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June 27, 2025

Farmer Suicide in Bihar: जहां बाकी राज्य फेल हुए, वहीं बिहार ने रचा इतिहास, 8 साल में नहीं हुई एक भी किसान आत्महत्या

देशभर में जहां किसान आत्महत्या (Farmer Suicide in India) एक भयावह समस्या बनी हुई है, वहीं बिहार ने वह कर दिखाया है जो अब तक असंभव माना जाता था। सूचना के अधिकार (RTI) के तहत सामने आए आंकड़ों ने पूरे देश को चौंका दिया है। बिहार में वर्ष 2015 से 2022 के बीच एक भी किसान आत्महत्या दर्ज नहीं हुई है। इस खुलासे ने पूरे देश की नज़र बिहार के उस मॉडल पर ला दी है, जो अब तक अनदेखा था। चुकी बिहार में इलेक्शन (Bihar Election) है ऐसे में ये मुद्दा जरूर जोर पकड़ेगा।

2015 से 2022 तक बिहार में दर्ज नहीं हुई एक भी किसान आत्महत्या

यह खुलासा हुआ है पुणे के बिजनेसमैन और सामाजिक कार्यकर्ता प्रफुल्ल सारडा की RTI के माध्यम से। उन्होंने NCRB (National Crime Records Bureau) से किसान आत्महत्याओं के आंकड़े मांगे थे, जिसके जवाब में यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है कि –

2004 से 2014 के बीच बिहार में 756 किसान आत्महत्याएं दर्ज की गई थीं।

2015 से 2022 के बीच शून्य आत्महत्याएं – पूरे आठ वर्षों तक एक भी मामला नहीं।

महाराष्ट्र, कर्नाटक और तेलंगाना में आंकड़े डरावने

इस बीच महाराष्ट्र, कर्नाटक और तेलंगाना जैसे राज्यों में सैकड़ों नहीं, बल्कि हजारों किसान हर साल आत्महत्या करते रहे। The CSR Journal से ख़ास बातचीत करते हुए प्रफुल्ल सारडा ने बताया कि “अगर ये आंकड़े सही हैं, तो यह केवल कर्ज माफी या मुआवजा देने का मामला नहीं है। अब देश को ‘बिहार पैटर्न’ (Bihar Pattern to stop the Farmers Suicide) की जरूरत है एक ऐसा मॉडल जो किसानों की आत्महत्या को जड़ से खत्म कर दे। उन्होंने केंद्र और राज्य सरकारों से अपील की कि वे बिहार के इस मॉडल को गंभीरता से समझें और इसे राष्ट्रीय स्तर पर लागू करें ताकि एक भी किसान आत्महत्या ना करे, सिर्फ नारा नहीं, बल्कि वास्तविकता बन सके।

क्या है बिहार मॉडल की खासियत? What is Bihar Pattern to stop the Farmers Suicide

भले ही बिहार अक्सर विकास या कानून-व्यवस्था के मुद्दों पर विवादों में रहता हो, लेकिन किसान आत्महत्या के मामले में इसकी स्थिति बाकी राज्यों से कहीं बेहतर रही है। संभावित कारणों में ये बातें हो सकती हैं –

कृषि पर कम निर्भरता और विविध आजीविका स्रोत

छोटी जोत वाली खेती जिसमें कर्ज का जोखिम कम

मिट्टी स्वास्थ्य कार्ड, सिंचाई योजनाएं और फसल बीमा योजनाओं का क्रियान्वयन

सामाजिक सहयोग और मजबूत पारिवारिक तंत्र

आर्थिक सहायता के बिना भी जीवित रहने की क्षमता और आत्मनिर्भरता की प्रवृत्ति

दूसरी ओर महाराष्ट्र, कर्नाटक और तेलंगाना में क्या हाल है?

महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। NCRB के आंकड़े बताते हैं कि महाराष्ट्र में हर साल 2000 से ज्यादा किसान आत्महत्याएं होती हैं। कर्नाटक और तेलंगाना भी आत्महत्या के मामलों में लगातार शीर्ष पर हैं। 2015 से 2022 के बीच देशभर में लगभग 80,000 किसानों ने आत्महत्या की, जिनमें सबसे अधिक संख्या इन्हीं राज्यों की रही।

क्या अब पूरे देश में लागू होगा ‘बिहार पैटर्न’?

इस RTI ने एक नई बहस को जन्म दिया है क्या अब कर्जमाफी और राहत पैकेज से आगे जाकर सरकारों को व्यवहारिक समाधान तलाशना चाहिए? अगर बिहार जैसे आर्थिक रूप से कमजोर राज्य में यह मुमकिन है, तो क्या पंजाब, महाराष्ट्र, तेलंगाना जैसे राज्यों में यह नामुमकिन है? RTI के ये आंकड़े सिर्फ संख्या नहीं हैं, बल्कि यह एक चेतावनी भी हैं और एक आशा की किरण भी। बिहार ने चाहे जैसे भी सही, लेकिन “शून्य किसान आत्महत्या” का जो आंकड़ा दिया है, वह अब देश की बाकी सरकारों के लिए “आईना” बन गया है।

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