बारिश के बाद गड्ढों को भरने के लिए इस्तेमाल किया गया मैस्टिक एस्फाल्ट अब खुद एक खतरा बन चुका है। पूर्वी एक्सप्रेस हाईवे से लेकर सायन-किंग्स सर्कल तक सड़कें ऊंची-नीची हो गई हैं। BMC मिलिंग कर अस्थायी राहत देने में जुटी है, लेकिन बड़ा सवाल वही है- मुंबई की सड़कें बार-बार खराब क्यों होती हैं?
मुंबई की सड़कों की हालत: मैस्टिक से भरे गड्ढे बने नई मुसीबत, अब BMC कराएगी ‘मिलिंग’
भारत की आर्थिक राजधानी मानी जाने वाली मुंबई विश्वस्तरीय मेट्रो शहर है, लेकिन इसकी सड़कों की स्थिति आज भी नागरिकों के रोज़मर्रा जीवन को परेशानी में डाल रही है। हर साल बारिश के दौरान और बाद में शहर भर में गड्ढों की शिकायतें बढ़ जाती हैं। इस वर्ष गड्ढों की मरम्मत के लिए BMC ने मैस्टिक एस्फाल्ट का उपयोग किया, लेकिन यह उपाय खुद नया संकट बन गया है। सूखने के बाद मैस्टिक फूल जाता है, जिससे उभरे हुए पैच बनते हैं। अब कई प्रमुख सड़कें, खासकर ईस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे, बाबासाहेब अंबेडकर रोड और लक्ष्मीबाई केलकर रोड, ऊबड़-खाबड़ हो गई हैं और यात्रियों को झटके और दुर्घटना का जोखिम झेलना पड़ रहा है।
मैस्टिक एस्फाल्ट क्या है और समस्या कहां से शुरू हुई?
मैस्टिक एस्फाल्ट बिटुमेन के साथ पत्थर और चूना मिलाकर बनाया जाने वाला गाढ़ा मिश्रण है। इसे लगभग 200°C तापमान पर सड़क पर बिछाया जाता है। यह बारिश में जल्दी जमता है और तत्काल “पैचवर्क” के लिए उपयोगी माना जाता है। समस्या यह है कि मैस्टिक जमने के बाद फैलता (स्वेल) है। सड़क का तापमान कम होने पर यह सही से नहीं बिछता। नतीजतन कुछ ही दिनों में सड़क ऊंची नीची हो जाती है। जहां एक गड्ढा भरा गया, वहां आगे चलकर “छोटा स्पीडब्रेकर” जैसा उभार बन जाता है।
सबसे ज्यादा प्रभावित इलाके
इन सड़कों पर मरम्मत के बाद उभरे पैच सबसे ज्यादा परेशान कर रहे हैं-
ईस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे (EEH)
शहर की सबसे महत्वपूर्ण सड़क, जहां रोज़ लाखों वाहन गुजरते हैं। मैस्टिक पैच की वजह से तेज़ रफ़्तार वाहन झटके खाते हैं। दोपहिया वाहन असंतुलित हो जाते हैं। ब्रेक लगाने से रफ्तार कम होती है, जिससे ट्रैफिक जाम बनता है
बाबासाहेब अंबेडकर रोड
यहां फ्लाईओवरों के नीचे सड़कें बारिश के बाद ऊबड़-खाबड़ हो गई हैं, जिससे रात में खासकर खतरा बढ़ जाता है।
लक्ष्मीबाई केलकर रोड (सायन – किंग्स सर्कल क्षेत्र)
Everard Nagar से Matunga Circle तक 3 किमी लंबा हिस्सा सबसे ज्यादा खराब है। यात्री इसे “टूटी हुई रनवे” कहकर व्यंग्य करते हैं।
BMC का नया समाधान — मिलिंग
शिकायतों के बाद BMC अब “मिलिंग मशीन” से उभरती परत को खुरचने की तैयारी में है। मिलिंग- यानि सड़क की ऊपरी परत मशीन से काटकर समतल करना! मिलिंग कोई ठोस मरम्मत नहीं, सिर्फ अस्थायी राहतका तरीका है। इससे उभार खत्म होंगे, लेकिन सड़क मजबूत नहीं होगी। इस बारे में BMC का तर्क है कि, “अभी पूरी सड़क दुबारा नहीं बिछाई जा सकती, इसलिए फिलहाल मिलिंग की जाएगी। स्थायी समाधान बाद में किया जाएगा।”
आखिर मुंबई की सड़कें बार-बार क्यों टूटती हैं?
लगातार भारी ट्रैफिक– मुंबई की हर मुख्य सड़क पर रोज़ लाखों वाहन चलते हैं। भारी कंटेनर, डंपर और बसें सड़क की सतह को कमजोर करती हैं।
गलत निर्माण सामग्री- कई ठेकेदार कम गुणवत्ता वाला बिटुमेन और पत्थर उपयोग करते हैं। मनमानी मिलावट के कारण सड़क टिक नहीं पाती।
पानी निकासी की कमी– बरसात में यदि पानी सड़क पर जमा हो जाए तो बिटुमेन-सतह गलने लगती है। यही से गड्ढा बनना शुरू होता है।
वर्षों पुराना रोड नेटवर्क– मुंबई की कई सड़कें 30-40 साल पहले बनी थीं। अब उनकी संरचना पुराने जमाने की है जबकि ट्रैफिक कई गुना बढ़ चुका है।
ठेकेदार-निगम राजनीति– मरम्मत के टेंडर लगातार दिए जाते हैं। सड़कों के बार-बार खराब होने से “काम” और “ठेके” चलते रहते हैं – यह एक खुला रहस्य है।
कंक्रीट सड़कों की धीमी योजना– शहर में कई सड़कें कंक्रीट की बननी हैं, लेकिन पूरा काम कई सालों से लंबित है। तभी डामर की अस्थायी मरम्मत जारी रहती है।
नागरिकों की परेशानी- सड़क नहीं, झटका झेल रहे लोग
कार चालक धीरे चलने को मजबूर,
बाइक सवारों को झटका लगने से चोट का खतरा, गर्भवती महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों के लिए सफर बेहद असुविधाजनक,
एम्बुलेंस व फायर ब्रिगेड की गति भी कम हो जाती है,
कई लोग कहते हैं, “गड्ढों से बचो तो उभार से भिड़ो!”
BMC की सफाई और भविष्य की योजना
BMC अधिकारियों का कहना है कि मानसून में मैस्टिक ही एक तेज़ विकल्प होता है। जैसे ही मौसम स्थिर होगा, बड़े स्तर पर री-सर्फेसिंग (पूरी सड़क बदलना) किया जाएगा। आने वाले वर्षों में शहर की 50% सड़कें कंक्रीट बनाने का लक्ष्य है। मिलिंग सिर्फ तत्काल सुविधा के लिए है, स्थायी समाधान नहीं
मुंबई की सड़कें और नेता: सवाल ज़िम्मेदारी का, जवाब सिर्फ बयान का?
मुंबई की सड़कें एक बार फिर बहस के केंद्र में हैं। मानसून के बाद गड्ढे भरने के लिए BMC ने जिस मॅस्टिक एस्फ़ाल्ट का प्रयोग किया था, वही अब नई परेशानी बन चुका है। सूखते ही यह सामग्री फूल गई और सड़कें उभरी-खाबड़ हो गईं। अब “मिलिंग” की योजना बन रही है- यानी ऊपरी सतह को मशीन से खुरचकर उसे थोड़ा समतल बनाया जाएगा। यह अस्थायी समाधान है, स्थायी नहीं। लेकिन सवाल यह है कि इस समस्या पर हमारे स्थानीय नेताओं ने क्या किया? क्या उन्होंने सचमुच कार्रवाई की या सिर्फ बयान जारी कर अपनी भूमिका निभाई?
नेताओं की भूमिका: आरोप और बयानबाज़ी
मुंबई के कई विधायक और स्थानीय प्रतिनिधि समय-समय पर सड़क मरम्मत को लेकर BMC पर बयानबाज़ी करते रहे हैं। कुछ विपक्षी नेताओं ने सड़क निर्माण में भ्रष्टाचार और घटिया सामग्री के इस्तेमाल का आरोप लगाया है। कुछ ने कहा कि ठेकेदारों पर कार्रवाई की जानी चाहिए। लेकिन क्या सिर्फ आरोप लगाने से सड़कों की हालत सुधर जाती है? दिलचस्प बात यह है कि चुनावी मौसम आते ही सड़कें प्रमुख मुद्दा बन जाती हैं लेकिन चुनाव बीतते ही वही नेता जनता की पीड़ा की आवाज़ कम कर देते हैं।
समस्या सिर्फ BMC की नहीं, सिस्टम की है
मुंबई की सड़कें केवल एक विभाग के हाथ में नहीं हैं। BMC नगर सड़कें संभालती है, PWD, MMRDA और कुछ केंद्रीय संस्थाएं भी सड़क निर्माण और मरम्मत की ज़िम्मेदार हैं। परिणाम- जब सड़क टूटती है, कोई एक एजेंसी जवाबदेह नहीं होती। जनता शिकायत करे तो विभाग एक-दूसरे पर दोष मढ़ते हैं। स्थानीय नेता भी इसी ढांचे में काम करते हैं। वे BMC को कोसते हैं, BMC राज्य सरकार को, और राज्य सरकार केंद्र को। जनता गड्ढों में गिरती है, लेकिन जिम्मेदारी कहीं नहीं जाती।
कार्रवाई कहां है?
सच कहा जाए तो, कई नेता सिर्फ सोशल मीडिया पर वीडियो बनाकर खराब सड़कों की शिकायत करते हैं, प्रेस कॉन्फ़्रेंस में “गड्ढे भरने” के दावे होते हैं, शिकायतें और ट्वीट होते हैं- लेकिन कितने नेताओं ने ठेकेदारों पर कार्रवाई कराई? कितने ने सड़क टेंडर प्रक्रिया में पारदर्शिता की मांग की? कितनों ने नगर निगम की स्थायी समिति में यह मुद्दा उठाया? जवाब ज़्यादातर मामलों में ‘ना’ है।
जनता का दर्द, नेता की राजनीति
मुंबई की सड़कें सिर्फ असुविधा नहीं बल्कि खतरा हैं। दोपहिया वाहन सबसे अधिक जोखिम में हैं। कई लोगों की मौतें और गंभीर चोटें गड्ढों की वजह से हुई हैं। लेकिन क्या इन हादसों पर कोई नेता सड़क पर उतरा? क्या किसी ने जिम्मेदारी तय होने तक ठेकेदारों के भुगतान रुकवाए? अगर सड़कें हर साल टूट रही हैं, तो यह सिर्फ तकनीकी समस्या नहीं, शासन की नाकामी है।
क्या होना चाहिए?
एकीकृत सड़क प्रबंधन प्रणाली– शहर में सभी सड़कों का क़ानूनी और प्रशासनिक नियंत्रण एक ही संस्था के पास होना चाहिए।
ठेकेदार जवाबदेही मॉडल– सड़क टूटने पर उसी ठेकेदार से मरम्मत कराई जाए, भुगतान रोका जाए।
सड़क ऑडिट और रिपोर्ट सार्वजनिक हों।
जनप्रतिनिधियों की रेटिंग हो– किसने सड़क मुद्दे पर क्या काम किया, जनता जाने।
फुल रीसर्फेसिंग (पूरी सतह बदलना)- सड़क की ऊपरी 2-3 परतें हटाकर नया बेस बिछाना।
कंक्रीट सड़कें– डामर से सस्ती नहीं लेकिन कई वर्षों तक गड्ढा-रहित रहती हैं।
ड्रेनेज सुधार- जहां पानी जमा नहीं होगा, वहां सड़क जल्दी नहीं कटेगी।
कड़े ठेकेदार कानून– “5 वर्ष तक गड्ढा आने पर ठेकेदार जिम्मेदार” जैसे शर्तें लागू की जाएं।
मॉनिटरिंग टेक्नोलॉजी– सड़क निर्माण पर GPS आधारित निगरानी, मशीन से मोटाई मापने की व्यवस्था।
मुंबई कब तक सहेगी BMC के ‘झटके’
मुंबई की सड़क समस्या अब केवल गड्ढों की नहीं, व्यवस्थापन की समस्या बन चुकी है। मैस्टिक से किए गए पैच उभरकर नई परेशानी बन रहे हैं, और BMC को मिलिंग जैसे अस्थायी उपाय अपनाने पड़ रहे हैं। सच्चाई यह है कि अगर पहले से सही योजना बने, गुणवत्तापूर्ण सड़क निर्माण हो, जिम्मेदारी तय की जाए तो मुंबई दुनिया की किसी भी मेट्रो सिटी की तरह स्मूद, सुरक्षित और गड्ढा-रहित सड़कें पा सकती है। तब तक, मुंबईकरों को अपने रोज़मर्रा सफ़र में “झटका सहना ही पड़ेगा” चाहे वह ट्रैफिक का हो या सड़क की उबड़-खाबड़ सतह का!
मरम्मत नहीं, ज़िम्मेदारी की ज़रूरत
मुंबई की सड़कों को सिर्फ पिच और डामर की ज़रूरत नहीं, ज़िम्मेदारी की ज़रूरत है। जब तक स्थानीय नेता सिर्फ बयानबाज़ी करेंगे, ठेकेदार सिर्फ पैसा कमाएंगे और एजेंसियां एक-दूसरे पर दोष डालती रहेंगी, तब तक “मिलिंग” और “पैचवर्क” ही हमारी किस्मत है। मुंबई आज जिस सड़क पर चल रही है, वह नीतिगत गड्ढों और कमजोर नेतृत्व से भरी है। और जब तक जनता खुद सवाल नहीं पूछेगी- नेता और सिस्टम दोनों यही मानते रहेंगे कि मुंबई के लोग सड़क नहीं, सिर्फ भरोसा खो रहे हैं। सवाल बाकी है- मुंबई की सड़कों की हालत पर कौन जवाबदेह है? और कब तक जनता सिर्फ झटके खाती रहेगी?
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