माना जाता है कि नवरात्रि के दूसरे दिन माता के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा करने से तप, त्याग, संयम, सदाचार आदि की वृद्धि होती है। इसलिए इस दिन भक्त जगह-जगह मंदिरों में जाकर माता का आर्शिवाद प्राप्त करते हैं। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा होती है। वहीं दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है। ब्रह्मचारिणी दो शब्दों से मिलकर बना है। इसमें ब्रह्म का अर्थ तपस्या और चारिणी का अर्थ आचरण है। यानी तपस्या का आचरण करने वाली।
ब्रह्मचारिणी, यानि तप, त्याग,वैराग्य और संयम की देवी
देवी ब्रह्मचारिणी की उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार , संयम की वृद्धि होती है। जीवन के कठिन समय मे भी उसका मन कर्तव्य पथ से विचलित नहीं होता है। देवी अपने साधकों की मलिनता, दुर्गणों व दोषों को खत्म करती है। देवी की कृपा से सर्वत्र सिद्धि तथा विजय की प्राप्ति होती है।
दूसरे नवरात्र में मां के ब्रह्मचारिणी एवं तपश्चारिणी रूप को पूजा जाता है। जो साधक मां के इस रूप की पूजा करते हैं उन्हें तप, त्याग, वैराग्य, संयम और सदाचार की प्राप्ति होती है और जीवन में वे जिस बात का संकल्प कर लेते हैं उसे पूरा करके ही रहते हैं। मां भगवती को नवरात्र के दूसरे दिन चीनी का भोग लगाना चाहिए, मां को शक्कर का भोग प्रिय है। ब्राह्मण को दान में भी चीनी ही देनी चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से मनुष्य दीर्घायु होता है। इनकी उपासना करने से मनुष्य में तप, त्याग, सदाचार आदि की वृद्धि होती है। मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप ज्योर्तिमय है। ये मां दुर्गा की नौ शक्तियों में से दूसरी शक्ति हैं। तपश्चारिणी, अपर्णा और उमा इनके अन्य नाम हैं। इनकी पूजा करने से सभी काम पूरे होते हैं, रुकावटें दूर हो जाती हैं और विजय की प्राप्ति होती है। इसके अलावा हर तरह की परेशानियां भी खत्म होती हैं। देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है।
वाराणसी का मां ब्रह्मचारिणी दुर्गा मंदिर है काशी की शान
मां ब्रह्मचारिणी को समर्पित सबसे ऐतिहासिक मंदिर वाराणसी में स्थित है। माता के सती स्वरूप का आगमन भगवान शिव की प्राप्ति के लिए हुआ था। मां सती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था। काशी में माता का मंदिर स्थित है। इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यह दिखने में भव्य और सुंदर है। यहां लाखों की संख्या में भक्त माता के दर्शन के लिए यहां आते हैं। ब्रह्मचारिणी दुर्गा मंदिर में भक्तों की भीड़ सुबह से ही लग जाती हैं। अगर आप यहां जा रहे हैं, तो समय का ध्यान रखें, क्योंकि दोपहर में मंदिर बंद हो जाता है। नवरात्रि में हर साल यहां लाखों की संख्या में भक्त माता के दर्शन के लिए यहां आते हैं। मान्यता है कि जो भी व्यक्ति नवरात्रि के दूसरे दिन यहां माता की मूर्ति के सामने अपना सिर झुकाकर माता की पूजा अर्चना करता है, उसे माता का आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही उसके जीवन में सुख शांति बनी रहती है और कष्टों से मुक्ति मिलती है। मां ब्रह्मचारिणी का मंदिर सिर्फ काशी में ही नहीं बल्कि अन्य कई जगहों पर भी स्थित है।
काशी के गंगा किनारे घासी टोला, पंचगंगा घाट और बालाजी घाट के आसपास मां ब्रह्मचारिणी मंदिर स्थित है जो सुबह 6:30 से दोपहर 1 और शाम 5 बजे से लेकर रात 10 बजे तक खुला रहता है।
मां पूर्वी देवी बाघम्बरी मंदिर
लखनऊ के शास्त्री नगर स्थित दुर्गा मंदिर में भी देवी की पूजा मां ब्रह्मचारिणी के रूप में की जाती है। हर साल नवरात्रि के दूसरे दिन यहां मां ब्रह्मचारिणी के दर्शन करने के लिए सुबह से ही भक्तों का लाइन लग जाती है। नवरात्रि में इस मंदिर की खास सजावट की जाती है। साथ ही फूलों से माता का दरबार सजाने के बाद काजू, बादाम, मखाने से माता का शृंगार किया जाता है।
600 साल पुराना मां पूर्वी देवी मंदिर
ठाकुरगंज के तहसीनगंज में मां पूर्वी देवी एवं महाकालेश्वर मंदिर बाघंबरी शक्तिपीठ की दीवारें लाखौरी ईंटों से बनी हैं। पुरातत्व विशेषज्ञ बताते हैं कि यह मंदिर 600 साल से अधिक पुराना है। मंदिर समिति के संरक्षक प्रमोद शुक्ला ने बताया कि इस प्राचीन मंदिर की मान्यता है कि यहां से लिए गए दीप से दीपदान करने से मान्यता पूरी होती है। सबसे ज्यादा युवक-युवतियां इन दीपों का नदी में दान करते हैं। मंदिर के किनारे से बहती गोमती नदी में दीपदान करने वाले युवक-युवतियों की शादी की मन्नत जल्द पूरी होती है। दीपदान का सिलसिला आज तक जारी है। इस मंदिर में काफी गुंबद बने हैं। विशालकाय नीम का वृक्ष है। मां का चेहरा पूरब की ओर है, इसी वजह से पूर्वी देवी के रूप में मां की पूजा अर्चना होती है। मंदिर में ही प्रभू श्रीराम, लक्ष्मी नारायण, राधा कृष्ण और शिव परिवार स्थापित है। मंदिर में श्रद्धालू स्वयं प्रसाद चढ़ाते हैं।
प्रमोद ने बताया कि कोरोना से पहले तक देश विदेश के 21 सौ मंदिरों तक दीप भेजे जाते थे। पूर्वी देवी बहुत से लोगों की कुल देवी हैं। ऐसे में दूसरे राज्यों से लोग ऑनलाइन मां पूर्वी देवी के मंदिर को सर्च करके यहां दर्शन को पहुंचते हैं। साथ ही विवाह में तेल पूजन, नई बहू को दर्शन कराकर पूजन कराने भी लोग बाहर से आते हैं।
शारदीय नवरात्र में लगता है मेला
ठाकुरगंज के तहसीनगंज में जामा मस्जिद के पास मां का दरबार स्थापित है। गुंबदों से बने मंदिर के सामने नीम का विशालकाय वृक्ष मां पूर्वी देवी के होने का संकेत देता है। शारदीय नवरात्र पर यहां श्रद्धालुओं का मेला लगा है। सुबह आरती के साथ ही महिलाओं की ओर से भजन संध्या होती है। दर्शन के लिए भोर से ही कतारें लग जाती हैं। यहां की खास बात यह है कि मंदिर में श्रद्धालु स्वयं प्रसाद चढ़ाते हैं। महिलाओं और पुरुषों के दर्शन की अलग-अलग व्यवस्था है। नवरात्र में हाजिरी लगाने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। श्रद्धालुओं की ओर से ही श्रृंगार का इंतजाम है। मां का हर स्वरूप श्रद्धालुओं को अपनी ओर खींचता है।
बगोई माता मंदिर में पड़ती है रिश्तों की नींव
मंदिर समिति के सभी सदस्य व श्रद्धालु मिलकर भक्तों की सेवा करते हैं। निःशुल्क पेयजल सेवा के साथ ही शादियों के रिश्तों की नींव भी मंदिर में ही पड़ती है। मंदिर में किसी को कष्ट न हो, इसका इंतजाम किया जाता है। नवरात्र में आने वाले श्रद्धालुओं को कोई परेशानी न हो, इसका पूरा इंतजाम किया जाता है। भोर में ही कपाट खोल दिए जाते हैं। संध्या आरती के दौरान श्रद्धालुओं का तांता लगता है। नवरात्रों में मां पूर्वी के दर्शनों के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ इतनी बढ़ जाती है कि मंदिर परिसर में लोगों का रुकना भी मना कर दिया जाता है।
ब्रह्मचारिणी मां बगोई माता का मंदिर
मध्य प्रदेश के देवास जिले में एक ऐसा मंदिर है जहां मां ब्रह्मचारिणी विराजमान हैं। घने जंगल और कच्ची सड़कें होने के बावजूद यहां दूर-दूर से भक्त आते हैं। इस मंदिर की खासियत यह है कि मां किसी भव्य मंदिर में नहीं बल्कि पेड़ों के नीचे विराजमान हैं। मध्य प्रदेश में बेहरी के जंगल में बगोई माता का मंदिर स्थित है। यहां इनकी पूजा मां ब्रह्मचारिणी के रूप में की जाती है। दूरस्थ अंचल में होने के कारण यहां जाने के लिए कच्चा मार्ग है। नवरात्रि में भक्त नौ दिनों तक नंगे पैर जाकर माता के दर्शन करते हैं। यहां भक्त अपनी मन्नत पूरी होने पर माता को प्रिय वस्तु मिश्री व पंचामृत भोग लगाते हैं। दूध, घी एवं गुड़ से बना प्रसाद चढ़ाते हैं।
ब्रह्मचारिणी मां बगोई को लगता है कद्दू का भोग
मध्यप्रदेश के देवास जिले में स्थित बगोई माता को कद्दू का भोग लगाया जाता है। इसके अलावा, दूध, घी, गुड़ और पंचामृत भी अर्पित की जाती है। स्थानीय लोगों का कहना है कि कद्दू का भोग लगाने से बगोई माता प्रसन्न होती हैं। उनकी कृपा साधक पर बरसती हैं। बगोई माता की कृपा से साधक के सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं। साधक मनोकामना पूर्ति हेतु या मनोकामना पूर्ण होने पर बगोई माता को प्रसाद में कद्दू भेंट करते हैं। बगोई माता के मंदिर में उपलब्ध भभूति का प्रयोग करने से सभी प्रकार के शारीरिक एवं मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।
कैसे पहुंचे बगोई माता मंदिर
साधक यातायात के किसी माध्यम से मध्यप्रदेश के देवास पहुंच सकते हैं। हालांकि, बेहरी से बगोई माता मंदिर तक साधक को नंगे पांव जाना होता है। बगोई माता का मंदिर बेहरी क्षेत्र के वन में स्थित है। साधक फ्लाइट से देवास पहुंच सकते हैं। इसके अलावा, ट्रेन के जरिए भी देवास जा सकते हैं। देवास से सड़क मार्ग के जरिए बेहरी जा सकते हैं। नवरात्र मौके पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु बगोई माता के दर्शन हेतु देवास पहुंचते हैं।
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