स्वास्थ्य सुधारता सीएसआर, हेल्थ पर होता है इतना खर्च
देश को आजाद हुए 74 साल बीत गए लेकिन आज भी यहां आम जनमानस की मौत मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया जैसी बीमारियों से भी हो जाती है। सीजनल बीमारियों से ही हमारे देश के अस्पताल प्रेशर में आ जाते है। जब इन आम बीमारियों से ही हमारा हेल्थ सिस्टम कोलैप्स हो जाता है तो फिलहाल हम ही नहीं बल्कि समूचा विश्व कोरोना महामारी से जूझ रहा है। बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं का हमारे देश में अभाव इतना है कि यहां इंसान के जान का कोई मोल ही नहीं रह गया। हेल्थ केयर और हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी कोरोना महामारी पर भारी पड़ रही है।
स्वास्थ्य के सुशासन के मामले में शासन-प्रशासन हाशिए पर है, सीएसआर मददगार
फिलहाल ऐसा नहीं है कि सरकार हाथ पर हाथ रखकर बैठी है लेकिन जो भी कदम उठाये जा रहे है उसे समय रहते किया जाता तो आज श्मशानों में कतार नहीं लगते। हमारे परिजनों की लाशों को एक सम्मान मिलता। इन लाशों को चील कौवे नहीं खाते। सरकार की ओर से महामारी को रोकने का प्रयास तेज जरूर किया गया है लेकिन वही कहावत कि अब पछतावे क्या….जिस तरह से स्वास्थ्य सेवाओं और संसाधनों की मांग है उसके अनुपात में आपूर्ति का अभाव है इन कमियों और अभावों को देखते हुए यह लग रहा है कि स्वास्थ्य के सुशासन के मामले में शासन-प्रशासन हाशिए पर है।
देश इन दिनों महामारी से जूझ रहा है, समस्या विकराल रूप धारण कर चुकी है। महामारी की इस समस्या से निपटने के लिए मजबूत हेल्थ केयर सिस्टम और इंफ्रास्ट्रक्चर होनी चाहिए लेकिन पिछले कुछ सालों के आंकड़ों पर ध्यान दें तो तो स्वास्थ्य समस्याओं के साथ देश ढांचागत सुधार के उस स्तर को हासिल नहीं कर पाया जैसा समय के साथ होना चाहिए। हम बड़ा देश चलाते हैं, बड़े शासन और प्रशासन के हुंकार भरते हैं तो फिर बीमारी के आगे घुटने क्यों टेकने पड़ जाते हैं। आखिरकार अपने देश में स्वास्थ्य को लेकर सरकारें इतनी लचर क्यों है। क्यों नहीं केंद्र सरकार और राज्य सरकारें हेल्थ को लेकर काम करती है।
साल 2021-22 के स्वास्थ्य बजट में 137 फीसदी का हुआ है इजाफा
कोरोना महामारी ने सरकारों को सबक सिखाया है। उनकी आँखों पर लगी पट्टी को हटाया है। और शायद यही कारण है कि साल 2021-22 के स्वास्थ्य बजट में 137 फीसदी का इजाफा हुआ है। स्वास्थ्य को लेकर सरकार की चिंता बढ़ी है मगर कोरोना वायरस इतना विकराल है कि व्यापक धन भी उठ के मुंह में जीरा जैसा ही है। बल्कि स्वास्थ्य बजट में जो वृद्धि की गयी है इसे बहुत पहले किया जाना चाहिए था। बहरहाल स्वास्थ्य बजट के साथ साथ CSR बजट में भी लगातार इजाफा हो रहा है। हर साल सीएसआर बजट में हेल्थ पर ज्यादा फोकस किया जा रहा है।
स्वास्थ्य को लेकर देश की कॉर्पोरेट्स है बहुत संजीदा
कोरोना महामारी के दौरान ही नहीं बल्कि बीते कई सालों से स्वास्थ्य को लेकर देश की कॉर्पोरेट्स बहुत संजीदा है और शायद यही कारण है कि हेल्थ पर ज्यादा से ज्यादा सीएसआर यानी कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी फंड का खर्च किया जा रहा है। इस सीएसआर खर्च की वजह से स्वास्थ्य सेवाएं उन लोगों पर पहुंच पा रही थी जहां तक अभी ये स्वास्थ्य सेवाएं आम लोगों तक नहीं मिल पा रही थी। वर्ल्ड हेल्थ इंडेक्स 2019 के अनुसार 195 देशों में भारत 97 स्थान पर है। महामारी के इस दौर में जिस तरह अस्पतालों के भीतर और बाहर स्वास्थ्य संसाधनों की भारी कमी देखने को मिल रही है। ऑक्सीजन सिलेंडर, ICU और जरूरी दवाइयों सहित बेड्स तक को लेकर जो मारामारी देखने को मिल रही है उससे साफ है कि स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा बेहद बदतर हालत में है, और सीएसआर फंड कहीं न कहीं इन स्वास्थ्य सेवाओं के ढांचे को सही कर रहा है।
मिनिस्ट्री ऑफ़ कॉर्पोरेट अफेयर्स के आकड़ों पर प्रकाश डालें तो हर साल सीएसआर फंड की मदद से देश की तबियत और सेहत ठीक करने में कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी लगा हुआ है।
स्वास्थ्य पर इतना हुआ सीएसआर खर्च (CSR Expenditure on Health)
2014-15 में 1,847.74 करोड़
2015-16 में 2,569.43 करोड़
2016-17 में 2,491.10 करोड़
2017-18 में 2,210.77 करोड़
2018-19 में 3,216.41 करोड़
2019-20 में 3,438.27 करोड़
इन कंपनियों ने किया है हेल्थ पर सबसे ज्यादा सीएसआर खर्च
स्वास्थ्य वैसे तो राज्य सरकार का विषय होता है, अस्पतालों को बनाने, हेल्थ इंफ़्रा को डेवेलप करना राज्य सरकार की जिम्मेदारी होती है, इस मसले को लेकर देश में फिलहाल खूब राजनीति हो रही है। केंद्र और राज्य सरकार एक दूसरे पर छींटाकशी कर रही है। लेकिन कॉरपोरेट्स बिना कोई भेदभाव किये स्वास्थ्य सेवाओं को दुरुस्त करने में जुटी है। मिनिस्ट्री ऑफ़ कॉरपोरेट अफेयर्स के आकड़ों की माने तो देश की बड़ी कंपनियों ने ज्यादातर राज्यों में हेल्थ पर जोर दिया है। रिलायंस इंडस्ट्रीज, टाटा स्टील, ओएनजीसी जैसी तमाम कंपनियों ने स्वास्थ्य सेवाओं को दुरुस्त करने पर सबसे ज्यादा बल दिया है।
भारत में 11 हज़ार से अधिक व्यक्तियों पर है एक डॉक्टर
भारत में 11 हज़ार से अधिक व्यक्तियों पर एक डॉक्टर है। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार 1 हज़ार व्यक्तियों पर 1 डॉक्टर होना चाहिए।बिहार में तो स्थिति और भी खराब है 28 हज़ार से ज्यादा लोगों पर एक डॉक्टर है। उत्तर प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी हालात कमोबेश यही है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि मेडिकल सुविधाओं के मामले में हम कहां खड़े हैं। ऐसे में सीएसआर की मदद से देश की सेहत में सुधार हो रहा है।