RTI answer after 6 years: RTI कानून के तहत 30 दिन में जवाब देना जरूरी होता है, लेकिन पुणे के व्यवसायी को जवाब मिला पूरे 6 साल 7 महीने बाद! यह मामला न केवल सरकारी व्यवस्था की सुस्ती दिखाता है, बल्कि पारदर्शिता और जवाबदेही के दावों की हकीकत भी उजागर करता है। दरअसल पुणे के व्यवसायी और राजनीतिक विश्लेषक प्रफुल्ल सारडा ने साल 2017 में एक आरटीआई अर्जी पवन हंस लिमिटेड (Pawan Hans RTI Case) को भेजी थी। यह कंपनी भारत सरकार के अधीन एक सार्वजनिक क्षेत्र की हेलिकॉप्टर सेवा कंपनी है। लेकिन इस आरटीआई का जवाब उन्हें तब मिला जब लगभग 6 साल 7 महीने बीत चुके थे।
2017 में डाली RTI, जवाब मिला 2024 के अंत में
The CSR Journal से बात करते हुए प्रफुल्ल सारडा ने बताया कि RTI का जवाब 30 दिनों में मिलना चाहिए, लेकिन मुझे 6 साल 7 महीने बाद मिला। यह सिस्टम की नाकामी है। उन्होंने आगे सवाल उठाया, “क्या यही पारदर्शिता की असली तस्वीर है?” यह मामला RTI Delay India का ताजा उदाहरण है। प्रफुल्ल सारडा ने पवन हंस लिमिटेड को 29 नवंबर 2017 को ऑनलाइन के जरिये RTI Application भेजी थी जिसका जवाब 4 जुलाई 2024 को आया।
RTI कानून की धज्जियां उड़ती रहीं
सारडा का कहना है कि उन्होंने कई बार रिमाइंडर, कॉल्स और ईमेल भेजे, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। जब देश में RTI को लोकतंत्र की रीढ़ (Backbone of Indian Democracy) माना जाता है, तब एक केंद्रीय कंपनी द्वारा इस तरह की लापरवाही पूरी व्यवस्था की कमजोरी को उजागर करती है। RTI Law Violation: कानून के अनुसार, सूचना 30 दिनों में देनी होती है, लेकिन यहां 6 साल 7 महीने का इंतज़ार कराया गया।
आरटीआई के कानून पर उठते सवाल
No Accountability in RTI System: देरी के लिए न तो किसी अधिकारी को जिम्मेदार ठहराया गया और न ही कोई कार्रवाई हुई। RTI Appeal System Failure: शिकायतों और अपीलों के बावजूद सारडा को न तो समय पर जानकारी मिली और न ही कोई राहत। Transparency in Governance पर सवाल: जब एक जागरूक नागरिक को सालों इंतजार करना पड़े, तो आम जनता का क्या हाल होगा? प्रफुल्ल सारडा पहले भी RTI Activist in India के रूप में कई मुद्दों को उजागर कर चुके हैं। वे मानते हैं कि यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति की शिकायत नहीं है, बल्कि पूरे सिस्टम के लिए एक चेतावनी है।
RTI कानून के अस्तित्व पर संकट?
RTI अगर लोकतंत्र की रीढ़ है, तो ऐसे मामलों से यह रीढ़ कमजोर होती जा रही है। अब तय करना सरकार को है कि RTI नागरिकों का अधिकार है या महज़ एक कागज़ी कानून। साल 2005 में लागू हुआ Right to Information Act in India पारदर्शिता की एक अहम पहल मानी जाती है। लेकिन अगर इस कानून की ही अवहेलना होती रही, तो यह लोकतांत्रिक प्रणाली पर सीधा हमला है। RTI System Failure in India जैसे मामलों में न्यायिक और प्रशासनिक हस्तक्षेप जरुरी हो गया है।
जनता का हक़ मार रही है सरकार
सरकार को यह समझना होगा कि RTI in India सिर्फ एक कानून नहीं, जनता का हक़ है। ऐसी लापरवाहियों से न केवल कानून का अपमान होता है, बल्कि नागरिकों का भरोसा भी टूटता है। अब वक्त है कि ऐसे मामलों में Strict Action in RTI Cases और जवाबदेही तय की जाए, ताकि RTI फिर से एक सशक्त नागरिक अधिकार (Empowered Citizens’ Right) बन सके, न कि सिर्फ नाम का कानून।