बीते ७ अगस्त का दिन हमारे देश के लिए बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण रहा। दो वजहों से यह दिन इतिहास में हमेशा यादगार रहेगा। पहला, इस दिन हमारे देश के एक महान नेता और डी.एम. के पार्टी प्रमुख श्री. करुणानिधि का गंभीर बीमारी के चलते ९४ वर्ष की आयु में दुखद निधन हो गया। उनकी मौत ने सारे देश को हिलाकर रख दिया और समूचे तमिलनाडू को शोक संतप्त कर दिया। दिल्ली समेत देशभर में राष्ट्रीय ध्वज को आधा झुका दिया गया और तमिलनाडू सरकार ने सात दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित कर दिया। श्री. करुणानिधि की राजकीय सम्मान के साथ अंत्येष्टि की गई। उनके अंतिम दर्शन के लिए जनता उमड पडी और देश के सारे दिग्गज नेताओंने आकर अपनी श्रध्दांजली अर्पित की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, काँग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, एनसीपी प्रमुख शरद पवार, प्रफुल्ल पटेल, फारुक अब्दुल्ला और पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा आदि कई नेता उन्हें श्रध्दा सुमन अर्पित करने पहुँचे।
दूसरी वजह, जिसने सात अगस्त को भारत, खासकर मुंबई की जनता के दिलों को झकझोर कर रख दिया, वह थी कश्मीर में बांदीपोरा जिलै में थ्ध्ण् पर आंतकवादी फायरिंग में शहीद हुए मेजर कौस्तुभ राणे की। ९ अगस्त को मेजर राणे की अंतिम यात्रा में मानो पूरा मुंबई उमड़ पड़ा। लोगों ने अश्रुपुरित नेत्रों से शहीद को भावभीनी श्रध्दांजली दी। राजकीय सम्मान से की गई इस अंत्येष्टि में ठाणे के ग्रमीण पालकमंत्री एकनाथ शिंदे, विधायक नरेंद्र मेहता, प्रताप सरनाईक और महापौर डिंपल मेहता ने भी उपस्थित होकर शहीद को सलामी दी।
एक ही दिन में देश में हुई इन दो दुर्घटनाओंमें कुछ विरोधाभास रहे। शहीद मेजर राणे की अंतिम यात्रा में देश के किसी भी बड़े नेता की उपस्थिती नहीं थी। प्रदेश के मुख्यमंत्री तक ने आने की ज़रुरत नहीं समझी। माननीय प्रधानमंत्री जी, जो अपनी हाजिरजवाबी के लिए जाने जाते है, उन्होंने शहीद मेजर की शहादत पर राष्ट्र को कोई संदेश देना ज़रुरी नहीं समझा न ही कोई श्रध्दांजली अर्पित की। काँग्रेस प्रमुख और विपक्षी नेता राहुल गांधी ८ अगस्त को मराठा आरक्षण आंदोलन के बारे में पार्टी नेताओंसे मीटिंग करने में व्यस्त रहे, सो उन्हे भी शायद वक्त नहीं मिला। क्या कुल मिलाकर यह नतीजा नहीं निकलता, कि एक दिग्गज और राजनीति में मसीहा का स्थान रखनेवाले नेता और देश की रक्षा में सरहद पर शहीद होने वाले एक वीर की मृत्यू पर भी हमारे नेताओंने राजनीतिक हित के हिसाब से शोक जताया? अपनी अधिक आयु और गंभीर बीमारी के कारण जान गँवाने वाले और मातृभूमि के लिए अल्पायु में शहीद होने वाले सैनिक के प्रति अपने अंतिम कर्तव्य में भी ये सियासतदान चूक कर गए। एक वीर सैनिक सभी ऐशो-आराम छोड़कर, अपने परिवार से दूर विषम परिस्थितियों में देश की रक्षा करता है, तब कहीं जाकर हम चैन की नींद सोते है और तब कहीं जाकर हमारे ये राजनेता अपनी सियासत की चौपड़ पर पाँसे फेंक पाते है। एक हिंदी विरोधी नेता के तौर पर जाने जाने वाले श्री करुणानिधि का तमिलनाडू में अच्छा खासा प्रभाव था। तमिल फिल्म इंडस्ट्री पर उनका और उनके परिवार का प्रभुत्व था। क्या उनके इस प्रभावशाली वर्चस्व का ही असर था कि उनकी अंतिम यात्रा में सभी बड़ी हस्तियों की उपस्थिती रही?
सभी ने अपने प्रभावी शब्दों में इसे एक अपूरणीय क्षति बताया। हमारे देश की राजनीति प्रमुख व्यवस्था में कई महान नेता आते-जाते रहेंगे, लेकिन ये कई नेता मिलकर भी एक मेजर राणे नहीं बन सकते क्योंकि सत्तालोलुप इन नेताओंके पास देश को लूटकर अपनी जेबें भरने की हिम्मत तो है, पर देश के लिए जान कुर्बान करने का जज्बा और जिगर नहीं। इस बात को जनता अच्छी तरह जानती है। एक शहीद की जान की कीमत भारत का जनमानस भली-भाँति समझता है। शहीद मेजर राणे की अंतिम यात्रा में शामिल असंख्य और विशाल जनसमूह की नम आँखें इसका सबूत है। मेरा सवाल अब भी वही है – प्रधानमंत्रीजी, आपने खुद को प्रधानसेवक का नाम दिया है। अपने नाम को सार्थक कीजिए और कृपया बोलिए। बोलिए जनता की तकलीफों पर, बोलिए देश की मूलभूत समस्याओं पर, बोलिए उन हजारों शहीदों की शहादत पर जो आपके इतने मैत्रिपूर्ण विदेशी दौरों के बावजूद रोज सरहदों पर अपनी जान गँवाते हैं। बोलिए, कि देश से बाहर मैत्रीपूर्ण संबंध बनाने से ज्यादा ज़रुरी है पहले आपका अपनी जनता पर विश्वास कायम करना है।