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सीएसआर से बना ई टॉयलेट हुआ खंडहर, एक का नहीं खुला ताला

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सीएसआर से बना ई टॉयलेट हुआ खंडहर, तो मेडिकल कॉलेज के शौचालय का नहीं खुला ताला
 
डेवलपमेंट के मामले में CSR का रोल बहुत महत्वपूर्ण होता है। सीएसआर फंड से तो विकास की कई कहानियां गढ़ी जाती है लेकिन इन्ही विकास के कामों की देखरेख में जब लापरवाही और लालफीताशाही होती है तो वो खंडहर में तब्दील हो जाती है। इसका जीता जागता उदाहरण है उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले के गौहनिया चौराहे पर कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी से बना E-Toilet.

बिना देखरेख के सीएसआर से बना ई टॉयलेट हुआ खंडहर

दरअसल गौहनिया चौराहे पर लोगों की सुविधा के लिए ई-टॉयलेट बनवाया गया था, वो भी CSR Fund से। शुरुआती दौर में तो वह ठीक चला, लेकिन बीते दो साल से बंद पड़ा है। अब वहां पर हाल यह है कि खंडहर से वह कम नहीं है। इसी तरह से सीएसआर योजना के तहत मेडिकल कॉलेज में शौचालय बनवाया गया था, जो निर्माण के बाद से बंद पड़ा है।
गौहनिया चौराहा शहर के बीचो बीच में होने के कारण यहां पर लोगों की आवाजाही काफी रहती है। अस्पताल आदि होने के कारण चहलकदमी भी रहती है। ऐसे में नगर पालिका की ओर से करीब आठ साल पहले ई-टॉयलेट बनवाया था। इसमें सुविधा दी गई थी कि एक रुपये का सिक्का डालने के बाद ही लोग उसका उपयोग कर सकते थे। निर्माण के बाद इसका संचालन होता रहा। उधर, करीब दो साल पहले मशीन में तकनीकी कमी आने से यह बंद हो गया था। तब से इसको ठीक कराने की किसी ने सुध ही नहीं ली है। हालत यह है कि वह धूल और कचरे से पट गया है।

सीएसआर से बने शौचालय का नहीं खुला ताला, अब बन गया कूड़ाघर

मेडिकल कॉलेज परिसर में आयुष विंग के पास वर्ष 2018-19 में भारतीय अक्षय उर्जा विकास समिति की सीएसआर योजना के तहत शौचालय का निर्माण कराया गया था। इसी के साथ आरओ वाटर और 30 स्ट्रीट लाइट का भी काम होना था। इसका तत्कालीन केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने उद्घाटन किया था। निर्माण के बाद अब तक शौचालय के ताले नहीं खुल सके हैं। शौचालय न खुलने से उसके आसपास अब अस्पताल का कूड़ा भी डाला जाने लगा है। गौरतलब है कि सीएसआर करके Corporates अपनी जिम्मेदारी तो निभा देते है लेकिन जिनके ऊपर देखरेख की जिम्मेदारी होती वो अगर अपनी Responsibilities निभाते तो ये शौचालय खंडहर नहीं होते।