झारखंड के घने जंगलों में परंपरागत रूप से पाये जाने वाला वृक्ष Madhuca longifolia, जिसे आमतौर पर “महुआ” कहा जाता है, आज एक नए रूप में उभर रहा है। उस रूप में, जिसमें महुआ नशे का सबब बनने की बजाय स्वावलंबन, सशक्तिकरण और सौंदर्य जगत में प्रवेश कर रहा है।
झारखंड में महिला-सशक्तिकरण की बयार
पिछले वर्षों में झारखंड की आदिवासी महिलाओं ने महुआ फूल व बीजों को इकट्ठा करने के बाद Cold Press तकनीक द्वारा तेल निकालने का काम शुरू किया। यह तेल आज कोस्मेटिक एवं स्किन केयर उत्पादों में इस्तेमाल हो रहा है। उदाहरण के लिए, “मशकी महुआ हैंड क्रीम” नामक उत्पाद में महुआ तेल को मुख्य घटक के रूप में दिखाया गया है। यह बदलाव सिर्फ आर्थिक परिणाम नहीं ला रहा है, बल्कि सामाजिक स्तर पर भी प्रभावशाली है। महिलाओं का पहले पेय उद्योग (देशी शराब) से जुड़ाव अब स्वास्थ्य-वर्द्धक व उत्पादक उद्योग में बदल रहा है।
प्रौद्योगिकी, उत्पाद और सौंदर्य उद्योग में प्रवेश
Cold Press प्रक्रिया में महुआ बीजों से बिना अत्यधिक गर्मी के तेल निकाला जाता है, जिससे तेल के पोषक तत्व, खुशबू और गुण संरक्षित रहते हैं। यह तेल अब स्किन मॉइस्चराइज़र, हेयर केयर, और प्राकृतिक साबुन व क्रीम के लिए उपयोग किया जा रहा है। एक उदाहरण के अंतर्गत झारखंड-स्थित कम्पनी द्वारा इस तेल से बना हैंड क्रीम बनाया गया है। वेबसाइटों पर यह उल्लेख भी किया जा रहा है कि महुआ तेल में त्वचा व बालों के लिए एंटी-इंफ्लेमेटरी, मॉइस्चराइजिंग और जीवाणुरोधी गुण मौजूद हैं।
अर्थव्यवस्था पर असर
आदिवासी-महिलाओं ने अपने पारंपरिक जंगल जुटाई गतिविधि को वाणिज्यिक दिशा दी है। इससे उनकी आय का स्रोत बढ़ा है और आर्थिक रूप से उनकी स्थिति मजबूत हुई है। उदाहरणस्वरूप, एक ई-बुलेटिन में यह उल्लेख है कि महुआ आधारित उत्पादों की बिक्री में वृद्धि के बाद महिलाओं के समूह ने अच्छा मुनाफा कमाया। इस प्राकृतिक तेल-उद्योग में छोटे-स्तर के उद्यमों को भी मौका मिला है, जिससे स्थानीय संसाधनों का बेहतर उपयोग हो रहा है एवं स्थानीय विकास को बल मिला है। सौंदर्य एवं कॉस्मेटिक उद्योग को अब एक नया विकल्प मिला है, जहां महुआ जैसे वन उपज (Forest Produce) को ग्लोबल ट्रेंड की तरफ ले जाया जा रहा है।
चुनौतियों के बावजूद परिवर्तन की लहर
हालांकि इस क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव हैं, लेकिन कुछ चुनौतियां अभी भी हैं-
प्रसंस्करण-यंत्रों और तकनीकी समर्थन की कमी बनी हुई है।
ब्रांडिंग, मार्केटिंग और बेहतर पैकेजिंग की मांग बढ़ रही है ताकि उत्पाद प्रतिस्पर्धी हो सकें।
जंगल-उपज की उपलब्धता और स्थिरता भी एक सवाल है। मौसम, वन संरक्षण नियम, और लॉजिस्टिक्स इन पर असर डाल सकते हैं।
महुआ बीज से Cold Press द्वारा तेल निकालने का यह नया मोड़ झारखंड की ग्रामीण व आदिवासी महिलाओं की जीवन-शैली में परिवर्तन ला रहा है। यह न केवल उन्हें आत्मनिर्भर बना रहा है, बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य उद्योग (Natural Beauty Industry) में एक नए विकल्प के रूप में महुआ को स्थापित कर रहा है। भविष्य में यदि तकनीकी, विपणन एवं संसाधन-संगठन बेहतर हुए, तो यह पहल न सिर्फ एक स्थानीय बदलाव बल्कि राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रसारित हो सकती है।
महुआ ने बदली ग्रामीण महिलाओं की ज़िंदगी
महुआ फूल ग्रामीण महिलाओं के लिए आय का महत्वपूर्ण स्रोत बन गया है। महिलाएं मार्च-अप्रैल के दौरान महुआ फूल चुनने लगती हैं, जिससे उन्हें अतिरिक्त आमदनी होती है। यह दिखाता है कि महुआ का आर्थिक महत्व सिर्फ खाद्य या कोस्मेटिक उत्पाद तक सीमित नहीं रहा, बल्कि ग्रामीण वनोपज अर्थव्यवस्था का हिस्सा बन चुका है।
1. विक्रमपुर गांव- ब्लॉक मुसाबनी, जिला पश्चिम सिंहभूम, झारखंड
इस क्षेत्र की महिलाओं ने दो समवाय-समूह (Collectives) “मालिबाहा” व “बिदु चन्दन आजीविका समिति” के नाम से चलाये हैं, जिसमें लगभग 20 महिलाएं शामिल हैं। उन्होंने गांव के आसपास के महुआ वृक्षों से फूल/बीज इकट्ठा करना शुरू किया और मध्यस्थों को दरकिनार करते हुए महुआ सीधे गांव-स्तर पर क्रय, साफ-सफाई, पैकिंग व बिक्री की प्रक्रिया अपनायी। इस पहल से महिलाओं की आर्थिक-स्थिति मजबूत हुई है और उनकी आत्म-विश्वास में वृद्धि हुई है।
2. जर्बा गांव (चर्खू ब्लॉक, जिला हज़ारीबाग, झारखंड)
यहां की महिलाओं ने “जीयो महिला मंडल” नामक स्वयं-सहायता समूह की स्थापना की, जिसमें उन्होंने महुआ के फूल/बीज से लड्डू, आचार, कैंडी, शक्ति पाउडर आदि उत्पाद बनाना शुरू किया है। समूह ने अपनी ब्रांड-नाम “पलाश” के तहत उत्पाद बाजार में उतारे और इस प्रक्रिया में देशी शराब से जुड़े सामाजिक-चुनौतियों (Alcoholism) से निपटने का प्रयास किया। “महुआ पूर्व में शराब के लिए इस्तेमाल होता था, अब इसे खाद्य/उपभोग उत्पाद में बदला जा रहा है।” स्थानीय महिला का बयान !
इस क्षेत्र में समाचारों में बताया गया है कि महुआ फूल ग्रामीण अर्थव्यवस्था में “रीढ़ की हड्डी” बन गया है और बड़ी संख्या में महिलाएं इस गतिविधि से जुड़ी हैं। महुआ फूल से जुड़े उप-उत्पादों, जैसे खाद्य, औषधीय उपयोग, आदि बनाने की दिशा में कार्य हो रहा है।
भारत की आत्मनिर्भर नारी: गांव से उद्योग तक, परंपरा से उद्यमिता तक
कभी खेत और रसोई तक सीमित समझी जाने वाली ग्रामीण महिलाएं आज भारत के गावों में आर्थिक परिवर्तन की सबसे बड़ी शक्ति बनकर उभर रही हैं। झारखंड की महुआ तेल बनाने वाली महिलाएं हों, ओडिशा की कुसुम बीज प्रसंस्करण इकाइयां या उत्तराखंड की हर्बल कॉस्मेटिक निर्माता, हर राज्य में महिलाएं स्वयं-सहायता समूहों (SHGs) के ज़रिए आत्मनिर्भरता का नया अध्याय लिख रही हैं।
सफलता की नई इबारत लिखती ग्रामीण महिलाएं
पूर्वी सिंहभूम, पलामू और हज़ारीबाग़ जिलों की महिलाएं अब जंगल से गिरने वाले महुआ बीज को Cold Press मशीनों में पीसकर ऑर्गेनिक तेल बना रही हैं। यह तेल अब सिर्फ़ खाद्य उपयोग तक सीमित नहीं, इससे बने बॉडी ऑयल, साबुन, लिप बाम और हेयर सीरम देश-विदेश के बाजारों में पहुंचने लगे हैं। इस पहल ने सैकड़ों आदिवासी महिलाओं को शराब बनाने की परंपरा से निकालकर कॉस्मेटिक उद्योग में उद्यमी बना दिया है।
छत्तीसगढ़: ‘छत्तीसगढ़ हर्बल्स’ से नई पहचान
बस्तर, कांकेर और रायगढ़ में महिला समूहों ने साल बीज, तिल और महुआ से तेल निकालने की Cold Press इकाइयां शुरू की हैं। राज्य सरकार के ‘Van Dhan Vikas Kendra’ और ‘Mission Shakti’ की मदद से इन उत्पादों को “छत्तीसगढ़ हर्बल्स” ब्रांड के तहत पैक किया जा रहा है। यह पहल अब ₹50 करोड़ से अधिक का वार्षिक ग्रामीण कारोबार बन चुकी है और 10 हज़ार से ज़्यादा महिलाएं इससे जुड़ी हैं।
ओडिशा: जंगलों से निकला कॉस्मेटिक उद्योग
कंधमाल, मयूरभंज और क्योंझर की महिलाएं कुसुम, साल, नीम और अरंडी के बीजों से हर्बल तेल और साबुन तैयार कर रही हैं। “Mission Shakti” योजना के तहत बने समूहों ने “Tribes India” और “Forest Essentials” जैसी बड़ी कंपनियों को सप्लाई शुरू कर दी है। महिला समूहों के मुताबिक, अब उनकी आय पहले से तीन गुना तक बढ़ी है।
महाराष्ट्र: नारियल से निकली रोजगार की लहर
कोकण के सिंधुदुर्ग और रत्नागिरी जिलों में नारियल और काजू से बने ऑर्गेनिक तेल ने महिलाओं के लिए रोज़गार के नए रास्ते खोले हैं। “कोकण महिला उद्योग सहकारी संस्था” अब “कोकण नेचुरल्स” नाम से फेस ऑयल, हेयर टॉनिक और कोको बटर क्रीम बना रही है। यह उत्पाद मुंबई और पुणे के बुटीक स्टोरों में बिकने लगे हैं।
उत्तराखंड: पहाड़ी जड़ी-बूटियों से बदलता जीवन
अल्मोड़ा, पौड़ी और टिहरी की महिलाएं बुरांश फूल, मधु और पहाड़ी जड़ी-बूटियों से जैविक स्किन-क्रीम और हर्बल टी तैयार कर रही हैं। “महिला मंगल दल” और “हिमालय उत्पाद समिति” जैसे समूह इन उत्पादों को देहरादून और दिल्ली तक भेज रहे हैं। इससे न केवल महिलाओं को रोज़गार मिला, बल्कि पलायन की समस्या पर भी रोक लगी।
उत्तर प्रदेश- मध्य प्रदेश: ग्रामोद्योग से ग्लोबल बाजार तक
वाराणसी, चित्रकूट और मंडला की महिलाएं आंवला, नीम और साल बीज से साबुन और तेल तैयार कर रही हैं। सरकार की ODOP (One District One Product) योजना के तहत अब इन उत्पादों को Amazon और GeM पर बेचने की सुविधा मिली है। कई समूहों ने अपने ब्रांड पंजीकृत कर लिए हैं, जैसे “Gramya Beauty” और “Prakriti Essentials”।
साझा उपलब्धि- आर्थिक आज़ादी और आत्मविश्वास
इन पहलों का सबसे बड़ा प्रभाव है-
आर्थिक स्वतंत्रता: पहले जो महिलाएं दैनिक मज़दूरी पर निर्भर थीं, अब वे सालाना ₹60,000 से ₹2 लाख तक कमा रही हैं।
सामाजिक सम्मान: गांवों में महिलाएं अब ‘उद्योगपति दीदी’ के नाम से जानी जाती हैं।
हरित उद्योग: ये सभी उत्पाद रासायनिक-मुक्त, पर्यावरण-अनुकूल और स्थायी विकास के प्रतीक हैं।
ग्रामीण भारत की महिलाएं आज यह साबित कर रही हैं कि आत्मनिर्भरता किसी शहर या बड़ी पूंजी की मोहताज नहीं। थोड़ा प्रशिक्षण, थोड़ी तकनीक और बहुत सारा आत्मविश्वास, यही ‘नए भारत की नारी’ की पहचान बन चुका है। महुआ के पेड़ से लेकर हर्बल तेल की शीशियों तक, उनकी मेहनत अब भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई दिशा दे रही है।
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