तमिलनाडु के नागपट्टिनम ज़िले में स्थित वैथेश्वरन कोइल भारत के सबसे रहस्यमयी और ऐतिहासिक मंदिरों में गिना जाता है। यह मंदिर सिर्फ भगवान शिव के “वैद्य” स्वरूप का धाम ही नहीं है, बल्कि नाड़ी ज्योतिष जैसी अद्भुत परंपरा का प्रमुख केंद्र भी है, जिसमें माना जाता है कि ताड़पत्रों में हजारों वर्ष पहले आपके जीवन, भाग्य और नियति तक लिखे गए हैं, जिन्हें आपका अंगूठे का निशान खोज देता है।
Vaitheeswaran Koil मंदिर, जहां मिट्टी और जल में है जीवन
तमिलनाडु के नागपट्टिनम ज़िले की शांत भूमि पर स्थित वैथेश्वरन कोइल केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि आत्मा को शुद्ध करने वाला एक आध्यात्मिक तीर्थ है। यहां पहुंचते ही मन ऐसा लगता है जैसे हजारों वर्षों पुरानी सिद्ध परंपरा आपका स्वागत कर रही हो। हवा में हल्की धूप की सुगंध, घंटियों की गंभीर आवाज़ और मंत्रों का कंपन मिलकर ऐसा वातावरण रचते हैं कि मन स्वतः ध्यान में चला जाता है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर पांच-स्तरीय गोपुरम भक्तों को धीरे-धीरे भीतर आने का आह्वान करता है। शिव के ‘वैद्य’ स्वरूप की शांति पूरे परिसर में व्याप्त है। माना जाता है कि यहां की मिट्टी और जल दोनों में उपचार की शक्ति है। सिधामृत तीर्थम् के जलकुंड के दर्शन भर से मन में एक अनोखी स्वास्थ्य-कामना जाग उठती है।
वैथेश्वरन कोइल: अंगूठे के निशान से भाग्य जानने की सदियों पुरानी परंपरा का जीवंत केंद्र
नागपट्टिनम (तमिलनाडु) दक्षिण भारत के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक वैथेश्वरन कोइल मंदिर इन दिनों अपनी अनोखी परंपरा ‘नाड़ी ज्योतिष’ के लिए देश-विदेश के पर्यटकों का विशेष आकर्षण बना हुआ है। यह मंदिर भगवान शिव के वैद्य स्वरूप को समर्पित है और माना जाता है कि यहां की पूजा-अर्चना स्वास्थ्य और दीर्घायु प्रदान करती है। मंदिर के पास स्थित नाड़ी ज्योतिष केंद्र इस यात्रा का आध्यात्मिक चरम बन जाता है। यहां आपका अंगूठे का निशान सिर्फ एक पहचान नहीं, बल्कि आपके जीवन की अनकही कहानी को खोलने का माध्यम बनता है। ताड़पत्रों पर लिखे भविष्यवाणियों को जब ज्योतिषी धीरे-धीरे पढ़ना शुरू करता है, तो ऐसा लगता है मानो कोई अदृश्य शक्ति आपके जीवन को आपके सामने रख रही हो।
हज़ारों साल पहले दर्ज आने वाला भविष्य
कथा है कि हज़ारों वर्ष पहले सिद्ध ऋषि अगस्थ्य और अन्य तमिल सिद्धरों ने ध्यान और तपस्या में भविष्य को देख लिया था। उन्होंने लोगों के जीवन की कथाएं, जन्म, विवाह, संतान, कर्म, रोग, मृत्यु आदि ताड़पत्रों पर अंकित कीं। समय के साथ ये ताड़पत्र पीढ़ी दर पीढ़ी इसी क्षेत्र में संरक्षित किए गए। इससे यह परंपरा बनी कि जब व्यक्ति अपनी नियति जानने आता है, तभी उसका पत्ता उसे मिलता है। कहा जाता है कि इन ताड़पत्रों पर सबकी मृत्यु का समय भी दर्ज है, लेकिन ज्योतिषी तभी बताते हैं, जब आप पूछते हैं। पर कई लोग इसे जानना टाल देते हैं क्योंकि यह मानसिक रूप से कमजोर कर सकता है!
देवताओं का उपचार: शिव ने लिया ‘वैद्य’ रूप
पुराणों के अनुसार, देवताओं और असुरों के बीच एक भीषण युद्ध के बाद अनेक देवगण गंभीर रूप से घायल हो गए थे। देवताओं ने सहायता के लिए शिव का आह्वान किया और माना जाता है कि इसी वैथेश्वरन कोइल मंदिर स्थल पर भगवान शिव ने “वैद्य” अर्थात चिकित्सक का रूप धारण किया। कथा के अनुसार, शिव ने यहां औषधीय मिट्टी और पवित्र जल का उपयोग करके देवताओं के घाव भरे। इसी घटना के बाद इस मंदिर का नाम पड़ा वैथेश्वरन, यानी रोगों का नाश करने वाले भगवान शि व !
कार्तिकेय और सुरपदमन का युद्ध: विजय के बाद का उपचार स्थल
तमिल परंपरा की प्रमुख कथाओं में से एक यह है कि देवताओं के आग्रह पर कार्तिकेय (मुरुगन) ने असुर सुरपदमन का वध किया था। युद्ध इतना लंबा और उग्र था कि कार्तिकेय थकान और पीड़ा से निढाल हो गए। कथाओं में वर्णित है कि युद्ध के बाद कार्तिकेय वैथेश्वरन कोइल मंदिर में आए, जहां माता पार्वती और शिव ने उन्हें विश्राम का आदेश दिया। यहीं उन्होंने स्नान किया, ध्यान लगाया और खोई हुई ऊर्जा पुनः प्राप्त की। इस मान्यता के कारण यह मंदिर विजय के बाद पुनर्जीवन का प्रतीक भी माना जाता है।
श्रीराम का प्रायश्चित: रावण-वध के बाद आत्मशुद्धि
रामायण काल की एक महत्वपूर्ण कथा इस मंदिर से जुड़ी है। रावण भले ही राक्षस था, परंतु वह एक ब्राह्मण भी था। रावण-वध के बाद श्रीराम को पापबोध हुआ और उन्होंने ऋषियों से मार्गदर्शन मांगा। कथाओं के अनुसार, राम, लक्ष्मण और सीता सिधामृत तीर्थम् तक आए, जहां राम ने स्नान कर आत्मशुद्धि की। इसी क्षेत्र में उन्होंने शिवलिंग की स्थापना की और प्रायश्चित हेतु पूजा की। इसे वैथेश्वरन कोइल मंदिर का सबसे पवित्र स्थान माना जाता है।
सिधामृत तीर्थम्: अमृतवत जलकुंड की गाथा
मंदिर के भीतर स्थित प्रसिद्ध जलकुंड सिधामृत तीर्थम् को लेकर भी एक अनोखी कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि समुद्र मंथन के समय निकले अमृत का एक अंश देवताओं ने इसी स्थान पर सुरक्षित रखा था। बाद में शिव ने इसे ‘सिधामृत’ नाम दिया, जिसका अर्थ है- दिव्य औषधीय जल। आज भी भक्त इस जल को स्वास्थ्य, मानसिक शांति और रोगहरण का प्रतीक मानते हैं।
मृत्यु पर विजय की कथा: जब यमराज ने शक्ति खो दी
एक स्थानीय कथा के अनुसार, एक भक्त यमराज के भय से भागते हुए शिव की शरण में आया। शिव ने उसे अभय देकर यम को रोक दिया। कहते हैं कि यम की शक्ति यहां क्षीण हो गई और भक्त को जीवनदान मिला। इससे यह मंदिर मृत्यु-भय से मुक्ति का स्थल भी कहलाने लगा।
वैथेश्वरन कोइल मंदिर की औषधीय मिट्टी का रहस्य
मंदिर की पवित्र भूमि की मिट्टी को औषधीय गुणों से युक्त माना जाता है। कथा है कि देवताओं का उपचार करते समय शिव ने इस भूमि को दिव्य मंत्रों से अभिमंत्रित किया था। भक्त इस मिट्टी को “थीरथु” के रूप में घर ले जाते हैं, जो रोगों से सुरक्षा का प्रतीक मानी जाती है।
वैथेश्वरन कोइल एक प्रमुख आध्यात्मिक-पर्यटन केंद्र
कैसे पहुंचें– नज़दीकी रेलवे स्टेशन: मायलादुथुरै (7 किमी),
निकटतम हवाई अड्डा: तिरुचिरापल्ली,
राज्य परिवहन बसें और टैक्सी आसानी से उपलब्ध!
कहां ठहरें- मध्यम बजट के कई लॉज और होटल,
मंदिर के आसपास धर्मशालाएं,
परिवारों और पर्यटकों के लिए सुरक्षित व सुविधाजनक क्षेत्र!
मंदिर दर्शन का सर्वोत्तम समय– सुबह 6 बजे का अभिषेक,
शाम का दीपाराधना,
दोनों समय मंदिर में अत्यंत शांत और दिव्य वातावरण होता है।
पर्यटकों और यात्रियों के लिए आवश्यक जानकारी
यात्रा से पहले- नाड़ी ज्योतिष अवश्य समय लेकर कराएं, कम से कम 2–3 घंटे रखें।
भीड़ त्योहारों और अमावस्या/पूर्णिमा को बढ़ती है।
मंदिर परिसर फोटोग्राफी के लिए प्रतिबंधित हो सकता है, अनुमति पूछें।
जलकुंड का जल पवित्र माना जाता है, परंतु नियमों का पालन करें।
वैथेश्वरन कोइल मंदिर- आत्मचिंतन की यात्रा
वैथेश्वरन कोइल की पौराणिक कथाएं इसे एक साधारण मंदिर से ऊपर उठाकर एक आध्यात्मिक केंद्र, चमत्कारों का स्थल और रहस्यमयी परंपराओं का घर बना देती हैं। देवताओं के उपचार से लेकर राम के प्रायश्चित और कार्तिकेय के पुनर्जीवन तक, इस भूमि ने अनेक कालखंडों का साक्षी बनने का गौरव पाया है। आज भी मंदिर क्षेत्र में आने वाले श्रद्धालुओं को इन कथाओं की आस्था और दिव्यता का स्पर्श महसूस होता है, जो इसे दक्षिण भारत के सबसे उल्लेखनीय धार्मिक स्थलों में स्थान दिलाता है।
वैथेश्वरन कोइल की यात्रा सिर्फ दर्शन की यात्रा नहीं, बल्कि आत्मचिंतन की यात्रा है जहां आप अपने भीतर छिपी इच्छाओं, प्रश्नों और उत्तरों से रू-ब-रू होते हैं। यहां की शांति मन को गहराई से स्पर्श करती है और यात्रा समाप्त होने पर भी लंबे समय तक भीतर गूंजती रहती है।
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