कहने के लिए तो मुंबई को खुले में शौच मुक्त करार कर दिया गया है, ना सिर्फ मुंबई बल्कि देश के कई ऐसे शहर है जो सरकारी फाइलों में स्वच्छ भारत तो हो गये है लेकिन क्या वाकई में सही मायने में स्वच्छता को लेकर लोगों में जागरूकता आई है, क्या वाकई में हमारे शहर, हमारे गांव, हमारे मोहल्ले स्वच्छ हुए है, सवाल कई है लेकिन जवाब सिर्फ यही है कि स्वच्छता मिशन भले ही पीएम मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट हो लेकिन स्वच्छ भारत मिशन को ठेंगा दिखाया जा रहा है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब लाल किले से स्वच्छ भारत का सपना पूरे देश को दिखाया था तब ऐसा लगा था कि अब भारत देश को स्वच्छ भारत बनने से कोई नही रोक सकता, लेकिन अभी भी राह में कई रोड़े है। पीएम नरेंद्र मोदी ने खुद झाड़ू उठाकर साफ़ सफाई का बीड़ा उठाया, इस मिशन से कई सेलिब्रिटी को भी जोड़ा, लावलश्कर को देखते हुए कॉर्पोरेट कंपनियों ने ना सिर्फ इस मिशन का समर्थन किया बल्कि अपना खजाना स्वच्छ भारत कोष के सामने खोलकर रख दिया।
कॉर्पोरेट सोशल रेस्पोंसिब्लिटी के तहत स्वच्छ भारत मिशन के लिए कॉर्पोरेट कंपनियों ने पैसों की ऐसी बारिश की कि करोड़ों रुपयों का फंड तो आ गया लेकिन इसका इंप्लीमेंटेशन कितना हुआ ये किसी रहस्य से कम नहीं, स्वच्छ भारत अभियान के माध्यम से महात्मा गांधी की 150वीं जयंती यानि साल 2019 तक स्वच्छ भारत का लक्ष्य हासिल करने के लिए 15 अगस्त, 2014 को पीएम मोदी के आव्हान पर कॉरपोरेट क्षेत्र से सीएसआर फंड पाने के लिए स्वच्छ भारत कोष की स्थापना की गई थी। कॉर्पोरेट घरानों ने इस स्वच्छ भारत कोष में पिछले तीन सालों में 673 करोड़ रुपये जमा कराये है। साल 2015 -16 में स्वच्छ भारत कोष में 253.03 करोड़ रुपये, साल 2016-17 में 244.72 करोड़ रुपये और साल 2017-18 में 175.32 करोड़ रुपये जमा हुए है। गौरतलब है कि ये जानकारी पेयजल एवं स्वच्छता राज्य मंत्री रमेश चंदप्पा ने संसद को दी है।
सरकार की माने तो ये करोड़ों रुपये स्कूलों में टॉयलेट्स और स्वच्छता के लिए इस्तेमाल किये जायेंगे, स्वच्छता को लेकर भले ही सरकारी दावे कुछ भी हो लेकिन जमीनी हक़ीक़त में कोई बदलाव देखने को नहीं मिल रहा है। देश को खुले में शौच से मुक्त भारत बनाने के लिए 9,000 करोड़ रुपए की महत्वाकांक्षी योजना स्वच्छ भारत अभियान के तहत अगले साल 2 अक्टूबर तक 1.20 करोड़ टॉयलेट्स बनाने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन हाल में हुए एक सर्वे में इसकी प्रगति पर कई सवाल उठाए गए। एनएसएसओ की ओर से तैयार किए गए स्वच्छता रिपोर्ट के अनुसार, आज भी देश की आधी से ज्यादा ग्रामीण आबादी यानि 55.4 फीसदी खुले में शौच करती है। कुल मिलाकर आज भी भारत में 62.6 करोड़ यानि 626 मिलियन आबादी खुले में शौच करती है। ऐसे में हम कैसे कह सकते है कि हमारा देश मिशन क्लीन इंडिया की और अग्रसर हो रहा है, रही बात स्वच्छता की तो ये तो स्वच्छ सोच और स्वच्छ आदतों के बाद ही आएगी।