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July 23, 2025

Verification Stopped for Ladki Bahin Yojana: चुनाव से पहले ‘लाडकी बहिण’, चुनाव के बाद ‘फर्जी बहनें’?

The CSR Journal Magazine

महाराष्ट्र की Mukhyamantri – Majhi Ladki Bahin Yojana पर उठे सियासी सवाल

महाराष्ट्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना ‘माझी लाडकी बहिण’ (Mukhyamantri – Majhi Ladki Bahin Yojana) को लेकर अब सवालों का दौर शुरू हो गया है। योजना को जहां एक ओर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का जरिया बताया गया, वहीं अब इसकी टाइमिंग और अमल पर विपक्ष और समाज में गंभीर चर्चाएं हो रही हैं। तत्कालीन मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने इस योजना को बड़े ज़ोर-शोर से लॉन्च किया था। इसके तहत राज्य की 21 से 60 वर्ष की महिलाओं को हर महीने ₹1500 दिए जाने का वादा किया गया। इस स्कीम का मकसद महिलाओं को आर्थिक रूप से सक्षम बनाना था। लेकिन अब इसे लेकर कई अहम सवाल उठ रहे हैं, खासकर इसके क्रियान्वयन और राजनीतिक इस्तेमाल को लेकर।

Mukhyamantri – Majhi Ladki Bahin Yojana: चुनाव से पहले वादा, चुनाव के बाद वेरिफिकेशन

2024 के लोकसभा चुनावों से ठीक पहले इस योजना को शुरू किया गया। लाखों महिलाओं ने फॉर्म भरे, बिना कड़े वेरिफिकेशन के पैसे भी सीधे उनके खातों में भेजे गए। सरकार ने दावा किया कि इससे महिलाओं को आर्थिक सहारा मिलेगा और उनका आत्मसम्मान बढ़ेगा। लेकिन जैसे ही चुनाव खत्म हुए, सरकार ने योजना में “फर्जीवाड़े” का हवाला देते हुए बड़े पैमाने पर वेरिफिकेशन शुरू कर दिया। अब तक करीब 80 हजार लाभार्थियों के नाम सूची से हटाए जा चुके हैं। आश्चर्य की बात यह भी है कि जांच में 2200 सरकारी कर्मचारियों के नाम भी सामने आए जो इस योजना का लाभ ले रहे थे।

अब महानगरपालिका चुनाव नजदीक, तो वेरिफिकेशन पर फिर से ब्रेक

सरकार द्वारा शुरू किया गया वेरिफिकेशन अभियान एक बार फिर रोक दिया गया है। वजह? अब निकाय चुनाव नजदीक हैं। यानी जब सरकार को वोट चाहिए होते हैं, तो योजना बिना जांच के लागू होती है, और जैसे ही चुनाव बीतते हैं, ईमानदारी की दुहाई देकर वेरिफिकेशन का डंडा चलाया जाता है। यही दोहरी नीति आज सरकार की मंशा पर सवाल खड़े कर रही है। जब वोट चाहिए, तो महिलाएं “लाडकी बहिण” बन जाती हैं, और जब वक़्त निकल जाता है तो उन्हें “फर्जी” कहकर योजनाओं से बाहर कर दिया जाता है। Mumbai BMC Election 2025

क्या महिलाएं सिर्फ वोट बैंक हैं?

‘माझी लाडकी बहिण’ योजना अब एक सामाजिक योजना कम और राजनीतिक औजार ज़्यादा बनती नज़र आ रही है। सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि अगर योजना ईमानदारी से लागू की जाती, तो शुरू से ही उचित वेरिफिकेशन और पारदर्शिता रखी जाती। सरकार का तर्क है कि योजना के तहत कई फर्जी लाभार्थी शामिल हो गए थे, इसलिए जांच ज़रूरी थी। लेकिन सवाल यह है कि यह गड़बड़ियां शुरू में क्यों नहीं पकड़ी गईं? क्या चुनाव के बाद ही ईमानदारी की याद आती है?

विपक्ष का हमला, जनता में नाराज़गी

विपक्षी पार्टियों ने सरकार पर जमकर हमला बोला है। उनका आरोप है कि यह योजना सिर्फ चुनावी फायदे के लिए शुरू की गई थी। कांग्रेस ने कहा कि महिलाओं के सम्मान और आत्मनिर्भरता की बातें सिर्फ भाषणों और पोस्टरों तक सीमित हैं। एनसीपी ने इसे “वोट-बैंक की राजनीति” बताया। जनता के बीच भी इस योजना को लेकर नाराज़गी बढ़ रही है। कई महिलाओं ने कहा कि जब योजना शुरू हुई तो उनसे दस्तावेज़ तक नहीं मांगे गए, और अब अचानक सरकार वेरिफिकेशन के नाम पर उन्हें अपमानित कर रही है।

क्या यही है महिला सशक्तिकरण?

महाराष्ट्र सरकार ने इस योजना को “महिला सशक्तिकरण” (Women Empowerment in Maharashtra) के नाम पर प्रचार किया था, लेकिन अब यह सवाल उठना लाज़मी है कि क्या महिलाओं को सम्मान सिर्फ चुनाव के दौरान ही मिलेगा? अगर योजना सच में महिलाओं के लिए है, तो उसे सियासी चश्मे से देखना बंद करना होगा। पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करनी होगी ताकि हर महिला को उसका हक मिले, न कि संदेह की नजर। ‘माझी लाडकी बहिण’ एक अच्छी सोच है, लेकिन इसका अमल अगर वोट की राजनीति से जुड़ा होगा, तो इसकी विश्वसनीयता पर हमेशा सवाल खड़े होंगे। अगली बार जब कोई सरकार आपको वादा करे, तो ज़रूर सोचिए ये सम्मान है या सिर्फ वोट लेने की रणनीति?
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