अभिनेता से खेल अधिकारी बने राहुल बोस मुश्किल में हैं। उन पर आरोप है कि उन्होंने हिमाचल प्रदेश का सरकारी निवास प्रमाणपत्र यानि डोमिसाइल प्रमाणपत्र गलत तरीके से बनवाया। कहा जा रहा है कि उन्होंने यह प्रमाणपत्र रग्बी संगठन में बड़ा पद पाने के लिए लिया। अब यह मामला अदालत में पहुंच गया है और उनके पद पर सवाल उठने लगे हैं।
रग्बी घोटाले में फंसे राहुल बोस: हिमाचल में नकली डोमिसाइल पर बवाल
बॉलीवुड अभिनेता और रग्बी इंडिया के अध्यक्ष राहुल बोस पर हिमाचल प्रदेश में फर्जी डोमिसाइल प्रमाणपत्र का इस्तेमाल कर खेल संघ के चुनावों को प्रभावित करने के आरोप लगने के बाद विवाद गहराता जा रहा है। मामला अब हाई कोर्ट तक पहुंच चुका है और राज्य की खेल बिरादरी में आक्रोश का माहौल है। शिमला से जुड़े एक शाही परिवार और राज्य की खेल इकाई के कुछ सदस्यों ने आरोप लगाया है कि राहुल बोस ने हिमाचल प्रदेश का स्थायी निवासी प्रमाणपत्र गलत तरीके से हासिल किया, जबकि उनका मूल निवास और पते से जुड़े सरकारी दस्तावेज किसी अन्य राज्य से जुड़े बताए जा रहे हैं।
नकली डोमिसाइल से जुड़ा आरोप
शिकायतकर्ताओं का कहना है कि इस डोमिसाइल का इस्तेमाल रग्बी संघ के चुनावों और प्रशासनिक पदों पर प्रभाव डालने के लिए किया गया। यह आरोप लगाया गया कि इस दस्तावेज़ से स्थानीय खिलाड़ियों और खेल संगठनों के अधिकारों को कमजोर किया गया और बाहरी लोगों को व्यवस्था पर नियंत्रण दिलाया गया।
कानूनी स्थिति और कोर्ट की कार्यवाही
शिकायत के आधार पर अब हाई कोर्ट ने अभिनेता समेत संबंधित सरकारी अधिकारियों को नोटिस जारी किया है। अदालत ने इस मामले में विस्तृत जवाब तलब किया है। राहुल बोस की ओर से कहा गया है कि पूरा मामला गलतफहमी और बिना तथ्यों की पुष्टि के फैलाए जा रहे आरोपों का नतीजा है। उनका दावा है कि वे किसी पद के लिए हिमाचल से चुनाव लड़ने या कोई निजी लाभ लेने की स्थिति में नहीं थे।
खेल जगत में नाराज़गी और सवाल
हिमाचल में स्थानीय खिलाड़ियों और कोचों ने इस घटना को “खेल संरचना के साथ खिलवाड़” बताया है। कई खिलाड़ियों का कहना है कि जब किसी बाहरी व्यक्ति को बिना पारदर्शी प्रक्रिया के स्थानीय निवासी का दर्जा मिल सकता है, तो स्थानीय खेल प्रतिभा और अवसर कहां जाएंगे? कुछ लोग इसे सिर्फ एक दस्तावेज़ी विवाद नहीं बल्कि खेल संघों में मौजूदा सत्ता संघर्ष का हिस्सा बता रहे हैं।
18 दिसंबर की सुनवाई पर नज़र
नक़ली डोमिसाइल मामले पर राहुल बोस के ख़िलाफ़ 18 दिसंबर को होने वाली अगली सुनवाई महत्वपूर्ण मानी जा रही है। यदि दस्तावेज़ को अमान्य घोषित किया जाता है तो न केवल राहुल बोस की स्थिति प्रभावित हो सकती है बल्कि हाल में हुए कई निर्णयों और नियुक्तियों पर भी सवाल खड़े हो सकते हैं। खेल विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला भारत में खेल संघों की पारदर्शिता, नियमों और जवाबदेही पर बड़ी बहस खड़ी कर सकता है।
खेल ही नहीं, व्यवस्था भी हो ईमानदार
हिमाचल प्रदेश में राहुल बोस और रग्बी संगठन को लेकर उठा विवाद सिर्फ एक अभिनेता या एक प्रमाणपत्र का मामला नहीं है। यह उस बड़े सवाल की गूंज है जिसका जवाब आज भारतीय खेल व्यवस्था, नौकरशाही और खेल प्रबंधन को देना ही होगा- “क्या हमारे खेल संघ योग्यता और पारदर्शिता से चलते हैं, या फिर पद, पहचान और शक्ति के खेल से?” राहुल बोस के खिलाफ लगाए गए आरोप चाहे सत्य हों या राजनीतिक-संघीय प्रतिस्पर्धा का हिस्सा, एक कड़वी हकीकत की ओर संकेत करते हैं। भारत में खेल संस्थाएं अक्सर खिलाड़ियों के हाथ में नहीं होतीं। वे उन लोगों के नियंत्रण में होती हैं जिनके पास प्रभाव, कागज़ी रणनीति और सत्ता होती है। और जब खेल व्यवस्था प्रतिभा से ज्यादा पहचान और प्रबंधन से ज्यादा मैनेजमेंट दिखावे पर टिक जाए, तो फिर ऐसे विवाद होना आश्चर्य नहीं, बल्कि स्वाभाविक परिणाम है।
स्थानीय खिलाड़ियों का हक, किसी की शोहरत नहीं
खेल की सबसे बड़ी ताकत वह बच्चा होता है जो मैदान में मिट्टी से लथपथ होकर गिरता है, उठता है और सीखता है। लेकिन वह तब टूटता है जब उसे बताया जाता है कि फैसले कहीं और से होंगे, किसी ऑफिस में, किसी दस्तावेज़ से, किसी प्रभाव के हस्ताक्षर से! हिमाचल की रग्बी बिरादरी की नाराज़गी सिर्फ इसलिए नहीं है कि किसी बाहरी व्यक्ति ने डोमिसाइल लिया, बल्कि इसलिए कि इस प्रक्रिया में उनकी पहचान, उनकी मेहनत और उनका अधिकार नजरअंदाज हुआ। जब खेल का भविष्य मैदान में तय होना चाहिए, तो उसे फाइलों और अनुमतियों की राजनीति तय करने लगे तो व्यवस्था बीमार हो जाती है।
न्याय सिर्फ फैसला नहीं, संदेश भी होता है
अब यह मामला अदालत में है, और कानूनी प्रक्रिया अपनी दिशा में चलेगी। लेकिन असली प्रश्न यह है- “क्या यह मुद्दा सिर्फ एक प्रमाणपत्र पर खत्म हो जाएगा, या यह अवसर बनेगा सुधार का?” ज़रूरी है कि इस विवाद से सबक निकले-
खेल संघों में पारदर्शिता बढ़े,
पात्रता नियम स्पष्ट हों,
और चयन व नेतृत्व स्थानीय भागीदारी से तय हों।
ताकि खेल में न हो राजनीति
भारत खेल महाशक्ति बनना चाहता है, लेकिन खेल प्रशासन अक्सर किसी सामंती या सियासी ढांचे की तरह चलता है। जब तक यह बदलेगा नहीं, तब तक न प्रतिभा बढ़ेगी और न ही भरोसा। राहुल बोस के नक़ली डोमिसाइल प्रकरण का अंत चाहे जिस दिशा में हो, यह बहस ज़रूरी है क्योंकि खेल सिर्फ मेडल और ताली नहीं, बल्कि न्याय, पहचान और सम्मान भी मांगता है। और शायद अब समय आ गया है कि खिलाड़ी कहें- “हमें नेता नहीं, निष्पक्ष व्यवस्था चाहिए।”
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