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August 5, 2025

भगवान शंकर का स्वरूप हैं नंदी, फिर क्यों मंदिर के बाहर होते हैं विराजमान

The CSR Journal Magazine
भगवान शिव का ध्यान करने से ही एक ऐसी छवि उभरती है जिसमें वैराग्य है। शिव के एक हाथ में त्रिशूल, वहीं दूसरे हाथ में डमरू, गले में सांप और सिर पर त्रिपुंड चंदन लगा हुआ है। किसी भी शिव मंदिर में भगवान शिव के पास ये चार चीजें हमेशा मिलती हैं। भगवान शिव की जटाओं में अर्ध चंद्रमा, जटाओं से निकलती गंगा, उनकी सवारी बैल आदि भगवान शिव को रहस्यमय बनाती हैं। आज इनमें से एक रहस्य को जानते हैं कि शिव के पास नंदी बैल कैसे आए और शिव के हर मंदिर के बाहर नंदी जी क्यों विराजते हैं!

शिलाद मुनि के पुत्र नंदी

पौराणिक कथा के अनुसार, पूर्वकाल में एक ऋषि थे जिनका नाम शिलाद था। शिलाद मुनि महान तपस्वी थे और ब्रह्मचर्य का पालन करते थे। एक बार उनके पितरों ने उनके समक्ष सपने में शिलाद मुनि के पुत्र को देखने की कामना जताई, जिसके बाद शिलाद मुनि ने इंद्र देव की तपस्या कर उनसे एक ऐसा पुत्र मांगा जो जन्म और मृत्यु के परे हो। इन्द्रदेव ने इस इच्छापूर्ति के लिए शिलाद मुनि को भगवान शिव की तपस्या करने का सुझाव दिया। शिलाद मुनि ने भगवान शिव की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया और शिलाद मुनि को भगवान शिव से यह वरदान प्राप्त हुआ कि शीघ्र ही महादेव उनके पुत्र के रूप में अवतरित होंगे, और हुआ भी ऐसा ही!

शिलाद मुनि को हुई पुत्र की प्राप्ति

भगवान शंकर के वरदान के कुछ समय पश्चात हल जोतते हुए धरती से एक बालक प्रकट हुआ। शिलाद मुनि ने उन्हें शिव का वरदान समझा और उसका नाम नंदी रखा। जैसे ही नंदी बड़े हुए, भगवान शंकर ने मित्र और वरुण नाम के दो मुनि शिलाद मुनि के आश्रम में भेजे जिन्होंने नंदी के अल्पायु होने की भविष्यवाणी की। नंदी को जब यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने मृत्यु को जीतने के लिए भगवान भोलेनाथ के कठोर तपस्या करने की ठानी और वन में जाकर शिव का ध्यान किया। भगवान शंकर नंदी की तपस्या से प्रसन्न हुए और शंकर के वरदान से नंदी मृत्यु, भय आदि से मुक्त हुए। भगवान शंकर ने माता पार्वती की सम्मति से संपूर्ण गणों और वेदों के समक्ष गणों के अधिपति के रूप में नंदी का अभिषेक करवाया। इस तरह नंदी नंदीश्वर में बदल गए।

भक्ति के सर्वोच्च स्तर का स्वरूप नंदी

भगवान शिव के अंश होने के कारण नंदी न सिर्फ अजर-अमर थे, बल्कि वह निर्भीक भी थे और भगवान शिव के अनन्य भक्त भी। भक्ति के सर्वोच्च स्तर को छूने के बाद भगवान शिव और माता पार्वती ने नंदी जी को संपूर्ण गणों का अधिपति बनाया जिसके बाद नंदी नंदीश्वर कहलाए। इस क्षण के कुछ समय बाद ही नंदी का विवाह हुआ। मरुतों की पुत्री सुयशा के साथ नंद ने गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया।
भगवान शिव ने नंदी को विवाह के उपलक्ष में भेंट स्वरूप यह वरदान दिया कि जहां भी नंदी होंगे, वहां भगवान शिव होंगे और जहां भगवान शिव का निवास होगा, वहां नंदी भी निवास करेंगे। इसी कारण से नंदी हर शिवालय के बाहर स्थापित हैं और शिव के साथ पूजे जाते हैं।

मंदिर के बाहर ही क्यों विराजते हैं नंदीश्वर

अब सवाल आता है कि आखिर नंदी भगवान शिव के मंदिर के बाहर या गर्भगृह के बाहर ही क्यों विराजते हैं। तो उसका पहला कारण यह है कि नंदी अपने इष्ट को हमेशा अपने नेत्रों के सामने देखना चाहते हैं इसी कारण से वह हमेशा शिव जी के सामने बैठते हैं। वहीं मंदिर से बाहर या गर्भगृह से बाहर बैठने का कारण भोले का विवाहित होना भी है। शिव जी विवाहित हैं। भले ही शिव मंदिर में भगवान शिव के साथ-साथ माता पार्वती की प्रतिमा हो या न हो, लेकिन अर्धनारेश्वर के रूप में वह हमेशा साथ ही हैं और एक दूसरे में समाए हुए हैं। इसी कारण से नंदी गर्भ गृह के अंदर या मंदिर के अंदर स्थापित नहीं हैं। क्योंकि उनके इष्ट के साथ नंदी जी की माता स्वरूप मां पार्वती भी विद्यमान हैं। तो इस कारण से हर शिव मंदिर के बाहर स्थापित हैं नंदी।

नंदी के दर्शन और महत्व

नंदी के नेत्र सदैव अपने इष्ट का स्मरण करते हैं। माना जाता है कि उनके नेत्रों से ही शिव की छवि मन में बसती है। नंदी के नेत्रों का अर्थ है कि भक्ति के साथ मनुष्य में क्रोध, अहम, दुर्गुणों को पराजित करने का सामर्थ्य न हो तो भक्ति का लक्ष्य प्राप्त नहीं होता है। नंदी पवित्रता, विवेक, बुद्धि और ज्ञान के प्रतीक माने जाते हैं। उनके जीवन का हर क्षण भगवान शिव को समर्पित है। नंदी महाराज मनुष्य को शिक्षा देते हैं कि मनुष्य को अपना हर क्षण परमात्मा को अर्पित करना चाहिए।
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