150 किसानों के सामूहिक प्रयास से उपजा हरियाली का चमत्कार, अब हर पेड़ देगा आमदनी और पर्यावरण को नई सांस ! बांका के 150 किसानों ने यह साबित कर दिया है कि अगर इच्छाशक्ति और सामूहिक प्रयास हो, तो बंजर धरती भी सोना उगा सकती है। बिहार के बांका जिले में स्थित आम के बागान अब केवल हरियाली नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता और आशा के प्रतीक बन चुके हैं।
बंजर से बाग़ तक- बांका के किसानों ने बदली जिले की पहचान
बिहार के बांका ज़िले के किसानों ने एक ऐसी मिसाल पेश की है, जो पूरे राज्य ही नहीं, बल्कि देशभर के किसानों के लिए प्रेरणा बन रही है। यहां के करीब 150 किसानों ने मिलकर लगभग 200 एकड़ बंजर पड़ी ज़मीन को हरे-भरे आम के बागानों में बदल दिया है। यह पहल न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बना रही है बल्कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी महत्वपूर्ण कदम साबित हो रही है। बांका के धोरैया, कटोरिया और बेलहर ब्लॉक के किसानों ने कई वर्षों तक इस ज़मीन को अनुपयोगी मान लिया था। बरसात के मौसम में यह ज़मीन दलदली हो जाती थी, और गर्मी में फट जाती थी। लेकिन 2022 में स्थानीय कृषि विभाग की मदद से किसानों ने सामूहिक रूप से इसे “हरित क्रांति अभियान” के तहत बागवानी परियोजना में बदलने का निर्णय लिया।
अब फलों से लदे पेड़ों की हरियाली
कृषि विशेषज्ञों ने मिट्टी की जांच कर उसमें सुधार के उपाय सुझाए। जैसे कि जैविक खाद का उपयोग, सिंचाई के लिए ड्रिप सिस्टम और मृदा संरक्षण हेतु मेंड़बंदी। धीरे-धीरे यहां आम के पौधों की रोपाई शुरू की गई। आज स्थिति पूरी तरह बदल चुकी है। किसानों द्वारा लगाए गए दशहरी, लंगड़ा, मालदा और अम्रपाली प्रजाति के हजारों आम के पेड़ अब बड़े होकर लहलहा रहे हैं। इन पेड़ों से अगले दो वर्षों में व्यावसायिक स्तर पर फल मिलने की उम्मीद है।किसानों का कहना है कि अब वे न केवल आम की बिक्री से आमदनी अर्जित करेंगे, बल्कि आम की नर्सरी, मधुमक्खी पालन और जैविक खाद उत्पादन जैसी सहायक गतिविधियों से भी आय बढ़ा पाएंगे।
ख़ुशहाली की कहानी, किसानों की जुबानी
कटोरिया प्रखंड के किसान ललन मंडल कहते हैं, “पहले यह ज़मीन बेकार थी, लेकिन अब हर पौधा हमारी उम्मीद है। सरकार की तकनीकी मदद और सामूहिक मेहनत से हमने बंजर धरती को हरियाली में बदल दिया।” वहीं महिला किसान सुनीता देवी बताती हैं, “अब गांव के युवाओं को बाहर जाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। हमारे गांव में ही रोजगार के अवसर बन रहे हैं।”
सरकार और कृषि विभाग का सहयोग
बांका जिला कृषि पदाधिकारी के अनुसार, इस परियोजना को “मुख्यमंत्री बागवानी मिशन” और “राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY)” के तहत सहायता दी गई। किसानों को पौध, जैविक खाद, सिंचाई उपकरण और प्रशिक्षण उपलब्ध कराया गया। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि इस तरह की बागवानी परियोजनाएं ग्रामीण भारत की तस्वीर बदल सकती हैं। वे कहते हैं कि बंजर ज़मीन का पुनरुत्थान न केवल किसानों की आमदनी दोगुनी कर सकता है, बल्कि जलवायु संकट से निपटने का भी सशक्त माध्यम है। इन बागानों ने क्षेत्र के जलवायु संतुलन को सुधारने में मदद की है। मिट्टी में नमी बनी रहती है, और पेड़ों की बढ़ती संख्या से कार्बन उत्सर्जन में कमी आई है। स्थानीय पर्यावरण प्रेमियों ने इसे “बांका की हरित क्रांति” का नाम दिया है।
सरकार का सहयोग, कृषि का विकास
किसानों के लिए खेती को सुगम, लाभकारी और तकनीकी रूप से सशक्त बनाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों ने कई योजनाएं चलाई हैं। नीचे प्रमुख कृषि सहायता योजनाओं की विस्तृत सूची दी जा रही है, जो विशेष रूप से बिहार जैसे राज्यों में भी लागू हैं। ये हैं भारत सरकार की प्रमुख कृषि सहायता योजनाएं –
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना (PM-KISAN)
उद्देश्य: किसानों को सीधी आर्थिक सहायता देना ,
लाभ: हर पात्र किसान परिवार को ₹6,000 प्रतिवर्ष (₹2,000 की तीन किस्तों में) सीधे बैंक खाते में,
लाभार्थी: छोटे और सीमांत किसान (2 हेक्टेयर तक ज़मीन वाले)।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY)
उद्देश्य: हर खेत तक पानी पहुंचाना (“हर खेत को पानी”)।
मुख्य लाभ: सूक्ष्म सिंचाई (ड्रिप और स्प्रिंकलर) पर 55–75 प्रतिशत तक सब्सिडी,
जल संरक्षण और नहर सुधार के कार्य।
खेत-तालाब और वर्षा जल संचयन को प्रोत्साहन।
परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY)
उद्देश्य: जैविक खेती को बढ़ावा देना।
लाभ: किसानों को समूह बनाकर जैविक खेती सिखाई जाती है।
₹50,000 प्रति एकड़ तक सहायता (इनपुट, प्रमाणन और विपणन सहित)।
राष्ट्रीय बागवानी मिशन (NHM) / मिशन फॉर इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ हॉर्टिकल्चर (MIDH)
उद्देश्य: फल, फूल, सब्ज़ी, मसाले और बागवानी फसलों का विकास।
लाभ: पौध, सिंचाई और बागवानी ढांचे पर 40 से 75 फ़ीसदी सब्सिडी।
कोल्ड स्टोरेज, पैकहाउस और प्रोसेसिंग यूनिट के लिए आर्थिक सहायता।
किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) योजना
उद्देश्य: किसानों को कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध कराना।
लाभ: फसली ऋण पर 4 प्रतिशत तक की ब्याज दर।
बीज, खाद, कीटनाशक, सिंचाई आदि पर तत्काल खर्च के लिए धन उपलब्ध।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY)
उद्देश्य: प्राकृतिक आपदा या कीट से फसल नुकसान पर सुरक्षा देना।
लाभ: किसानों को 2 प्रतिशत (खरीफ) और 1.5 प्रतिशत (रबी) प्रीमियम भरना होता है।बाकी राशि सरकार वहन करती है।
नुकसान पर सीधा बीमा भुगतान।
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY – RAFTAAR)
उद्देश्य: राज्यों को कृषि नवाचार और योजनाओं के लिए फंड देना।
लाभ: किसानों को प्रशिक्षण, स्टार्टअप फंड और तकनीकी सहायता।
बंजर भूमि सुधार, बागवानी और पशुपालन के लिए सहायता।
राष्ट्रीय गोपालन मिशन (RGM)
उद्देश्य: पशुपालन और दुग्ध उत्पादन में सुधार।
लाभ: डेयरी यूनिट, ठंडा गृह, चारा बैंक आदि पर सब्सिडी।
कृषि यांत्रिकीकरण योजना
उद्देश्य: किसानों को आधुनिक कृषि उपकरण सुलभ कराना।
लाभ: ट्रैक्टर, पावर टिलर, सीड ड्रिल, रोटावेटर आदि पर 40–60 प्रतिशत सब्सिडी।
कस्टम हायरिंग सेंटर (CHC) स्थापित करने में मदद।
प्रधानमंत्री कृषि ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (PM–KUSUM)
उद्देश्य: किसानों को सौर ऊर्जा से सिंचाई की सुविधा देना।
लाभ: सोलर पंप पर 60 प्रतिशत तक सब्सिडी ।
किसान अपनी अतिरिक्त बिजली ग्रिड में बेच सकते हैं।
बिहार सरकार की अतिरिक्त कृषि योजनाएं
मुख्यमंत्री बागवानी मिशन: फलदार पेड़ लगाने, नर्सरी तैयार करने और जैविक खाद के लिए आर्थिक सहायता। 75 प्रतिशत तक अनुदान उपलब्ध।
मुख्यमंत्री नीतिगत फसल प्रोत्साहन योजना: धान, गेहूं, मक्का, अरहर, मसूर जैसी फसलों पर बोनस और प्रोत्साहन राशि।
बिहार कृषि निवेश योजना: कृषि यंत्र, सिंचाई साधन और कोल्ड स्टोरेज निर्माण पर अनुदान।
किसान सहायता व जानकारी के लिए संपर्क-
कृषि हेल्पलाइन: 1800-180-1551
PM-KISAN हेल्पलाइन: 155261 या 011-24300606
Bihar Krishi Portal: https:// dbtagriculture.bihar.gov.in
हरियाली से आत्मनिर्भरता तक- बांका के किसानों बने मिसाल
बिहार के बांका ज़िले के 150 किसानों ने जिस तरह 200 एकड़ बंजर ज़मीन को आम के बागानों में बदल दिया है, वह केवल कृषि सफलता की कहानी नहीं, बल्कि ग्राम्य आत्मनिर्भरता की पुनर्प्रतिष्ठा है। आज जब देश जलवायु संकट, बेरोज़गारी और खेती की घटती लाभप्रदता से जूझ रहा है, ऐसे में यह पहल बताती है कि संकल्प और सामूहिकता से असंभव भी संभव हो सकता है। बांका की यह हरित यात्रा इस बात का प्रमाण है कि यदि किसानों को तकनीकी मार्गदर्शन, सरकारी सहायता और प्रशिक्षण मिले तो वे भूमि की प्रकृति बदल सकते हैं। वर्षों से उपेक्षित रही ज़मीन अब न केवल फसल देने लायक बनी है, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन में भी योगदान दे रही है। मिट्टी में नमी बढ़ी है, जलस्तर में सुधार हुआ है और हवा में हरियाली की सुगंध घुली है।
युवाओं को खेती की तरफ़ बढ़ने की प्रेरणा
यह परियोजना यह भी दिखाती है कि कृषि अब केवल खेती नहीं, एक उद्यम है। आम के बागानों से किसानों को केवल फलों से ही नहीं, बल्कि प्रसंस्करण, पैकेजिंग, और सहायक व्यवसायों से भी लाभ मिलेगा। यह मॉडल ग्रामीण युवाओं को खेती की ओर वापस लाने की प्रेरणा देता है। सरकार को चाहिए कि ऐसी सामूहिक बागवानी पहलों को राज्य-स्तरीय अभियान का रूप दिया जाए। हर जिले में “हरित ग्राम” की अवधारणा अपनाई जाए, जहां हर गांव कम से कम 10 एकड़ बंजर ज़मीन को बागवानी या वृक्षारोपण के लिए विकसित करे।
बांका के इन किसानों ने यह साबित कर दिया है कि धरती को केवल बीज नहीं, विश्वास चाहिए। जब किसान अपनी ज़मीन पर भरोसा करते हैं, तो बंजर भी खिल उठती है।
Long or Short, get news the way you like. No ads. No redirections. Download Newspin and Stay Alert, The CSR Journal Mobile app, for fast, crisp, clean updates!

