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December 19, 2025

केरल VC नियुक्ति विवाद खत्म, मुख्यमंत्री-राज्यपाल में बनी सहमति पर सुप्रीम कोर्ट संतुष्ट !

The CSR Journal Magazine

 

केरल में VC नियुक्ति विवाद के अंत से सुप्रीम कोर्ट संतुष्ट, मुख्यमंत्री–राज्यपाल में बनी सहमति! जस्टिस पारदीवाला की अहम टिप्पणी- “जनहित में है कि दोनों संवाद बनाए रखें, चाहे कॉफी के मग पर ही क्यों न हो !”

केरल में विश्वविद्यालयों के VC विवाद मुख्यमंत्री-राज्यपाल में सहमति

केरल में विश्वविद्यालयों के कुलपति (Vice Chancellor) नियुक्ति को लेकर लंबे समय से चले आ रहे  संवैधानिक और प्रशासनिक टकराव पर आखिरकार विराम लग गया है। गुरुवार, 18 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने इस विवाद के समाधान पर संतोष व्यक्त करते हुए इसे “इस पूरे घटनाक्रम का सुखद अंत” बताया। शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्य के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन और राज्यपाल राजेन्द्र विश्वनाथ अरलेकर के बीच बनी सहमति न केवल कानूनी दृष्टि से, बल्कि लोकतांत्रिक परंपराओं और जनहित के लिहाज से भी एक सकारात्मक और स्वागतयोग्य कदम है।

महीनों से ठप पड़ी थी विश्वविद्यालयों की कार्यप्रणाली

राज्य के दो प्रमुख सरकारी विश्वविद्यालयों में नियमित कुलपतियों की नियुक्ति पिछले कई महीनों से अधर में लटकी हुई थी। राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच इस बात को लेकर मतभेद थे कि कुलपति नियुक्ति की प्रक्रिया में अंतिम निर्णय का अधिकार किसके पास होगा और किस वैधानिक प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए। इस टकराव का सीधा असर विश्वविद्यालयों के प्रशासनिक निर्णयों, अकादमिक योजनाओं, परीक्षा प्रणाली, नियुक्तियों और शोध गतिविधियों पर पड़ रहा था, जिससे छात्रों और शिक्षकों दोनों में असमंजस की स्थिति बनी हुई थी।

संवैधानिक अधिकारों की व्याख्या बना विवाद की जड़

यह विवाद केवल नियुक्तियों तक सीमित नहीं था, बल्कि इसके केंद्र में राज्यपाल की भूमिका और राज्य सरकार के अधिकारों की संवैधानिक व्याख्या थी। राज्यपाल, जो विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति भी होते हैं, नियुक्तियों में अपनी निर्णायक भूमिका पर जोर दे रहे थे, जबकि राज्य सरकार का कहना था कि निर्वाचित सरकार की सलाह और प्रक्रिया को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इसी टकराव ने इस मुद्दे को राजनीतिक और संवैधानिक दोनों ही स्तरों पर संवेदनशील बना दिया।

सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप, सहमति बनने पर अदालत ने जताई गहरी संतुष्टि

जब यह विवाद सुलझने की बजाय और गहराता गया, तो मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए शीर्ष अदालत ने केवल कानूनी बहस तक सीमित न रहकर व्यावहारिक समाधान की दिशा में कदम उठाया। अदालत ने दोनों पक्षों के बीच संवाद स्थापित करने और गतिरोध तोड़ने के उद्देश्य से एक  समिति का गठन किया, ताकि विश्वविद्यालयों के हित में संतुलित रास्ता निकाला जा सके। गुरुवार को हुई  सुनवाई के दौरान जब अदालत को यह जानकारी दी गई कि मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच नियमित कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर आपसी सहमति बन गई है, तो न्यायालय ने खुलकर अपनी खुशी जाहिर की। जस्टिस जे.बी. पारदीवाला ने कहा कि यह घटनाक्रम दर्शाता है कि संवाद और सहयोग से जटिल संवैधानिक विवादों का भी समाधान संभव है।

जस्टिस पारदीवाला की टिप्पणी बनी चर्चा का केंद्र

जस्टिस पारदीवाला ने बेहद सहज लेकिन गहरी अर्थवत्ता वाली टिप्पणी करते हुए कहा- “मुझे उम्मीद है कि वे इसी तरह आपस में बातचीत करते रहेंगे, भले ही वह कॉफी के एक मग पर ही क्यों न हो। यह जनता के बड़े हित में है।” इस टिप्पणी को न्यायपालिका की ओर से एक स्पष्ट संदेश माना जा रहा है कि संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को टकराव की बजाय संवाद और आपसी समझ को प्राथमिकता देनी चाहिए।

उच्च शिक्षा व्यवस्था के लिए बड़ी राहत

सुप्रीम कोर्ट ने अपने अवलोकन में कहा कि विश्वविद्यालयों में नियमित और स्थिर नेतृत्व का होना बेहद  आवश्यक है। कुलपति की अनुपस्थिति या अस्थायी व्यवस्था से नीतिगत फैसले अटक जाते हैं, जिससे शैक्षणिक गुणवत्ता और संस्थागत विश्वसनीयता प्रभावित होती है। अदालत के अनुसार, यह सहमति केरल की उच्च शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

राजनीतिक टकराव का खामियाजा संस्थान न भुगतें

अदालत की टिप्पणियों से यह संकेत भी मिला कि संवैधानिक टकरावों का बोझ अकादमिक संस्थानों और छात्रों पर नहीं पड़ना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने अप्रत्यक्ष रूप से यह संदेश दिया कि लोकतंत्र में संस्थाओं की गरिमा बनाए रखने के लिए सहयोग और संवाद अनिवार्य हैं। सहमति बनने के बाद उम्मीद जताई जा रही है कि दोनों विश्वविद्यालयों में नियमित कुलपतियों की नियुक्ति की औपचारिक प्रक्रिया जल्द पूरी की जाएगी। इससे न केवल प्रशासनिक ठहराव खत्म होगा, बल्कि शिक्षा, शोध और नवाचार से जुड़े फैसलों को भी नई गति मिलेगी।

संवाद की जीत, टकराव की हार

केरल का यह विश्वविद्यालयीय विवाद सुप्रीम कोर्ट की सक्रिय भूमिका और दोनों संवैधानिक पदाधिकारियों की समझदारी से एक सकारात्मक मोड़ पर पहुंचा है। यह घटनाक्रम इस बात का उदाहरण है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में टकराव नहीं, बल्कि संवाद और सहमति ही स्थायी समाधान का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
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