मुंबई के कुर्ला निवासी एक 16 महीने के मासूम की ज़िंदगी, चौथी मंज़िल से गिरने के बाद भी बच गई थी, लेकिन मुंबई–अहमदाबाद नेशनल हाइवे (NH-48) पर लगे भीषण ट्रैफिक जाम ने उसकी सांसें छीन लीं। समय पर अस्पताल नहीं पहुंच पाने की वजह से बच्चे की एम्बुलेंस में ही मौत हो गई।
चौथी मंजिल से गिरकर भी बचा मासूम
मुंबई के कुर्ला इलाके में गुरुवार को यह दर्दनाक हादसा हुआ। परिवार के मुताबिक, खेलते-खेलते मासूम बालकनी से नीचे गिर पड़ा। नीचे गिरे बच्चे को तुरंत अस्पताल ले जाया गया। चौंकाने वाली बात यह रही कि इतनी ऊंचाई से गिरने के बावजूद बच्चा ज़िंदा था और हल्की-फुल्की हरकतें कर रहा था।तुरंत एम्बुलेंस बुलाई गई और डॉक्टरों ने उसे बड़े अस्पताल में भर्ती कराने की सलाह दी। परिजनों को उम्मीद थी कि अब इलाज मिलने पर उनका लाल सुरक्षित रहेगा।
एम्बुलेंस में दे दी जान
लेकिन किस्मत बेरहम साबित हुई। एम्बुलेंस जैसे ही NH-48 पर पहुंची, वहां लंबा ट्रैफिक जाम लगा हुआ था। एम्बुलेंस का सायरन लगातार बजता रहा, चालक ने बार-बार रास्ता निकालने की कोशिश की, लेकिन गाड़ियों की भीड़ ने आगे बढ़ने नहीं दिया। करीब आधे घंटे तक एम्बुलेंस जाम में फंसी रही। इस दौरान बच्चे की हालत लगातार बिगड़ती चली गई। डॉक्टरों ने उसे बचाने की कोशिश की, परंतु अस्पताल पहुंचने से पहले ही मासूम ने दम तोड़ दिया।
मां का दर्द : “चौथी मंज़िल से गिर कर भी बच गया पर जाम ने जान ले ली”
बच्चे की मां बेसुध होकर बार-बार यही कहती रही, ‘मेरा बेटा चौथी मंज़िल से गिरकर भी बच गया था। डॉक्टर ने कहा था कि समय पर इलाज हो गया तो ठीक हो जाएगा। लेकिन ट्रैफिक जाम ने मेरी गोद सूनी कर दी।”
लोगों में गुस्सा, प्रशासन पर सवाल
इस घटना के बाद स्थानीय लोगों में गुस्सा है। उनका कहना है कि ट्रैफिक व्यवस्था में लापरवाही और एम्बुलेंस को प्राथमिकता न देना सीधे तौर पर एक मासूम की मौत का कारण बना। पड़ोसी रमेश गुप्ता ने कहा, “यह हादसा नहीं, व्यवस्था की नाकामी है। जिस बच्चे को भगवान ने बचा लिया था, उसे हमारी लापरवाही ने मार दिया।” सोशल मीडिया पर भी लोगों ने गाड़ियों को सायरन सुनकर रास्ता न देने वाले चालकों को कठघरे में खड़ा किया है। विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रैफिक जाम में एम्बुलेंस को हरी झंडी देने के लिए Green Corridor सिस्टम और सख्त नियम लागू करना बेहद ज़रूरी है।
मुंबई ट्रैफिक में जा रही जानें
“एम्बुलेंस का सायरन सुनकर भी गाड़ियां नहीं हटतीं, सड़कें जाम रहती हैं और मरीज अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देता है।” यह बयान हाल ही में सामने आई कई घटनाओं की कड़वी हकीकत है। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में ट्रैफिक जाम अब केवल परेशानी ही नहीं, बल्कि ज़िंदगी और मौत का सवाल बन चुका है। कुर्ला के 16 माह के बच्चे की दर्दनाक मौत ने पूरे शहर को झकझोर दिया। चौथी मंज़िल से गिरने के बाद भी बच्चा बच गया था, लेकिन अहमदाबाद-मुंबई एक्सप्रेसवे (NH-48) पर एम्बुलेंस जाम में फंसी रही और अस्पताल पहुंचने से पहले ही उसकी जान चली गई।
हर दिन फंसती हैं 100 से अधिक एम्बुलेंस
ट्रैफिक विभाग के अधिकारियों के अनुसार, मुंबई में रोज़ाना 100 से अधिक एम्बुलेंस ट्रैफिक जाम में फंस जाती हैं। इनमें से कई मामलों में मरीजों की हालत बिगड़ जाती है और कभी-कभी उनकी मौत भी हो जाती है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि Golden Hour यानी हादसे के तुरंत बाद का एक घंटा मरीज की जान बचाने में सबसे अहम होता है। लेकिन मुंबई जैसी भीड़भाड़ वाली जगहों पर यह समय ट्रैफिक जाम में ही निकल जाता है।
लोगों का गुस्सा
सोशल मीडिया पर लगातार लोगों की नाराज़गी सामने आ रही है। कई नागरिकों ने लिखा है कि ट्रैफिक पुलिस और चालकों की संवेदनहीनता की वजह से मासूम और मरीज अपनी जान गंवा रहे हैं।कुर्ला के एक स्थानीय निवासी ने कहा, “मुंबई ट्रैफिक अब केवल धैर्य की परीक्षा नहीं है, यह सीधे तौर पर हमारी जिंदगियों से खेल रहा है।”
प्रशासन के दावे
मुंबई ट्रैफिक पुलिस का कहना है कि एम्बुलेंस को प्राथमिकता देने के लिए नए नियम बनाए जा रहे हैं। Green Corridor की व्यवस्था बड़े हादसों में पहले से ही लागू है, लेकिन छोटे स्तर पर इसे लागू करने में मुश्किलें आ रही हैं।
फैक्ट फाइल: मुंबई ट्रैफिक और एम्बुलेंस संकट
मुंबई में रोज़ाना 35 लाख से अधिक वाहन सड़कों पर उतरते हैं।
2024 में ही ट्रैफिक जाम के कारण 250 से अधिक एम्बुलेंस समय पर अस्पताल नहीं पहुंच सकीं।
Golden Hour में इलाज न मिलने से हज़ारों जानें खतरे में पड़ रही हैं।
ट्रैफिक पुलिस ने सायरन अलर्ट ऐप शुरू करने की योजना बनाई है। जिसमे एम्बुलेंस / आपात सेवा वाहन सायरन बजाए तो उसका लाइव लोकेशन ट्रैक हो। नज़दीकी ट्रैफिक पुलिस स्टेशन या ट्रैफिक कंट्रोल सेंटर को ऑटो-नोटिफिकेशन जाए कि रास्ता साफ किया जाए। नागरिकों को सूचना भेजी जाए कि “आने वाली एम्बुलेंस है, कृपया रास्ता दें।” SOS बटन हो ताकि एम्बुलेंस चालक ट्रैफिक में फंसे होने पर मदद मांग सके।
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