कोरोना के दौरान अमितेश मुंबई से हजारीबाग स्थित अपने गांव आये हुए थे। लॉकडाउन की वजह से दो-तीन महीने तक गांव में ही रहना पड़ा। उसके बाद अमितेश ने जो जूझा उससे अमितेश ने ठान ली कि अब गांव के लिए कुछ करना है। गांव के लोग पानी की समस्या से जूझ रहे थे। कुएं से पानी मिलता था। गांव के लिए पक्की सड़क नहीं थी। इसी तरह गांव वालों ने अमितेश को और कई तरह की समस्याओं की जानकारी दी। फिर क्या था अमितेश को लगा कि इन सब समस्याओं को सीएसआर फंड से सुलझाया जा सकता है।
सीएसआर से मदद कर कई कंपनियां दे रहीं अमितेश के गांव का साथ
अमितेश ने अपने गांव को स्मार्ट विलेज बनाने के लिए विकास का खाका खींचकर अपनी कंपनी ओएनजीसी को भेजा तो कंपनी सीएसआर के तहत गांव के विकास के लिए तैयार हो गई। इसके बाद कई और कंपनियों का सहयोग लेकर अमितेश ने योजना को और भी विस्तार दिया। गांव के कायाकल्प और ग्रीनफील्ड स्मार्ट गांव का उसका सपना अब जल्द ही साकार होने वाला है। अमितेश की मदद के लिए ओएनजीसी, टाटा, रिलायंस इंडस्ट्री टेलीकॉम सेक्टर से भी प्रस्ताव मिला है। ये भी चर्चा है कि गांव में बेरोजगारी भी एक समस्या है जिसके लिए कंपनीज यहां निवेश के लिए तैयार दिख रही हैं।
पिछड़ा है अमितेश का दैहर गांव
अमितेश का गांव दैहर पिछड़ा गांव है। दैहर हजारीबाग के चौपारण प्रखंड में पड़ता है। हजारीबाग शहर से करीब 55 किलोमीटर दूर है गांव। गांव की आबादी करीब पांच हजार है और गांव तक तो सड़क बनी है, लेकिन जर्जर है। 50 फीसदी लोगों के पास पीने के पानी के लिए अपने स्रोत कुआं या चापानल नहीं है, वे पानी के लिए इधर-उधर भटकते थे। पर अब यह गांव हरित स्मार्ट गांव में तब्दील होनेवाला है। यहां पर पक्की सड़कें होंगी। गांव में 50 पक्के मकान बननेवाले हैं। पेयजल की व्यवस्था हो चुकी है। स्ट्रीट लाइट लगनेवाले हैं। इसके अलावा अस्पताल भी बनेगा और पौधारोपण भी किया जाना है। ग्रामीणों में खुशी का माहौल है। और ये सब संभव हुआ अमितेश की जूनून और सीएसआर की वजह से।