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August 25, 2025

आस्था का वैश्विक सम्मान: गंगा आरती बनी दुनिया की सबसे भव्य और निरंतर आरती

The CSR Journal Magazine
भारत की आस्था और संस्कृति को मिला वैश्विक सम्मान! हरिद्वार की पावन गंगा आरती को आधिकारिक रूप से Oxford Book Of World Records में स्थान प्राप्त हुआ है। यह गौरवपूर्ण उपलब्धि न केवल उत्तराखंड बल्कि पूरे भारत की आस्था, संस्कृति और आध्यात्मिक विरासत के लिए ऐतिहासिक क्षण है।

भारत की सांस्कृतिक विरासत ‘हरिद्वार की गंगा आरती’

भारत की सांस्कृतिक धरोहर और करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक हरिद्वार की गंगा आरती को अब वैश्विक स्तर पर पहचान मिल गई है। हरकी पैड़ी पर 109 वर्षों से निरंतर आयोजित होने वाली गंगा आरती को ऑक्सफोर्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज किया गया है। शुक्रवार को हरकी पैड़ी स्थित गंगा सभा कार्यालय में ऑक्सफोर्ड बुक्स ऑफ रिकॉर्ड्स के भारत में प्रतिनिधि और संरक्षक सुरेश मिश्रा ने एक आयोजन में श्री गंगा सभा के अध्यक्ष नितिन गौतम और महामंत्री तन्मय वशिष्ठ तथा अन्य पदाधिकारियों को प्रमाण पत्र प्रदान किया।
ऑक्सफोर्ड बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने इसे दुनिया की सबसे भव्य और निरंतर आयोजित होने वाली आरतियों में से एक के रूप में आधिकारिक मान्यता प्रदान की है। यह ऐतिहासिक क्षण न केवल हरिद्वार और उत्तराखंड, बल्कि पूरे भारत के लिए गर्व का विषय है।

गंगा आरती की परंपरा और वैभव

1916 में पंडित मदन मोहन मालवीय के प्रयासों से शुरू हुई गंगा आरती आज भी अपनी दिव्यता और विशालता के लिए जानी जाती है। हर की पैड़ी पर रोज़ाना तीन बार हजारों भक्त दीपदान और वैदिक मंत्रोच्चार के बीच इसमें सम्मिलित होते हैं। इसका सीधा प्रसारण आज पूरी दुनिया में देखा जाता है।
गंगा आरती केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की आत्मा है। दीपों की लौ और वेदों की ध्वनि पूरे विश्व को ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ का संदेश देती है। प्रतिदिन हरिद्वार के हर की पैड़ी पर संपन्न होने वाली गंगा आरती, अपने दिव्य वातावरण, वैदिक मंत्रोच्चार, दीपों की हजारों ज्योतियों और भक्तों की सामूहिक उपस्थिति के कारण विश्वभर के पर्यटकों और श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र रहती है। अब इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विश्व की सबसे भव्य एवं निरंतर आयोजित होने वाली आरतियों में से एक के रूप में मान्यता मिली है।

आध्यात्मिक शांति और मानव कल्याण का संदेश

गंगा आरती सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह आयोजन विश्व शांति, मानव कल्याण और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है। श्रद्धालु मानते हैं कि इसमें शामिल होकर उन्हें आत्मिक शांति और दिव्यता की अनुभूति होती है। उल्लेखनीय है कि हर की पैड़ी की प्रबंधकारिणी तीर्थ पुरोहितों की संस्था श्री गंगा सभा 1916 से लगातार हरकी पैड़ी पर इस महा आरती का आयोजन कर रही है। कोरोना काल में भी प्रतिदिन निर्बाध रूप से आरती का आयोजन किया गया।
श्री गंगा सभा में ऑक्सफोर्ड वर्ल्ड रिकॉर्ड्स का प्रमाणपत्र सौंपा गया। इसके बाद अगले वर्ष गंगा सभा का प्रतिनिधिमंडल ऑक्सफोर्ड यूनियन (यूके) में आयोजित होने वाले अंतरराष्ट्रीय समारोह में भाग लेगा। श्री गंगा सभा के अध्यक्ष नितिन गौतम ने बताया कि यह श्री गंगा सभा, हरिद्वार तथा उत्तराखंड के लोगों के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। गंगा सभा इस सम्मान से गौरवान्वित महसूस कर रही है। उन्होंने कहा कि गंगा सभा भविष्य में भी इससे बड़े सम्मान अपने काम को लेकर प्राप्त करेगी ऐसी उन्हें उम्मीद है।

श्री हरि, अर्थात बद्रीनाथ धाम का द्वार है हरिद्वार

उत्तराखंड में हरिद्वार अर्थात हरि का द्वार है। हरि याने भगवान विष्णु। हरिद्वार नगरी को भगवान श्रीहरि (बद्रीनाथ) का द्वार माना जाता है, जो गंगा के तट पर स्थित है। पुराणों में इसे मायापुरी क्षेत्र और गंगा द्वार भी कहा जाता है। यह भारतवर्ष के सात पवित्र स्थानों में से एक है। हरिद्वार में हर की पौड़ी को ब्रह्मकुंड कहा जाता है। इसी विश्वप्रसिद्ध घाट पर कुंभ का मेला लगता है और यहीं पर विश्व प्रसिद्ध गंगा आरती होती है।
हरिद्वार की गंगा आरती जग प्रसिद्ध है। इस आरती का गवाह बनने सिर्फ भारतीय पर्यटक ही नहीं बल्कि विदेशी पर्यटक भी भारी मात्रा में आते हैं। गंगा की पवित्र लहरों के घाट जिसे हर की पौड़ी के नाम से जाना जाता वहां पर हर संध्या को आरती की जाती है जो गंगा मैया को समर्पित है। पुजारियों द्वारा हाथ में लिए बड़े-बड़े दीयों से इस पावन स्थान की आरती की जाती है। आरती देखकर ऐसा लगता है जैसे प्रकृति ने स्थल को अपनी रोशनी से जगमगा दिया हो। पानी में पड़ता दीयों का प्रतिबिंब टिमटिमाते सितारों की तरह मालूम पड़ता है। महाआरती की मधुर आवाज़ पूरे घाट में गूंजती हुई सुनाई पड़ती है।
 हरिद्वार की तर्ज पर बाद में गंगा आरती का आयोजन ऋषिकेश, वाराणसी, प्रयाग और चित्रकूट में भी होने लगा। हरिद्वार की गंगा महा आरती को देखते हुए 1991 में वाराणसी में दशाश्वमेध घाट पर भी मां गंगा की आरती प्रारंभ हुई थी।

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