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December 11, 2025

पिघलता महाद्वीप अचानक जमा: अंटार्कटिका में बर्फ बढ़ने की दुर्लभ घटना से जलवायु विशेषज्ञ हैरान! 

The CSR Journal Magazine

 

दुनिया के दक्षिणी ध्रुव पर स्थित महाद्वीप अंटार्कटिका में वैज्ञानिकों के लिये एक अप्रत्याशित और चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है। दशकों की निरंतर बर्फ़ हानि के प्रवाह के बाद, महाद्वीप में 2021 से 2023 के बीच लगभग 100 अरब टन से भी अधिक बर्फ़ प्रति वर्ष की दर से बढ़ोत्तरी! यह संख्या वैज्ञानिकों के लिये न केवल हैरानी की बात है, बल्कि यह जलवायु विज्ञान की समझ में एक बड़ी चुनौती भी पेश करती है। यह खबर इसलिये भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अंटार्कटिका की बर्फ़ हमारे ग्रह के समुद्री स्तर, जलवायु प्रणाली, और वैश्विक मौसम के पैटर्न को प्रभावित करती है। यहां हुई यह असामान्य वृद्धि प्रश्न खड़े करती है कि क्या यह बर्फ़ शिफ्ट जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का संकेत है या एक अल्पकालिक मौसमीय विचलन (अनॉमली) का परिणाम !

अंटार्कटिका की बर्फ़ में चौंकाने वाला उछाल: दशकों बाद पहली बार जमकर बढ़ी बर्फ़

दुनिया के सबसे ठंडे महाद्वीप अंटार्कटिका में वैज्ञानिकों को हाल ही में एक ऐसी घटना देखने को मिली जिसने जलवायु विशेषज्ञों को हैरान कर दिया। लंबे समय से जहां यह माना जा रहा था कि अंटार्कटिका की बर्फ़ लगातार पिघल रही है और समुद्र का स्तर बढ़ रहा है, वहीं पिछले एक-दो वर्षों में इस महाद्वीप ने अचानक 100 अरब टन से भी अधिक बर्फ़ एक ही साल में जोड़ ली। यह बर्फ़ वृद्धि इतनी अप्रत्याशित थी कि वैज्ञानिकों ने इसे “दशकों में पहली बार दिखाई देने वाली उलटी गति” कहा, क्योंकि अब तक के सभी अध्ययन यह बता रहे थे कि अंटार्कटिका लगातार बर्फ़ खो रहा है। यह बढ़ी हुई बर्फ़ कोई छोटा बदलाव नहीं है। यह वह बदलाव है जिसने कई वैज्ञानिकों को दोबारा अपनी गणनाएं परखने पर मजबूर कर दिया है। आखिर ऐसा क्या हुआ कि वर्षों से पिघलती बर्फ़ अचानक इतनी मात्रा में बढ़ गई? मौसम में कौन-सी गतिविधियां हुईं जिनका प्रभाव पूरी पृथ्वी पर नजर आ सकता है? और सबसे अहम- क्या यह घटना ग्लोबल वॉर्मिंग के खतरे को कम करती है, या यह सिर्फ कुछ समय के लिए दिखाई देने वाला उतार-चढ़ाव है?

अंटार्कटिका का इतिहास: जहां बर्फ़ का हर उतार–चढ़ाव पूरी दुनिया को प्रभावित करता है

अंटार्कटिका पृथ्वी का सबसे ठंडा, सबसे अधिक हवाओं वाला और सबसे अधिक बर्फ़ से ढका महाद्वीप है। इसकी मोटी बर्फ़ चादरें लाखों वर्षों में जमा हुई हैं और आज यह पृथ्वी के मीठे पानी का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा अपने भीतर रखे हुए है। यही वजह है कि इसकी बर्फ़ में कोई भी बदलाव वैश्विक समुद्र स्तर, मौसमों और जलवायु पैटर्न पर बड़ा असर डाल सकता है। पिछले 30–40 वर्षों में वैज्ञानिक लगातार चेतावनी देते रहे कि अंटार्कटिका की बर्फ़ तेज़ी से पिघल रही है। खासकर पश्चिमी अंटार्कटिका और वहां के बड़े ग्लेशियर लगातार टूट रहे थे। इससे समुद्र का स्तर बढ़ रहा था और तटीय शहरों पर खतरा बढ़ रहा था। इसी पृष्ठभूमि में जब अचानक यह खबर सामने आई कि अंटार्कटिका ने एक ही साल में 100 अरब टन से ज्यादा बर्फ़ जमा कर ली है, तो दुनियाभर के वैज्ञानिकों ने इसे “असामान्य” और “ध्यान देने योग्य घटना” कहा।

अचानक इतनी बर्फ़ क्यों बढ़ी? मौसम विज्ञान की बड़ी पहेली

अंटार्कटिका में बर्फ़ बढ़ने के पीछे कई कारण एक साथ जुड़े हुए दिखाई देते हैं। वैज्ञानिकों ने इसे किसी एक कारण का परिणाम नहीं बताया, बल्कि यह कहा कि प्राकृतिक मौसम चक्र, ठंडी हवाओं का रुख, नमी वाली हवा की मात्रा और समुद्री तापमान, सभी घटनाएं मिलकर इस वृद्धि का कारण बनीं।

1. जमकर हुआ हिमपात- सबसे बड़ा कारण

सबसे पहले, पिछले दो वर्षों में अंटार्कटिका के कई इलाकों में अत्यधिक हिमपात हुआ। बारिश या सूखी ठंडी हवाओं के बजाय जब हवा में नमी अधिक होती है तो वह बर्फ़ के रूप में गिरती है। अंटार्कटिका के ठंडे वातावरण में यह बर्फ़ जल्दी पिघलती नहीं, बल्कि तुरंत जमी रहती है। वैज्ञानिक मानते हैं कि दुनिया भर का तापमान बढ़ने से हवा अब पहले से अधिक नमी धारण करती है। जब यही नमी दक्षिणी ध्रुव की बेहद ठंडी हवा से मिलती है, तो बड़े पैमाने पर बर्फ़बारी होती है। यही बर्फ़ अब मोटी परतों के रूप में जमा हो गई है।

2. हवा और तूफ़ानी पैटर्न में बदलाव

दक्षिणी महासागर के ऊपर चलने वाली हवाओं का रुख कुछ समय के लिये बदल गया। इससे ठंडे समुद्री क्षेत्र से उठने वाली हवा महाद्वीप की तरफ बढ़ी और भारी बर्फ़बारी का कारण बनी। बड़ी मात्रा में बर्फ़ गिरने से मोटी बर्फ़ परतें तेजी से बनीं। कई बार इस तरह की हवा की दिशा कुछ वर्षों के लिये असामान्य रहती है और फिर सामान्य हो जाती है। यह प्राकृतिक घटना है, लेकिन कभी-कभी इसका प्रभाव बड़ा होता है।

3. समुद्री तापमान में अस्थाई गिरावट

समुद्र का तापमान बड़ा निर्णायक कारक होता है। ठंडे समुद्र से उठने वाली हवा में अधिक नमी होती है और वह नमी अंटार्कटिका तक पहुंचकर बर्फ़बारी करती है। पिछले वर्षों में दक्षिणी महासागर के कुछ हिस्सों का तापमान थोड़े समय के लिये सामान्य से कम रहा। इसका सीधा असर बर्फ़बारी में दिखाई दिया।

4. वैश्विक मौसम चक्रों का प्रभाव

दुनिया के बड़े मौसम चक्र, जैसे ला-नीना, कई बार पूरे ग्लोब की हवा और बारिश की दिशा को प्रभावित करते हैं। इन चक्रों के कारण अंटार्कटिका में ठंडी और नम हवा का प्रवाह बढ़ गया था। इससे बर्फ़ के गिरने की मात्रा बढ़ी।

क्या यह ग्लोबल वॉर्मिंग को गलत साबित करता है? जवाब सीधा है: नहीं

यह सबसे बड़ा सवाल है- क्या इसका मतलब है कि धरती गर्म नहीं हो रही? क्या बर्फ़ का वापस बढ़ना एक अच्छा संकेत है? विशेषज्ञों का कहना है कि नहीं, यह घटना जलवायु परिवर्तन के खतरे को समाप्त नहीं करती। यह सिर्फ एक अस्थायी उलटाव है। इसके पीछे कई कारण हैं!
1. लंबे समय का रुझान अभी भी बर्फ़ हानि का है। पिछले 40–50 वर्षों में अंटार्कटिका ने अरबों टन बर्फ़ गंवाई है। यह वृद्धि उस हानि का बहुत छोटा हिस्सा है।
2. पश्चिम अंटार्कटिका अभी भी तेजी से पिघल रहा है। बर्फ़ की यह वृद्धि मुख्यतः पूर्वी हिस्से में हुई है, जबकि पश्चिमी हिस्से में पिघलने की प्रक्रिया लगातार तेज हो रही है।
3. समुद्र का पानी लगातार गर्म हो रहा है। महासागरों का तापमान लगातार बढ़ रहा है, जिससे ग्लेशियरों का नीचे से पिघलना तेज होता है। इस प्रक्रिया को अस्थायी बर्फ़ वृद्धि रोक नहीं पाती।
4. यह एक अल्पकालिक मौसमीय उतार-चढ़ाव है। कुछ वर्षों की वृद्धि बहुत लंबे समय के रुझान को नहीं बदलती। इसलिए यह घटना महत्वपूर्ण तो है, लेकिन यह ग्लोबल वॉर्मिंग या जलवायु परिवर्तन को उलटने का संकेत नहीं है।

समुद्री स्तर पर इसका सीधा असर पड़ेगा

अंटार्कटिका की बर्फ़ सीधे समुद्र के स्तर को प्रभावित करती है। अगर वहां पानी बर्फ़ बनकर जम जाए, तो थोड़े समय के लिये समुद्री स्तर स्थिर रहता है। लेकिन यदि बर्फ़ पिघलकर समुद्र में चली जाए, तो समुद्र का स्तर बढ़ जाता है। हालिया बर्फ़ वृद्धि समुद्र स्तर में बढ़ोतरी को थोड़े समय के लिये धीमा कर सकती है। लेकिन  वैज्ञानिकों का कहना है कि यह अस्थायी राहत है। लंबे समय में समुद्री स्तर फिर भी बढ़ता रहेगा। पिघलते ग्लेशियर बर्फ़ वृद्धि से कई गुना अधिक नुकसान कर रहे हैं

वैज्ञानिकों के लिये नई चुनौती: यह घटना क्यों हुई?

यह अचानक बढ़ी बर्फ़ सिर्फ एक मौसम रिपोर्ट नहीं है। यह वैज्ञानिकों के लिये एक बड़ी पहेली है, जिसके पीछे छिपे कारणों को समझने के लिये वे नए मॉडल, नए डेटा और नई तकनीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। उनकी जांच मुख्यतः यह समझने पर केंद्रित है कि-
बर्फ़ वृद्धि कितने समय तक टिकेगी?
क्या अगले वर्षों में फिर ऐसा हो सकता है?
क्या यह केवल स्थानीय मौसम का प्रभाव था?
क्या बड़े जलवायु चक्र बदल रहे हैं?
क्या यह घटना भविष्य में समुद्र स्तर को लेकर हमारी भविष्यवाणियों को बदल सकती है?
इन सभी सवालों के जवाब आने वाले वर्षों में वैज्ञानिकों के अध्ययन से सामने आएंगे।

अंटार्कटिका हमें क्या संदेश दे रहा है

अंटार्कटिका पृथ्वी का सबसे शांत, लेकिन सबसे प्रभावशाली क्षेत्र है। वहां घटने वाली घटनाएं पूरी दुनिया को प्रभावित करती हैं। वहां की बर्फ़ केवल एक क्षेत्रीय चीज़ नहीं, बल्कि वैश्विक जलवायु तंत्र का दिल है। यह अचानक बढ़ी बर्फ़ हमें दो बातें याद दिलाती है: प्रकृति जटिल है! कभी-कभी वह ऐसी घटनाएं दिखाती है जो सभी पूर्वानुमानों के विपरीत होती हैं।जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई जारी रहनी चाहिए क्योंकि दीर्घकालिक रुझान अभी भी बर्फ़ हानि और समुद्र स्तर बढ़ने की दिशा में है।

एक अस्थायी बढ़त, एक स्थायी चेतावनी

अंटार्कटिका की यह बर्फ़ वृद्धि जितनी बड़ी है, उतनी ही असामान्य भी है। यह घटना यह साबित करती है कि पृथ्वी की जलवायु प्रणाली कभी-कभी उलटे चलते हुए भी दिखाई दे सकती है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि खतरा टल गया है। यह सिर्फ एक क्षणिक सुधार है और यह भी संभव है कि आने वाले वर्षों में यह वृद्धि फिर घटने लगे। अंततः, यह घटना वैज्ञानिकों के लिये एक बहुमूल्य मौका है जिससे वे यह समझ सकें कि पृथ्वी का मौसम कैसे बदलता है, और कैसे कभी-कभी हमारी उम्मीदों के बिल्कुल विपरीत दिशा में जाता है।
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