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November 28, 2025

हज़ार वर्ष पुराना चमत्कार-तंजावुर का बृहदीश्वर मंदिर, भारत की अद्भुत प्राचीन इंजीनियरिंग का अनूठा नमूना

The CSR Journal Magazine

 

दक्षिण भारत के तंजावुर में स्थित बृहदीश्वर मंदिर, जिसे ‘राजराजेश्वरम’ भी कहा जाता है, सिर्फ एक धार्मिक धरोहर नहीं, बल्कि भारतीय वास्तु, विज्ञान, गणित और इंजीनियरिंग कौशल का वह जीवित प्रमाण है, जिसने हज़ार से अधिक वर्षों का सफ़र बिना झुके, बिना टूटे और बिना अपनी अस्मिता खोए तय किया है। चोल सम्राट राजराज चोल प्रथम द्वारा 1010 ईस्वी में निर्मित यह मंदिर आज भी विश्व को चकित करता है।

बृहदीश्वर मंदिर: एक हज़ार वर्ष पुराना इंजीनियरिंग का चमत्कार

तंजावुर का बृहदीश्वर मंदिर भारत की प्राचीन वास्तुकला और इंजीनियरिंग का ऐसा उदाहरण है, जो आज भी दुनिया को आश्चर्यचकित करता है। इस मंदिर का नाम है बृहदेश्वर मंदिर। तमिलनाडु के तंजौर में स्थित होने के कारण इसे तंजौर के मंदिर के नाम से, और पेरुवुदैयार कोविल के नाम से भी जाना जाता है। भगवान शिव को समर्पित, एक विशाल ‘लिंगम’ के रूप में, यह यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल की सूची में भी शामिल है। इसका निर्माण 1003-1010 ई. के बीच चोल शासक प्रथम राजराज चोल ने करवाया था। उनके नाम पर ही इसे ‘राजराजेश्वर मंदिर’ के नाम से भी जाना जाता है। कहते हैं कि इस मंदिर को बनाने को लेकर उन्हें एक सपना आया था, जब वो श्रीलंका की यात्रा पर निकले हुए थे। यह मंदिर न केवल अपनी आध्यात्मिक भव्यता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि अपनी तकनीकी अद्भुतता के लिए भी!

इंटरलॉकिंग तकनीक का अनूठा उदाहरण

216 फुट ऊंचा विशाल विमाना, 1,30,000 टन ग्रेनाइट से बना यह मंदिर बिना किसी सीमेंट या चूने के सिर्फ इंटरलॉकिंग पत्थरों की तकनीक से खड़ा किया गया है। ग्रेनाइट 60 किलोमीटर दूर से लाया गया और मंदिर की चोटी पर रखा गया 81 टन का एकल पत्थर आज भी इंजीनियरिंग के लिए चुनौती बना हुआ है। आश्चर्य यह भी, कि बिना गहरी खुदाई के बनी नींव ने इसे कई सदियों में आए भूकंपों से सुरक्षित रखा और इसमें ज़रा भी झुकाव नहीं आया।चोलकालीन कला, मूर्तिकला, चित्रकला और ज्यामितीय संतुलन बृहदीश्वर मंदिर को एक जीवित संग्रहालय बनाते हैं। यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल यह स्मारक प्रमाण है कि भारत की प्राचीन वैज्ञानिक और वास्तु परंपरा कितनी उन्नत थी।

प्राचीन भारत का इंजीनियरिंग चमत्कार

बृहदीश्वर मंदिर के निर्माण में उस समय के उपलब्ध संसाधनों का जो अद्भुत उपयोग हुआ, वह आधुनिक इंजीनियरिंग के मानकों को भी चुनौती देता है। बताया जाता है कि इस विशाल संरचना में इंटरलॉकिंग स्टोन टेक्नीक का प्रयोग किया गया। यानि पत्थर ऐसे जोड़े गए कि उनमें किसी प्रकार के सीमेंट, चूना या चिपकाने वाले पदार्थ की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। यही कारण है कि यह मंदिर सदियों में आए कई भूकंपों को बिना किसी झुकाव के सह गया, जबकि दुनिया के प्रसिद्ध टॉवर, जैसे Big Bang London और Leaning Tower Of Pisa Italy झुकाव के लिए कुख्यात हैं।

धरती पर नहीं पड़ती बृहदीश्वर मंदिर की छाया

बृहदीश्वर मंदिर से जुड़े सबसे दिलचस्प रहस्यों में से एक इसकी छाया का अभाव है। अपनी विशाल ऊंचाई के बावजूद, मंदिर ज़मीन पर अपनी छाया नहीं डालता, जिससे आगंतुक आश्चर्यचकित रह जाते हैं। यह दृष्टि भ्रम मंदिर की संरचना की अद्भुत डिज़ाइन के कारण है, जहां पत्थरों की व्यवस्था एक स्पष्ट छाया बनने से रोकती है। कहानियों के अनुसार, जब मंदिर बनकर तैयार हुआ, तो राजा राजराज चोल ने वास्तुकार से इसकी स्थिरता के बारे में पूछा। जवाब में, वास्तुकार पेरुंथचन ने घोषणा की, “इसकी छाया भी नहीं पड़ेगी, राजा!”

उंचाई, भार और अद्भुत संतुलन

216 फुट ऊंचा टॉवर उस समय दुनिया की सबसे ऊंची हिंदू मंदिर संरचना माना जाता था। मंदिर में प्रयुक्त कुल सामग्री का वजन लगभग 1,30,000 टन माना जाता है, और वह भी ऐसे क्षेत्र में जहां ग्रेनाइट की खुदाई संभव नहीं थी। यह ग्रेनाइट 60 किलोमीटर दूर से लाया गया। लोककथाओं में वर्णित है कि इसके लिए हजारों हाथियों की सहायता ली गई, जो स्वयं इस निर्माण की भव्यता का प्रतीक है। सबसे विस्मयकारी तथ्य यह है कि मंदिर की चोटी पर स्थित ‘शिखर-कलश’ एक अकेला ग्रेनाइट का ब्लॉक 81 टन का है। आज भी यह सवाल इंजीनियरिंग जगत में चर्चा का विषय है कि इतने भारी पत्थर को 11वीं शताब्दी में, बिना आधुनिक क्रेन या मशीनरी के, इतनी ऊंचाई तक कैसे ले जाया गया?

बिना गहरी खुदाई के स्थिर नींव- एक रहस्य

कहा जाता है कि बृहदीश्वर मंदिर की नींव गहरी खुदाई करके नहीं बनाई गई, बल्कि इसे सतह पर हजारों टन भार को समान रूप से वितरित करने वाली तकनीक से खड़ा किया गया। यह संरचना भार-संतुलन (Load Distribution) का ऐसा उत्कृष्ट उदाहरण है जिसने भूकंपों के झटकों को भी मात दे दी।

कलात्मक भव्यता और आध्यात्मिक दर्शन

चोल वंश की वास्तु परंपरा अपने आप में अनोखी थी। बृहदीश्वर मंदिर का प्रत्येक स्तंभ, भित्तिचित्र, प्रतिमा और शिल्प न सिर्फ कलात्मक रूप से उत्कृष्ट है, बल्कि उनमें वैज्ञानिक अनुपात, गणित और ज्यामिति की गहरी समझ भी दिखाई देती है। विशाल नंदी प्रतिमा, 12 फुट ऊंची और एक ही पत्थर से निर्मित, इस कला की शक्ति को और भी स्पष्ट करती है। इसके अलावा, मंदिर की दीवारों पर अंकित दशकों पुरानी चित्रकला चोलकालीन समाज, सेना, वाद्ययंत्र और नृत्य रूपों को जीवंत रूप से दर्शाती है। यह मंदिर सिर्फ पूजा स्थल नहीं, बल्कि एक सदियों पुराना सांस्कृतिक संग्रहालय भी है।

भूकंप, समय और मौसम की मार के बावजूद अडिग बृहदीश्वर मंदिर

कहा जाता है कि मंदिर ने लगभग छह बड़े भूकंपों का सामना किया, फिर भी इसमें न तो दरारें आईं, न झुकाव ! यह तथ्य विश्वभर के आर्किटेक्ट्स और इतिहासकारों को आज भी हैरान करता है। इसकी पत्थर-जुड़ाई  तकनीक, भार-वितरण व्यवस्था और संतुलन का ऐसा सटीक संयोजन आधुनिक इंजीनियरिंग को भी नया दृष्टिकोण देता है।

क्यों है बृहदीश्वर विश्व विरासत का ख़ज़ाना !

आज बृहदीश्वर मंदिर UNESCO विश्व धरोहर सूची का हिस्सा है और ‘ग्रेट लिविंग चोल टेम्पल्स’ का मुख्य स्तंभ भी। यह केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं, यह वैदिक ज्ञान, भारतीय गणित, शिल्प-कला, भौतिक विज्ञान और इंजीनियरिंग कौशल का अमर स्मारक है। भारत की प्राचीन वैज्ञानिक परंपरा अक्सर आधुनिक विमर्श में नजरअंदाज कर दी जाती है। परंतु बृहदीश्वर मंदिर गर्व से खड़ा है यह बताने के लिए कि भारत केवल आध्यात्मिकता की भूमि ही नहीं, बल्कि विज्ञान, तर्क, वास्तुकला और उन्नत निर्माण तकनीक की भी अनुपम जन्मभूमि रहा है।

बृहदीश्वर मंदिर- हमारी धरोहर, हमारा गर्व

जब हम बृहदीश्वर मंदिर को देखते हैं, तो वह केवल एक भव्य संरचना नहीं दिखती, वह एक सभ्यता की वैज्ञानिक बुद्धि, श्रम, कलात्मकता और सांस्कृतिक समृद्धि की पूर्ण अभिव्यक्ति प्रतीत होती है। ऐसे मंदिर केवल धार्मिक स्थान नहीं होते! वे हमारी पहचान, हमारी जड़ों और हमारी तकनीकी उपलब्धियों का इतिहास होते हैं। भारत के लिए यह मंदिर सिर्फ अतीत का गौरव नहीं, बल्कि विश्व को यह संदेश देने वाला स्थायी स्मारक है कि प्राचीन भारतीय इंजीनियरिंग कोई रहस्य नहीं, बल्कि वास्तविकता थी और आज भी हमारे सामने गर्व से खड़ी है।
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