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October 31, 2025

हर पांचवां भारतीय डिप्रेशन का शिकार- दिल्ली के आंकड़ों ने खोली मानसिक स्वास्थ्य संकट की परतें

The CSR Journal Magazine
हाल ही में जारी हुई रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत के 10–19 वर्ष के लगभग हर पांचवे किशोर को डिप्रेशन, चिंता या बौद्धिक अक्षमता जैसी मानसिक स्वास्थ्य-समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। विशेष रूप से राजधानी दिल्ली के आंकड़े चिंताजनक हैं। अध्ययन में शहरी किशोरों में डिप्रेशन की दर 24.2 प्रतिशत से 39.3 प्रतिशत के बीच पाई गई है, और चिंता की दर लगभग 50.6 प्रतिशत तक।

Depression से जूझ रही युवा पीढ़ी, आंकड़ों ने चौंकाया

देश में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जारी एक नयी रिपोर्ट ने हड़कंप मचा दिया है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर पांचवां किशोर या युवा, किसी न किसी स्तर के डिप्रेशन, एंग्जायटी या अन्य मानसिक विकार से जूझ रहा है। राजधानी दिल्ली के आंकड़े तो और भी अधिक चिंताजनक हैं, जहां शहरी किशोरों में डिप्रेशन की दर 24 से 39 प्रतिशत और चिंता की दर 50 प्रतिशत से अधिक पाई गई है।देशभर के लगभग 25 करोड़ किशोरों में से करीब 5 करोड़ बच्चे मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से प्रभावित हैं। दिल्ली-एनसीआर में हुए सर्वेक्षण में यह स्थिति सबसे गंभीर बताई गई है। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 21 प्रतिशत किशोरों में डिप्रेशन और 20 प्रतिशत में एंग्जायटी के लक्षण पाए गए।

ग्रामीण क्षेत्रों में शहरों के मुक़ाबले कम समस्या

एक अध्ययन में Mysuru (कर्नाटक) के शहरी क्षेत्र में किशोरों में हल्के डिप्रेशन की दर 12.6 प्रतिशत, मध्यम 9.7 प्रतिशत और गंभीर 1.9 प्रतिशत पाई गई थी। वहीं ग्रामीण क्षेत्र में हल्के 6.9 प्रतिशत, मध्यम 22.5 प्रतिशत और गंभीर 5.9 प्रतिशत तथा अत्यधिक गंभीर 1.0 प्रतिशत पाई गई। उत्तर-भारत के ग्रामीण समुदाय में किए गए एक अध्ययन में किशोरों में डिप्रेशन का प्रमाण 3.9 प्रतिशत (95 प्रतिशत CI: 2.5-5.9) पाया गया। समग्र रूप से स्कूल-जाने वाले किशोरों पर एक मेटा-विश्लेषण में पाया गया कि उनकी डिप्रेशन की दर लगभग 53 प्रतिशत (95 प्रतिशत CI: 41-65 प्रतिशत) है।  एक अन्य समीक्षा में भारत के युवाओं (13-17 वर्ष) में मानसिक विकारों का प्रतिशत लगभग 7.3 फ़ीसदी पाया गया।

विशेषज्ञों ने बताए प्रमुख कारण

मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड-19 के बाद ऑनलाइन कक्षाओं, बढ़े हुए स्क्रीन-टाइम और सामाजिक अलगाव से किशोरों में तनाव एवं चिंता बढ़ी है। शहरी जीवन की तीव्र-प्रतिस्पर्धा, प्रदूषण, शोर, और परिवारों में कम समय देने जैसी प्रवृत्तियां भी किशोरों को प्रभावित कर रही हैं। स्कूल-स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य संबंधी परामर्श सेवाओं का अभाव, जागरूकता की कमी और सामाजिक-संस्कृति में इस प्रकार की समस्याओं पर खुलकर बात न होना भी एक बड़ी बाधा है। परिवारों में संवाद की कमी, शिक्षा-दबाव, प्रदूषण, और आर्थिक अस्थिरता जैसी परिस्थितियां इस समस्या को और बढ़ा रही हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, “आज के बच्चे मानसिक रूप से पहले से कहीं अधिक दबाव में हैं, लेकिन सहायता-प्रणालियां अभी भी बहुत कमजोर हैं।”

क्या इसके दुष्परिणाम हो सकते हैं?

किशोरों का संज्ञानात्मक, भावनात्मक और सामाजिक विकास बाधित हो सकता है। शिक्षा-प्रगति प्रभावित हो सकती है। अगर समय पर इलाज/सहायता नहीं मिले, तो आत्महत्या और आत्मक्षति की आशंका बढ़ सकती है। भविष्य में युवाओं की कार्य-क्षमता और मानसिक क्षमता पर प्रभाव पड़ सकता है, जो सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए खतरा बन सकता है।

शिक्षा और करियर पर असर

मानसिक अस्वस्थता का सबसे बड़ा प्रभाव शिक्षा और कार्य क्षमता पर पड़ता है। जो युवा निरंतर चिंता या डिप्रेशन में रहते हैं, वे न केवल पढ़ाई या नौकरी में पिछड़ते हैं, बल्कि आत्मविश्वास और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता भी खो देते हैं। इससे शिक्षा व्यवस्था में गिरावट और कार्यस्थलों पर उत्पादकता में कमी आती है।

देश की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, मानसिक रोगों के कारण हर साल भारत को अरबों डॉलर का आर्थिक नुकसान होता है। अगर बड़ी संख्या में युवा अवसाद और तनाव से ग्रस्त रहेंगे, तो वे कामकाजी क्षमता खो देंगे, जिससे देश की उत्पादन शक्ति और नवाचार दोनों प्रभावित होंगे। मानसिक तनाव न केवल व्यक्ति को, बल्कि पूरे समाज को प्रभावित करता है। ऐसे युवाओं में असंतोष, आक्रोश, नशे की प्रवृत्ति और आत्महत्या के मामले बढ़ सकते हैं। यह सामाजिक असंतुलन और असुरक्षा का कारण बन सकता है।

सरकारी प्रयास और योजनाएं

 सरकार ने इस बढ़ती समस्या से निपटने के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए हैं—
राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम (RKSK): 2014 में शुरू की गई इस योजना के तहत 10-19 वर्ष के किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य, नशीली दवाओं की रोकथाम और भावनात्मक सहायता पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP) और जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (DMHP): प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों तक मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच बढ़ाने के उद्देश्य से ये योजनाएं चल रही हैं।
टेली-मानस (Tele-MANAS): 2022 में शुरू हुई यह राष्ट्रीय टेली-मेंटल हेल्पलाइन देशभर में 24×7 नि:शुल्क परामर्श और वीडियो-कॉल सुविधा प्रदान करती है।
Ayushman Bharat Health And Wellness Centre: इन केंद्रों में मानसिक, न्यूरोलॉजिकल और नशीली दवाओं से संबंधित विकारों की जांच और उपचार को प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं में शामिल किया गया है।

स्कूल-स्तर की पहलें

शैक्षणिक संस्थानों में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर भी कई योजनाएं चल रही हैं। देश में 33 से अधिक स्कूल-मेंटल-हेल्थ प्रोग्राम सक्रिय हैं, जिनमें “SIMHA – School Initiative for Mental Health Advocacy” प्रमुख है। इस कार्यक्रम के तहत स्कूलों में शिक्षकों और छात्रों के लिए भावनात्मक जागरूकता, परामर्श और सहायता समूह बनाए जा रहे हैं। राज्य-वार सटीक डेटा बहुत व्यापक रूप से उपलब्ध नहीं है, लेकिन उपलब्ध अध्ययन बताते हैं कि किशोरों में मानसिक स्वास्थ्य-विकारों की दर उच्च है, विशेष रूप से शहरी एवं स्कूल-जाने वाले समूहों में।

पिछड़े इलाक़ों तक जागरूकता फैलाना चुनौती

राष्ट्रीय स्तर पर कई प्रोग्राम और नीतियां बनी हुई हैं और जारी हैं, लेकिन उनका सम्यक क्रियान्वयन, ग्रामीण-अत्यंत पिछड़े इलाकों में पहुंच, स्कूल और परिवार-स्तर पर जागरूकता बढ़ाना अभी भी चुनौतियां हैं। इसलिए, यदि हम “हर पांचवां किशोर” जैसा अनुमान लेते हैं, तो यह अनुमानित रूप से मान्य हो सकता है, मगर इसे क्षेत्र-विशेष में लागू करने से पहले सावधानी बरतनी चाहिए। आगे-बढ़ने के लिए यह जरूरी है कि राज्यों-और-जिलों में डेटा संग्रह, निरंतर माइटरिंग, और परिणाम-मापन को मजबूत किया जाए ताकि यह पता चले कि कौन-से कार्यक्रम अच्छी तरह काम कर रहे हैं और कहाँ सुधार की जरूरत है।

Mental Health पर विशेषज्ञों की राय

विशेषज्ञों का मानना है कि मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा को स्कूल-पाठ्यक्रम में शामिल करना, परिवारों को जागरूक बनाना और किशोरों के लिए भावनात्मक सुरक्षा का वातावरण बनाना अब समय की मांग है। डॉ. रश्मि चौहान (मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ, एम्स) कहती हैं, “हर पांचवां भारतीय मानसिक तनाव में है, लेकिन उनमें से ज़्यादातर इसे बीमारी नहीं मानते। सबसे बड़ी चुनौती है, चुप्पी तोड़ना और सहायता लेना।”

भविष्य के लिए खतरे की घंटी

अगर हालात नहीं बदले, तो देश की युवा आबादी, जो भारत की सबसे बड़ी ताकत मानी जाती है, मानसिक रूप से सबसे बड़ी कमजोरी बन सकती है। विशेषज्ञों ने चेताया है कि समय रहते इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में शिक्षा-स्तर, रोजगार-क्षमता और सामाजिक स्थिरता पर गहरा असर पड़ेगा। देश में मानसिक स्वास्थ्य का संकट अब सिर्फ चिकित्सकीय नहीं, बल्कि सामाजिक आपातकाल बनता जा रहा है। दिल्ली के आंकड़ों ने जो तस्वीर दिखाई है, वह यह बताने के लिए काफी है कि हमें स्कूलों, परिवारों और समाज के हर स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देनी होगी।
अगर भारत को “विश्वगुरु” बनना है, तो उसकी युवा पीढ़ी को मानसिक रूप से स्वस्थ और सशक्त बनाना सबसे बड़ा निवेश होगा। मानसिक रूप से मजबूत युवा ही देश की रचनात्मकता, अर्थव्यवस्था और सामाजिक समरसता को आगे बढ़ा सकता है। मानसिक स्वास्थ्य अब कोई “व्यक्तिगत समस्या” नहीं, बल्कि राष्ट्रीय विकास का आधार बन चुका है।

सही समय पर सही सहायता

अगर आप या आपका कोई परिचित मानसिक तनाव से गुजर रहा है, तो तुरंत सहायता लें।
Tele-MANAS राष्ट्रीय हेल्पलाइन: 14416 / 1800-891-4416
किरण मानसिक स्वास्थ्य हेल्पलाइन: 1800-599-0019
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