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November 10, 2025

गोवा में जल्द शुरू होगी घाट आरती, धार्मिक पर्यटन को नई पहचान देने की तैयारी

The CSR Journal Magazine
अब गोवा में भी गूंजेगी घंटियों की ध्वनि और भक्ति की लहरें ! पणजी गोवा सरकार ने राज्य के नदी तटों और ऐतिहासिक घाटों पर “घाट आरती” शुरू करने की योजना बनाई है। इसका उद्देश्य राज्य में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देना और स्थानीय संस्कृति को एक नया आयाम देना है। गोवा के पर्यटन मंत्री ने हाल ही में घोषणा की कि जल्द ही गोवा के प्रमुख नदी घाटों पर सूर्यास्त के समय विशेष आरती आयोजित की जाएगी, ठीक वैसे ही जैसे वाराणसी या हरिद्वार में गंगा आरती होती है।

धार्मिकता और पर्यटन का संगम बनेगा नया प्रयोग

गोवा अब तक समुद्र तटों, चर्चों और पार्टियों के लिए प्रसिद्ध रहा है। लेकिन अब राज्य सरकार धार्मिक पर्यटन की दिशा में भी कदम बढ़ा रही है। पर्यटन विभाग का मानना है कि घाट आरती जैसी परंपरा न केवल स्थानीय लोगों को आध्यात्मिक अनुभव देगी, बल्कि देश-विदेश से आने वाले सैलानियों को भारतीय संस्कृति की झलक भी दिखाएगी। सूत्रों के अनुसार, आरती का आयोजन संभवतः मंडोवी नदी तट, पणजी घाट और ओल्ड गोवा के तटीय इलाकों में किया जाएगा। इसके लिए घाटों का सौंदर्यीकरण, प्रकाश व्यवस्था और दर्शक-दीर्घा तैयार की जा रही है।

भारत में कहां-कहां होती है घाट आरती

1. दशाश्वमेध घाट, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)- वाराणसी का यह घाट विश्व-प्रसिद्ध है जहां प्रतिदिन सूर्यास्त के बाद “गंगा आरती” होती है। सैकड़ों पुजारी एक साथ दीप थामे नदी की आराधना करते हैं। घंटियों, शंखों और दीपों से पूरा वातावरण भक्ति-भाव में डूब जाता है।
2. हर की पौड़ी, हरिद्वार (उत्तराखंडहर की पैड़ी की दिव्यता: गंगा की लहरों में डूबा हरिद्वार, जहां हर कदम आपको पुण्य और मोक्ष की ओर ले जाता है)- गंगा के तट पर स्थित हरिद्वार का हर की पौड़ी घाट देश का एक और प्रमुख तीर्थस्थल है। यहाँ हर शाम श्रद्धालु गंगा आरती में भाग लेते हैं। दीपदान और आरती की यह परंपरा सदियों पुरानी है।
3. त्रिवेणी घाट, ऋषिकेश (उत्तराखंड)- जहां गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम माना जाता है, उस त्रिवेणी घाट पर रोज शाम भव्य आरती होती है। यह वातावरण साधना और ध्यान का अद्भुत अनुभव कराता है।
4. गांधी घाट, पटना (बिहार)– बिहार सरकार ने 2011 में यहां गंगा आरती की शुरुआत की थी। अब यह घाट पटना का प्रमुख धार्मिक-पर्यटन केंद्र बन चुका है।
5. केशी घाट, वृंदावन (उत्तर प्रदेश)- यहां यमुना नदी के तट पर हर शाम दीपों की आरती होती है। श्रद्धालु यमुना माता की वंदना करते हैं और भक्ति संगीत के बीच आरती संपन्न होती है।

गोवा में ‘घाट आरती’ का उद्देश्य

गोवा सरकार का मानना है कि इस पहल से धार्मिक और सांस्कृतिक पर्यटन को बल मिलेगा। स्थानीय कारीगरों और पुजारियों को रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे। स्थानीय युवक पर्यटन गाइड और नाविक के रूप में कार्य कर सकेंगे। महिलाओं के लिए हस्तनिर्मित दीप और धार्मिक वस्तुओं का उत्पादन एक नया व्यवसाय बन सकता है। गोवा की पारंपरिक नदियों जैसे मंडोवी, जुआरी और चापोरा का सांस्कृतिक महत्व बढ़ेगा। पर्यटन मंत्री ने कहा, “हम चाहते हैं कि गोवा के घाट भी गंगा आरती जैसी आस्था के केंद्र बनें। इससे राज्य को एक नई आध्यात्मिक पहचान मिलेगी।”

धार्मिक पर्यटन की नई दिशा

विशेषज्ञों का मानना है कि जिस प्रकार उत्तर भारत में नदी आरती से श्रद्धालु और पर्यटक आकर्षित होते हैं, उसी तरह गोवा में भी यह परंपरा लोगों को आस्था और संस्कृति से जोड़ेगी। यह कदम ‘स्पिरिचुअल टूरिज्म’ को मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। देश में हाल के वर्षों में “स्पिरिचुअल टूरिज्म” यानी धार्मिक पर्यटन का बड़ा विस्तार देखा गया है। वाराणसी की गंगा आरती देखने प्रतिदिन हजारों विदेशी और देशी पर्यटक पहुंचते हैं। हरिद्वार की आरती को यूनेस्को ने “अमूर्त सांस्कृतिक विरासत” के रूप में मान्यता देने की चर्चा भी हो चुकी है। ऐसे में गोवा की घाट आरती इस क्षेत्र में पश्चिमी भारत के पहले धार्मिक पर्यटन केंद्र के रूप में उभर सकती है। यह राज्य के लिए आर्थिक दृष्टि से भी लाभकारी होगा, क्योंकि अब पर्यटक केवल बीच पार्टियों या कैसिनो के लिए नहीं, बल्कि आध्यात्मिक अनुभव के लिए भी आएंगे।

समुद्र से आध्यात्मिकता की ओर एक नया मोड़

गोवा का नाम आते ही मन में उभरती हैं सुनहरी रेत, नीला समंदर, विदेशी पर्यटक, और संगीत से गूंजते बीच। लेकिन अब यह तटीय राज्य अपनी पहचान के एक नए अध्याय की ओर बढ़ रहा है। गोवा सरकार द्वारा प्रस्तावित “घाट आरती” योजना न केवल धार्मिक भावना का प्रतीक बनेगी, बल्कि यह राज्य के सांस्कृतिक पुनर्जागरण और पर्यटन विकास की दिशा में भी एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है।

भारत की प्राचीन परंपरा से जुड़ने की पहल

भारत में नदियों को मां के रूप में पूजने की परंपरा सदियों पुरानी है। वाराणसी, हरिद्वार, ऋषिकेश, वृंदावन या पटना जैसे शहरों में गंगा-यमुना आरती केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सांस्कृतिक एकता के प्रतीक हैं। गोवा में जब यह परंपरा शुरू होगी, तो यहां की नदियां मंडोवी, जुआरी और चापोरा केवल जलधारा नहीं रहेंगी, बल्कि आस्था की लहरें बनकर लोगों के हृदयों को स्पर्श करेंगी।

चुनौतियां और सावधानियां

हालांकि घाट आरती की इस योजना को सफल बनाने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक होगा —
आरती स्थल पर स्वच्छता और कचरा प्रबंधन की पुख्ता व्यवस्था हो।
नदी जल को प्रदूषण से बचाया जाए।
आयोजन केवल दिखावे का माध्यम न बनकर सच्ची श्रद्धा और अनुशासन के साथ संपन्न हो।
यदि प्रशासन और जनता दोनों इस भावना को बनाए रखें, तो गोवा की घाट आरती एक आदर्श उदाहरण बन सकती है।

सांस्कृतिक समरसता की मिसाल

गोवा सदियों से सांस्कृतिक विविधता का प्रतीक रहा है, जहां मंदिर और चर्च साथ-साथ खड़े हैं, जहां संगीत में भी धार्मिकता की गूंज सुनाई देती है। घाट आरती इस सामंजस्य को और सशक्त करेगी। यह आयोजन किसी धर्म विशेष तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह “जल की पूजा” के रूप में समस्त मानवता को जोड़ने का संदेश देगा। गोवा की घाट आरती केवल धार्मिक आयोजन नहीं होगी, बल्कि यह भारत की विविध सांस्कृतिक परंपराओं को एकजुट करने का प्रतीक बनेगी। जिस तरह गंगा के किनारे दीपों से जगमगाते घाटों पर श्रद्धा का सागर उमड़ता है, उसी तरह अब गोवा के नदी तट भी भक्ति की रौशनी से आलोकित होने वाले हैं।

आस्था की रोशनी से जगमगाएगा गोवा

गोवा की घाट आरती एक साधारण धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि संस्कृति, पर्यटन, पर्यावरण और समाज का संगम बन सकती है। जिस प्रकार गंगा तट पर दीपों की पंक्तियां श्रद्धा का सागर बनाती हैं, उसी प्रकार अब गोवा की नदियां भी भक्ति और सौहार्द की लहरों से आलोकित होंगी। जब लहरों पर दीप झिलमिलाएंगे, तब गोवा केवल पर्यटन स्थल नहीं, बल्कि आध्यात्मिक अनुभव का केंद्र बन जाएगा। गोवा की नदियों में अब बहेगी आस्था की धारा !
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