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मजदूर दिवस – कोरोना में कौन लेगा मजदूरों की सुध?

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हम हर साल 1 मई को मजदूर दिवस मानते है। 1 मई को मजदूरों के हक़ की बात करते है। हम मजदूरों के हितों की सुरक्षा की बात करते है। लेकिन जैसे ही ये विशेष दिवस खत्म, मजदूरों के हक़ की बात खत्म, मजदूरों के हितों की बात ख़त्म। कोरोना मजदूरों के लिए अभिशाप बन गया है। पिछले दो सालों से मजदूरों की हालात खराब होती जा रही है। मजदूरों का रोजगार छिन रहा है। महामारी के डर से मजदूर पलायन कर रहे हैं। अपने अपने राज्यों में लौट रहे है। 2020 में भी मजदूरों पर कोरोना का कहर बरपा था। मजदूर दिन रात पैदल ही अपने गांव लौट गए थे।

कोरोना की दूसरी लहर ने मजदूरों को फिर से किया मजबूर

कुछ महीने के बाद जिंदगी पटरी पर आने लगी थी, मगर कोरोना की दूसरी लहर ने फिर से डरावनी कहानी लिखनी शुरू कर दी है। आज भी वह मंजर लोगों के दिलों को झकझोर देता है जब बेचारे मजदूर पैदल ही अपने गांव लौट रहे थे। मजदूरों की तस्वीरों को देखकर आज फिर से आत्मा सिहर जाती है। कोरोना काल में मजदूरों ने जो झेला है वह असहनीय दर्द रुला देता है। भूखे प्यासे दिन रात बिना डर के अपने घर सुरक्षित पहुंचे थे। मजदूरों के साथ रास्ते में दर्दनाक हादसे भी हुए। लेकिन मजदूरों की सुध कोई नहीं लेने वाला है।

Corona में लॉकडाउन से मजदूरों को सता रहा है बेरोजगारी का डर

वही मंजर एक बार फिर से देखने मिल रहा है। मजदूर फिर से पलायन करने को मजबूर है। बेरोजगारी का आलम है। सरकार है कि दावे तो बहुत करती है लेकिन आर्थिक मदद सिर्फ कागजों पर ही दिखता है। लॉकडाउन ने तो मजदूरों की कमर ही तोड़ कर रख दिया है। कुछ हालात संभलें ही थे की दूसरी लहर ने आर्थिक परिस्तिथियों को फिर से ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया कि बेबसी का आलम फिर से है।

ये है गौतम प्रसाद, उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर जिले में रहते है। उत्तर प्रदेश में भी कोरोना ने हाहाकार मचाया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जिले गोरखपुर से सटे संत कबीर नगर की भी हालत खराब है। पहले वीक एंड में लॉकडाउन था और अब इसे बढ़ाकर सोमवार तक कर दिया। कई सालों तक मुंबई में रहने के बाद गौतम प्रसाद को मुंबई रास नहीं आयी और अपने गांव लौटकर जूता चप्पल का व्यापार शुरू कर दिया। लेकिन कमाई बहुत अच्छी नहीं होता देख गौतम ने शादियों के कैटरर्स का साइड बिजनेस की शुरुआत की। लेकिन साल 2020 में लॉकडाउन लगा, वो भी ठीक शादियों के सीजन में। यही हाल इस साल का भी है। शादियों के सीजन में कैटरर्स से कमाई अच्छी हो जाती है। लेकिन शादी में जहां पहले 200 लोग शामिल होते थे अब 20 लोगों की ही इजाजत है। जिला प्रशासन और उत्तर प्रदेश सरकार से भी मजदूरों को कोई मदद नहीं मिल रही है।

यही हालात मुंबई के रहने शशिकांत जैसवार की भी है। तस्वीर में दाहिने तरफ है शशिकांत जैसवार जो पेशे से कारपेंटर है। मुंबई में किराये के मकान में पूरे परिवार के साथ रहते है। सीमित कमाई के साथ किसी तरह मुंबई जैसे महंगे शहर में गुजारा करते है। लेकिन जब पिछले साल लॉकडाउन लगा तो ये भी पूरे परिवार के साथ अपने गांव उत्तर प्रदेश पलायन कर लिए थे। पलायन करना मज़बूरी भी थी क्योंकि मुंबई में काम धंधा बंद हो गया था। आवाजाही बिलकुल ठप्प सी थी। हालात सुधरे तो फिर से पूरे परिवार के साथ मुंबई कमाने आ गए। 3 महीने में फिर से कोरोना ने अपने पैर पसारने शुरू किये और आलम फिर से लॉकडाउन के हो गए है। किसी तरह रिस्क लेकर काम पर जा रहे है। अब शशिकांत कहते है कोरोना से बच गए तो भूख से मर जायेंगे।

कोरोना के इस आपातकाल में कौन लेगा मजदूरों की सुध?

हम केवल मात्र एक दिन मजदूरों के हितों को सुरक्षित करने के लिए बड़ी बड़ी बातें करते है। गौतम प्रसाद को ना उत्तर प्रदेश सरकार ने कोई मदद की ना शशिकांत की महाराष्ट्र सरकार ने मदद की। दावे तो यूपी और महाराष्ट्र सरकार द्वारा बराबर किए जाते हैं कि मजदूरों के साथ सरकार खड़ी है लेकिन असलियत कुछ और होता है। ऐसे में सवाल जरूर उठता है कि आखिरकार कोरोना के इस आपातकाल में कौन लेगा मजदूरों की सुध?