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September 29, 2025

रजवाड़ों की कुलदेवी, मेवल की महारानी करती हैं अग्निस्नान, किस्मत वालों को होते हैं दर्शन

The CSR Journal Magazine
भारत देश में कई ऐतिहासिक और चमत्कारिक मंदिर हैं। इन मंदिरों में आज भी ऐसे-ऐसे चमत्कार होते हैं, जिनके आगे विज्ञान भी फेल है। ऐसा ही एक चमत्कारिक मंदिर राजस्थान में है। यह मंदिर राजस्थान का ईडाणा माता मंदिर है। हर साल इस मंदिर में अपने आप आग लग जाती है। आग लगने पर मां ईडाना की मूर्ति को छोड़कर मंदिर में कुछ भी शेष नहीं बचता। कहा जाता है कि हर साल मां ईडाणा अग्नि स्नान करती हैं। यह मंदिर राजस्थान के उदयपुर शहर से 60 किमी दूर अरावली की पहाड़ियों में स्थित है।

भारत में आस्था और विश्वास के बल पर होते हैं चमत्कार

हमारे देश भारत में न जाने कितने ही ऐसे मंदिर हैं जो चमत्कारों से भरे हुए हैं। कहीं आज भी श्री कृष्ण रास लीला रचाते हैं, तो कहीं सदियों से माता के सामने ज्वाला जलती रहती है। यही नहीं, कई मंदिरों की मान्यता यह भी है कि आज भी वहां भक्तों की अर्जी सुनने स्वयं भगवान् प्रकट होते हैं और किसी न किसी रूप में अपने भक्तों को दर्शन देते हैं। कुछ ऐसे ही आश्चर्यों से भरा है राजस्थान के उदयपुर में स्थित ईडाणा माता मंदिर, जहां माता दूध, दही या जल से नहीं, बल्कि अग्नि से स्नान करती हैं। जी हां, यह सच है कि इस मंदिर में वास्तव में ईडाणा माता अग्नि स्नान करती हैं जो किसी आश्चर्य से कम नहीं है। यही नहीं, ऐसे और भी तथ्य हैं ईडाणा माता के दरबार के, जो आपको आश्चर्य में डाल देंगे।

मेवाड़ का प्रसिद्ध शक्तिपीठ ईडाणा माता का दरबार

उदयपुर जिला मुख्यालय से 60 किमी दूर कुराबड़- बम्बोरा मार्ग पर अरावली की पहाडिय़ों के बीच स्थित इस ईडाणा माता मंदिर को लेकर मान्यता है कि यहां आने वाले श्रद्धालु की हर मुराद पूरी होती हैं। मेवाड़ में ईडाणा देवी मां का यह प्रसिद्ध शक्ति पीठ स्थित है। यहां माता का कोई भव्य मंदिर नहीं बनाया गया है बल्कि ईडाणा माता बरगद के वृक्ष में नीचे विराजमान हैं। माता के सिर के ऊपर कोई शिखर भी विराजमान नहीं है बल्कि माता खुले आसमान के नीचे निवास करती हैं। ईडाणा माता की मूर्ति के पीछे केवल मनोकामना पूरी होने पर भक्तों की ओर से चढ़ाई जाने वाली चुनड़ी और त्रिशूलों का सुरक्षा कवच मौजूद है। ईडाणा माता मंदिर मेवल की महारानी के नाम से मशहूर हैं।

500 साल पुराना ईडाणा माता का मंदिर

ईडाणा माता का ये मंदिर करीब 5000 साल पुराना है। ऐसा माना जाता है कि ईडाणा माता एक बरगद पेड़ के नीचे प्रकट हुई थीं। कालांतर में क्षेत्र से गुजर रहे एक संत को स्वयं माता रानी ने एक कन्या के रूप में दर्शन देते हुए वहीं रहने का निवेदन किया। संत ने खूब भक्ति आराधना के साथ उनकी पूजा की तो कुछ ही दिनों में यहां अलग-अलग चमत्कार होने लगे। माता के चमत्कार के कारण नेत्रहीनों को दिखाई देने लगा, लकवाग्रस्त लोग ठीक होने लगे, निःसंतानों को औलाद होने लगी। धीरे-धीरे माता रानी की मान्यता देश-दुनिया में बढ़ने लगी। यहां भक्तों की मनोकामना पूर्ण होने से मंदिर का प्रचार-प्रसार भी फैलने लगा। गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश,अन्य राज्यों के अलावा देश के कोने-कोने से भक्त आने लगे।

ईडाणा माता करती हैं अग्नि स्नान

हजारों साल पुराने इस श्री शक्ति पीठ ईडाणा माता मंदिर में सदियों से अग्निस्नान की परम्परा चली आ रही है। यहां दर्शन के लिए गए भक्तों के अनुसार माता की मूर्ती के आस -पास कभी भी भीषण आग लग जाती है और यह अग्नि अपने आप ही बुझ भी जाती है। ऐसा माना जाता है कि ईडाणा माता के ऊपर भार होते ही माताजी अग्नि स्नान कर लेती हैं जिसमें माता को चढ़ाई गई चुनरी और अन्य कपड़े आदि शामिल हैं। अग्नि स्नान के साथ चढ़ावा के पहने कपड़े भी भस्म हो जाते हैं। हैरानी की बात ये है कि अंत में इन सब चीजों में से एक वस्त्र, माता की चुनरी बच जाती है, जिसे माता रानी का चमत्कार माना जाता है। अग्नि स्नान के समय आग इतनी विकराल होती है कि 10 से 20 मीटर ऊंची लपटें उठती हैं। इससे ईडाणा माता प्रतिमा के आसपास प्रसाद, चढ़ावा, अन्य पूजन सामग्री आदि सब कुछ जलकर राख हो जाता है, लेकिन ईडाणा माता की जागृत प्रतिमा और धारण की हुई चुनरी पर आग का कोई असर नहीं होता है। वास्तव में ये घटना किसी आश्चर्य से कम नहीं है कि अग्नि स्नान के बाद भी माता की प्रतिमा आज भी वैसी ही है जैसे वर्षों पहले थी। जबकि ईडाणा माता के अग्नि स्नान के समय उठने वाली लपटों से कई बार उस बरगद के पेड़ तक को नुकसान पहुंचा हैं जिसके नीचे सदियों से माता रानी विराजमान हैं।

पांडवों और राजा जयसिंह ने की थी पूजा

मंदिर के पुजारियों का कहना है कि हजारों साल से विराजित माता ईडाणा अचानक अग्नि स्नान करती हैं। इसके पीछे का कारण किसी को नहीं पता है। मंदिर के आसपास अगरबत्ती नहीं लगाई जाती है, ताकि लोगों को भ्रम ना हो। उन्होंने यह बताया कि सदियों पहले यहां से पांडव गुजर रहे थे तो उन्होंने माता ईडाणा की पूजा की थी। साथ ही एशिया के सबसे बड़ी मीठे पानी की झेल जयसमंद के निर्माण के समय राजा जयसिंह भी मंदिर पहुंसे थे और पूजा की थी। यहां अखंड ज्योत चलती है, जो कांच के अंदर रखी रहती है।

चौबीसो घंटे खुला रहता है ईडाणा माता का दरबार

इस शक्ति पीठ की विशेष बात यह है कि यहां माता के द्वार और दर्शन चौबीस घंटें खुले रहते हैं। यहां भक्त कभी भी अपनी मुरादें लेकर आते हैं जिन्हें माता पूरा करती हैं। प्रात: साढ़े पांच बजे आरती, सात बजे श्रृंगार दर्शन, सायं सात बजे सायं आरती दर्शन यहां के प्रमुख दर्शन हैं।

बीमारियां होती हैं दूर

ईडाणा माता मंदिर के दर्शन के लिए दूर-दूर से भक्त जन अर्जी लगाने आते हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर में दर्शन मात्र से भक्तों की सभी बीमारियां दूर हो जाती हैं। यही नहीं, यहां खासतौर पर लकवे से ग्रसित मरीज अपने इलाज के लिए आते हैं। मुख्य रूप से यहां लकवा मरीजों का इलाज होता है। ऐसा कहा जाता है कि अगर कोई लकवाग्रस्त व्यक्ति यहां आता है तो वह यहां से स्वस्थ्य होकर ही लौटता है। यहां लकवाग्रस्त से यज्ञ करवाया जाता है तथा मंदिर के तलधर में बने हॉल में एक लोहे के द्वार से लकवाग्रस्त व्यक्ति को गुजारा जाता है। सभी लकवा ग्रस्त रोगी रात्रि में ईडाणा माता की प्रतिमा के सामने स्थित चौक में आकर सोते है। यहां सोने के पीछे माना यह जाता हैं कि माता अपनी परछाई डालती हैं उससे ही लकवे के रोगी ठीक होते हैं।

त्रिशूल और चूनर है मां का चढ़ावा

ईडाणा माता को मुख्य रूप से त्रिशूल चढ़ाया जाता है और चुनरी चढ़ती है। मान्यता है कि माता को त्रिशूल और चुनरी चढ़ाने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और निःसंतान दंपत्तियों को संतान की प्राप्ति होती है। वहां के स्थानीय लोगों के अनुसार इस मंदिर में महीने में 2 से 3 बार अपने आप ही अग्नि प्रज्ज्वलित होने लगती है और ईडाणा माता इसी अग्नि में स्नान करती हैं। ईडाणा माता का अग्निस्नान कभी कभी एक महीने में 3-4 बार होता है तो कभी साल भर तक नहीं होता! इस दौरान मंदिर परिसर में आग की ऊंची लपटे निकलती है। अग्नि की लपटें 20 फिट तक होती हैं लेकिन अग्नि का रहस्य अभी तक कोई सुलझा नहीं पाया है। कहा जाता है कि इसी अग्नि स्नान के कारण यहां मां का मंदिर नहीं बन पाया है और माता खुले आसमान के नीचे निवास करती हैं।

कैसे पहुंचे ईडाणा माता के दरबार

आश्चर्य से भरपूर इस अद्भुत मंदिर के दर्शन हेतु आपको भी कम से कम एक बार जरूर जाना चाहिये। उदयपुर से 60 किलोमीटर दूर बंबोरा होकर ईडाणा माता मंदिर पहुंचा जा सकता है। उदयपुर से रामेश्वर महादेव मार्ग पर गिंगला होकर ईडाणा माता के धाम तक पहुंचा जाता है। इसके अलावा सलूंबर से लूदो होकर या लसाड़िया माता के मंदिर जाने का मार्ग है। माता रानी की प्रातः 5 बजे और संध्या 6:30 बजे आरती की जाती है। वहीं नवरात्रि के इस पर्व पर 9 दिनों तक यज्ञशाला में माता का पाठ और यज्ञ किया जाता है, जिसमें पंडित मां की विधि विधान से पूजा अर्चना करते हैं। इस दौरान माता को विशेष भोग चढ़ाया जाता है।
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