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November 22, 2025

सिंगापुर में सीनियर सिटीजंस के लिए सरकार का स्वास्थ्य सुरक्षा कवच, भारत में क्या है स्थिति?

The CSR Journal Magazine

 

सिंगापुर दुनिया के उन देशों में है जहां आबादी तेजी से वृद्ध हो रही है। उम्र बढ़ने के साथ स्वास्थ्य-खर्च भी बढ़ता है, चाहे नियमित जांच, दवाएं, अस्पताल में भर्ती, होम-केयर या नर्सिंग होम की सुविधा हो। इसी चुनौती को देखते हुए सिंगापुर सरकार ने अपने वरिष्ठ नागरिकों, विशेषकर 60 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को व्यापक आर्थिक सहायता देने के लिए कई नीतिगत कदम उठाए हैं। सरकार का उद्देश्य है कि कोई भी बुजुर्ग सिर्फ महंगी चिकित्सा लागत की वजह से आवश्यक इलाज से वंचित न रहे।

1. MediSave और Flexi-MediSave: बुजुर्गों की जेब में राहत

MediSave सिंगापुर की अनिवार्य स्वास्थ्य-संचय प्रणाली है, जिसमें नागरिक अपनी आय का एक हिस्सा सुरक्षित रखते हैं। 60 वर्ष से अधिक उम्र के वरिष्ठ नागरिकों के लिए Flexi-MediSave के माध्यम से आउटपेशन्ट इलाज के लिए अधिक वार्षिक सीमा उपलब्ध कराई गई है। यह सीमा पहले की तुलना में बढ़ाई गई है, ताकि नियमित क्लीनिक विज़िट, दवाएं, क्रोनिक बीमारियों का इलाज, और छोटे परीक्षण बिना जेब पर बोझ डाले कराए जा सकें। MRI और CT स्कैन जैसे महंगे आउटपेशन्ट परीक्षणों के लिए MediSave से निकासी की ऊपरी सीमा भी बढ़ाई गई है, जिससे बुजुर्गों को बड़ी राहत मिलेगी। सरकार लगातार MediSave की उपयोगिता बढ़ाने की दिशा में काम कर रही है, ताकि बुजुर्ग अपनी जमा स्वास्थ्य-राशि का उपयोग वास्तविक जरूरतों पर सहज रूप से कर सकें।

2. कम आय और मध्यम आय वाले बुजुर्गों के लिए मेडिकल सब्सिडी (CHAS)

Community Health Assist Scheme या CHAS बुजुर्गों के लिए सबसे बड़ी राहत व्यवस्था है। इसमें ऐसे वरिष्ठ नागरिक शामिल होते हैं जिन्हें निजी क्लीनिक और डेंटल क्लीनिक पर इलाज का खर्च उठाना कठिन लगता है। CHAS के विभिन्न स्तरों पर बुजुर्गों को उच्च चिकित्सा-सब्सिडी मिलती है। इसमें क्रोनिक बीमारी, सामान्य बीमारी, डेंटल देखभाल और डायग्नोस्टिक टेस्ट शामिल हैं। पात्रता आय पर आधारित है, लेकिन सरकार ने आय सीमा को काफी व्यापक किया है ताकि अधिक बुजुर्ग इसके दायरे में आएं। सिंगापुर के “Pioneer Generation” और “Merdeka Generation” जैसे बुजुर्ग समूहों को भी सरकार भारी सब्सिडी देती है, क्योंकि उन्होंने देश निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

3. दीर्घकालीन देखभाल (Long-Term Care): 80 से 95 प्रतिशत तक की सब्सिडी

जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, कई बुजुर्गों को ऐसे स्वास्थ्य-समर्थन की आवश्यकता होती है जो केवल अस्पताल नहीं बल्कि निरंतर देखभाल से जुड़ा होता है, जैसे- नर्सिंग होम, होम नर्सिंग, डिमेंशिया डे-केयर, पुनर्वास सेवाएं और घर पर देखभाल (होम-केयर)। इन सेवाओं की लागत बहुत अधिक हो सकती है। इसलिए सरकार ने रेजिडेंशियल लॉन्ग-टर्म केयर पर अधिकतम सब्सिडी 80 फीसदी तक और कम आय वाले समूहों के लिए होम-केयर सेवाओं पर 95 फीसदी तक सब्सिडी देने की घोषणा की है।यह बदलाव जुलाई 2026 से लागू होंगे। इसी के साथ पात्रता आय सीमा भी बढ़ाई गई है, जिससे हजारों नए परिवार सब्सिडी पाने के योग्य बन गए हैं।सरकार का अनुमान है कि आने वाले वर्षों में लगभग 80,000 वरिष्ठ नागरिक इन सुधारों का लाभ उठाएंगे।

4. Seniors’ Mobility and Enabling Fund (SMF): उपकरणों और सहायक सेवाओं के लिए सहायता

बुजुर्गों को घर पर सुरक्षित और स्वावलंबी बनाए रखने के लिए व्हीलचेयर, अस्पताल-बेड, वॉकर, बाथरूम-सपोर्ट, श्वसन उपकरण, कैथेटर एवं डायपर जैसे मेडिकल कंज़्यूमेबल, इन सब पर बड़े स्तर की सरकारी सब्सिडी मिलती है। आय-आधारित पात्रता की सीमा को बढ़ाए जाने से अधिक मध्यम आय वाले परिवार भी अब इस सहायता से लाभ उठा सकेंगे।

5. होम केयरगिविंग ग्रांट (HCG): परिवारों के लिए राहत

कई बुजुर्ग घर पर ही रहना चाहते हैं, और परिवार उनका देखभालकर्ता बनता है। सरकार ने इस ग्रांट को 400 डॉलर से बढ़ाकर 600 डॉलर प्रति माह कर दिया है। यह राशि परिवारजन को मिलती है ताकि वे बुजुर्ग की देखभाल के लिए आवश्यक सुविधाएं, उपकरण और सेवाएं आसानी से जुटा सकें। यह सहायता उन घरों के लिए बहुत उपयोगी है जहां एक सदस्य को full-time बुजुर्ग की देखभाल करनी पड़ती है।

6. CareShield Life: दीर्घकालीन विकलांगता के लिए आर्थिक सुरक्षा

CareShield Life एक सरकारी बीमा योजना है जो उन बुजुर्गों को मासिक वित्तीय सहायता देती है जिन्हें गंभीर अक्षमता के कारण लंबे समय तक देखभाल की जरूरत है। सरकार प्रीमियम पर आर्थिक मदद देती है। कम आय वाले बुजुर्गों के लिए प्रीमियम सब्सिडी बढ़ाई गई है। 2026–2030 के बीच अतिरिक्त सरकारी सहायता के चलते यह योजना अधिक किफायती और उपयोगी होगी।

बुजुर्गों की आर्थिक सुरक्षा कितनी मजबूत हुई?

1. जेब पर तत्काल प्रभाव– आउटपेशन्ट और स्कैन संबंधी MediSave निकासी बढ़ने से नियमित स्वास्थ्य-खर्च अब कम बोझ बनेगा।
2. दीर्घकालीन देखभाल के खर्च में भारी कमी– नर्सिंग होम और घर पर देखभाल जैसे खर्च हजारों डॉलर महीने तक जा सकते हैं। नई 80 प्रतिशत – 95 फीसदी सब्सिडी ऐसे खर्चों को बुजुर्ग और परिवार, दोनों के लिए संभालने योग्य बनाती है।
3. मध्यम आय वाले बुजुर्ग भी अब दायरे में– पहले सब्सिडी अक्सर केवल कम आय वाले लिए होती थी। अब आय सीमा के विस्तार से मध्यम आय वाले भी सहायता पा सकेंगे।
4. सरकारी दृष्टिकोण: “सस्टेनेबल” वृद्ध-देखभाल व्यवस्था– सरकार ने स्पष्ट रूप से संकेत दिया है कि वह भविष्य के लिए एक टिकाऊ और मजबूत वृद्ध-देखभाल सिस्टम बनाना चाहती है, जहाँ बुजुर्गों को सम्मान और सुरक्षा के साथ उपचार मिले।

सिंगापुर बनाम भारत : बुज़ुर्गों की चिकित्सा सुरक्षा पर एक दृष्टि

दुनिया के कई देशों में बढ़ती उम्र को सम्मान और सुरक्षा के साथ जोड़कर देखा जाता है, और सिंगापुर इसका एक प्रभावशाली उदाहरण है। वहां 60 वर्ष से अधिक आयु के नागरिकों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं को आसान, सुलभ और किफ़ायती बनाना सरकार की पहली प्राथमिकता है। योजनाएं इस तरह बनाई गई हैं कि कोई भी बुज़ुर्ग सिर्फ इसलिए इलाज से वंचित न रहे क्योंकि उसके पास पर्याप्त धन नहीं है।इसके विपरीत भारत, जहां जनसंख्या कहीं अधिक है और संसाधनों का दबाव बहुत बड़ा, वहां बुज़ुर्गों की चिकित्सा सुरक्षा पर कई पहेलियां अब भी अनसुलझी हैं। यह तुलना केवल एक देश को दूसरे से बेहतर साबित करने के लिए नहीं, बल्कि यह समझने के लिए है कि कौन-सी नीतियां हमारे बुज़ुर्गों के जीवन में वास्तविक बदलाव ला सकती हैं।

सिंगापुर: उम्र बढ़ी, सुरक्षा और सम्मान भी बढ़ा

सिंगापुर में बुज़ुर्गों की चिकित्सा प्रणाली तीन आधारों पर खड़ी है- सुलभता, वित्तीय सुरक्षा और सरकारी ज़िम्मेदारी। सरकार प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं पर भारी सब्सिडी देती है, सार्वजनिक अस्पतालों में इलाज की लागत कई गुना कम हो जाती है, और विशेष वृद्धजन सहायता कार्यक्रम यह सुनिश्चित करते हैं कि कोई भी वरिष्ठ नागरिक दवाओं, कैंसर उपचार, सर्जरी या पुरानी बीमारियों के इलाज के खर्च में दब न जाए। सरकारी क्लीनिकों में उम्र के साथ बढ़ने वाली बीमारियां, जैसे डायबिटीज़, हृदय रोग, अर्थराइटिस या डिमेंशिया का उपचार सस्ते दरों पर उपलब्ध है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह कि स्वास्थ्य सेवा को एक सामाजिक ज़िम्मेदारीके रूप में देखा जाता है, जिसका उद्देश्य बुज़ुर्गों की गुणवत्ता-पूर्ण और गरिमापूर्ण जीवन सुनिश्चित करना है।

भारत: इच्छाशक्ति है पर व्यवस्था बिखरी हुई

भारत की स्थिति बिल्कुल अलग है। यहां बुज़ुर्गों की आबादी विशाल है और तेज़ी से बढ़ भी रही है। सरकारी अस्पतालों में संसाधन सीमित हैं, डॉक्टरों की संख्या कम है और दवाओं की उपलब्धता अक्सर अस्थिर। हालांकि भारत ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, जैसे वरिष्ठ नागरिकों के लिए स्वास्थ्य योजनाएं, सरकारी अस्पतालों में सस्ती दवाएं, और कुछ राज्यों की अपनी विशेष वृद्धजन स्वास्थ्य नीतियां, परंतु जमीनी स्तर पर स्थिति अब भी वांछित स्तर तक नहीं पहुंची।

बेहतर बनाने की कोशिश में नई स्वास्थ्य योजनाएं

भारत में निजी स्वास्थ्य सेवाएं अत्यधिक महंगी हैं। बुज़ुर्ग अक्सर पेंशन या परिवार पर निर्भर रहते हैं, ऐसे में बीमारी परिवार की आर्थिक स्थिति को हिला देती है। ग्रामीण इलाकों में तो समस्या और भी गंभीर है—क्योंकि वहां न डॉक्टर उपलब्ध, न अस्पताल, न विशेषज्ञ। फिर भी, यह भी सच है कि भारत में स्वास्थ्य ढांचे को बेहतर बनाने की गति तेज़ हो रही है। टेली-मेडिसिन, जन औषधि केंद्र, आयुष्मान योजना जैसी पहलें उम्मीद जगाती हैं। लेकिन बुज़ुर्गों की विशिष्ट ज़रूरतों को संबोधित करने वाली एक समर्पित और व्यापक नीति अब भी अधूरी है।

सिंगापुर से भारत क्या सीख सकता है?

1. स्वास्थ्य को अधिकार की तरह देखना– सिंगापुर की तरह भारत को भी बुज़ुर्गों के स्वास्थ्य को “कल्याण” नहीं, बल्कि “अधिकार” के रूप में स्वीकार करना होगा।
2. प्राथमिक स्वास्थ्य ढांचा मज़बूत करना– छोटे क्लीनिकों, PHC को आधुनिक उपकरणों और विशेषज्ञ डॉक्टरों के साथ मज़बूत करना अनिवार्य है।
3. दवाओं और परीक्षणों पर भारी सब्सिडी– बुज़ुर्गों के लिए दवाओं और डायग्नोस्टिक टेस्टों की लागत कम करना ज़रूरी है।
4. दीर्घकालिक बीमारियों का विशेष प्रबंधन-डायबिटीज़, हार्ट डिज़ीज़, हाइपरटेंशन जैसी बीमारियों के लिए अलग योजनाएँ बनाई जानी चाहिए।
5. ग्रामीण भारत को प्राथमिकता– असली चुनौती ग्रामीण क्षेत्रों में है, जहां स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी बुज़ुर्गों को सबसे अधिक प्रभावित करती है।

एक संवेदनशील समाज की पहचान उसके बुज़ुर्गों से होती है

बुज़ुर्गों की सुरक्षा केवल एक सरकारी नीति नहीं, बल्कि सामूहिक मानवीय कर्तव्य है। सिंगापुर ने साबित किया है कि सही नीतियों और समर्पण के साथ उम्र किसी बोझ में नहीं बदलती। भारत, अपनी विशाल जनसंख्या और विविध चुनौतियों के बावजूद, इस दिशा में आगे बढ़ सकता है, यदि फोकस बुज़ुर्गों की गरिमा, स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा पर केंद्रित रहे। यह समय है कि भारत बुज़ुर्गों को स्वास्थ्य सुरक्षा की पंक्ति में सबसे आगे रखे, क्योंकि एक ऐसा राष्ट्र जो अपने वरिष्ठ नागरिकों की इज़्ज़त और देखभाल करता है, वह भविष्य में भी मज़बूती से खड़ा रहता है।
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