app-store-logo
play-store-logo
December 11, 2025

महाराष्ट्र की EV टोल-माफी में छेद: जनता की जेब से निकला पैसा, सिस्टम रहा खामोश !

The CSR Journal Magazine

 

महाराष्ट्र में इलेक्ट्रिक वाहनों पर टोल पूरी तरह माफ, अवैध वसूली पर विधानसभा में हंगामा! सरकार को 8 दिनों में सख्त कार्रवाई और रिफंड व्यवस्था लागू करने का आदेश! महाराष्ट्र में इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) के लिए घोषित टोल माफी पर अमल न होने का मुद्दा विधानसभा में गरमा गया। विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने इसे “गंभीर प्रशासनिक चूक” बताते हुए सरकार को अगले आठ दिनों में टोल माफी पूरी तरह लागू करने और गलत तरीके से वसूला गया टोल तुरंत बंद करने का सख्त निर्देश दिया है। नीति से अधिक क्रियान्वयन मायने रखता है और यहीं सरकार पिछड़ती दिखी!

टोल-माफी की घोषणा, वसूली का सच- महाराष्ट्र की EV नीति पर बड़ा सवाल

महाराष्ट्र सरकार की इलेक्ट्रिक वाहन (EV) नीति को लेकर जारी विवाद अब सिर्फ “एक तकनीकी गलती” भर नहीं रह गया है। यह राज्य के प्रशासनिक तंत्र, उसकी कार्य-क्षमता, और नीतियों के क्रियान्वयन में फैली शिथिलता का एक बड़ा प्रतीक बन चुका है। मई 2025 में जिस ऊंचे उत्साह और बड़े वादों के साथ सरकार ने EV नीति की घोषणा की थी, उसका जमीनी असर 22 अगस्त 2025 के बाद भी दिखाई नहीं दिया क्योंकि कई टोल प्लाज़ा पर अभी तक इलेक्ट्रिक वाहनों से टोल वसूला जा रहा था। विधानसभा में जब यह मुद्दा उठा, तो यह केवल एक शिकायत नहीं रही, यह राज्य के उस ढांचे की पोल खोलने वाली सच्चाई बन गई, जिसमें नीति बनाने वाले और नीति को लागू करने वाले महकमों के बीच गहरी खाई साफ़ दिखाई देती है।

टोल-माफी: सरकार का बड़ा वादा, लेकिन जमीन पर हकीकत उलट

सरकार ने जब मई 2025 में EV नीति का ऐलान किया था, तब इसे एक ऐतिहासिक कदम कहा गया। यह दावा किया गया कि महाराष्ट्र आने वाले वर्षों में भारत का “EV कैपिटल” बनेगा, चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर से लेकर ई-गतिशीलता तक, हर स्तर पर तेज़ प्रगति होगी। इस पूरी नीति में सबसे बड़ा आकर्षण था, राज्यभर के प्रमुख मार्गों पर EVs को टोल-मुक्त करना !  यानी, सरकार के अनुसार- पर्यावरण सुरक्षित होगा, लोग EV अपनाने के लिए प्रेरित होंगे और वाहन खर्च में बड़ी राहत मिलेगी। लेकिन नीति घोषित करना और उसे लागू करना, दोनों में जमीन-आसमान का अंतर होता है। 22 अगस्त की निर्धारित तिथि बीत गई, लेकिन ना तो सिस्टम अपडेट हुआ, ना ही टोल प्लाज़ा तैयार हुए। परिणाम यह हुआ कि तमाम EV मालिकों ने टोल मुक्त सड़क का सपना देखते हुए, रोज़ाना टोल काटते हुए सफर जारी रखा। यह बताता है कि मुद्दा केवल तकनीकी गलती का नहीं, बल्कि पूर्व-योजना की विफलता का है।

तकनीकी एकीकरण असफल: FAStag- VAHAN का तालमेल टूटा हुआ

राष्ट्रीय टोलिंग सिस्टम FAStag को वाहन की जानकारी देने वाला VAHAN पोर्टल अब तक EV और नॉन- EV के बीच का अंतर ठीक से नहीं बता पा रहा था। यह एक ऐसा तकनीकी एकीकरण था जिसे EV नीति लागू होने के साथ ही प्राथमिकता से पूरा किया जाना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ, और इसके परिणाम गंभीर थे-
EV की पहचान नहीं होने पर सिस्टम उसे आम वाहन की श्रेणी में डाल देता,
टोल अपने-आप कट जाता,
ड्राइवर विरोध करते तो कर्मचारी कहते- “सिस्टम में दिक्कत है, बाद में देखिए।”
यह न केवल तकनीकी क्षमता की कमी को उजागर करता है, बल्कि यह सवाल भी उठाता है कि करोड़ों रुपए खर्च कर बनाए गए डिजिटल ढांचे का उपयोग आखिर कब सही तरीके से होगा?

विधानसभा का हस्तक्षेप: अध्यक्ष नार्वेकर का कड़ा संदेश

जब सदन में यह मुद्दा उठा, तो स्थिति और स्पष्ट हुई।
विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने जिस दृढ़ता के साथ इस मामले को लिया, वह प्रशासन के प्रति एक गंभीर चेतावनी के रूप में देखा जाना चाहिए। अध्यक्ष ने स्पष्ट शब्दों में कहा-
नीति लागू हो चुकी है,
जनता से वसूली पूरी तरह अवैध है,
और विभागों की धीमी गति अस्वीकार्य है।
उन्होंने सरकार को आठ दिनों के भीतर पूरी व्यवस्था सुधारने और टोल वसूली तत्काल बंद करने के आदेश दिए। यह कदम सही दिशा में है, लेकिन यह भी दर्शाता है कि यदि किसी नीति को लागू कराने के लिए अध्यक्ष को हस्तक्षेप करना पड़े, तो विभागीय कार्यप्रणाली में भरोसे की कमी पहले से मौजूद है।

रिफंड व्यवस्था: जनता के साथ न्याय या एक नई मुसीबत?

सरकार ने EV मालिकों का टोल रिफंड करने के लिए एक अलग तंत्र बनाने का वादा किया है।
कागजों में यह एक प्रशंसनीय कदम है लेकिन व्यावहारिक रूप में यह कितना आसान होगा?
क्या सभी EV मालिकों ने महीनों की रसीदें संभाल कर रखी होंगी? क्या हर टोल प्लाज़ा मदद करेगा?
क्या ऑनलाइन पोर्टल सही चलेगा?
रिफंड एक अधिकार जरूर है, लेकिन यह एक नया प्रशासनिक पहाड़ भी हो सकता है, जिसे चढ़ना EV मालिकों के लिए उतना आसान नहीं होगा और यह बात भी समझने योग्य है कि प्रशासनिक गलती की भरपाई आम नागरिकों को “प्रमाण इकट्ठा करके” क्यों करनी पड़े? सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि रिफंड प्रक्रिया सरल हो, केंद्रीकृत हो और पारदर्शी हो, अन्यथा, लोगों का भरोसा टूट सकता है।

EV मालिकों का आक्रोश: नीति बनी लेकिन फायदा नहीं मिला

राज्यभर में EV चलाने वालों की प्रतिक्रियाएं एक जैसी थीं-
“टोल नहीं कटना चाहिए था, लेकिन कट गया!”
“कर्मचारी कहते थे कि सिस्टम अपडेट नहीं हुआ।”
“कई बार हमें सामान्य वाहनों की लाइन में खड़ा कर दिया जाता था।”
ये शिकायतें किसी एक या दो टोल प्लाज़ा की नहीं थीं, यह एक संरचनात्मक समस्या थी। यानी, विभागों ने EV नीति की तैयारी में आवश्यक ध्यान नहीं दिया। EV मालिकों का कहना सही है कि नीति अच्छी थी, लेकिन लागू न होने से उसका लाभ ‘शून्य’ हो गया।

प्रशासनिक विफलता: नीति घोषणाएं तेज़, तैयारी सुस्त

यह पूरा मामला एक बड़ी सीख देता है। भारत में नीतियां बड़े शोर-शराबे के साथ घोषित हो जाती हैं, लेकिन उनका क्रियान्वयन अक्सर उस उत्साह से मेल नहीं खाता। महाराष्ट्र की EV नीति इसका ताजा उदाहरण है जहां-
नीति बनाई गई,
तारीख तय की गई,
प्रेस रिलीज़ जारी हुई,
लेकिन सबसे बुनियादी काम- सिस्टम अपडेट समय पर नहीं हुआ!
और यह वही गलती है जिसके कारण हजारों EV मालिक प्रभावित हुए। सरकार को नीतियां बनाने के साथ-साथ उन नीतियों को लागू करने वाले ढांचे पर भी उतना ही ध्यान देना चाहिए, वरना विकास और तकनीक दोनों अधूरे रह जाते हैं।

EV ढांचे का भविष्य: क्या महाराष्ट्र सीख लेगा?

EV भविष्य की आवश्यकता है, यह बात सब मानते हैं लेकिन EV से संबंधित ढांचे को मजबूत बनाना सिर्फ वाहनों की बिक्री बढ़ाने या टोल माफ करने से पूरा नहीं होता। इसके लिए जरूरी है-
मजबूत डिजिटल सिस्टम,
समयबद्ध अपडेट,
विभागों के बीच तालमेल,
और जमीन पर सक्रिय निगरानी।
यदि महाराष्ट्र वास्तव में भारत का EV हब बनना चाहता है, तो उसे इस मामले को एक चेतावनी की तरह देखना चाहिए। यह वह क्षण है जब सरकार दक्षता सिद्ध कर सकती है या फिर नीतियों को राजनीतिक घोषणाओं तक सीमित होने दे सकती है।

EV नीति की असली परीक्षा अब शुरू हुई है

EV टोल-माफी विवाद सिर्फ एक प्रशासनिक चूक नहीं है। यह सरकार की प्राथमिकताओं, उसकी तैयारी, और सिस्टम की क्षमता का परीक्षण है। अब जबकि विधानसभा अध्यक्ष ने आठ दिनों की समय-सीमा तय कर दी है, सरकार के पास दो ही रास्ते हैं-
1. या तो वह इस समस्या को तेजी से और कुशलता से सुधारकर जनता का भरोसा जीत ले,
2. या फिर यह मामला एक और उदाहरण बन जाए कि भारत में नीतियां घोषणा में ही चमकती हैं, जमीन पर नहीं।
हर स्थिति में, EV मालिकों की नजरें अब सरकार पर टिकी हैं। क्या आने वाले दिनों में यात्रा वाकई टोल-मुक्त होगी?
क्या रिफंड आसानी से मिलेगा?
क्या सिस्टम सही से काम करेगा?
इसका जवाब आने वाले दिनों में सामने आएगा।
Long or Short, get news the way you like. No ads. No redirections. Download Newspin and Stay Alert, The CSR Journal Mobile app, for fast, crisp, clean updates!

Latest News

Popular Videos