ऊंचे पर्वतीय इलाकों में लगाए जा रहे सोलर पैनल से चीन ने बनाया स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन का नया रिकॉर्ड! Solar Mountains के वायरल वीडियो के बाद परियोजना पर दुनिया की नज़र।
चीन ने घाटियों की ढलानों पर लाखों सोलर पैनल लगाए
चीन ने अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में एक नई पहल करते हुए अपने पहाड़ी इलाकों को विशाल सोलर पावर ज़ोन में बदलना शुरू किया है। हाल ही में सामने आए ड्रोन वीडियो और उपग्रह तस्वीरों में पूरे पहाड़ों को सोलर पैनलों से ढका हुआ देखा गया, जिससे ये क्षेत्र दूर से एक चमकदार नीली चादर जैसे दिखाई देते हैं। इस मॉडल को अब दुनियाभर में “Solar Mountain Project” कहा जा रहा है। चीन की यह पहल उस रणनीति का हिस्सा है, जिसके तहत देश जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम कर स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देना चाहता है। इस परियोजना के लिए विशेष रूप से उन पहाड़ी इलाकों को चुना जा रहा है जहां खेती, आवास या उद्योग की संभावना बहुत कम होती है। वैज्ञानिकों के अनुसार, ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सूर्य की किरणें साफ और तेज़ होने के कारण सोलर पैनल ज्यादा दक्षता के साथ काम करते हैं।
solar power station hidden in a mountain #China pic.twitter.com/dHbQQDHhls
— China Perspective (@China_Fact) September 13, 2024
बर्फीली चट्टानी पहाड़ियों को बनाया ऊर्जा का केंद्र
वर्तमान में तिब्बत, युन्नान, गुइझोउ और सिचुआन क्षेत्रों में कई बड़े प्रोजेक्ट कार्यरत हैं। इनमें से कुछ समुद्र तल से 4,500 से 5,200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हैं, जहां पहले केवल बर्फ और चट्टानी भूमि दिखाई देती थी। चीन सरकार का दावा है कि आने वाले वर्षों में यह मॉडल देश की ऊर्जा खपत का बड़ा हिस्सा पूरा कर सकता है।
अक्षय ऊर्जा की दिशा में बड़ा कदम
चीन की यह पहल कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण मानी जा रही है। सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह मॉडल बंजर पहाड़ी इलाकों का उपयोग करता है, जो अब तक किसी उत्पादन या विकास के काम नहीं आते थे। इन क्षेत्रों में खेती या निर्माण लगभग असंभव होता है, लेकिन तेज़ और साफ़ धूप इन्हें सौर ऊर्जा उत्पादन के लिए आदर्श बनाती है। इसके अलावा, ऊंचाई वाले इलाकों में हवा पतली होती है और तापमान कम रहता है, जिससे सोलर पैनल गर्म नहीं होते और ऊर्जा उत्पादन क्षमता बढ़ जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार, ऐसे स्थानों पर पैनलों की दक्षता मैदानों की तुलना में अधिक हो सकती है।
कार्बन उत्सर्जन घटाकर स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा
एक अन्य बड़ा लाभ यह है कि इससे चीन को कोयला-आधारित ऊर्जा पर निर्भरता कम करने में मदद मिलेगी, क्योंकि चीन दुनिया में सबसे बड़ा कोयला उपभोक्ता और प्रदूषण उत्सर्जक देशों में शामिल है। इस परियोजना से न केवल कार्बन उत्सर्जन घटेगा, बल्कि स्वच्छ ऊर्जा के उत्पादन में चीन की हिस्सेदारी भी तेज़ी से बढ़ेगी। रिपोर्टों के अनुसार, यह मॉडल आने वाले वर्षों में बिजली उत्पादन की लागत कम कर सकता है और बड़े औद्योगिक क्षेत्रों से लेकर ग्रामीण इलाकों तक निर्बाध बिजली पहुंचा सकता है। इससे चीन अपने ऊर्जा आत्मनिर्भरता लक्ष्य की ओर भी तेज़ी से आगे बढ़ेगा।
चिंताएं: पर्यावरण, तकनीक और पारिस्थितिक संतुलन पर खतरा
हालांकि यह परियोजना तकनीकी रूप से प्रभावशाली मानी जा रही है, पर इससे जुड़ी कई गंभीर चिंताएं भी उभरकर सामने आई हैं। सबसे बड़ी चिंता पर्यावरणीय प्रभाव को लेकर है। पहाड़ी क्षेत्रों पर सोलर पैनल लगाने से वहां के प्राकृतिक आवास प्रभावित हो सकते हैं, जिससे बर्फीली पहाड़ियों में रहने वाले जानवरों, पक्षियों और विशेष वनस्पतियों पर असर पड़ने का खतरा है। विशेषज्ञों का कहना है कि कई ऊंचाई वाले क्षेत्र भी नाजुक जैव विविधता वाले “Eco-Zone” माने जाते हैं, जहां बड़े पैमाने पर निर्माण हानिकारक साबित हो सकता है।
ऊंचाई पर रखरखाव-मरम्मत मुश्किल
तकनीकी दृष्टि से भी यह परियोजना आसान नहीं है। ऊंचाई पर तेज़ हवाएं, अत्यधिक ठंड, बर्फ़बारी और असमान भू-आकार (Terrain) के कारण पैनलों की स्थापना और रखरखाव चुनौतीपूर्ण है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि Maintenance लागत और मरम्मत की जटिलता लंबे समय में इस परियोजना को महंगा बना सकती है। इसके अलावा, पैनलों की रिफ्लेक्टिव रोशनी (Glare Effect) स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र और पक्षियों की उड़ान पर भी असर डाल सकती है, जिससे पर्यावरणविदों ने सावधानी बरतने की मांग की है।
Solar Mountains के ज़रिए खुली भविष्य की नई राह
चीन का यह प्रयास निश्चित रूप से भविष्य की ऊर्जा नीति के लिए एक नया रास्ता खोलता है। यदि यह मॉडल सफल साबित हुआ, तो यह न केवल चीन बल्कि पहाड़ी भूभाग वाले अन्य देशों जैसे भारत, नेपाल, भूटान और यूरोपीय राष्ट्रों के लिए भी प्रेरक साबित हो सकता है। China का Solar Mountain एक ऐसा प्रोजेक्ट है जहां चीन ने पहाड़ों को सोने की खान नहीं, बल्कि बिजली की खान बना दिया है, बिना प्रदूषण, बिना धुआं और बिना कोयला!
अंतिम निष्कर्ष यह है कि ऊर्जा उत्पादन और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाना इस परियोजना की सबसे बड़ी परीक्षा होगी।
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