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December 2, 2025

पश्चिम बंगाल में SIR समीक्षा के दौरान 21 लाख से अधिक मृत मतदाताओं का खुलासा !

The CSR Journal Magazine

 

पश्चिम बंगाल में चुनाव आयोग द्वारा चल रही Special Intensive Revision (SIR) प्रक्रिया ने राज्य की मतदाता सूची में मौजूद गंभीर विसंगतियों को सामने ला दिया है। सोमवार दोपहर तक राज्य में 21 लाख से अधिक मृत मतदाताओं की पहचान हो चुकी है। यह संख्या न केवल चौंकाती है, बल्कि यह भी बताती है कि वर्षों से मतदाता सूची को ठीक ढंग से अपडेट नहीं किया गया था।

West Bengal: SIR आंकड़ों का बड़ा खुलासा

पश्चिम बंगाल में Election Commission of India (ECI) द्वारा चल रही Special Intensive Revision (SIR) प्रक्रिया के बीच राज्य के मतदाता सूची से जुड़े एक बड़े खुलासे ने राजनीतिक और प्रशासनिक हलचलों को जन्म दे दिया है। सोमवार दोपहर तक ECI ने राज्य में 21 लाख से अधिक मृत मतदाताओं की पहचान की है। विशेष रूप से North 24 Parganas जिले में 2.75 लाख से अधिक मृत मतदाता पाए गए हैं जो राज्य में मृत मतदाता पाए जाने वाले जिलों में सबसे अधिक है। इसके बाद West Bardhaman जिले में करीब 1.57 लाख और South 24 Parganas में 1.39 लाख मृत मतदाता सूचीबद्ध किए गए हैं। यह संख्या अकेले ही बताती है कि जिले में मतदाता सूची कितनी पुरानी और त्रुटिपूर्ण हो चुकी थी। इसके बाद मुर्शिदाबाद और हुगली जैसे कई जिलों में भी बड़ी संख्या में मृत, स्थानांतरित और लंबे समय से अनुपस्थित मतदाता पाए गए हैं।

क्या है SIR प्रक्रिया?

SIR यानी Special Intensive Revision वह प्रक्रिया है जिसमें चुनाव आयोग मतदाता सूची की घर-घर जाकर विस्तृत जांच कराता है। BLO यानी बूथ लेवल अधिकारी प्रत्येक घर में जाकर यह सत्यापित करते हैं कि सूची में दर्ज मतदाता जीवित हैं या नहीं, वे उसी पते पर रह रहे हैं या कहीं और चले गए हैं, या उनका नाम दो बार तो नहीं दर्ज हो गया है। इस प्रक्रिया के तहत मृत, स्थानांतरित, अनुपस्थित और Duplicate मतदाताओं की पहचान कर उन्हें सूची से हटाने की कार्रवाई की जाती है।
इस बार पश्चिम बंगाल में पहली बार इतने बड़े पैमाने पर घर-घर सत्यापन किया गया है। लाखों फॉर्म डिजिटल रूप से जमा किए गए हैं, जिनकी जांच करके आयोग यह तय कर रहा है कि कौन-सा नाम सूची में रहना चाहिए और किसे हटाया जाना चाहिए।

विसंगतियां और संदेह

जहां लाखों मृत मतदाता सामने आ रहे हैं, वहीं कुछ बूथों में बेहद उल्टा दृश्य देखने को मिला। लगभग 2,200 से अधिक बूथ ऐसे पाए गए, जहां “एक भी” मृत, स्थानांतरित या Duplicate मतदाता नहीं मिला। यह स्थिति बेहद असामान्य मानी जा रही है, क्योंकि किसी भी बूथ पर पूरी तरह त्रुटिहीन मतदाता सूची होना लगभग असंभव है। इन बूथों पर संदेह इसलिए गहरा हो रहा है क्योंकि कई BLO ने अपने फॉर्म अपलोड ही नहीं किए थे या वे ASDD यानी Absent, Shifted, Dead, Duplicate की श्रेणी में किसी भी मतदाता को चिह्नित करने में असफल रहे। इससे मतदाता सूची की पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठ रहे हैं और आयोग ने संबंधित जिलाधिकारी व अधिकारियों से उत्तर मांगा है।

मतदान व्यवस्था पर संभावित प्रभाव

मृत और असत्य मतदाताओं की इतनी बड़ी संख्या का सामने आना सीधे-सीधे चुनावी गणित को प्रभावित कर सकता है। कई सीटों पर जीत-हार का अंतर बेहद कम रहता है। यदि ऐसे क्षेत्रों में हजारों मृत या गलत नाम सूची से हटाए जाते हैं, तो चुनाव का पूरा परिणाम बदल सकता है। मतदाता सूची के शुद्धिकरण से राजनीतिक दलों की रणनीति भी प्रभावित होगी, क्योंकि इन्हीं आंकड़ों के आधार पर मतदान प्रतिशत, बूथ प्रबंधन और चुनावी समीकरण तैयार किए जाते हैं। यह भी संभव है कि आने वाले दिनों में मृत मतदाताओं की संख्या और बढ़े, क्योंकि अभी भी कुछ क्षेत्रों से फॉर्म अपलोड किए जाने बाकी हैं।

चुनाव आयोग के लिए चुनौती

मतदाता सूची निर्माण हमेशा ही चुनाव आयोग के लिए एक कठिन और संवेदनशील कार्य रहा है। लेकिन इस बार सामने आया आंकड़ा बताता है कि बंगाल में मतदाता सूची के रखरखाव में गंभीर लापरवाही हुई है। लाखों मृत मतदाता वर्षों तक सूची में बने रहे। कई BLOs ने सर्वे के दौरान लापरवाही बरती। कुछ बूथों में ‘शून्य त्रुटि’ जैसी असामान्य स्थिति बनी और कई जिलों में डिजिटाइजेशन में देरी से पूरा सिस्टम धीमा पड़ा। आयोग अब सभी जिलों से रिपोर्ट लेकर यह सुनिश्चित करने में जुटा है कि अंतिम मतदाता सूची त्रुटि-रहित और पारदर्शी हो।

चुनाव प्रणाली की पारदर्शिता पर संदेह की तलवार

पश्चिम बंगाल में SIR के दौरान मिले 21 लाख से अधिक मृत मतदाताओं ने राज्य की चुनावी प्रणाली में लंबे समय से चली आ रही खामियों को उजागर कर दिया है। यह साफ हो गया है कि मतदाता सूची को अपडेट करने की प्रक्रिया में निरंतरता और सख्ती की कमी रही है। अब जबकि ड्राफ्ट मतदाता सूची जल्द ही जारी होने वाली है, राज्य की राजनीतिक नजरें इस पर टिकी हैं कि हटाए गए इन लाखों नामों के बाद बंगाल का चुनावी परिदृश्य कितना बदलने वाला है।

बंगाल मतदाता सूची में घोटाला- चुनावी शुचिता के लिए चेतावनी

पश्चिम बंगाल में SIR प्रक्रिया के दौरान 21 लाख से अधिक मृत मतदाताओं का सामने आना केवल एक प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था को हिला देने वाला सच है। इतनी भारी संख्या यह बताती है कि मतदाता सूची, जो किसी भी चुनाव की नींव होती है, उसे वर्षों तक सही ढंग से अपडेट ही नहीं किया गया। लाखों मृत मतदाताओं का सूची में बने रहना सिर्फ आंकड़ा नहीं, बल्कि चुनावी पारदर्शिता पर प्रश्नचिन्ह है। यह सीधे-सीधे उस भरोसे को चोट पहुंचाता है जिस पर लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय चुनाव टिका होता है। सबसे अधिक चिंता की बात यह है कि कुछ बूथों पर “एक भी” मृत या त्रुटिपूर्ण मतदाता न मिलने जैसी अविश्वसनीय स्थितियां सामने आईं, जो यह दर्शाती हैं कि SIR प्रक्रिया में भी लापरवाही, मनमानी या जानकारी छिपाने जैसी गड़बड़ियां हो सकती हैं। यदि बूथ-स्तरीय अधिकारी ही अपने दायित्व में कमजोर पड़ जाएं तो आयोग की सख्त व्यवस्था भी असर खो देती है।

बंगाल की SIR प्रक्रिया के नतीजों ने बजाई ख़तरे की घंटी

इस घटना ने एक संदेश साफ कर दिया है- लोकतंत्र सिर्फ वोटिंग मशीनों या प्रचार रैलियों से नहीं चलता, बल्कि एक स्वच्छ और सटीक मतदाता सूची से चलता है। यदि सूची दूषित है, तो पूरा चुनाव दूषित माना जा सकता है। बंगाल की यह स्थिति देश भर के राज्यों के लिए भी चेतावनी है कि मतदाता सूची को अद्यतन रखना सिर्फ औपचारिक काम नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक पवित्रता की अनिवार्य शर्त है। अब जब इतनी बड़ी संख्या में मृत और गलत नाम हटाए जा रहे हैं, यह उम्मीद की जानी चाहिए कि आयोग आगे और कठोरता दिखाएगा। बूथ अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित की जाएगी और अंतिम सूची में किसी भी प्रकार की मनमानी नहीं बचेगी। लोकतंत्र तब ही सुरक्षित रहेगा, जब उसकी नींव, यानी मतदाता सूची साफ, ठीक और भरोसेमंद होगी।
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