World Sanskrit Day- विश्व संस्कृत दिवस, जिसे अंतररष्ट्रीय संस्कृत दिवस, संस्कृत दिवस और विश्व संस्कृत दिनम के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू कैलेंडर के श्रावण पूर्णिमा को मनाया जाता है, जिसे रक्षा बंधन के नाम से भी जाना जाता है, जो चंद्रमा से मेल खाता है। इस वर्ष, संस्कृत दिवस शनिवार 9 अगस्त को है। इस दिन का लक्ष्य भारत की प्राचीन भाषाओं में से एक, संस्कृत के बारे में जागरूकता बढ़ाना और उसका प्रचार करना है। संस्कृत इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह साहित्य, दर्शन, गणित और विज्ञान जैसे क्षेत्रों में शास्त्रीय ग्रंथों के लिए आधार प्रदान करती है।
अनंतकालीन सभ्यता से जुड़ी है संस्कृत की जड़ें
संस्कृत भाषा का इतिहास लाखों साल पुराना है। इस भाषा की उत्पत्ति कहां से और कैसे हुई, इसके बारे में कोई सही तथ्य उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन इस भाषा की जड़ें अनंतकाल से जुड़ी है। भारत की संस्कृत भाषा से वर्तमान समय की सेकड़ों भाषाओं की उत्पत्ति मानी जाती है। ग्रंथों की बात करें, तो सबसे प्राचीन संस्कृत ग्रन्थ ॠग्वेद है जो कम से कम ढाई हजार ईसापूर्व की रचना है। इससे आगे की खोज की जा रही है। संस्कृत केवल एक भाषा ही नहीं, बल्कि अपने आप में शब्द और ज्ञान का सागर है। संस्कृत एक ऐसी भाषा है जो Indo-Aryan समूह से संबंधित है और सभी भारतीय भाषाओं की जड़ है। लेकिन विडंबना यह है कि आज के समय में संस्कृत 1 प्रतिशत से भी कम भारतीयों द्वारा बोली जाती है। ज्यादातर धार्मिक समारोहों के दौरान हिंदू पुजारियों द्वारा इसका उपयोग किया जाता है। यह केवल एक भारतीय राज्य उत्तराखंड में आधिकारिक भाषाओं में अब भी शामिल है।
शिक्षक और छात्र, दोनों की कमी
पिछली जनगणना के अनुसार अरबों लोगों में से केवल 14,000 लोगों ने संस्कृत को अपनी प्राथमिक भाषा के रूप में वर्णित किया। देश के उत्तर-पूर्व, उड़ीसा, जम्मू और कश्मीर, तमिलनाडु, केरल और यहां तक कि गुजरात में लगभग कोई भी वक्ता नहीं था। स्कूलों में, इसे केवल एक वैकल्पिक भाषा के रूप में पेश किया जाता है। अधिकांश छात्र फ्रेंच, जर्मन और यहां तक कि मंदारिन को चुनना पसंद करते हैं, जिन्हें दुनिया में अधिक उपयुक्त माना जाता है। आज ऐसा लगता है मानों सभी भाषाओं को जन्म देने वाली संस्कृत बूढ़ी हो गयी है और अब यह सम्मान के लिए घर के अंदर शो पीस की तरह है। किसी भी सरकार ने संस्कृत भाषा के विस्तार के लिए कोई पुख्ता कदम नहीं उठाएं हैं, न ही इसे पढ़ाने पर ज़ोर दिया गया है।
‘संस्कृत’ का अर्थ
संस्कृत को हिंदू धर्म में प्राचीन भाषा के रूप में माना जाता है, जहां इसे हिंदू आकाशीय देवताओं और फिर इंडो-आर्यों द्वारा संचार और संवाद के साधन के रूप में इस्तेमाल किया गया था। जैन, बौद्ध और सिख धर्म में भी संस्कृत का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। ‘संस्कृत’ शब्द उपसर्ग ‘सम’ अर्थात ‘सम्यक’ के संयोजन से बना है जो ‘संपूर्ण’ होने की ओर इशारा करता है, और ‘कृत’ जो ‘पूर्ण’ को इंगित करता है। एक विशाल शब्दावली के साथ एक असाधारण जटिल भाषा, आज भी पवित्र ग्रंथों और भजनों के पढ़ने में इसका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
उत्पत्ति और शुद्धता
संस्कृत भाषा को देव-वाणी (देवताओं की वाणी) के रूप में जाना जाता था, क्योंकि ऐसा माना जाता था कि इसे भगवान ब्रह्मा द्वारा उत्पन्न किया गया था। ब्रह्मा द्वारा धरती सहित आकाशीय ऊर्जा में रहने वाले ऋषियों को एक विद्या के तौर पर संस्कृत दी गयी। इन्हीं ऋषियों ने इस भाषा को धरती पर अमर किया। ऋषियों ने आपस में संचार के लिए संस्कृत भाषा का ही प्रयोग किया था। यह भाषा ऋषियों के शिष्यों के माध्यम से धरती पर फैलती गयी।
संक्षिप्त इतिहास
भारतीय रीति-रिवाजों के अनुसार, संस्कृत का कोई आरंभ या अंत नहीं माना जाता है, यह शाश्वत है। ऐसा माना जाता है कि इसे ईश्वर ने गढ़ा है और इसीलिए इसे पवित्र माना जाता है। इसका प्रयोग वेदों से शुरू होता है, जिसके बाद यह विभिन्न अन्य क्षेत्रों में अभिव्यक्ति का माध्यम बन गई। संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीनतम, वैज्ञानिक एवं सभी भाषाओं की जननी है। इसके सूत्रों एवं सिद्धांतों पर पूरी दुनिया टिकी है। पूरा खगोल शास्त्र, ज्योतिष विज्ञान इसी भाषा पर आधारित है। यहां तक कि हमारी प्राचीनतम आयुर्वेद इलाज की पद्धति का आधार भी यही भाषा है
भारत की अधिकांश भाषाओं से जुड़ी है
संस्कृत जिसे देववाणी भी कहते हैं, विश्व की प्राचीनतम लिखित भाषा है। आधुनिक आर्यभाषा परिवार की भाषाएं- हिंदी, बांग्ला, असमिया, मराठी, सिंधी, पंजाबी, नेपाली आदि इसी से विकसित तो हुई ही हैं, दक्षिण भारत के तेलुगु, कन्नड़ एवं मलयालम का भी संस्कृत से गहरा नाता है। माना जाता है कि इन भाषाओं की लगभग 80 प्रतिशत शब्दावली संस्कृत से आई है। और तो और, तमिल बनाम संस्कृत की राजनीति करने वालों को भी प्रतिष्ठित तुलनात्मक भाषाविज्ञानी प्रो. थॉमसबरो के शोधकार्य लोनवड्र्स इन संस्कृत (1946) और कलेक्टेड पेपर्स ऑन द्रविड़ियन लिंग्विस्टिक्स (1968) के बारे में जानना चाहिए। प्रो. थॉमसबरो के अनुसार संस्कृत के हजारों शब्द किंचित परिवर्तनों के साथ तमिल भाषा में मिल चुके हैं। इसी तरह संस्कृत ने बड़ी संख्या में तमिल से शब्द ग्रहण किए हैं। संस्कृत की इन्हीं विशेषताओं को देखते हुए ही बाबासाहेब आंबेडकर का मानना था कि संस्कृत पूरे भारत को भाषाई एकता के सूत्र में बांध सकने में सक्षम है। उन्होंने संविधान सभा में इसे भारत की राजभाषा बनाने तक का प्रस्ताव दिया था। संस्कृत एक तरफ हमें प्राचीन जड़ों से जोड़ती है तो दूसरी तरफ इसमें समकालीन और भविष्य की जरूरतों को भी साकार करने की संभावना है।
सभी वैदिक साहित्य संस्कृत में
संस्कृत भारत की एक प्राचीन और परिष्कृत भाषा है, जहां दुनिया की सबसे पुरानी पुस्तक, ऋग्वेद को संकलित किया गया था। विभिन्न विशेषज्ञों द्वारा वेदों का इतिहास 6500 ईसा पूर्व से 1500 ईसा पूर्व तक माना जाता है, जो यह सुझाव देता है कि संस्कृत उससे पहले ही अपनी अभिव्यंजक क्षमता तक पहुंच चुकी थी। ऐसा माना जाता है कि वेदों की भाषा विभिन्न बोलियों में मौजूद थी, जो आधुनिक संस्कृत से थोड़ी भिन्न थी, जिसे वैदिक संस्कृत के रूप में जाना जाता है। प्रत्येक वेद में प्रातिशाख्य नामक एक व्याकरण पुस्तक होती थी, जिसमें शब्द रूपों और अन्य व्याकरणिक पहलुओं का विस्तृत विवरण होता था। समय के साथ, कई व्याकरण विद्यालय उभरे। इस युग के दौरान, वेदों, ब्राह्मण-ग्रंथों, आरण्यकों, उपनिषदों और वेदांगों सहित साहित्य का एक समृद्ध संग्रह तैयार किया गया था, जिसे सामूहिक रूप से वैदिक साहित्य के रूप में जाना जाता है, जो वैदिक संस्कृत में लिखा गया है।
वेद-पुराणों की रचना संस्कृत में होने की वजह
सभी वेद और पुराण संस्कृत में इसलिए लिखे गए क्योंकि प्राचीन काल में संस्कृत, भारत की मुख्य भाषा थी और ज्ञान-विज्ञान का माध्यम थी। वेदों की रचना उसी काल में हुई थी, जब संस्कृत का प्रचलन था। इसके अलावा, संस्कृत को एक पवित्र और परिष्कृत भाषा माना जाता था, जो वेदों के गहन ज्ञान और आध्यात्मिक संदेश को व्यक्त करने के लिए उपयुक्त थी।
संस्कृत, भारत की सबसे पुरानी भाषाओं में से एक है और इसे देवनागरी लिपि में लिखा जाता है। प्राचीन काल में, संस्कृत ज्ञान, साहित्य, और धार्मिक ग्रंथों की भाषा थी। वेदों और पुराणों की रचना इसी भाषा में हुई थी। संस्कृत को एक पवित्र भाषा माना जाता था, जिसका उच्चारण और पठन-पाठन शुभ माना जाता था। वेदों को ईश्वर के शब्द माना गया था, इसलिए उन्हें संस्कृत में लिखना उचित माना गया। संस्कृत की संरचना और शब्दावली वेदों के गहन ज्ञान और आध्यात्मिक संदेश को व्यक्त करने के लिए उपयुक्त मानी गई। वेदों को पहले मौखिक रूप से प्रसारित किया जाता था, और बाद में उन्हें लिपिबद्ध किया गया। उस समय संस्कृत का व्यापक उपयोग होता था, अतः वेदव्यास ने वेदों को चार भागों में संकलित किया और उन्हें संस्कृत में ही लिखा।
इसलिए, वेदों और पुराणों का संस्कृत में लिखा जाना, उस समय की भाषा और संस्कृति का प्रतिबिंब है, और साथ ही, इन ग्रंथों की पवित्रता और गहनता को व्यक्त करने का एक माध्यम भी है।
संस्कृत कभी लुप्त नहीं हो सकती
भारत की जनगणना के अनुसार संस्कृत बोलने वालों की संख्या भले ही कम हो, लेकिन यह पूरी तरह से विलुप्त नहीं हुई है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में लगभग 24,821 लोग संस्कृत को अपनी पहली भाषा के रूप में बोलते है। हालांकि यह संख्या बहुत कम है, लेकिन इसमें पिछले कुछ सालों से बढ़ोतरी भी देखी गई है। 2001 की जनगणना में यह संख्या 14,135 थी। कुछ गांव और कस्बे, जैसे उत्तराखंड में डिम्मर गांव, कर्नाटक में मत्तूर और मध्य प्रदेश में झिरी ऐसे भी हैं जहां लोग दैनिक जीवन में संस्कृत का उपयोग करते हैं। संस्कृत केवल एक भाषा नहीं है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर भी है। भारत सरकार और कई गैर-सरकारी संगठन इसके संरक्षण के लिए कई प्रयास कर रहे हैं।
संरक्षण के प्रयास
आज भी भारत और दुनिया भर के कई विश्वविद्यालयों में संस्कृत की पढ़ाई होती है। कई राज्यों में संस्कृत को स्कूलों में एक अनिवार्य या वैकल्पिक विषय के रूप में पढ़ाया जाता है। भारत में कई विश्वविद्यालय हैं जो संस्कृत के लिए समर्पित हैं, जैसे उत्कल विश्वविद्यालय और राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय। इन जगहों पर संस्कृत के विभिन्न पहलुओं पर शोध और शिक्षण होता है। शिक्षा मंत्रालय और संस्कृत विश्वविद्यालय जैसे संस्थान संस्कृत के प्रचार-प्रसार और शोध के लिए विशेष रूप से काम करते हैं, जिनके लिए बजट का प्रावधान अलग से किया जाता है। संस्कृत के संरक्षण और विकास के लिए कई सरकारी और गैर-सरकारी संस्थान काम कर रहे हैं और इन संस्थानों को सरकार द्वारा अलग से अनुदान दिया जाता है।
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