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June 30, 2025

‘बात कुर्सी की नहीं, इंसाफ़ की है’ यूनिवर्सिटी ने छीनी कुर्सी, ज़मीन पर बैठे दलित प्रोफ़ेसर 

तिरुपति- 20 जून को, श्री वेंकटेश्वर पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय (एसवीवीयू) के डेयरी प्रौद्योगिकी कॉलेज से एक तस्वीर सामने आई, जिसने एक बार फिर भारतीय शैक्षणिक संस्थानों में गहराई से निहित जातिगत भेदभाव को उजागर किया। तस्वीर में, दलित सहायक प्रोफेसर डॉ रवि वर्मा अपने कार्यालय के फर्श पर बैठे, अपने कंप्यूटर पर काम करते हुए दिखाई दे रहे हैं क्योंकि एसोसिएट डीन रवींद्र रेड्डी द्वारा उनकी कुर्सी हटा दी गई थी। यह घटना डॉ रवि के लिए सिर्फ़ एक और अपमान है, जो पिछले 20 वर्षों से संस्थान में सम्मान, समान वेतन और न्याय के लिए लड़ रहे हैं। अदालत के आदेशों, यूजीसी नियमों और यहां तक कि भारत के राष्ट्रपति के हस्तक्षेप के बावजूद उन्हें उनके अधिकारों से वंचित कर दिया गया है।

20 साल बाद भी न समान वेतन, न सम्मान

डॉ. रवि वर्मा साल 2005 से डेयरी टेक्नोलॉजी कॉलेज, तिरुपति में कांट्रैक्ट पर असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर पढ़ा रहे हैं। दो दशक से अधिक समय तक नियमित फैकल्टी की तरह पढ़ाने के बावजूद न तो उन्हें पक्की नौकरी दी गई, न ही बराबर वेतन। कांट्रैक्ट की स्थिति भी अमानवीय रही। उनका कांट्रैक्ट हर छह महीने पर 2-3 दिन का जबरन गैप लेकर रिन्यू किया जाता रहा, ताकि उन्हें किसी प्रकार की स्थायीत्व या लाभ न मिल सके।

दलित जातिगत भेदभाव का घृणित रूप

भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली में जातिगत भेदभाव का एक और शर्मनाक मामला सामने आया है। आंध्र प्रदेश की श्री वेंकटेश्वर वेटरिनरी यूनिवर्सिटी (SVVU) के एक दलित असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. रवि वर्मा से विश्वविद्यालय ने न केवल न्याय करने में कोताही बरती, बल्कि उन्हें खुलेआम अपमानित भी किया गया है। हाल ही में सोशल मीडिया पर एक तस्वीर वायरल हुई थी, जिसमें एक शिक्षक जमीन पर बैठा दिखाई दे रहा है। इस तस्वीर के सामने आने के बाद बवाल मच गया। यह तस्वीर डॉ. रवि वर्मा की थी, जो ज़मीन पर बैठकर कंप्यूटर और फाइलों के साथ अपना अकादमिक कार्य करते नजर आए। आरोप है कि दलित होने के चलते यूनिवर्सिटी प्रशासन ने उनकी कुर्सी हटा दी, जिसके विरोध में उन्होंने ज़मीन पर बैठकर काम करना शुरू कर दिया।

कोर्ट का आदेश भी नहीं माना गया

साल 2010 में UGC ने ‘समान कार्य के लिए समान वेतन’ का नियम लागू किया। डॉ. रवि वर्मा को लगा कि अब उन्हें उनका हक मिलेगा। लेकिन UGC के नियम के बावजूद विश्वविद्यालय ने उनका वेतन नहीं बढ़ाया। मजबूर होकर डॉ. वर्मा ने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में याचिका दायर की। 2014 में हाईकोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाते हुए विश्वविद्यालय को समान वेतन देने का आदेश दिया। लेकिन यूनिवर्सिटी ने दलील दी कि डॉ. वर्मा UGC-NET उत्तीर्ण नहीं हैं और उनका चयन, चयन समिति द्वारा नहीं हुआ है, इसलिए वह इस लाभ के योग्य नहीं हैं।
हालांकि यहां चौंकाने वाली बात यह है कि 2012–13 में इसी यूनिवर्सिटी ने 150 से अधिक ऐसे फैकल्टी नियुक्त किए हैं जो NET क्वालिफाइड नहीं थे, और उन सभी को पूर्ण वेतन और प्रमोशन दिए गए।

 दलित होने के कारण कुर्सी तक हटा दी गई

इस बीच 19 जून 2025 को जब डॉ. वर्मा छुट्टी पर थे, तब एसोसिएट डीन डॉ. रेड्डी ने उनकी कुर्सी यह कहकर हटवा दी कि वह किसी अन्य विभाग की थी। अगली सुबह जब वर्मा कॉलेज पहुँचे तो वहां उनकी कुर्सी की जगह एक साधारण विज़िटिंग चेयर रखी गई थी। अपमानित महसूस करते हुए उन्होंने ज़मीन पर ही बैठकर काम करना शुरू कर दिया। जब यह तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई तो देशभर से नाराज़गी सामने आई। कई फैकल्टी मेंबर्स ने भी इसे भेदभाव बताया और तब दबाव में आकर यूनिवर्सिटी को उन्हें वापस कुर्सी देनी पड़ी। हालांकि मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कॉलेज के कई फैकल्टी सदस्यों ने इसे “सुनियोजित अपमान” बताया। आरोप है कि यूनिवर्सिटी के उच्च अधिकारी लगातार उनके साथ भेदभाव करते आ रहे हैं।

राष्ट्रपति मुर्मू से लगाई गुहार

थक हार कर डॉ. रवि वर्मा ने भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर इंसाफ की गुहार लगाई है। उन्होंने लिखा “मैं लड़ते रहने के लिए आर्थिक रूप से पर्याप्त सक्षम नहीं हूं।” और समझाया कि कैसे यह प्रणाली हाशिए पर रहने वाले और वंचित समुदायों के शिक्षाविदों के संसाधनों को क़ानूनी लड़ाई में शामिल करके समाप्त कर देती है। मूकनायक ने विश्वविद्यालय के अदालत के आदेशों की अवहेलना पर वीसी और रजिस्ट्रार से जवाब मांगा है। अक्टूबर 2024 में, डॉ रवि ने कुलपति से मुलाक़ात की और उन्हें उनकी समस्याओं से अवगत कराया। वीसी ने न्याय का आश्वासन दिया, लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
फर्श पर काम कर रहे डॉ रवि की घटना ऐतिहासिक जातिगत भेदभाव की याद दिलाती है जहां दलितों को बुनियादी सम्मान से भी वंचित किया गया था। उन्होंने संस्थान की नीतियों के विरोध में यह कदम उठाया। देखना है कि मामले के तूल पकड़ने के बाद क्या डॉ. रवि वर्मा को न्याय मिलेगा?

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