कर्नाटक में सत्ता-साझेदारी को लेकर बड़ा संकेत! शिवकुमार का Cryptic संदेश- ‘Word Power is World Power’| सिद्धारमैया बोले- दिल्ली जाऊंगा, फैसला हाई कमांड का !
डी के शिवकुमार की ‘ख़ुफ़िया’ पोस्ट और सिद्धारमैया के साथ मुख्यमंत्री पद की खिचड़ी
कर्नाटक कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद को लेकर खींचतान तेज हो गई है। उप मुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार ने आज सुबह सोशल मीडिया पर एक रहस्यमयी पोस्ट शेयर करते हुए कहा, “Word power is world power. सबसे बड़ी ताकत अपने शब्द पर टिके रहने में है।” यह बयान ऐसे समय आया है जब मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने स्पष्ट कहा है कि वह जल्द ही दिल्ली जाकर पार्टी हाई कमांड से मुलाकात करेंगे। उन्होंने कहा, “अगर हाई कमांड चाहे तो मैं मुख्यमंत्री बना रहूंगा। जो भी निर्णय वे करेंगे, हम दोनों उसका पालन करेंगे।”
ಕೊಟ್ಟ ಮಾತು ಉಳಿಸಿಕೊಳ್ಳುವುದೇ ವಿಶ್ವದಲ್ಲಿರುವ ದೊಡ್ಡ ಶಕ್ತಿ! pic.twitter.com/klregNRUtv
— DK Shivakumar (@DKShivakumar) November 27, 2025
सूत्रों के मुताबिक, सरकार के आधे कार्यकाल पूरे होने के बाद सत्ता-साझेदारी पर बनी पुरानी समझ के चलते तनाव बढ़ गया है। कई विधायक दिल्ली पहुंच चुके हैं और दोनों तरफ से शक्ति-प्रदर्शन के संकेत मिल रहे हैं।कांग्रेस आलाकमान स्थिति पर नजर बनाए हुए है, जबकि प्रदेश में माहौल राजनीतिक रूप से बेहद गर्म हो चुका है। फिलहाल सबकी निगाहें दिल्ली की ओर टिकी हैं, जहां अगले कुछ दिनों में बड़ा फैसला होने की उम्मीद है।
क्या सत्ता का बदलाव होने वाला है?
क्या ‘पुरानी डील’ लागू की जाएगी?
क्या कांग्रेस सरकार तनाव के बावजूद स्थिर रहेगी?
कर्नाटक में सत्ता-साझेदारी का संग्राम
कर्नाटक की राजनीति एक बार फिर उथल-पुथल के उस मोड़ पर पहुंच गई है जहां “संकेत” शब्दों से ज़्यादा ताकतवर हो जाते हैं, और “समझौते” घोषणाओं से ज़्यादा शोर मचाते हैं। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उप मुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार के बीच सत्ता-साझेदारी को लेकर खींचतान कोई नई बात नहीं है, लेकिन इस बार इसका तापमान दिल्ली तक महसूस किया जा रहा है।
पृष्ठभूमि: 2023 की जीत और ‘आधे-आधे कार्यकाल’ का मौन समझौता
2023 में कांग्रेस की ऐतिहासिक जीत के बाद से ही पार्टी के भीतर सत्ता-साझेदारी की एक अनकही कहानी घूम रही है- सिद्धारमैया को पहला कार्यकाल, और आधा समय पूरा होने पर मुख्यमंत्री पद शिवकुमार के हवाले! यह “डील” कभी आधिकारिक रूप से घोषित नहीं हुई, परन्तु कर्नाटक कांग्रेस की राजनीति में यह किसी खुले रहस्य से कम भी नहीं रही। दोनों नेताओं की महत्वाकांक्षा, अनुभव, और जनाधार ने पार्टी को मजबूत किया, मगर यह भी उतना ही स्पष्ट है कि दोनों के समर्थक अपने-अपने नेताओं को चेयर में देखना चाहते हैं।
शिवकुमार का संकेत या दबाव? ‘Word Power is World Power’
डिप्टी सीएम शिवकुमार का हालिया Cryptic पोस्ट “Word power is world power. The greatest force is to keep one’s word.” ने पूरे राजनीतिक माहौल को गर्म कर दिया। उनका यह कथन सिर्फ एक विचार नहीं था, यह एक तंज था, एक याद दिलाना था, और शायद एक चेतावनी भी, कि जो समझौता हुआ था, उसकी समयसीमा समाप्त हो चुकी है। राजनीतिक शब्दों में कहें तो यह “नरम लहजे में कड़ा संदेश” था।
सिद्धारमैया का पलट संदेश: ‘निर्णय हाई कमांड का’
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने अपना रुख साफ किया- वे पद पर बने रहना चाहते हैं यदि हाई कमांड चाहे। यह बयान अपनी जगह सीधा है, लेकिन इसकी तहें गहरी हैं- वे अब भी खुद को सबसे मजबूत विकल्प मानते हैं। वे किसी दबाव में पद छोड़ने के मूड में नहीं दिखते, और वे यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि अंतिम निर्णय दिल्ली का होगा, न कि बेंगलुरु की खेमेबाज़ी का ! उनकी ओर से यह संदेश शिवकुमार को उतना ही था, जितना उनके समर्थक विधायकों को।
दिल्ली का दौरा- औपचारिकता या शक्ति-प्रदर्शन?
कांग्रेस के कई विधायक हाल के दिनों में दिल्ली पहुंचे। यह यात्रा महज़ ‘सम्पर्क अभियान’ नहीं थी। यह शक्ति-समीकरण का प्रदर्शन था। राजनीति में समर्थकों का दिल्ली पहुंचना अक्सर दो बातों का संकेत होता है-
1. बदलाव की तैयारी
2. दबाव की रणनीति
शिवकुमार ने सार्वजनिक रूप से भले कहा कि पार्टी में कोई भ्रम नहीं है, लेकिन उनके बयान और विधायकों की सक्रियता एक अलग कहानी बता रहे हैं।
असली सवाल: क्या सत्ता-साझेदारी लागू होगी?
कांग्रेस हाई कमांड की दुविधा साफ है-
सिद्धारमैया एक लोकप्रिय और अनुभवी नेता हैं,
शिवकुमार संगठन और संसाधन दोनों स्तर पर बेहद ताकतवर हैं,
पार्टी सरकार को अस्थिर दिखाना नहीं चाहती, लेकिन वादा टूटने से असंतोष बढ़ सकता है। इस परिस्थिति में कोई भी फैसला पार्टी के लिए जोखिम भरा है- पद परिवर्तन हो तो असंतोष, न हो तो भी असंतोष।
कर्नाटक की राजनीति का असली मोड़
कर्नाटक में कांग्रेस की सत्ता अब आधे रास्ते पर है। अगर हाई कमांड समय रहते समाधान नहीं निकालती तो सरकार की स्थिरता प्रभावित हो सकती है। विपक्ष को बड़ा मौका मिल सकता है और पार्टी की छवि “आंतरिक लड़ाई” वाली बन सकती है। यह वही स्थिति है जहां राजनीतिक गलियारे फुसफुसाते हैं- “सत्ता से बड़ी सिर्फ सत्ता की इच्छा होती है।”
शब्दों का वादा और कुर्सी का भविष्य
शिवकुमार का Cryptic संदेश और सिद्धारमैया की संयमित प्रतिक्रिया, दोनों इस बात का संकेत हैं कि मामला सरल नहीं है। कुर्सी की राजनीति हमेशा शतरंज की चालों की तरह होती है, एक कदम, कई अर्थ! कर्नाटक कांग्रेस अब अपने सबसे महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ी है- या तो वह अपने वादों की लाज रखेगी, या यह मतभेद चुनाव से पहले एक नए संकट का रूप ले लेगा। दिल्ली का अगला फैसला केवल मुख्यमंत्री तय नहीं करेगा,बल्कि आने वाले वर्षों में कांग्रेस की विश्वसनीयता, रणनीति और भविष्य को भी परखेगा।
Long or Short, get news the way you like. No ads. No redirections. Download Newspin and Stay Alert, The CSR Journal Mobile app, for fast, crisp, clean updates!

