उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के 4 साल पूरे हो गए है, अगले साल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को जनता के बीच जाकर फिर से अपने लिए वोट मांगना है लिहाजा यूपी में एक साल पहले से ही चुनावी सरगर्मी तेज हो गयी है। बेरोजगारी, निवेश, कानून व्यवस्था जैसे के मसले पर हमेशा से ही उत्तर प्रदेश सवालों के घेरे में होती है इसलिए 4 साल पूरा होते ही मुख्यमंत्री और उनकी पूरी कैबिनेट जनता के सामने जाकर अपनी उपलब्धियां गिना रही है। ताकि जनता के बीच बीजेपी सरकार को लेकर एक कॉन्फिडेंस रहे। लखनऊ में योगी आदित्यनाथ ने प्रेस को सम्बोधित कर अपने सरकार के कामकाज और फैसले की जानकारी दी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) ने लखनऊ में सरकार के चार साल पूरे होने पर सरकार की उपलब्धियों को शामिल करते हुए ‘विकास पुस्तिका’ भी जारी की।
योगी आदित्यनाथ राज में रोजगार का क्या है हाल (Employment in UP)
सिर्फ उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) ही नहीं, पूरे देश में युवाओं में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है, केंद्र की मोदी सरकार हो या फिर यूपी की योगी सरकार, रोजगार के आकड़ों को हमेशा भुनाया जाता रहा है। बेरोजगारी को लेकर हम हमेशा सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन देखते रहते है। हालही ही में रोजगार को लेकर ट्विटर पर एक मुहीम भी चलायी गयी। इन सब को देखते हुए अपने विकास की किताब में योगी आदित्यनाथ ने रोजगार को तरजीह दी है। रोजगार को लेकर योगी के दावों की मानें तो पिछले 4 सालों में योगी सरकार का सबसे ज्यादा जोर रोजगार पर रहा है।
योगी सरकार ने 4 साल में चार लाख नौकरी नौकरियां दी है। इसमें लॉकडाउन के दौरान दूसरे राज्यों से घर लौटने वाले लोगों को स्थानीय स्तर पर रोजगार देना उनकी बड़ी उपलब्धियों में से एक है। इस तरह से एसएमएसई सेक्टर में पिछले 4 सालों में 50 लाख से ज्यादा नई इकाइयां स्थापित कर लोगों को रोजगार से जोड़ा गया है। निजी क्षेत्र में भी लाखों लोगों को रोजगार देने का दावा उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने किया है उधर रोजगार के मुद्दे पर विपक्षी दल के नेताओं ने योगी सरकार पर तीखा प्रहार किया।
यूपी सरकार में निवेश (Investment in UP)
उत्तर प्रदेश में कॉर्पोरेट्स निवेश इसलिए नहीं करते क्योंकि निवेश करने के लिए कॉर्पोरेट्स को भयमुक्त वातावरण चाहिए। उत्तर प्रदेश में आपराधिक घटनाओं की वजह से ना यहां निवेश आता है और ना कोई दूसरे इंडस्ट्रीज। लेकिन योगी सरकार ने दावा किया है कि उत्तर प्रदेश में निवेश के अवसर बढ़ें हैं। उद्योग विभाग के आकड़ों के अनुसार, बीते करीब साढ़े तीन सालों में एक लाख 88 हजार करोड़ रुपये का निवेश उत्तर प्रदेश में हो रहा है। इसमें इलेक्ट्रॉनिक और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में करीब 40 हजार करोड़ रुपये का निवेश हो रहा है।
सीएसआर (CSR) के मामले में यूपी (Uttar Pradesh) फिसड्डी
सामाजिक बदलाव के लिए सीएसआर यानी कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (Corporate Social Responsibility) बहुत मददगार साबित होता है लेकिन उत्तर प्रदेश में सीएसआर फिसड्डी साबित हो रहा है। इसका मुख्य कारण उद्योग जगत का यूपी में नहीं होना। भले ही यूपी की योगी सरकार निवेश के बड़े बड़े आकड़े दिखा रही हो लेकिन धरातल पर इन निवेशों को नौकरियों और औद्योगिक इकाईयों में बनने के लिए अभी वक़्त लगेगा। निवेश को लेकर ये कॉर्पोरेट्स भले हामी भरे हो लेकिन अभी तक मैन्युफैक्चरिंग की शुरुआत नहीं हुई है। यही कारण है कि ये कॉर्पोरेट्स अपने सीएसआर फंड का इस्तेमाल अपने यूनिट्स और जहां ये कॉर्पोरेट्स काम कर रही है वहां सीएसआर के निवेश नहीं कर रही है।
सीएसआर एक्सपेंडिचर में यूपी नहीं है टॉप टेन में (Top 10 CSR State)
उत्तर प्रदेश में निवेश के साथ साथ सीएसआर पर खर्च भी कम है, यूपी सीएसआर खर्च के मामले में टॉप टेन की लिस्ट में नहीं है। यानी देश की कॉर्पोरेट्स जिन जिन राज्यों में सबसे ज्यादा सीएसआर खर्च करती है, उस टॉप 10 की लिस्ट में यूपी (UP) का नाम नहीं है। सीएसआर खर्च पर जारी सरकारी आकड़ों की माने तो महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा सीएसआर खर्च किया जाता है, वही उत्तर प्रदेश में सीएसआर खर्च बहुत पीछे है। देश की तमाम कंपनीज अपने सीएसआर का खर्च करती है और साल 2019-20 (30 सितम्बर 2020 तक) का महाराष्ट्र में ये आकड़ा है 1313 करोड़ है वही उत्तर प्रदेश में ये अकड़ा महज 39 करोड़ ही है।
देश में यूपी दूसरे नंबर की इकोनॉमी वाला राज्य
उत्तर प्रदेश की पहचान एक बीमारू राज्य के तौर पर थी, लेकिन पिछले चार सालों में सूबे की आर्थिक स्थिति में काफी सुधार आया है। 2017 से पहले प्रदेश सरकार का बजट दो लाख करोड़ तक होता था, जो साल 2021 में बढ़कर साढ़े 5 लाख करोड़ पहुंच गया है। यूपी 2015-16 में 10.90 लाख करोड़ की जीडीपी वाला राज्य था, लेकिन अब 21.73 लाख करोड़ की जीडीपी के साथ देश मे दूसरे नम्बर की अर्थव्यवस्था वाला राज्य बन कर उभरा है।
कोरोना से निपटने में अव्वल रही योगी सरकार (Corona in UP)
उत्तर प्रदेश देश में सबसे बड़ी जनसंख्या वाला राज्य है, बावजूद इसके कोरोना संक्रमण के दौरान योगी सरकार ने बड़ी मुस्तैदी के साथ इससे निपटा है और उसे नियंत्रित किया है। सीएम योगी ने कोरोना को सूबे में फैलने से रोकने के लिए टीम-11 बनाकर पहले कोविड केयर फंड का ऐलान किया था। इसका नतीजा था कि दूसरे राज्यों की तुलना में यूपी में न तो कोरोना से बहुत लोगों की मौत हुई और न ही बहुत ज्यादा फैला। कोरोना संकट के दौरान यूपी सरकार इससे निपटी ही नहीं बल्कि ‘चुनौतियों में अवसर तलाशे’ हैं और लॉकडाउन में लौटे लोगों की स्क्रीनिंग कर उन्हें स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध कराया गया है।
अपराधियों पर सख्त और दंगा मुक्त यूपी
योगी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक यूपी को दंगा मुक्त बनाने का भी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद लगातार कह रहे हैं कि हमारी उत्तर प्रदेश की सरकार को 4 साल हो गए हैं, लेकिन एक भी दंगा इन चार सालों के दौरान नहीं हुआ जबकि आप सब देख चुके हैं कभी ये राज्य दंगों की आग में जलता था, बता दें कि 2017 के पहले और अखिलेश सरकार में मुजफ्फरनगर से लेकर प्रतापगढ़ और मथुरा सहित कई जगह सांप्रदायिक दंगे हुए थे। मुजफ्फरनगर में बड़ी तादाद में लोगों अपने गांव और घरों को छोड़कर दूसरी जगह ठिकाना लिया था। वहीं, सूबे की कानून व्यवस्था को लेकर भी चुस्त और दुरुस्त होने का सरकार दावा कर रही है।
योगी सरकार के सामने चुनौतियां और 2022 चुनाव है योगी के लिए अग्निपरीक्षा
योगी आदित्यनाथ सरकार ने भले ही चार साल ही आसानी से पूरा कर लिया हो, लेकिन आगे की सियासी राह चुनौतियों भरी हैं। इसमें योगी के सामने सबसे बड़ी चुनौती सबका स्वीकार्य नेता बनने और उनका भरोसा जीतने की है। इसके अलावा अपने हिंदुत्व के रुख को बरकरार रखने के साथ-साथ विकास के पैमाने पर भी खरा उतरना होगा। सूबे में 2022 का विधानसभा चुनाव योगी के कामकाज और चेहरे पर होना है, ऐसे में उनकी आगे की राह काफी मुश्किलों भरी है। योगी सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती अगले साल शुरू में ही होने वाले 2022 का विधानसभा चुनाव है। 2014-2019 लोकसभा और 2017 का विधानसभा चुनाव पूरी तरह से पीएम मोदी के नाम और केंद्र सरकार के काम पर लड़ा गया था, लेकिन 2022 का विधानसभा चुनाव योगी के नाम और काम पर लड़ा जाना है।