लखनऊ। उत्तर प्रदेश सरकार ने दस्तावेज़ सत्यापन प्रणाली में बड़ा बदलाव करते हुए साफ कर दिया है कि अब आधार कार्ड को जन्म तिथि (Date of Birth) के आधिकारिक प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगा। राज्य के सभी विभागों, भर्ती बोर्डों, शिक्षा संस्थानों और स्थानीय निकायों को इस संबंध में दिशानिर्देश जारी कर दिए गए हैं। इस निर्णय ने लाखों लोगों को सीधे प्रभावित किया है। खासकर उन्हें, जिनकी पहचान प्रक्रियाएं केवल आधार पर आधारित थीं। सरकार का तर्क है कि आधार पहचान का दस्तावेज़ है, न कि जन्म का प्राथमिक रिकॉर्ड, और इसी भ्रम को दूर करने के लिए यह कदम उठाया गया है।
UP में आधार कार्ड अब जन्मतिथि का प्रमाण नहीं माना जाएगा
लखनऊ। उत्तर प्रदेश सरकार ने एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक बदलाव करते हुए यह स्पष्ट कर दिया है कि अब आधार कार्ड को जन्म तिथि के प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगा। सरकारी कामकाज, स्कूल-कॉलेज में दाख़िले, विभिन्न प्रमाणपत्रों के आवेदन और पहचान सत्यापन जैसी प्रक्रियाओं में अब केवल जन्म प्रमाण पत्र, शैक्षिक प्रमाणपत्र (मार्कशीट), या अस्पताल का जारी किया गया जन्म रिकॉर्ड ही वैध माना जाएगा। पहले कई दफ्तरों और संस्थाओं में आधार कार्ड को उम्र या जन्म तिथि के प्रमाण के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन अब इसे दस्तावेज़ के इस रूप में अमान्य कर दिया गया है। सरकार का कहना है कि आधार कार्ड पहचान का दस्तावेज़ है, न कि जन्म तिथि का प्रामाणिक रिकॉर्ड, इसलिए आयु प्रमाणन के मामलों में इसे मान्य नहीं किया जा सकता।
क्या कहता है नया नियम?
UP सरकार ने स्पष्ट किया है कि जन्म तिथि साबित करने के लिए केवल तीन प्रकार के दस्तावेज़ मान्य होंगे-
1. जन्म प्रमाण पत्र (Birth Certificate)
2. शैक्षिक प्रमाणपत्र (10वीं या समकक्ष मार्कशीट)
3. अस्पताल का जन्म रिकॉर्ड / हॉस्पिटल कार्ड
आधार कार्ड को इन दस्तावेज़ों की जगह उपयोग नहीं किया जा सकेगा।
आधार क्यों अस्वीकार किया गया?
1. गलत डेटा की बढ़ती शिकायतें– पिछले कुछ वर्षों में UIDAI के पास हजारों शिकायतें पहुंची कि आधार में दर्ज जन्म तिथि गलत है या बिना मजबूत दस्तावेजों के अपडेट कर दी गई है।
2. Self-Declared प्रकृति– आधार में कई बार जन्म तिथि Self-Declared या समर्थित-Document आधारित होती है, जिससे उसकी विश्वसनीयता जन्म रिकॉर्ड के रूप में कम हो जाती है।
3. कानूनी वैधता का मुद्दा– जन्म प्रमाण पत्र और स्कूल रिकॉर्ड कानूनी रूप से पंजीकृत मूल दस् तावेज़ हैं। आधार मात्र पहचान सत्यापन के लिए डिज़ाइन किया गया है, उम्र निर्धारण के लिए नहीं।
4. भर्ती और कानून प्रक्रियाओं में दिक्कत– सरकारी नौकरियों, पुलिस की भर्तियों, पेंशन, पासपोर्ट आदि में गलत DOB के कारण विवाद बढ़ रहे थे। ऐसे मामलों से बचने के लिए यह सुधार आवश्यक माना गया।
लोगों पर क्या असर पड़ेगा?
उम्र प्रमाणन और विद्यालयी दाख़िला– स्कूल-कॉलेज में प्रवेश, बोर्ड परीक्षा फॉर्म और छात्रवृत्ति के लिए अब जन्म प्रमाण पत्र अनिवार्य हो जाएगा।
सरकारी नौकरियों में कठोर जांच– UPPSC, UPSSSC, पुलिस भर्ती, शिक्षकों की भर्ती जैसी परीक्षाओं में अब अधिक सटीक DOB दस्तावेज़ मांगे जाएंगे।
पासपोर्ट और अन्य ID के लिए कड़ाई- पासपोर्ट सेवा केंद्र पहले ही आधार को DOB के रूप में स्वीकार नहीं करता था। अब राज्य स्तर पर भी वही मानक लागू होगा।
जिनके पास जन्म प्रमाण पत्र नहीं है
गावों और छोटे कस्बों में लाखों लोग ऐसे हैं जिनका जन्म अस्पतालों में नहीं हुआ और जिनके पास जन्म प्रमाण पत्र नहीं है। उन्हें अब पंचायत / नगर निगम से देर से जन्म पंजीकरण (Late Registration) कराना अनिवार्य होगा। शैक्षिक संस्थान से प्रमाण पत्र लेना होगा, या अस्पताल का उपलब्ध रिकॉर्ड खंगालना होगा। इस प्रक्रिया में कई को समय और खर्च दोनों का सामना करना पड़ सकता है।
सरकारी विभागों को क्यों पड़ा दखल देना?
विभागों के पास ऐसे कई मामले आए जिनमें उम्मीदवारों ने उम्र सीमा से बचने के लिए आधार में DOB बदलवाया और भर्तियों में लाभ लेने का प्रयास किया। केंद्र सरकार पहले ही स्पष्ट कर चुकी है कि आधारपहचान का प्रमाण है, आयु का नहीं। इसी मानक को अब UP ने पूरी तरह अपनाया है।
क्या आधार का महत्व खत्म हो गया?
आधार अभी भी इन कार्यों के लिए पूरी तरह मान्य है-
पहचान सत्यापन,
बैंक KYC,
सरकारी योजनाओं का लाभ,
मोबाइल सिम,
पैन लिंकिंग!
सिर्फ जन्म तिथि प्रमाणन में इसका उपयोग बंद होगा।
जनता की प्रतिक्रियाएं- नागरिकों की चिंता
जो लोग केवल आधार पर निर्भर थे, वे अब जल्दी से जन्म प्रमाण पत्र बनवाने की कोशिश कर रहे हैं। गावों में यह प्रक्रिया अभी भी धीमी और जटिल है। डिजिटल गवर्नेंस विशेषज्ञ मानते हैं कि यह निर्णय ‘‘देरी से सही, पर ज़रूरी’’ है। आधार को जन्म दस्तावेज़ मानना हमेशा एक तकनीकी गलती था।
आधार से आयु नहीं- सत्य की ओर एक प्रशासनिक कदम
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा आधार कार्ड को जन्म तिथि के प्रमाण के रूप में अस्वीकार करने का निर्णय शुरू-शुरू में कठोर लग सकता है, पर प्रशासनिक दृष्टि से यह कदम लंबे समय की गड़बड़ियों को रोकने का प्रयास भी है। आज जब काग़ज़ और डिजिटल पहचान के बीच आम आदमी अक्सर उलझा रहता है, तो यह समझना ज़रूरी है कि आधार पहचान का दस्तावेज़ है, न कि जन्म का मूल रिकॉर्ड। ऐसे माहौल में यूपी सरकार का यह कहना कि जन्म तिथि वही मानी जाएगी जो जन्म प्रमाण पत्र, स्कूल रिकॉर्ड या अस्पताल के रजिस्टर में दर्ज है, दस्तावेज़ों की गंभीरता को फिर से स्थापित करता है। ये रिकॉर्ड बदलने में कठिन होते हैं, इसलिए कानूनी और नैतिक रूप से अधिक विश्वसनीय भी।
जन्म प्रमाणपत्र हासिल करना एक मुसीबत
लेकिन इस निर्णय के साथ एक सामाजिक सच्चाई भी सामने आती है- हमारे देश में अभी भी करोड़ों लोग ऐसे हैं जिनके पास जन्म प्रमाण पत्र नहीं है। ग्रामीण क्षेत्रों में घर पर हुए जन्मों का पंजीकरण लंबे समय तक उपेक्षित रहा। ऐसे लोगों के लिए यह बदलाव एक नया बोझ बनकर आ सकता है। देर से जन्म पंजीकरण की प्रक्रिया आज भी कई जगह धीमी, जटिल और कभी-कभी भ्रष्टाचार से प्रभावित है। यदि सरकार इस बदलाव को वास्तव में सफल बनाना चाहती है, तो उसे जनगणना की तरह एक व्यापक जन्म-पंजीकरण अभियान भी चलाना होगा। स्कूलों, पंचायतों और नगर निकायों को सक्रिय सहयोग देना होगा ताकि कमजोर वर्ग इस प्रणाली से बाहर न रह जाएं।
पहचान और जन्म का रिकॉर्ड अलग होना ज़रूरी
यह भी उतना ही सच है कि आधार को जन्म तिथि का दस्तावेज़ बनाना मूल ही गलत था। पहचान और जन्म के रिकॉर्ड को अलग-अलग रखना किसी भी आधुनिक प्रशासन की बुनियादी आवश्यकता है। आज का कदम इसी अंतर को स्पष्ट करता है। इस निर्णय का स्वागत करते हुए यह याद रखना होगा कि प्रशासनिक सुधार तभी सफल होते हैं, जब उनका सामाजिक ढांचा तैयार हो। नागरिकों को भी दस्तावेज़ों की जिम्मेदारी समझनी होगी, और सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि आवश्यक रिकॉर्ड प्राप्त करना सरल, सुलभ और पारदर्शी हो। अंततः यह कदम एक संदेश देता है- पहचान और जन्म दो अलग सत्य हैं, और सत्य वही है जो प्रमाणित हो सके।
दस्तावेज़ों की विश्वसनीयता और पारदर्शिता के लिए अहम कदम
उत्तर प्रदेश सरकार का यह कदम दस्तावेज़ों की विश्वसनीयता और प्रशासनिक पारदर्शिता बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है। हालांकि शुरुआती स्तर पर इससे लोगों को परेशानी होगी। विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को, लेकिन लंबे समय में यह व्यवस्था को मजबूत करेगा। आधार आधारित पहचान प्रणाली अत्यंत सफल रही है, पर इसे जन्म तिथि जैसे संवेदनशील और कानूनी प्रमाण से जोड़ना हमेशा विवादित रहा। अब समय है कि नागरिक भी दस्तावेज़ों का सही रख-रखाव करें और जन्म प्रमाण पत्र को प्राथमिक रिकॉर्ड की तरह सुरक्षित रखें।
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