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आदित्य बिरला मेमोरियल हॉस्पिटल की मनमानी, खामियाजा भुगतते मरीज, नही मिल रहा है सीएसआर से मिले 8 करोड़ का फायदा

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आदित्य बिरला मेमोरियल हॉस्पिटल की मनमानी का खामियाजा भुगतते मरीज। मरीजों को नही मिल रहा है सीएसआर से मिले 8 करोड़ का फायदा।
 
आदित्य बिरला ग्रुप (Aditya Birla Group) ने समाज के सभी वर्गों की जरूरतों को पूरा करने के लिए और आदित्य विक्रम बिरला (Aditya Vikram Birla) की याद में उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए आदित्य बिरला मेमोरियल हॉस्पिटल बनवाया था। इस आलीशान मल्टी सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल को आदित्य बिरला ग्रुप संचालित करती है। पुणे के पिंपरी चिंचवड़ में मौजूद ये अस्पताल 16 एकड़ में फैला है। लेकिन आदित्य बिरला ग्रुप शायद अब समाज सेवा और मरीजों की सेवा के लक्ष्य को भूलकर एक प्राइवेट प्रॉफिटेबल हॉस्पिटल के नक्शेकदम पर चल पड़ा है। कहने के लिए तो आदित्य बिरला मेमोरियल हॉस्पिटल (Aditya Birla Memorial Hospital) के मेन गेट पर चैरिटेबल हॉस्पिटल लिखा हुआ है लेकिन ये अस्पताल कितना चैरिटी करता है ये कहानी जानकार आपको आदित्य बिरला ग्रुप की हकीकत पता चल जायेगा।

साल 2020-21 में आदित्य बिरला फाइनेंस लिमिटेड ने आदित्य बिरला मेमोरियल हॉस्पिटल को दिया 8 करोड़ रुपए का सीएसआर फंड

दरअसल आदित्य बिरला फाइनेंस लिमिटेड (Aditya Birla Finance Limited) ने साल 2020-21 में आदित्य बिरला मेमोरियल हॉस्पिटल को हेल्थ केयर (Healthcare) प्रमोशन के लिए 8 करोड़ रुपए का सीएसआर फंड दिया। ये 8 करोड़ रुपये का सीएसआर फंड (CSR Fund) आदित्य बिरला कैपिटल फाउंडेशन (Aditya Birla Capital Foundation) के जरिये आदित्य बिरला मेमोरियल हॉस्पिटल को मिला। लेकिन सीएसआर (Aditya Birla CSR) मिलने के बाद भी यह हॉस्पिटल पेशेंट मरीजों का ना तो मुफ्त में इलाज करता है और ना ही किफायती दरों पर। ऐसे में सवाल जरूर खड़े होते है कि जब आदित्य बिरला मेमोरियल हॉस्पिटल को इतने बड़े पैमाने पर 8 करोड़ रुपये का सीएसआर फण्ड मिल रहा है तो जरूरतमंद मरीजों का इलाज मुफ्त या फिर किफायती दरों पर क्यों नहीं। मुफ्त और किफायती दरों को तो आप छोड़ ही दीजिये अगर कोई गरीब मरीज जो इंडिगेंट पेशेंट स्कीम का हकदार है वो अगर पैसा नहीं भर पाता तो उसे अस्पताल डिस्चार्ज करने से मना भी कर देता है।

पुणे पुलिस में आदित्य बिरला मेमोरियल हॉस्पिटल के प्रबंधन के खिलाफ दर्ज है FIR, इंडीजेंट पेशेंट स्कीम के तहत मरीज का मुफ्त इलाज नहीं करने का आरोप

साल 2018 में कुछ ऐसा ही हुआ जब संजय आरडे अपने पापा को पैरालिसिस के इलाज के लिए आदित्य मेमोरियल हॉस्पिटल में एडमिट करवाया। संजय के पास पहले से ही गरीबी रेखा के नीचे वाला राशन कार्ड था, इंडीजेंट पेशेंट स्कीम के सभी दस्तावेज जमा करने के बावजूद पापा के इलाज के कुछ दिन बाद लगभग 2 लाख का बिल अस्पताल प्रशासन ने संजय को थमा दिया। संजय इतना पैसा भरने में सक्षम नहीं था लिहाजा संजय ने अपने पापा आदित्य बिरला मेमोरियल हॉस्पिटल से डिस्चार्ज करवा कर सरकारी अस्पताल में दाखिल करने की सोची। लेकिन आदित्य बिरला मेमोरियल हॉस्पिटल ने बिल का पूरा पैसा भरने के लिए दबाव बनाया और संजय के पापा को अस्पताल से डिस्चार्ज देने से इंकार कर दिया। पुलिस में FIR दर्ज होने के बाद पुलिस की मौजूदगी में संजय के पापा को सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां कुछ दिन इलाज होने के बाद उनकी मौत हो गयी।

यही हाल अमोल का भी है, अमोल उबाले अपने पिता का इलाज क़रवाने के लिए अस्पताल में आये है, टेस्ट के नाम पर अमोल को भारीभरकम बिल थमा दिया गया। खून के एक जांच के लिए अस्पताल ने अमोल से 1600 चार्ज किये। अमोल से जब The CSR Journal ने बात की तो उन्होंने बताया कि “Aditya Birla Memorial Hospital एक चैरिटेबल अस्पताल है, कायदे से तो इस अस्पताल को चैरिटेबल रेट पर मरीजों का इलाज करना चाहिए लेकिन अस्पताल एकदम से लूट पर उतर आया है और जब ये अस्पताल सीएसआर (CSR – Corporate Social Responsibility) फंड ले रहा है तो इसे निशुक्ल इलाज करना चाहिए”
इतना ही नहीं जब The CSR Journal की टीम भी एक आम मरीज की तरह अस्पताल में डायबिटीज के डॉक्टर से कंसल्ट करने की बात कही तो हमें बताया गया कि डॉक्टर की कंसल्टिंग फीस 750 और 1000 है। अस्पताल के बाहर भी बड़े बड़े विज्ञापनों में बड़े बड़े टेस्ट का बड़ा बड़ा अमाउंट लिखा गया है। आदित्य बिरला मेमोरियल हॉस्पिटल पेशेंट से उतना ही पैसे वसूल रहा है जो एक प्राइवेट हॉस्पिटल चार्ज करता है।

सीएसआर से मिले 8 करोड़ कहां और किस पर खर्च, The CSR Journal के सवालों पर आदित्य बिरला का मौन

सीएसआर के तहत मिले 8 करोड़ रुपये कहां और किस लिए खर्च किये गए, The CSR Journal ने जब ये जानकारी अस्पताल प्रबंधन से मांगी तो उनके पास कोई जवाब नहीं था। इस मामले अस्पताल की सीईओ रेखा दुबे ने कैमरे पर कुछ भी बोलने से मन कर दिया इसके आलावा आदित्य बिरला ग्रुप से भी जब हमने ईमेल कर जानकारी मांगी तो भी हमें कोई जवाब नहीं मिला।

सामाजिक सरोकारिता का मकसद अधूरा

बहरहाल शायद हॉस्पिटल की चेयरपर्सन राजश्री बिरला (Rajashree Birla) ये भूल चुकी है कि समाज के सभी जरूरतमंद वर्गों का इलाज मुफ्त या फिर किफायती दरों से हो तो ही सामाजिक सरोकारिता का मकसद को पूरा किया जा सकता है।