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September 5, 2025

शिक्षक दिवस- लार्ड मैकाले का स्मरण-पत्र ‘Minute’ जिसने बदल दी भारत की शिक्षा प्रणाली 

The CSR Journal Magazine
शिक्षक ही वह दीपक है जो अज्ञान के अंधकार को मिटाकर ज्ञान का उजाला फैलाते हैं। वे सिर्फ किताबों का पाठ नहीं पढ़ाते, बल्कि जीवन जीने की सच्ची राह दिखाते हैं। हर साल 5 सितंबर को भारत के पूर्व राष्ट्रपति और महान दार्शनिक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन पर शिक्षक दिवस मनाया जाता है। भारत में शिक्षक दिवस का दिन पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को समर्पित है। एक राजनीतिज्ञ होने के साथ वह एक बेहतरीन शिक्षक, विद्वान और प्रसिद्ध दार्शनिक भी थे। साल 1888 में तमिलनाडू के तिरुत्तनी में 5 सितंबर को ही उनका जन्म हुआ था। यह दिन हमें याद दिलाता है कि हमारे जीवन की हर सफलता के पीछे किसी न किसी शिक्षक का मार्गदर्शन और आशीर्वाद छिपा होता है। लेकिन भारत में अंग्रेज़ों के शासनकाल के दौरान देश की समृद्ध सनातनी शिक्षा प्रणाली में ऐसा बदलाव आया, जिसने हमारी गुरुकुल व्यवस्था का ढाँचा पूरी तरह ध्वस्त कर दिया।

भारत में आधुनिक शिक्षा व्यवस्था की नींव

क्‍या आपने कभी सोचा है कि भारत के लोग यूके की अंग्रेजी का उपयोग क्यों करते हैं? और इसे किसने शुरू किया? वह व्‍यक्ति हैं थॉमस बैबिंगटन, जिसे लॉर्ड मैकाले (Lord Macaulay) के नाम से भी जाना जाता है। इन्‍हें भारत में अंग्रेजी भाषा और आधुनिक भारतीय शिक्षा का जनक माना जाता है। उस समय के गवर्नर जनरल विलियम बैंटिक ने उनकी योग्यताओं से प्रभावित होकर उन्हें लोक शिक्षा समिति का सभापति नियुक्त कर दिया। इनका कार्य प्राच्यवादी (Oriental Literature) तथा पाश्चात्यवादी (Westernist) विवाद पर मध्यस्थता करना था। इसी समस्या की कानूनी सलाह के लिए 2 फरवरी, 1835 को लॉर्ड मैकाले ने अपना प्रसिद्ध स्मरण-पत्र (Minute) गवर्नर जनरल की परिषद के समक्ष प्रस्तुत किया, जिसे गवर्नर विलियम बैंटिक ने स्वीकार करते हुए अंग्रेजी शिक्षा अधिनियम, 1835 पारित किया। इसने भारत में आधुनिक ब्रिटिश शिक्षा की नींव रखी।

लॉर्ड मैकाले- भारतीय शिक्षा व्यवस्था का रुख़ बदलने वाला अंग्रेज़

लॉर्ड मैकाले, जिसका पूरा नाम ‘थॉमस बैबिंगटन मैकाले’ था, प्रसिद्ध अंग्रेज़ी कवि, निबन्धकार, इतिहासकार तथा राजनीतिज्ञ था। मैकाले का जन्म 25 अक्टूबर, 1800 ई. में हुआ था और मृत्यु 28 दिसम्बर, 1859 ई. में हुई थी। एक निबन्धकार और समीक्षक के रूप मे उसने ब्रिटिश इतिहास पर जमकर लिखा था। सन् 1834 ई. से 1838 ई. तक वह भारत की सुप्रीम काउंसिल में लॉ मेंबर तथा लॉ कमिशन का प्रधान रहा। भारतीय दंड विधान से सम्बन्धित प्रसिद्ध ग्रंथ ‘दी इंडियन पीनल कोड’ की लगभग सभी पांडुलिपि इसी ने तैयार की थी। अंग्रेज़ी भाषा को भारत की सरकारी भाषा तथा शिक्षा का माध्यम और यूरोपीय साहित्य, दर्शन तथा विज्ञान को भारतीय शिक्षा का लक्ष्य बनाने में इसका बड़ा हाथ था।

भारतीय दंड संहिता का जनक

1823 ई. में मैकाले बैरिस्टर बना, परन्तु उसने बैरिस्टरी करने की अपेक्षा सार्वजनिक जीवन पसन्द किया। वह 1830 ई. में ब्रिटिश पार्लियामेन्ट का सदस्य चुना गया, और 1834 ई. मे गवर्नर-जनरल की एक्जीक्यूटिव कौंसिल का पहला क़ानून सदस्य नियुक्त होकर भारत आया। भारत का प्रशासन उस समय तक जातीय द्वेष तथा भेदभाव पर आधारित तथा दमनकारी था। उसने ठोस उदार सिद्धान्तों पर प्रशासन चलाने की कोशिश की। उसने भारत में समाचार पत्रों की स्वाधीनता का आन्दोलन किया, क़ानून के समक्ष यूरोपियों और भारतीयों की समानता का समर्थन किया। अंग्रेज़ी के माध्यम से पश्चिमी ढंग की उदार शिक्षा-पद्धति आरम्भ की और दंड विधान का मसविदा तैयार किया, जो कि बाद में ‘भारतीय दंड संहिता’ का आधार बना। लार्ड मैकाले द्वारा 1934 में जो शिक्षा पद्धति अपनाई गई वह इसी योजना का एक अंग था।

भारत को मानसिक गुलामी देने वाला मैकाले

वर्तमान शिक्षा पद्धति के बारे में स्वंय मैकाले ने कहा था कि जो शिक्षा पद्धति मैं लागू कर रहा हूं उसके पाठ्यक्रम के अनुसार यहां के शिक्षित युवक देखने में हिंदुस्तानी लगेंगे किंतु उनका मस्तिष्क अंग्रेजियत से भरा होगा। तब वे अंग्रेजो की कठपुतली व रोबोट की तरह नाचेंगे। इंग्लैंड में पहला स्कूल 1811 में खुला उस समय भारत में 7,32,000 गुरुकुल थे, आइए जानते हैं हमारे गुरुकुल कैसे बन्द हुए। हमारे सनातन संस्कृति परम्परा के गुरुकुल में क्या-क्या पढाई होती थी, ये जान लेना पहले जरूरी है। प्राचीन काल में भारत में आज से भी ज़्यादा विषयों पर, या यूं कहें, जीवन के गूढ़ तथ्यों पर आधारित शिक्षा पद्धति अपनी जाती थी।
अग्नि विद्या, वायु विद्या, जल विद्या, अंतरिक्ष विद्या, पृथ्वी विद्या, सूर्य विद्या, चन्द्र व लोक विद्या, मेघ विद्या, पदार्थ विद्युत विद्या, सौर ऊर्जा विद्या, दिन रात्रि विद्या, सृष्टि विद्या, खगोल विद्या, भूगोल विद्या, काल विद्या, भूगर्भ विद्या, रत्न व धातु विद्या, आकर्षण विद्या, प्रकाश विद्या, तार विद्या, विमान विद्या, जलयान विद्या, अग्नेय अस्त्र विद्या, जीव जंतु विज्ञान विद्या, यज्ञ विद्या आदि जैसी विधाएं सिखाई जाती थीं।
ये तो बात हुई वैज्ञानिक विद्याओं की, अब बात करते है व्यावसायिक और तकनीकी विद्या की जिसमें, वाणिज्य, कृषि, पशुपालन, पक्षीपालन, पशु प्रशिक्षण, यान यन्त्रकार, रथकार, रतनकार, सुवर्णकार, वस्त्रकार, कुम्भकार, लोहकार, तक्षक, रंगसाज, खटवाकर, रज्जुकर, वास्तुकार, पाकविद्या, सारथ्य, नदी प्रबन्धन, सुचीकार, गोशाला प्रबन्धक, उद्यान पाल, वन पाल, नापित आदि।
जिस देश के गुरुकुल इतने समृद्ध हों उस देश को आखिर कैसे गुलाम बनाया गया होगा ?

दुनिया की सबसे समृद्ध शिक्षा प्रणाली वाला देश भारत

मैकाले का स्पष्ट कहना था कि भारत को हमेशा-हमेशा के लिए अगर गुलाम बनाना है तो इसकी “देशी और सांस्कृतिक शिक्षा व्यवस्था” को पूरी तरह से ध्वस्त करना होगा और उसकी जगह “अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था” लानी होगी और तभी इस देश में शरीर से हिन्दुस्तानी लेकिन दिमाग से अंग्रेज पैदा होंगे और जब इस देश की यूनिवर्सिटी से निकलेंगे तो हमारे हित में काम करेंगे। मैकाले ने इसके तहत ‘अधोगामी निस्पंदन का सिद्धांत’ (Downward Filtration Theory) दिया, जिसके तहत, भारत के उच्च तथा मध्यम वर्ग के एक छोटे से हिस्से को शिक्षित करना था जिससे एक ऐसा वर्ग तैयार हो, जो रंग और खून से भारतीय हो, लेकिन विचारों और नैतिकता में ब्रिटिश हो। यह वर्ग सरकार तथा आम जनता के मध्य एक कड़ी की तरह कार्य करे।

मैकाले के पत्र से पता चलता है भारत को होने वाला नुकसान

-मैकाले ने अपने विवरण पत्र से अंग्रेजी द्वारा पाश्चात्य सभ्यता को इस देश पर थोपने का प्रयास किया, जिससे हम अपनी भारतीय सभ्यता और संस्कृति को तिरस्कृत दृष्टि से देखें और हमें हीन भावना व्याप्त हो। उसने भारतीय भाषाओं को अविकसित और बेकार बताते हुए अपमान किया, फलस्वरूप भारतीय भाषाओं का विकास रुक गया।मैकाले ने प्राच्य साहित्य की आलोचना करते हुए कहा था कि, भारतीय संस्कृति और साहित्य की क्षमता यूरोप की किसी एक पुस्तकालय की एक अलमारी के बराबर है। यह मानकर मैकाले ने भारतीय संस्कृति तथा धर्म की महानता व सहिष्णुता का अपमान किया। मैकाले खुले तौर पर धार्मिक तटस्थता की नीति का दावा करता था, लेकिन उसकी आंतरिक नीति का खुलासा वर्ष 1836 में अपने पिता को लिखे एक पत्र से होता है, जिसमें मैकाले ने लिखा है कि,”मेरा दृढ़ विश्वास है कि यदि हमारी शिक्षा की यह नीति सफल हो जाती है तो 30 वर्ष के अंदर बंगाल के उच्च घराने में एक भी मूर्तिपूजक नहीं बचेगा।

भारत में थी समृद्ध गुरुकुल व्यवस्था 

1850 तक इस देश में ‘7 लाख 32 हजार’ गुरुकुल हुआ करते थे और उस समय इस देश में गांव थे ‘7 लाख 50 हजार!’ मतलब हर गांव में औसतन एक गुरुकुल, और ये जो गुरुकुल होते थे वो सब के सब आज की भाषा में Higher Learning Institute हुआ करते थे। उन सबमें 18 विषय पढ़ाए जाते थे और ये गुरुकुल समाज के लोग मिलके चलाते थे न कि राजा, महाराजा। अंग्रेजों का एक अधिकारी था G.W. Luther और दूसरा था Thomas Munro! दोनों ने अलग अलग इलाकों का अलग-अलग समय सर्वे किया था। Luther, जिसने उत्तर भारत का सर्वे किया था, उसने लिखा है कि यहां 97 प्रतिशत साक्षरता है और Munro, जिसने दक्षिण भारत का सर्वे किया था, उसने लिखा कि यहां तो 100 प्रतिशत साक्षरता है।

कोलकाता में खुला पहला अंग्रेजी फ्री स्कूल

मैकाले अक्सर कहा करता था, “जैसे किसी खेत में कोई फसल लगाने के पहले उसे पूरी तरह जोत दिया जाता है वैसे ही इसे जोतना होगा और अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी।” इस लिए उसने सबसे पहले गुरुकुलों को गैरकानूनी घोषित किया। जब गुरुकुल गैरकानूनी हो गए तो उनको मिलने वाली सहायता जो समाज की तरफ से होती थी वो गैरकानूनी हो गयी। फिर संस्कृत को गैरकानूनी घोषित किया और इस देश के गुरुकुलों को घूम घूम कर ख़त्म कर दिया, उनमें आग लगा दी, उसमें पढ़ाने वाले गुरुओं को उसने मारा- पीटा, जेल में डाला। गुरुकुलों में शिक्षा निःशुल्क दी जाती थी। इस तरह से सारे गुरुकुलों को ख़त्म किया गया और फिर अंग्रेजी शिक्षा को कानूनी घोषित किया गया और कलकत्ता में पहला कॉन्वेंट स्कूल खोला गया। उस समय इसे ‘Free School’ कहा जाता था। इसी कानून के तहत भारत में कलकत्ता यूनिवर्सिटी बनाई गयी, बम्बई यूनिवर्सिटी बनाई गयी, मद्रास यूनिवर्सिटी बनाई गयी, ये तीनों गुलामी ज़माने के यूनिवर्सिटी आज भी देश में मौजूद हैं।

भारतीय बच्चों के दिलोदिमाग से मिटायी भारतीयता

मैकाले ने अपने पिता को एक चिट्ठी लिखी थी, जिसका जिक्र अक्सर आधुनिक शिक्षा पद्धति पर कुठाराघात करने के लिए किया जाता है। बहुत मशहूर चिट्ठी है वो! मैकाले लिखता है कि-
“इन कॉन्वेंट स्कूलों से ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में तो भारतीय होंगे, लेकिन दिमाग से अंग्रेज होंगे और इन्हें अपने देश के बारे में कुछ पता नहीं होगा। इनको अपने संस्कृति के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपनी परम्पराओं के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने मुहावरे नहीं मालूम होंगे। जब ऐसे बच्चे होंगे इस देश में, तो अंग्रेज भले ही चले जाएं,  इस देश से अंग्रेजियत नहीं जाएगी।” मैकाले के प्रयासों के चलते अंग्रेजी को सरकारी कार्यों की भाषा घोषित कर दिया गया। मैकाले ने अंग्रेजी भाषा के पक्ष में इतने ठोस सुझाव दिए थे कि, अंग्रेजी भाषा का महत्व बढ़ गया। सरकार ने एक आदेश पत्र जारी किया, जिसमें निर्देश दिया गया कि, सरकारी नौकरी में अंग्रेजी का ज्ञान रखने वालों को वरीयता दी जाएगी। मैकाले की नीति को जहां एक तरफ लाभकारी माना जाता है, वहीं इससे भारतीय भाषाओं के विकास पर बहुत ही नकारात्‍मक प्रभाव पड़ा। हालांकि, कहा जा सकता है, कि आज के भारतीय शिक्षा के जनक मैकाले ही हैं।

अपनी समृद्ध विरासत छोड़कर हम बने अंग्रेजियत के ग़ुलाम

हमारी पुरानी शिक्षा पद्धति बहुत ही समृद्ध और विशाल थी और यही कारण था कि हम विश्वगुरु थे। हमारी शिक्षा पद्धति से पैसे कमाने वाले मशीन पैदा नहीं होते थे, बल्कि मानवता के कल्याण हेतु अच्छे और विद्वान इंसान पैदा होते थे। आज तो जो बहुत पढ़ा लिखा है वही सबसे अधिक भ्रष्ट है, वही सबसे बड़ा चोर है। हमने अपना इतिहास गवां दिया है ! क्योंकि अंग्रेज हमसे हमारी पहचान छीनने में सफल हुए। उन्होंने हमारी शिक्षा पद्धति को बर्बाद कर के हमें अपनी संस्कृति, मूल धर्म, ज्ञान और समृद्धि से अलग कर दिया। इस योजना में उसे सफलता भी मिली, आज हम सभ्य कहे जाने वाले समाज में अपनी भाषा में बोलने में हिचकिचाते हैं। आज हम अंग्रेजो के गुलाम नहीं हैं फिर भी अंग्रेजियत के गुलाम जरूर हैं और इस तरह आज आम आदमी का झुकाव अंग्रेजी भाषा की तरफ है। आज हमारी शिक्षा पद्धति में, शासन तंत्र में अंग्रेजी की ही झलक मिलती है। आज हम अंग्रेजी भाषा बोलने में, अंग्रेजी वेशभूषा में रहना अपना गौरव समझते हैं। और यहीं पर हमने लॉर्ड मैकाले के मिशन को सक्सेसफुल बनाने में उसकी मदद की है।
1947 के बाद हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने के बाद भी हम उसे राष्ट्रभाषा के सिंहासन पर नहीं बैठा पाए हैं।
स्वतंत्रता के बाद 1964 में कोठारी कमीशन लागू किया गया था, लेकिन इस कमीशन में भाषा, विज्ञान व कृषि तंत्र पर विशेष ध्यान दिया गया क्योकि देश को एक दिशा प्रदान करना था। 1986 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की अध्यक्षता में नई शिक्षा नीति बनाई गई जो अब तक चल रही है, लेकिन यह नई शिक्षा नीति भी पूर्णतः अंग्रेज़ी पर ही आधारित है।

आधुनिक शिक्षा प्रणाली में कमियां 

आधुनिक शिक्षा प्रणाली में मूल्यों और नैतिकता पर अधिकतर बारीकी से ध्यान नहीं दिया जाता है। इससे छात्रों में इस बात की भावना पैदा नहीं होती कि वे समाज के लिए जिम्मेदार हैं। अधिकतर स्कूलों में शिक्षकों की कमी होती है। यह शिक्षा प्रणाली की समस्याओं को और भी गंभीर बनाता है। शिक्षा प्रणाली में सूचना के तंत्र के अधिकारों की कमी हो रही है। यह स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर अधिकतर छात्रों को उचित सूचना नहीं प्रदान करता है। आजकल की शिक्षा व्यवस्था में बढ़ता कॉम्पीटिशन छात्रों के मन में तनाव पैदा कर रहा है जिससे मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बढ़ रही हैं। अधिकतर शिक्षा प्रणाली शारीरिक शिक्षा की उपेक्षा करती है। आधुनिक शिक्षा प्रणाली में अधिकतर लोग शिक्षा पाने के लिए स्कूल या कॉलेज में दाखिल होते हैं। इस प्रक्रिया में उनकी सामग्री, पढ़ाई की विधि और मूल्यों की प्रतिस्पर्धा इसकी क्वालिटी पर असर डालती हैं। इस समस्या का हल उनकी अधिकतम सम्भावनाओं और क्षमताओं को समझकर उन्हें उनके रुचि के अनुसार पढ़ाने और उन्हें समझने के लिए नए-नए तरीकों की विकसित करने में हो सकता है।विद्यार्थियों की संख्या में वृद्धि हो रही है। यह समस्या शिक्षण संस्थाओं द्वारा इंफ्रास्ट्रक्चर की अधिकतम उपयोग करने और उनकी क्षमताओं को अधिकतम संभावनाओं के साथ बढ़ाने से हल हो सकती है। इस समस्या का एक अन्य समाधान दूरदराज के शिक्षण संस्थानों और नई शिक्षण प्रणालियों को विकसित करने में हो सकता है ताकि अधिक संख्या में छात्रों के लिए स्थान उपलब्ध हो सके।

एक देश- एक पाठ्यक्रम की कमी

आधुनिक शिक्षा प्रणाली में एक और समस्या है कि विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में पाठ्यक्रमों में असंगठितता होती है। अलग-अलग राज्यों में यहां तक कि एक ही राज्य के भिन्न-भिन्न जिलों में भी पाठ्यक्रम भिन्न-भिन्न होते हैं। इससे छात्रों को समान शिक्षा का अधिकार नहीं मिलता है और उनकी तैयारी में भी दोष होते हैं। अधिकांश देशों में अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग भाषा बोली जाती है। इसलिए विद्यार्थियों के लिए अंग्रेजी के अतिरिक्त भाषा में शिक्षा उपलब्ध होना चाहिए। हालांकि, यह एक महत्वपूर्ण समस्या है जिसे सुलझाना आसान नहीं है। अधिकांश विद्यार्थी आधुनिक शिक्षा प्रणाली के तहत एक ही समय में अनेक गतिविधियों में भाग लेते हैं, जो समय की कमी और संघर्षों की भूमिका के लिए बनता है। अनुभवी शिक्षकों की अनुभवहीनता एवं डिजिटल संतुलन की कमी आधुनिक शिक्षा प्रणाली में समस्याएं बनाती है। शिक्षकों को उन्नत प्रदर्शन और विद्यार्थियों को उत्तम संरचना प्रदान करने के लिए अधिक डिजिटल उपकरणों का उपयोग करना चाहिए। अधिकतर विद्यार्थी आधुनिक शिक्षा प्रणाली में शामिल होते हैं ताकि वे एक बेहतर भविष्य के लिए तैयार हो सकें। हालांकि, यह उनके मूल्यों और जीवन दर्शन को कम करने की समस्या उत्पन्न करता है।

आधुनिक बनने के लिए अपनी आत्मा गंवा दी

जब जब हम अपने देश का इतिहास पढ़ेंगे तो गर्व भी महसूस करेंगे और रोएंगे भी, क्योंकि हमने जो गवां दिया है वो पैसों रुपयों से नहीं खरीदा जा सकता ! हमें एक बड़े पुनर्जागरण की जरूरत है। सरकारें आएंगी जाएंगी, इनसे बहुत उम्मीद करना बेवकूफी होगी। जनता जब तक नहीं जागती हम अपनी विरासत को कभी पुनः हासिल नहीं कर पाएंगे।
आज जो स्कूलों और कॉलेजों का हाल है, उसके बारे क्या ही कहा जाए! ! हम न जाने ऐसे लोग कैसे पैदा कर रहें हैं जिनमें जिम्मेवारी का कोई एहसास नहीं है। जिन्हें सिर्फ़ पद और पैसों से प्यार है। हम इतने असफल कैसे होते जा रहें हैं ? किसी भी समाज की स्थिति का अनुमान वहां के शैक्षणिक संस्थानों की स्थिति से लगाया जा सकता है। आज हम इसमें बहुत असफल हैं। हमने स्कूल और कॉलेज तो बना लिए लेकिन जिस उद्देश्य के लिए इसका निर्माण हुआ उसकी पूर्ति के योग्य इंसान और सिस्टम नहीं बना पाए !
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