहीं, बल्कि सदियों से विकसित होता हुआ एक सांस्कृतिक, आर्थिक और ऐतिहासिक ढांचा है।

भ्रष्टाचार मिटाने के लिये गहराई समझना जरूरी

 

भारत में भ्रष्टाचार को समझने के लिए सिर्फ तथ्य पर्याप्त नहीं! इसके पीछे की सोच, आदतें, परिस्थितियांव अवसर, सामाजिक स्वीकार्यता और इतिहास भी समझना आवश्यक है। उद्देश्य यही है कि हम इस समस्या की गहराई को पहचानें, उसे सही रूप में समझें और यह जान सकें कि इसका समाधान केवल कानून या सरकार नहीं, बल्कि समाज और आम नागरिकों की चेतना और ईमानदारी से निकल सकता है।

 ‘Shortcut’ और ‘जुगाड़’ से सब कुछ मुमकिन !

 

भारत में शॉर्टकट और जुगाड़ सिर्फ व्यवहार नहीं, बल्कि एक मानसिकता बन चुके हैं। यह सोच इस भावना से पैदा होती है कि नियमों का पालन करने से काम देर से होगा, इसलिए लोग नियमों के साथ समझौता करके, सिस्टम को मोड़कर या अपनी सूझ-बूझ से उसे आसान बनाने की कोशिश करते हैं। ट्रैफिक सिग्नल तोड़कर निकलना, फॉर्म में जरूरी दस्तावेज़ों के बिना ‘किसी जान-पहचान’ से काम करवाना, बिना लाइन में लगे टिकट पाना, या ऑफिस में एक फाइल को तेजी से आगे बढ़वाने के लिए ‘थोड़ा तेल-पानी’ खर्च करना, ये सब ऐसी आदतें हैं जो बताती हैं कि हम तेज़ नतीजों के लिए प्रक्रिया की ईमानदारी का त्याग कर देते हैं। धीरे-धीरे यह लोगों के लिए एक सामान्य व्यवहार बन गया है, और इतना सामान्य कि अगर कोई नियम के अनुसार चलना चाहे, तो उसी को बेवकूफ माना जाता है।

जुगाड़ से नवाचार भी, भ्रष्टाचार भी !

लेकिन यह जुगाड़ संस्कृति दोहरी प्रकृति रखती है। एक तरफ यह हमारी रचनात्मकता, सीमित संसाधनों में समाधान खोजने की क्षमता और परिस्थिति के हिसाब से ढलने की ताकत दिखाती है। भारत में कई बड़े नवाचार भी इसी ‘जुगाड़ सोच’ से पैदा हुए हैं। कैरीयर पर गैस सिलेंडर बांधकर खाना बेचने से लेकर, गांवों में टूटी मशीनों को जोड़कर नई मशीन बनाना, ये सब असली बुद्धिमत्ता का प्रमाण हैं। पर दूसरी ओर यही प्रवृत्ति हमें सिस्टम को सुधारने की बजाय उसे चकमा देने की आदत डाल देती है। जब शॉर्टकट सामान्य हो जाते हैं, तो नियम, नैतिकता और पारदर्शिता कमजोर पड़ जाती है। नतीजा यह होता है कि समाज में विश्वसनीयता और जिम्मेदारी की जगह ‘काम करवाना जानता है’ जैसी सोच हावी हो जाती है। यही वजह है कि भारत में जुगाड़ प्रशंसा भी पाता है और आलोचना भी, क्योंकि यह बताता है कि हम सक्षम भी हैं और अधीर भी।
भ्रष्टाचार: सिर्फ रिश्वत नहीं- एक मानसिकता

 

भ्रष्टाचार का अर्थ केवल रिश्वत देना या लेना नहीं। रिश्वत तो भ्रष्टाचार का सबसे छोटा और सबसे सतही रूप है। असली भ्रष्टाचार वह है, जब व्यक्ति अपने अधिकार, पद, संबंध, संसाधन या सत्ता का उपयोग निजी लाभ के लिए करता है, भले ही उससे समाज, देश, कमजोर वर्गों या न्याय को नुकसान पहुंचता हो। भ्रष्टाचार तब शुरू होता है जब व्यक्ति मेहनत से नहीं, Shortcut से सफलता चाहता है।
जब लोग यह मान लेते हैं कि नियम तोड़ना बुद्धिमानी है और नियम मानना मूर्खता। यह मानसिकता उस समय और भी खतरनाक हो जाती है जब समाज स्वयं इस गलत काम को समर्थन देता है। जब लोग कहते हैं- “क्या फर्क पड़ता है?” “सब करते हैं।” “सिस्टम नहीं बदलेगा।” तो वास्तव में वे भ्रष्टाचार को सामान्य बनाते हैं।

इतिहास में भ्रष्टाचार की जड़ें

भारत में भ्रष्टाचार की शुरुआत आधुनिक नहीं, बल्कि बहुत पुरानी है। प्राचीन काल में भी अधिकारी कर संग्रह में हेराफेरी करते थे। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में प्रशासनिक भ्रष्टाचार का उल्लेख मिलता है, और उसमें कहा गया है- “जैसे मछली पानी पीती है और पता नहीं चलता, वैसे ही अधिकारी पैसा खा जाते हैं और पकड़ में नहीं आते।” मुग़ल शासन में जागीरदारी व्यवस्था ने रिश्वत, कृपापात्रों को लाभ और सत्ता की खरीद का आधार बनाया। फिर अंग्रेजों के शासन में भ्रष्टाचार प्रशासनित व्यवस्था का हिस्सा बन गया। अंग्रेजों का उद्देश्य सार्वजनिक हित नहीं बल्कि संसाधनों का दोहन था, और उससे नौकरशाही में रिश्वत संस्कृति मजबूत हुई।
स्वतंत्रता के बाद लोकतंत्र की स्थापना के साथ उम्मीद थी कि यह स्थिति बदलेगी, लेकिन इसके विपरीत  अधिकार, शक्ति और संसाधनों की लड़ाई और बढ़ गई। सरकारें बदलीं, संविधान बना, संस्थाएं स्थापित हुईं, लेकिन भ्रष्टाचार सत्ता और व्यवस्था की नसों में पहले से अधिक गहरा होता गया।

आधुनिक भारत में भ्रष्टाचार: विकास का उल्टा चेहरा

1991 की आर्थिक उदारीकरण नीति ने भारत की अर्थव्यवस्था को वैश्विक स्तर पर खोला। इससे नए अवसर पैदा हुए, विदेशी निवेश बढ़ा, व्यापार तेज हुआ और साथ ही भ्रष्टाचार का स्वरूप भी बदल गया। पहले भ्रष्टाचार स्थानीय था, अब वह संगठित हो चुका था। पहले यह व्यक्तिगत स्तर पर था, अब यह राजनीतिक दलों, कॉरपोरेट, प्रभावशाली समूहों और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय नेटवर्क के तहत काम करने लगा। घोटालों की संख्या और आकार दोनों बढ़े। 2G, कोयला घोटाला, चारा घोटाला, भर्ती घोटाले, जमीन घोटाले, खनन घोटाले, सूची कभी समाप्त नहीं होती। अब भ्रष्टाचार सस्ता अपराध नहीं बल्कि “पावर मॉडल” बन चुका है जहां भ्रष्ट लोग ही सम्मानित, सफल और प्रभावशाली माने जाते हैं।

भ्रष्टाचार का स्तर: शीर्ष से जड़ों तक फैलता तंत्र

भारत में भ्रष्टाचार की समस्या केवल ऊपर से नीचे नहीं, बल्कि नीचे से ऊपर की तरफ भी बहती है। कभी-कभी जनता का भ्रष्टाचार नेताओं को जन्म देता है, और कभी नेता जनता को भ्रष्ट बनाते हैं। राजनीति में चुनाव जीतने के लिए पैसे की आवश्यकता होती है और वही पैसा उद्योगपतियों, ठेकदारों और व्यवसाइयों द्वारा दिया जाता है। इसके बदले सत्ता में आने पर नीतियां, टेंडर और लाइसेंस उसी दिशा में मोड़े जाते हैं।

सबसे भ्रष्ट सरकारी तंत्र

सरकारी कार्यालयों में काम तभी तेज होता है जब रिश्वत दी जाए। पासपोर्ट, राशन कार्ड, लाइसेंस, एनओसी, जमीन रजिस्ट्री, सब भ्रष्टाचार के बिना महीनों लटके रहते हैं। लोग कहते हैं- “बिना पैसे फाइल नहीं चलती।” यहां भ्रष्टाचार कई स्तरों पर होता है- जन्म-मृत्यु प्रमाणपत्र, जमीन के कागज, पासपोर्ट, लाइसेंस, सरकारी योजनाओं का लाभ, टेंडर और ठेके !

स्वास्थ्य क्षेत्र: मरीज की मजबूरी पर मुनाफा

अस्पताल और मेडिकल सेक्टर का भ्रष्टाचार सबसे दर्दनाक है। नकली दवाइयां, बिना जरूरत महंगी जांच, अस्पतालों में कमीशन आधारित इलाज, मरीज को ICU में रोककर बिल बढ़ाना, सरकारी दवाइयां बाजार में बेचना, यह सिर्फ भ्रष्टाचार नहीं, मानवता के खिलाफ अपराध है।

शिक्षा क्षेत्र में भ्रष्टाचार: भविष्य की नींव पर दाग

भारत में शिक्षा व्यवस्था भी भ्रष्टाचार से अछूती नहीं है। फर्जी कॉलेज, डोनेशन आधारित एडमिशन, नकल  माफिया, फर्जी डिग्रियां, शिक्षक भर्ती घोटाले, टॉपर्स घोटाले ! जब शिक्षा ही बिकाऊ हो जाए, तो संस्कार, नैतिकता और ईमानदारी कैसे बचेगी? शिक्षा में डोनेशन आधारित प्रवेश, नकली डिग्रियां, नकल माफिया और सिफारिश संस्कृति तैयार हो चुकी है। एक बच्चे को शुरू से सिखाया जाता है कि “टैलेंट नहीं, जुगाड़ काम आता है।” यह स्थिति सबसे खतरनाक तब बनती है जब भ्रष्टाचार सामान्य हो जाता है, और ईमानदारी असामान्य !

घरेलू और निजी जीवन में भ्रष्टाचार

अगर समाज की जड़ में ईमानदारी होती, तो कोई तंत्र या सरकार भ्रष्ट नहीं बनती। लेकिन आम भारतीय परिवारों में भी छोटे-छोटे भ्रष्टाचार को अपराध नहीं बल्कि “चतुराई” माना जाता है। बिजली चोरी करना, पानी का अवैध कनेक्शन, बायोडाटा में गलत जानकारी, ट्रेन में बिना टिकट यात्रा, पुलिस को चालान से बचने के लिए रिश्वत देकर मामला खत्म करना, यह सब बहुत सामान्य माना जाता है।

समाज में भ्रष्टाचार तब सामान्य बनता है जब वह घरों में स्वीकार किया जाने लगता है

अब देखते हैं कि एक आम भारतीय परिवार कैसे अनजाने या कभी-कभी जानबूझकर घरेलू स्तर पर भ्रष्टाचार में शामिल होता है।

“जुगाड़” की मानसिकता को बढ़ावा देना

अक्सर घर में बच्चों या पति को सलाह दी जाती है, “अगर ट्रैफिक पुलिस रोके तो ₹200 दे देना, क्या कोर्ट–कचहरी जाओगे?”
“लाइन में क्यों खड़े रहना? किसी पहचान वाले से बोल दो।”
“टीचर को गिफ्ट दे दो, बच्चे के नंबर अच्छे आएंगे! “
यह बातें बच्चों के दिमाग में एक मूल्य बैठाती हैं कि नियम तोड़ना गलत नहीं, अगर उससे फायदा मिले।

राशन, सब्सिडी और सरकारी लाभों में बेईमानी

कई घरों में यह बातें छुपाई जाती हैं कि परिवार आर्थिक रूप से सक्षम है और फिर भी बीपीएल राशन कार्ड का उपयोग, मुफ्त गैस कनेक्शन, सरकारी दाल–चावल, विधवा या गरीब महिलाओं वाली योजनाओं का लाभ लिया जाता है। ऐसी स्थिति में भ्रष्टाचार सरकारी दफ़्तर में नहीं, घर में पैदा होता है।

घरेलू सेवाओं में गैरकानूनी अपेक्षा

कई बार गृहिणियां घरेलू काम वालों से यह कहती हैं, “कचरा सड़क पर फेंक दो, क्या फर्क पड़ता है?”
“पासवाला प्लंबर बोल रहा है 2000 रुपए, चलो नगरपालिका वाले को 500 देकर करा लेंगे।”
यह मानसिकता वही संदेश देती है- कानून रास्ता नहीं, बाधा है।

सुविधाओं के लिए रिश्वत देना या स्वीकृति देना

कभी बिजली मीटर गलत पढ़ा जाए और बिल कम आए, तो “चुप रहो, सिस्टम की गलती है तो हमारा क्या?” या “अगर नया पानी कनेक्शन जल्दी चाहिए तो थोड़ा पैसा देना ही पड़ेगा।” यह स्थिति भ्रष्टाचार को नैतिकता नहीं, वास्तविकता बना देती है।

सामाजिक स्थिति और दिखावे की संस्कृति

कई बार शादी, त्योहार या रिश्तेदारी के दिखावे के लिए परिवार के सदस्य दबाव बनाते है, “सबके पास नया फोन है, मेरे पास क्यों नहीं?”
“बच्चे का एडमिशन अमीरों वाले स्कूल में करवाना है।” इसका अप्रत्यक्ष परिणाम होता है- पति या परिवार अतिरिक्त पैसा कमाने के लिए गलत मार्ग चुनने लगते हैं।

घरेलू बजट और खरीददारी में “नकली” और “जुगाड़” उत्पादों का समर्थन

नकली ब्रांड, टैक्स चोरी वाले सामान, बिना बिल की खरीददारी, यह सब बाजार में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है। जब गृहिणी कहती है, “बिना बिल खरीदो, सस्ता पड़ेगा।” तो वह अनजाने में समाज की इकोनॉमी में ब्लैक मनी का हिस्सा बन जाती है।

बच्चों में गलत उदाहरण बन जाना

अगर बच्चा घर में यह सीखे कि झूठ बोलना ठीक है, नियम सिर्फ दूसरों के लिए हैं, Shortcut सफलता की निशानी है, तो आने वाली पीढ़ी और भी अधिक भ्रष्ट होगी।

भ्रष्टाचार क्यों नहीं खत्म होता?

भ्रष्टाचार इसलिए मजबूत है क्योंकि:
– सिस्टम उसे रोकने की बजाय उससे कमाने लगा है
– कानून कमजोर है और सज़ा दुर्लभ
– समाज अपराधी को दोषी नहीं, सफल मानता है
– गरीब मजबूरी में भ्रष्ट होता है और अमीर लालच में!
यह एक चक्र है जहां हर व्यक्ति या तो लाभ ले रहा है, या उसके खिलाफ लड़ने की हिम्मत खो चुका है।

भ्रष्टाचार का प्रभाव: सबसे महंगा बोझ

भ्रष्टाचार विकास को रोकता है, अवसरों को सीमित करता है, और समाज में असमानता, अविश्वास और निराशा पैदा करता है। इससे सबसे ज्यादा नुकसान गरीब, आम नागरिक, ईमानदार कर्मचारी, और भविष्य, यानी युवाओं को होता है। भ्रष्टाचार देश की संस्थाओं पर से विश्वास खत्म करता है और लोगों को यह मानने पर मजबूर करता है कि न्याय, अवसर और सफलता मेहनत से नहीं बल्कि संबंध और पैसे से मिलते हैं। जब न्याय बिकने लगे, शिक्षा ख़रीदी जाने लगे, और प्रशासन रिश्वत पर चले, तब देश केवल भौतिक रूप से आगे बढ़ सकता है, नैतिक रूप से नहीं।

क्या भ्रष्टाचार खत्म हो सकता है?

हां, लेकिन केवल तब, जब-
देश सिर्फ कानून से नहीं बल्कि चरित्र से चले।
जब नागरिक अपने छोटे लाभ छोड़कर बड़ी नैतिक जिम्मेदारी समझें।
जब स्कूलों में सिर्फ गणित और विज्ञान नहीं, बल्कि ईमानदारी और संवेदनशीलता पढ़ाई जाए।
जब गलत को सामान्य और सही को दुर्लभ मानने वाली सोच बदल जाए।
भ्रष्टाचार खत्म नहीं होगा जब तक लोग यह ना मान लें कि ईमानदारी कमजोरी नहीं, राष्ट्र की सबसे मजबूत नींव है।

सब हो जाएगा- ‘Under The Table’ !

भारत में ‘अंडर द टेबल’ नीति एक कड़वी सच्चाई की तरह समाज और व्यवस्था में गहराई तक जड़ें जमा चुकी है। चाहे सरकारी दफ्तर में फाइल आगे बढ़वानी हो, अस्पताल में तुरंत इलाज पाना हो, स्कूल में एडमिशन करवाना हो, या फिर पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट दर्ज करवानी हो ! कई बार लोग मानते हैं कि बिना रिश्वत या “खास इंतजाम” के काम नहीं होगा। इस मानसिकता ने व्यवस्था को इतना प्रभावित कर दिया है कि योग्यता, प्रक्रिया और अधिकार से पहले पैसे और पहुंच को महत्व मिलने लगा है। लोग यह सोचने लगे हैं कि नियमों से ज्यादा ताकत उस लिफ़ाफ़े में होती है जो मेज के ऊपर नहीं, बल्कि मेज के नीचे सरकाया जाता है। यह तरीका न सिर्फ ईमानदार लोगों को कमजोर करता है बल्कि पूरे सिस्टम पर सवाल खड़ा कर देता है, जहां काम की असली कीमत ईमानदारी नहीं बल्कि रिश्वत बन जाती है।

 भ्रष्टाचार कुरीति नहीं, बल्कि सामाजिक संक्रमण

भारत में भ्रष्टाचार एक बीमारी नहीं, बल्कि एक गहरा सामाजिक संक्रमण है। यह व्यक्ति, परिवार, समाज, राजनीति, शिक्षा और अर्थव्यवस्था में जड़ें जमा चुका है। लेकिन बीमारी चाहे जितनी पुरानी हो, अगर इलाज सही हो, इच्छाशक्ति मजबूत हो और समाज जागरूक हो जाए तो उसका अंत संभव है। एक ईमानदार व्यक्ति भ्रष्ट समाज में अकेला नहीं होता, वह परिवर्तन का पहला कदम होता है। और वह दिन आएगा जब भारत सिर्फ सबसे बड़ा लोकतंत्र नहीं, बल्कि सबसे  ईमानदार राष्ट्र कहलाएगा!
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